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यूपी बोर्डः पेपर लीक प्रकरण में "अमर उजाला" ने जेल जाने वाले अपने ही पत्रकारों से क्यों झाड़ लिया पल्ला?

"मीडिया घरानों पर काबिज पूंजीपति भाजपा सरकार की जी-हुजूरी में चारणयुग को भी मात देने लगे हैं। इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि जिन मीडिया संस्थानों के पत्रकारों को सरकार और सरकारी मशीनरी निशाने पर ले रही है उनके मालिकान न सिर्फ चुप्पी साधे हुए हैं, बल्कि समूचे प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।"
 Digvijay Singh
गिरफ्तारी के बाद मीडिया के सवालों का जवाब देते जांबाज पत्रकार दिग्विजय सिंह

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में यूपी बोर्ड की 12वीं के अंग्रेजी का पर्चा लीक होने के बाद पत्रकारों को निशाना बनाए जाने पर योगी सरकार बुरी तरह घिरती नजर आ रही है। साथ ही वो मीडिया घराने भी आलोचना के केंद्र में आ गए हैं जिनके पत्रकारों ने नंगा सच उजागर करने का दम-खम दिखाया तो उन्हें जेल भेज दिया गया। पेपर लीक प्रकरण में बलिया पुलिस तीन पत्रकारों समेत 34 लोगों को जेल भेज चुकी है। पत्रकारों के साथ बेइंतहां जुल्म और ज्यादती के बावजूद मीडिया घराना "अमर उजाला" और "राष्ट्रीय सहारा" ने चुप्पी साध ली है। ये वो मीडिया संस्थान हैं, जिनकी झोली भरने के लिए आंचलिक पत्रकार अपनी जिंदगी दांव पर लगाते रहे हैं।

यूपी बोर्ड के 12वीं कक्षा का अंग्रेजी विषय का पेपर 29 मार्च को लीक हुआ था। यही पेपर व्हाट्सएप पर वायरल हुआ,  जिसे "अमर उजाला" ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। परीक्षा रद होने से यूपी के करीब आठ लाख स्टूडेंट्स प्रभावित हुए हैं। पेपर लीक मामले में पुलिस ने सबसे पहले बलिया के डीआईओएस बृजेश कुमार मिश्र के साथ “अमर उजाला” के बलिया ब्यूरो में काम करने वाले पत्रकार अजित कुमार ओझा को जेल भेजा और बाद में इसी अखबार के नगर प्रतिनिधि दिग्विजय सिंह को गिरफ्तार किया। इनके अलावा नगरा तहसील से राष्ट्रीय सहारा के लिए काम करने वाले मनोज गुप्ता को भी पुलिस ने जेल के सींकचों में कैद कर दिया है। अपनी गिरफ्तारी के बाद वरिष्ठ पत्रकार अजित ने पुलिस पर खुलेआम आरोप लगाया था कि पुलिस ने उनके दफ्तर में न सिर्फ तोड़फोड़ की, बल्कि मारपीट और हाथापाई करने से भी बाज नहीं आई। पत्रकारों के जेल जाने के बाद उनके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। खासतौर पर अजित कुमार ओझा की बुजुर्ग माता-पिता का आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा है।

कचहरी में बलिया प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते अमर उजाला के पत्रकार दिग्विजय सिंह

यूपी स्पेशल टास्क फोर्स  (एसटीएफ) और पुलिस ने पेपर लीक कांड मामले में एक अप्रैल की देर शाम बड़ा खुलासा करते हुए दावा किया है कि 12वीं की इंग्लिश का पर्चा बलिया से ही आउट हुआ था। इस खेल में दो स्कूलों के प्रबंधक, एक शिक्षक और तीन कर्मचारियों ने मिलकर टैंपर प्रूफ पैकेट को खोलकर पेपर लीक किया था। टैंपर प्रूफ पैकेट पर लगी  स्कूल और विषय के नाम की पर्ची को बेहद शातिर ढंग से हटाया गया। इंग्लिश का पेपर निकालने के बाद उसका फोटो खींचकर वापस उसी पैकेट में डाल दिया गया था। स्कूल के नाम और विषय की पर्ची दोबारा चिपका दी गई थी। इससे पहले बलिया के डीएम इंद्र विक्रम सिंह और एसपी राजकरण नैयर ने पेपर के पैकेटों की जांच की थी तब सभी पैकेट चिपके हुए मिले थे। बाद में यूपी एसटीएफ की टीम ने अंग्रेजी के पेपर के पैकेटों की दोबारा जांच की लीक कांड का खुलासा हुआ। इस मामले में दस और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें आनंद नारायण चौहान, मनीष चौहान, विकास राय, प्रशांत राय, आजाद पांडेय, बृजेश चौहान, शाहिद अंसारी, अरविंद कुमार, अनिल कुमार गोंड़ और अनूप यादव शामिल हैं। इस मामले में बलिया की नगरा थाना पुलिस 21 और सिकंदरपुर पुलिस नौ  आरोपियों को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है।

सवालों के घेरे में "अमर उजाला"

