साइबेरियन हीट वेव की घटना मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन का एक जीता-जागता नमूना है
जलवायु परिवर्तन से इंकार करने वाले चाहे जितना मर्जी हकीकत से दूर भागने की कोशिश करें लेकिन जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता पिछले कुछ समय से अपना असर दिखा रही है। सीबेरियाई गर्म हवा के थपेड़े इसके ताजातरीन उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं।
इस साल रुसी शहर व्हेरखोयांस्क में जून के महीने में 38 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ है जो कि निश्चित तौर पर उत्तरी आर्कटिक ध्रुव की परिधि में दर्ज किया गया अब तक का सबसे उच्च तापमान है। इसके साथ ही रुसी क्षेत्र में भी इस साल के जनवरी से जून के बीच में औसत से 5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान रिकॉर्ड किया गया है।
साइबेरियाई क्षेत्र में अनपेक्षित तौर पर उच्च तापमान बने रहने की वजह से भरभराकर कई अन्य आपदाएं देखने को मिली हैं, जिनमें प्राकृतिक एवं मानव निर्मित दोनों ही आपदाएं शामिल हैं। इसे देखते हुए रुसी राष्ट्रपति को जून की शुरुआत में आपातकाल तक की घोषणा के लिए मजबूर होना पड़ा था।
हीट वेव के चलते आर्कटिक के जंगलों में आग लगने की घटनाओं को जन्म दिया है, जो कि इतनी भयावह थी कि एक अनुमान के अनुसार तकरीबन 56 मेगाटन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है। इसके साथ ही मई के महीने में रुसी शहर नोरिल्स्क में एक 20,000 टन डीजल के भण्डारण के ढहने और शहर में छलक कर फैलने की भी खबर है।
साइबेरियाई गर्म हवा के थपेड़े मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की वजह से घटित हो रहे हैं
मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के बिना साइबेरियाई क्षेत्र में इतने अभूतपूर्व स्तर पर गर्म हवाओं की लहर के उत्पन्न होने की संभावना ना के बराबर है। यह निष्कर्ष एक अध्ययन के आधार पर आये हैं, जिसमें यूके के मौसम विभाग के नेतृत्व में जलवायु वैज्ञानिकों की एक टीम शामिल थी।
“उनके विश्लेषण से यह पता चला है कि इस साल साइबेरिया में जिस प्रकार जनवरी से लेकर जून तक लम्बी अवधि के दौरान गर्मी की स्थिति बनी रही, यह 80,000 वर्षों में बिना इंसानी हस्तक्षेप के एक बार से कम घटित होने वाली घटना है। एक ऐसे जलवायु में जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से गर्म न हुआ हो ऐसा होना पूरी तरह से असम्भ्व है” इस अध्ययन के बारे में यूके मौसम विभाग की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है।
वास्तव में यह सब बेहद चिंताजनक है और वैश्विक स्तर पर तत्काल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती किये जाने की जरूरत को दर्शाता है। यह एक निर्विवाद सत्य के तौर पर भी इस बात को रेखांकित करता है कि दरअसल मानव निर्मित कारणों के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन से पूरे ग्रह पर भारी असर पड़ रहा है।
यह अध्ययन एक आरोपण अध्ययन के तौर पर था, इस प्रकार के अध्ययन में इस बात का पता लगाने की कोशिश की जाती है कि कैसे मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन, मौसम की घटनाओं में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। मौसम विभाग के प्रोफेसर पीटर स्कॉट के अनुसार यह अध्ययन आजतक के किसी भी आरोपण अध्ययन के सबसे मजबूत परिणामों को दर्शाता है।
आर्कटिक के बारे में भी अनुमान है कि यह क्षेत्र वैश्विक औसत की तुलना में दुगुनी रफ्तार से गर्म हो रहा है। अनुमान कहते हैं की 1850 के बाद से आर्कटिक के तापमान में जहाँ 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी देखी गई है, वहीं वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी 1 डिग्री सेल्सियस ही रही है।
कैसे आर्कटिक की घटनाओं ने अन्य क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित किया है
वैश्विक जलवायु जटिल तौर से आपस में जुडी हुई है और भले ही किसी स्थान का ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान न के बराबर हो लेकिन कोई भी स्थान वैश्विक जलवायु में बदलाव की मार से खुद को नहीं बचाए रख सकता है। आर्कटिक क्षेत्र में आये इस व्यापक बदलाव से दुनिया के कई हिस्सों पर असर पड़ना लाजिमी है।
एक अन्य अध्ययन के निष्कर्षों में निकलकर सामने आया है कि आर्कटिक क्षेत्र में आये परिवर्तनों के कारण ही यूके में श्रृंखलाबद्ध तरीके से चरम मौसम के हालात बन रहे हैं। उदाहरण के लिए 2018 की सर्दियों को ले सकते हैं जब कुछ जगहों पर सामान्य से परे भारी पैमाने पर बर्फबारी देखने को मिली थी। ऐसा देश भर में आर्कटिक हवा के बहाव के चलते हुआ था। इस तूफ़ान से व्यापक तबाही और मौतें देखने को मिली थीं।
अध्ययन के मुताबिक इस साल फरवरी में जो बाढ़ देखने को मिली, वह भी आर्कटिक में आये बदलावों का ही नतीजा थी और पीछे 2015 में भी जो घटित हुआ, वह भी इसी की देन थी।
यूके का मौसम और आर्कटिक के बीच का लिंक जेट स्ट्रीम है। जेट स्ट्रीम वायुमंडल में एक तेजी से चलने वाली हवा को कहते हैं, और इसे वातावरण के उपर एक रिबन के तौर पर समझ सकते हैं। जेट स्ट्रीम भी दुनियाभर में मौसम प्रणालियों को प्रभावित करता है।
जहाँ आर्कटिक शेष विश्व की तुलना में दुगुनी रफ्तार से गर्माता जा रहा है, ऐसे में यह बदलाव केवल साइबेरिया या रूस के अन्य हिस्सों या ब्रिटेन तक ही सीमित रहने वाला नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग के रूप में यह मुख्य तौर पर मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन को प्रकट कर रहा है।
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Siberian Heat Wave: A Living Example of Man-Made Climate Change
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