इतवार की कविता: #महसाअमीनी, तुम हम सबमें ज़िंदा हो
“#महसाअमीनी, तुम हम सबमें ज़िंदा हो” कविता का एक छोटा सा अंश। पूरी कविता नीचे पढ़िए।
ईरान में 22 वर्षीय युवती महसा अमीनी की नैतिक पुलिस की हिरासत में हुई मौत ने ईरान में औरतों के एक नए आंदोलन की शुरुआत कर दी है। जिसकी गूंज पूरी दुनिया में देखी-सुनी जा रही है। इसी को आधार बनाकर पत्रकार कवि भाषा सिंह ने अपनी कविता लिखी है और महसा के साथ साथ औरतों के इस जज़्बे और आंदोलन को सलाम पेश किया है। इतवार की कविता में आइए पढ़ते हैं उनकी यह नई कविता।
#महसाअमीनी, तुम हम सबमें ज़िंदा हो
तुम (गुमनाम लड़की)
जो #महसाअमीनी की सहोदर हो
तुम अपनी मां को
इससे बड़ी भेंट दे नहीं सकती थीं
अब तुम्हारी मां मिनो मज़ीदी को
तुमसे दूर जाने का ग़म कम हो गया होगा
मां की क़ब्र पर मोमबत्ती के साथ-साथ
तुमने जलाए औरत के हक़ के दीये
लड़ते-लड़ते शहीद हुई मां के दिल में
जो धड़कती आग थी
उसे तुमने तेज़ किया
अपने कटे हुए बालों के गुच्छों से
जो दुनिया के किसी भी फूलों से क़ीमती थे
उन्हें मां की क़ब्र पर रख
तुमने हक़ अदा किया
अपनी मां के दूध का
ओ,
मेरी बच्ची
तुम हो हम सबकी बच्ची
हज़ारों ईरानी औरतों की क़ुर्बानी
सीने में नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ धधकता लावा
जो पिघल रहा है—धधका रहा है
ईरान की सरज़मीं को
सदी की सबसे मुकम्मल तस्वीर को रचा
ईरान की औरतों ने
झंडे पर फहरा दिये अपने कटे बाल
नाचते हुए, थिरकते क़दमों के साथ
ऐलान किया
हिजाब थोपना ज़ुल्म है
और जीत की मुस्कुराहट के साथ
आग के हवाले कर दिया
सिर ढकने वाले इस कपड़े को
जले हिजाब को भी डंडी में बांध
विरोध का प्रतीक बनाया
The scenes in Iran are astonishing. How far will these protests go?
pic.twitter.com/AJeHB0yyYB— Frida Ghitis (@FridaGhitis) September 20, 2022
नारा भी नया
उछाल दिया उफ़क़ तक
सतरंगी आसमां में
औरत ज़िंदगी आज़ादी
(ज़ान ज़िंदगी आज़ादी
Zan, Zendegi, Azadi)
#महसाअमीनी
देखो तुमने जो लहू बहाया
जितनी दिलेरी से भिड़ी तुम
आततायी सत्ता से
उसने कितने फूल खिलाए
ईरान ही नहीं, पूरी दुनिया में
अपने शरीर पर औरत के हक़ की दावेदारी
टकरा रही है
अमेरिकी सत्ता से
जहां छीन लिया गया गर्भपात का हक़
वहां भी तुम्हारी सदा गूंज रही है
#महसाअमीनी
तुम्हारा चेहरा चमकता है
भारत में हिजाब के हक़ के लिए लड़ रही
लड़कियों के अक्स में
ईरान हो भारत हो अमेरिका हो...
या फिर कोई भी मुल्क
अपने तन पर अपना हक़ मांगने वाली
औरतों के चेहरे, तनी हुई मुठ्ठियां
घुलने-मिलने लगी हैं
तुमसे
तुम्हारी चीख़ में शामिल हो रहे हैं
अनगिनत ज़बानों में गूंज रहे नारे
तुम बन गईं हम—हम औरतें...
