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यूपी से लेकर बिहार तक महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की एक सी कहानी

उत्तर प्रदेश में जहां बीजेपी दूसरी बार सरकार बना रही है, तो वहीं बिहार में बीजेपी जनता दल यूनाइटेड के साथ गठबंधन कर सत्ता पर काबिज़ है। बीते कुछ सालों में दोनों राज्यों पितृसत्तात्मक राजनीति की समानता और शासन-प्रशासन, कानून व्यवस्था के ध्वस्त होने की समानता नज़र आ रही है।
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उत्तर प्रदेश और बिहार, महज़ भौगोलिक रूप से ही एक-दूसरे के पड़ोसी नहीं हैं बल्कि यहां की भाषा, बोली और संस्कृति भी बहुत हद तक आपस में मेल खाती है। इसके अलावा बीते कुछ सालों में इन दोनों राज्यों में एक और समानता नज़र आ रही है और वो है महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की समानता, पितृसत्तात्मक राजनीति की समानता और शासन-प्रशासन, कानून व्यवस्था के ध्वस्त होने की समानता। महिलावादी संगठन और नागरिक समाज पहले से ही कहते रहे हैं कि अब नीतीश सरकार भी यूपी की योगी सरकार के नक्शे क़दम पर चल रही है जहां अपराधियों को सत्ता का संरक्षण हासिल है और पुलिस प्रशासन पीड़ित को ही प्रताड़ित करने में महारत हासिल कर चुका है।

बता दें कि सोशल मीडिया पर महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न से जुड़ा यूपी के जौनपुर और बिहार के मधेपुरा के दो वीडियो वायरल हो रहे हैं। जौनपुर के वीडियो में कुछ महिलाएं अपने शरीर पर चोटों के निशान दिखा रही हैं। महिलाओं का आरोप है कि पुलिस ने घर में घुसकर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उनके कपड़े उतरवाकर बुरी तरह से पीटा है और मुंह खोलने पर जान से मारने की धमकी तक दी है।

वहीं दूसरे मधेपुरा के वीडियो में पंचायत ने सरेआम एक महिला के ऊपर बदचलन होने का आरोप लगाकर भरी पंचायत में गरम रॉड और लाठी-डंडों से उसकी बेरहमी से पिटाई की। इस दौरान महिला की साड़ी भी खुल गई, लेकिन कोई बीच बचाव करने नहीं आया। महिला की तब तक पिटाई जारी रही, जब तक वो बेहोश नहीं हो गई।

क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन अपने कारनामों को लेकर सुर्खियों में बनी रहती है। कभी गाड़ी पलटने के बाद एनकाउंटर हो, या पीड़ित को और प्रताड़ित करने का मामला। कभी पिस्तौल की जगह मुंह से ठांय-ठांय बोलकर हीरो बनते दारोगा हों या फिर कथित लव जिहाद के केस में सुपर एक्टिव अंदाज़ में प्रेमी जोड़ों को पकड़ कर केस करना हो, इन सब मामलों में यूपी पुलिस ‘सदैव तत्पर’ रहती है। अपराध, विवाद में कानून का सही ढ़ंग से पालन हो रहा है या नहीं इससे यूपी पुलिस को शायद कोई फर्क ही नहीं पड़ता। जौनपुर के बदलापुर में दलित महिलाओं ने रो-रोकर जो दर्द बयां किया है वो यूपी पुलिस के लिए शर्मनाक है।

दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक बदलापुर कोतवाली क्षेत्र के देवरिया गांव में बीते 20 मार्च को 2 पक्षों के बीच विवाद हो गया था। विवाद बढ़ता देख राधा नाम की एक महिला ने डायल 112 पर सूचना दी। उसने बताया, खेत में लगे केले के पेड़ को विपक्षी द्वारा काटा जा रहा है। मौके पर तुरंत डायल 112 की टीम पहुंच गई। पीआरवी की टीम दोनों पक्षों में शांति व्यवस्था कायम करवाने में जुट गई। इसी बीच पीआरवी के पुलिसकर्मी राजेश यादव के साथ मारपीट हो गई, जिससे उन्हें चोट आ गई। महिला राधा और पुलिसकर्मी राजेश यादव की तहरीर पर 8 लोगों को हिरासत में लिया गया था। पूछताछ के बाद सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

