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तिरछी नज़र: स्वामिभक्त भीड़ और उसका अल्टीमेट

जैसे अमेरिका में लोकतंत्र है वैसे ही भारत में भी है। जैसे ट्रंप जी मोदी जी के मित्र हैं वैसे ही मोदी जी भी ट्रंप जी के मित्र हैं। ...जितना सत्य ट्रंप जी बोलते हैं मोदी जी भी उससे कम सत्य नहीं बोलते हैं।
modi and trump

अमेरिका में तो गजब ही हो गया। छह जनवरी को अमेरिकी सांसद राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के मुकाबले बाइडेन की जीत की घोषणा करने ही वाले थे उसी दिन अमेरिका में ट्रंप समर्थक भीड़ अमेरिकी संसद कैपिटोल पर चढ़ आई। वे सभी राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक थे और अमेरीकी संसद द्वारा बाइडेन को आगामी राष्ट्रपति घोषित किए जाने से रोकना चाहते थे। अब बीस जनवरी को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बाइडेन अपना पद ग्रहण करेंगे।

ट्रंप जी ने अपनी भक्त सेना की यह भीड़ बड़ी ही मेहनत से तैयार की थी। ऐसी भक्तों की भीड़ बनती भी मेहनत से ही है। ट्रंप जी ने चार साल अथक मेहनत की है ऐसी भीड़ बनाने की जो उनके कहने पर, एक ट्वीट पर कैपिटोल पर भी चढ़ जाये। ऐसी भीड़ एक दिन में नहीं तैयार होती है।

अमेरिका सबसे पुराना लोकतंत्र है और भारत सबसे बड़ा। दोनों देशों के प्रमुख, अमेरिका के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री बहुत ही घनिष्ठ मित्र हैं। मोदी जी और ट्रंप जी लंगोटिया यार जैसे हैं। दोनों में बहुत सारी समानताएं हैं। दोनों एक दूसरे से सलाह मशविरा भी करते रहते हैं। मोदी जी ने तो ट्रंप जी के लिए चुनाव प्रचार भी किया था। 'अबकी बार, ट्रंप सरकार' और 'नमस्ते ट्रंप' चुनाव प्रचार नहीं तो और क्या था।

जैसे अमेरिका में लोकतंत्र है वैसे ही भारत में भी है। जैसे ट्रंप जी मोदी जी के मित्र हैं वैसे ही मोदी जी भी ट्रंप जी के मित्र हैं। उसी तरह से दोनों का काम करने का तरीका भी एक सा ही है। जितना सत्य ट्रंप जी बोलते हैं मोदी जी भी उससे कम सत्य नहीं बोलते हैं। ट्रंप जी और मोदी जी, दोनों ही अपने विरोधियों का इतना अधिक सम्मान करते हैं कि वे और उनके भक्त अपने विरोधियों को बहुत ही प्यार भरे नामों (निक नेम) से बुलाते रहते हैं। दोनों अपने अपने देश के संविधान का भी बहुत ही अधिक आदर करते हैं। इतना अधिक कि वे देश के संविधान को बहुत ही ऊंची ताक पर रखते हैं। 

ट्रंप जी ने अपनी पार्टी रिपब्लिकन के समर्थकों को भीड़ में कब बदला, कैसे बदला वहाँ के लोगों को पता होगा पर मोदी जी ने यह कैसे किया यह यहाँ सभी को पता है। यह बहुत ही आसान है। आपकी अपनी भीड़ जो भी कुछ करे, उसका साथ देना है। उसका सम्मान करना है। उसको दंड नहीं देना है। उसमें से एमएलए, एमपी बनाने हैं। उसके खिलाफ ट्वीट तक नहीं करना है। कुछ करना हो तो बहुत ही दबी जुबान से करना है अन्यथा भीड़ की उद्दंडता पर भी मौन धारण करना है।

ऐसी असंयमित भीड़ पैदा करना बहुत ही संयम का काम है। पत्ता तक हिलने पर ट्वीट करने वाले सरकार जी ने भीड़ द्वारा अखलाक की हत्या पर ट्वीट किया क्या, नहीं न! क्या पहलू खान को भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डालने पर बोले! जब भीड़ ने बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर को घेर कर मार डाला तो क्या कुछ कहा! जब उदयपुर में केसरिया झंडा लिए भीड़ न्यायालय की इमारत पर चढ़ गई तो उसकी आलोचना की, नहीं न! और तो और उत्तर पूर्व दिल्ली के दंगों की भर्त्सना तक की, नहीं की न! 

भीड़ वहाँ भी पैदा की गई और यहाँ भी। भीड़ बनाने के लिए वहाँ मीडिया को जनता का दुश्मन बता दिया गया तो यहाँ मीडिया को खरीद ही लिया गया। वहाँ भीड़ 'ब्लैक लाइव्स मैटर' आंदोलन के विरोध में खड़ी हो गई तो यहाँ की भीड़ ने भी किसान आंदोलनकारियों को खालिस्तानी, आतंकवादी बताना शुरू कर दिया। भीड़ कहीं की भी हो, वहाँ की या यहाँ की, होती एक ही जैसी है। वहाँ भी उतनी ही चरित्रवान होती है जितनी यहाँ। यहाँ भी उतनी ही राष्ट्रभक्त होती है जितनी वहाँ। लेकिन चरित्रवान और राष्ट्रभक्त से भी अधिक स्वामिभक्त होती है, वहाँ भी और यहाँ भी। 

अमेरिका में तो भक्तों की भीड़ ने अपनी स्वामिभक्ति दिखा दी, अल्टीमेट (ultimate) दिखा दिया। यहाँ भीड़ अभी ट्रेलर ही दिखा रही है। अल्टीमेट दिखाना अभी बाकी है। देखते हैं मोदी जी अल्टीमेट दिखाने का मौका कब देते हैं। 

(तिरछी नज़र एक व्यंग्य स्तंभ है। इसके लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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