हिजाब जलाना हो या हिजाब पहनना
बच्चा पैदा करना या गिराना
जींस पहनना या प्रेमी चुनना...
किसी पर भी
धार्मिक-नफ़रती सत्ता का फ़रमान
हमें क़ुबूल नहीं
अपनी आज़ादी से प्यारा हमें कुछ नहीं
लाखों बरस आग में झुलस कर
जो आज़ादी हमने पाई है
उसे बचाने को
अपना जीवन हम वार देंगीं
लेकिन शासन के अहंकार को चूर करेंगी
हमारे हमक़दम जो मर्द चल रहे हैं
उनकी आंखों में भी उतरा है हमारी पुतलियों का लहू
वे भी देख रहे हैं बराबरी का वही सपना
आज़ाद मर्द बिना आज़ाद औरत के
मुमकिन नहीं
ये समझकर ही वे भी गोलियां खा रहे हैं
सीनों पर
तन-मन पर हक़ की तलाश में हम
दफ़न हो जा रही हैं क़ब्रों में
ताकि
हमारी बेटियां जी सकें
हमारे सपनों को
तस्वीर
बदल रही है
हमने अपने बाल काटे
वे अब उड़ रहे हैं
ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं पर
इस तस्वीर की तो तुमने
भी कल्पना न की थी
गोली नहीं बम नहीं हथियार नहीं
हमारे औज़ार बन गये हैं
हमारे कटे बाल, हमारा जला हुआ हिजाब
जिसे देख कर डर गये हो तुम
तुम जो बैठे हो ऊंची सत्ता का ढोंगी लबादा ओढ़कर
वैसे, बग़ावत का यह नया रूप देखकर
दुनिया भी चकित है
हमारे इस अस्त्र ने
ढहा दिये सारे
वे सारे शब्द
जो गढ़े थे
कट्ठमुल्लाओं ने, धार्मिक पोंगा-पंडितों ने
हमें परिभाषित करने को
खिसक रही है
उनके क़दमों तले ज़मीन
तेजी से हमारा ज्वार-भाटा खींच रहा है
उनके पैरों तले रेत...
और, हां याद रक्खो
पैदा हुए हो तुम हमारी ही योनि से
नाभि-नाल का रिश्ता है
दुनिया में हर प्रजनन का
नाभि-नाल को हम काटते हैं
तभी जीवन को सांस मिलती है
और आज
हमारी चोटी से बंधी ये जो तुम्हारी सत्ता है
इसको काट कर हम फेंकेंगीं
और दफ़न करेंगी
तुम्हें
इतिहास के डस्टबिन में
डराओ नहीं हमें तुम
राष्ट्रवाद के ढोल से
क्योंकि
हम दोस्त-दुश्मन की शिनाख़्त
करती हैं, तुमसे बेहतर
हम,
हां, हम
अमेरिका के
बिछाए जाल को भी
काटेंगी उसी कैंची से
ग़ुलामी के ख़िलाफ़ उठी हमारी ललकार
जितनी तुम्हारे आततायी शासन को हिलाएगी
उतनी ही
अमेरिकी साम्राज्यवादी
निगाह को भी करेगी
चकनाचूर
दुनिया को
दबाने वाले
इन रक्त पिपासुओं को
भी
लगाएगी ठिकाने
हम बग़ावती औरतें हैं
जो भूली नहीं है अफ़ग़ानिस्तान-इराक-वियतनाम...
जितनी जल्दी समझ सको
उतना अच्छा कि
जब हम अपने बाल काट रही हैं
तो समझो
हमारी कैंची को
हर ज़ुल्म को काट फेंकने का
हुनर आता है...
#महसाअमीनी दुनिया भर में ज़िंदा है
सुनो हुक्मरानों !!!
- भाषा सिंह
कवि—पत्रकार
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।