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जमानत मिलने के बाद सभी 8 लोग जेल से बाहर आ गए। इन्हीं लोगों में शामिल एक महिला ने पुलिस पर बेहद संगीन आरोप लगाए हैं। महिला का कहना है कि पुलिस ने विपक्षियों के साथ मिलकर उन्हीं के ऊपर मुकदमा दर्ज कर दिया। पुलिस ने तो क्रूरता से महिलाओं और नाबालिग बच्चों के साथ मारपीट भी की। महिला का आरोप है कि पुलिस ने इतनी बेरहमी से मारपीट की है कि चमड़ी का रंग काला हो गया।

महिला ने बताया, "पुलिस ने न तो उनका मेडिकल कराया और न ही उनकी एक बात सुनी। उल्टा, केले के पेड़ काटने के मामले में थाने पर बुलाकर बेल्ट के पट्टे और डंडे से मारपीट की। महिला के अनुसार, मामला अंबेडकर मूर्ति के चबूतरे से संबंधित है। बस्ती के लोगों ने बाबा अंबेडकर की मूर्ति पास में स्थापित की है। इस कारण से गांव के कुछ लोग उनसे रंजिश रखने लगे।"

उधर, समाजवादी पार्टी ने इस घटना को लेकर एक बार फिर बीजेपी सरकार पर हमला बोला है। सपा ने वायरल वीडियो के साथ पोस्‍ट में लिखा है कि दलितों पर अत्याचार में नंबर 1 भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में एक और शर्मसार कर देने वाली पुलिसिया करतूत आई सामने। जौनपुर के बदलापुर में पुलिस द्वारा दलित महिलाओं की बर्बर पिटाई विचलित कर देने वाली घटना है। मामले में दोषी पुलिसकर्मियों पर हो सख्त कार्रवाई, पीड़ितों को मिले न्याय।

पुलिस का क्या कहना है?

जौनपुर पुलिस का कहना है कि पुलिस गांव में विवाद सुलझाने गई थी और इस दौरान पुलिस कर्मी को चोट आई। हालांकि महिलाओं के आरोप पर पुलिस ने अपनी तरफ से जारी किए गए वीडियो में सफाई दी है। पुलिस का कहना है, महिला द्वारा बताई जा रही बात पूर्ण रूप से असत्य है।

बदलापुर के क्षेत्राधिकारी (सीओ) अशोक कुमार ने मीडिया को बताया, "रविवार, 20 मार्च को थाना बदलापुर क्षेत्र के देवरिया गांव में दो पक्षों के बीच मारपीट की घटना हुई थी, जिसके संबंध में मुकदमा दर्ज कर नामित अभियुक्तों को नियम के अनुसार गिरफ्तार किया गया था। अब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, इसमें दिख रहीं महिलाएं मुकदमे में आरोपी थीं। इन सभी का मेडिकल परीक्षण कराकर कोर्ट में पेश कर जेल भेजा गया था। पुलिस थाने में किसी भी महिला के साथ अभद्रता या मारपीट नहीं की गई थी। सोशल मीडिया पर लगाए जा रहे आरोप असत्य व निराधार हैं।"

मधेपुरा में पंचायत की शर्मनाक करतूत

द क्विंट हिंदी की खबर के मुताबिक ये पूरा मामला बिहार के मधेपुरा सदर थाना क्षेत्र के राजपुर गावं का एक है। एक महिला को बदचलन होने के आरोप में बुरी तरह तब-तक पिटा गया, जब तक वह बेहोश नहीं हो गयी। घटना के संबंध में मिली जानकारी के मुताबिक पीड़ित महिला को कुछ ग्रामीणों ने रात के अंधेरे में खेत में पकड़ा और गावंवालों को बताया। इसके बाद महिला की पिटाई की तैयारी की गयी, लेकिन रात में किसी तरह उसकी पिटाई नहीं हुई।

सुबह में पंचायत बैठी और महिला को वहां हाजिर किया गया। पंचायत के आदेश पर कथित तौर पर करची को आग में गर्म किया गया और बाद में उस करची से महिला की धुआंधार पिटाई शुरू कर दी गई। इस दौरान महिला की साड़ी भी खुल गई और वह बेहोश हो गई।

पीड़ित महिला ने बताया कि रात में करीब 10 बजे वह शौच के लिए घर के पास मक्के के खेत में गई थी। इसी दौरान गावं के शंकर दास, पिंटू दास, प्रदीप दास और अभय दास ने उसे पकड़ लिया और पूछने लगे कि मक्के के खेत में तुम्हारे साथ कौन है? जब महिला ने बताया कि कोई नहीं है तो वे लोग मारपीट करने लगे।

इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने मामले का संज्ञान लिया है। महिला आयोग ने अपने ट्विटर हैंडल से इसकी जानकारी देते हुए लिखा, "राष्ट्रीय महिला आयोग ने वीभत्स घटना का संज्ञान लिया है। अध्यक्ष रेखा शर्मा ने डीजीपी और बिहार पुलिस तुरंत प्राथमिकी दर्ज करने और सभी आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए लिखा है।

एनसीडब्ल्यू ने पीड़ित के लिए सर्वोत्तम चिकित्सा उपचार और सुरक्षा की भी मांग की है। और 7 दिनों के भीतर की गई कार्रवाई से अवगत कराने को कहा है।

महिलाओं का शोषण-उत्पीड़न जारी

गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार है तो वहीं बिहार में बीजेपी जनता दल यूनाइटेड के साथ गठबंधन कर सत्ता पर काबिज है। बीते समय से कई मामलों में सीएम नीतीश, सीएम योगी की कॉपी करते नज़र आ रहे हैं। हालांकि दोनों राज्यों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है साथ ही ‘पीड़ित को प्रताड़ित’ करने का नया ट्रेंड भी नज़र आ रहा है।

अगर यूपी की बात करें तो दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध में भी उत्तर प्रदेश नंबर एक पर है। साल 2020 में देश में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले सिर्फ उत्तर प्रदेश में 12,714 मामले दर्ज हुए। 2019 की तुलना में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध का आंकड़ा भी बढ़ा है।

वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक साल 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधा से ज्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हालिया जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 30 हजार से ज्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा क्राइम के आंकड़ें देखें तो यहां भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। यहां साल 2020 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध के 49,385 मामले दर्ज कराये गये थे।

बलात्कार के मामले में भी उत्तर प्रदेश पूरे देश में दूसरे स्थान पर है। यानी राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां महिलाएं सबसे अधिक बलात्कार का शिकार हो रही हैं। साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28046 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में कुल 2,769 मामले दर्ज हुए।

ताजा आंकड़ों की बात करें तो यूपी के 16 जिलों में पिछले एक माह में 41 लड़कियों से रेप और छेड़छाड़ के संगीन मामले सामने आए। इनमें 33 नाबालिग हैं। सिर्फ एक माह में साढ़े 3 साल की बच्ची से लेकर 30 साल की महिला तक से रेप की खबरें सुर्खियां बटोर चुकी हैं।

नीतीश सरकार महिला सुरक्षा में फेल

वैसे बिहार में नीतीश सरकार के आंकड़े भी कम भयावह नहीं हैं। साल 2005 से नीतीश सरकार के चौथी दफा सत्तासीन होने के बाद राज्य को पहली महिला उपमुख्यमंत्री रेणु देवी मिली हैं, लेकिन ये एक स्वर्णिम लगने वाला ऐतिहासिक तथ्य, राज्य में महिलाओं के साथ बढ़ती बर्बर हिंसा पर लगाम नहीं लगा रहा है। बीते 6 महीनों की ही बात करें तो अक्टूबर 2020 में वैशाली की एक 20 साल की युवती को छेड़खानी का विरोध करने पर ज़िंदा जला दिया गया था, जिसकी मौत हो गई। वहीं मधुबनी की एक मूक बधिर नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म करके उसकी दोनों आंखों को फोड़ दिया गया था।

इसके अलावा मुज़फ्फरपुर में भी 12 साल की एक बच्ची को दुष्कर्म करके जलाने की घटना 12 जनवरी को सामने आई थी। इसके बाद फरवरी महीने में पूर्वी चंपारण ज़िले में 'दूसरा हाथरस' दोहराया गया। यहां 12 साल की एक नेपाली मूल की बच्ची के साथ पहले कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया गया और फिर हत्या करके उसके शव को जबरन जला दिया गया। फिर गया जिले की 6 साल की मासूम बच्ची के साथ हैवानियत का मामला सामने आया। वहीं महज़ दो हफ्ते पहले ही 6 नाबालिग लड़कों ने आठ साल की 2 बच्चियों से गैंगरेप की घटना सामने आई थी।

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बिहार पुलिस के आंकड़े देखें तो साल 2011 में दुष्कर्म के 934 मामले सामने आए थे जो साल 2019 में 1450 हो गए। नवंबर 2020 तक बिहार पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक 1330 मामले दुष्कर्म के दर्ज हुए थे। वहीं स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट 'क्राइम इन बिहार 2019' के मुताबिक, साल 2019 में 730 मामले दुष्कर्म के रिपोर्ट हुए। कुल मिलाकर देखें तो यूपी से लेकर बिहार सब जगह महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की कहानी एक सी ही लगती है।

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