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'कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के...' बल्ली सिंह चीमा की कविता

किसान आंदोलन को 6 महीने से ज़्यादा हो चुके हैं, और दिल्ली की सरहदों पर किसान क़रीब 70 दिन से बैठे हैं और तीनों कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं। किसानों के जज़्बे को सलाम करते हुए पेश है बल्ली सिंह चीमा की यह कविता।
किसान आंदोलन
Image courtesy: Social Media

किसान आंदोलन को 6 महीने से ज़्यादा हो चुके हैं, और दिल्ली की सरहदों पर किसान क़रीब 70 दिन से बैठे हैं और तीनों कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं। किसानों के जज़्बे को सलाम करते हुए पेश है बल्ली सिंह चीमा की यह कविता।

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के,
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के

कह रही है झोपड़ी औ' पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के

बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के

कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के

हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,
बेड़ियाँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के

दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब,
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के

एकता से बल मिला है झोपड़ी की साँस को,
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के

तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गाँव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गाँव में

देख 'बल्ली' जो सुबह फीकी दिखे है आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के

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