पेपर लीक प्रकरण में पत्रकारों की संलिप्तता उजागर नहीं हुई है, लेकिन यूपी के बड़े अखबार “अमर उजाला” की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रांतीय मुख्य महासचिव मधुसूदन सिंह कहते हैं, " पुलिस के पास कोई सुबूत नहीं है जिससे यह पता लगता हो कि पेपर लीक कराने में पत्रकारों सीधे तौर पर कोई हाथ था। इसके बावजूद अमर उजाला" अखबार उन पत्रकारों से अपना पल्ला झाड़ लेना चाहता है, जिनके दम पर वह बलिया से मोटा मुनाफा कमा रहा था। इस अखबार में काम करने वाले पत्रकारों को पहले से ही संकट के समय बुरा अनुभव रहा है। पिछले दिनों सिकंदरपुर के तहसील प्रभारी संजीव सिंह और तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री के परिजनों के बीच हुए विवाद में भी “अमर उजाला” ने अपने पत्रकारों से पल्ला झाड़ लिया था। बाद में संजीव सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। “

“इससे पहले “अमर उजाला” को आसमानी छलांग लगवाने वाले ब्यूरो चीफ राजेश कौशल के साथ खेल किया। खबरों को लेकर उनकी तत्कालीन एडिशनल एसपी इकरामुल हक से ठनी तब भी "अमर उजाला" अपने पत्रकार का साथ नहीं दिया। अलबत्ता राजेश कौशल को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। पत्रकार हितों को लेकर बलिया में अब से पहले जितने भी प्रकरण हुए हैं उनमें यह अखबार कभी अपने संवाददाताओं के पक्ष में कभी नहीं खड़ा रहा। पेपर लीक प्रकरण में "अमर उजाला" और "राष्ट्रीय सहारा" के जो पत्रकार जेल भेजे गए हैं उन्होंने यूपी बोर्ड परीक्षा की सुचिता बनाए रखने के लिए व्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोला था। चाहे वो अजित कुमार ओझा हों, या फिर दिग्विजय सिंह अथवा मनोज गुप्ता। तीनों पत्रकारों की गिरफ्तारी नंगा सच उजागर करे पर हुई है। इन्होंने कोई निजी आपराधिक कृत्य नहीं किया है। इसके बावजूद दोनों अखबारों ने इन्हें न तो अपना पत्रकार माना और न ही इनका पक्ष प्रमुखता से प्रकाशित किया। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ अपने तीनों साथियों के साथ मजबूती के साथ खड़ा है और घटना की न्यायिक जांच की मांग करता है।"

अजित कुमार

वरिष्ठ पत्रकार मधुसूदन ने यह भी कहा है, "मीडिया घरानों ने भले ही अपने पत्रकारों का साथ छोड़ दिया है, लेकिन हमारा संगठन इन्हें बाइज्जत बरी कराने के लिए इनकी लड़ाई प्रेस काउंसिल और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक लड़ेगा। "अमर उजाला" के पत्रकारों ने अपनी खबरें बनारस भेजी थी। अगर वो समाचार समाचार प्रकाशन योग्य नहीं थे अथवा उनमें कोई कानूनी बाधा थी तो संपादक ने उसे प्रमुखता से क्यों प्रकाशित किया?  कानूनी तौर पर देखा जाए तो "अमर उजाला" में अंग्रेजी के प्रश्नपत्र को लीक करने और छापने के लिए सीधे तौर पर संपादक व प्रकाशक जिम्मेदार है, न कि संवाददाता। दोनों पत्रकारों ने अपने पत्रकारीय धर्म को ईमानदारी और निष्ठा से निभाया, लेकिन “अमर उजाला” के संपादक खुद पुलिस, प्रशासन और पत्रकारों का बलि लेने पर उतारू हैं।" "न्यूजक्लिक" ने इस मामले में "अमर उजाला" का पक्ष जानने के लिए बनारस संस्करण के संपादक वीरेंद्र आर्य का पक्ष जानने के लिए कई बार फोन किया, लेकिन उन्होंने काल रिसीव नहीं किया।

पत्रकारों की गिरफ्तारी का विरोध

पेपर लीक मामले में तीन पत्रकारों की गिरफ्तारी पर देश भर के खबरनवीसों और एक्टिविस्टों ने खुला विरोध शुरू कर दिया है। साथ ही योगी सरकार से नकल माफिया के साथ बलिया पुलिस प्रशासन के गठजोड़ की जांच कराने की मांग उठाई है। समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय महासचिव अफलातून देसाई ने कहा है, "पेपर लीक मामले में गिरफ्तार वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह पूर्वांचल में अपनी ईमादारी और बेबाक लेखनी के लिए जाने जाते रहे हैं। वह साल 1974 से जेपी आंदोलन से जुड़े रहे और छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के बलिया के जिला संयोजक रहे। नंगा सच तो यह है कि बलिया में नकल माफिया और एजुकेशन डिपार्टमेंट के अफसरों का गठजोड़ सालों पुराना है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और बलिया ऐसे जिले हैं जहां बोर्ड की परीक्षाएं देने के लिए नेपाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों से स्टूडेंट्स यहां आते रहे हैं। जगजाहिर बात है कि दोनों जिलों में दशकों से ठेके पर नकल कराई जाती रही है।"

अफलातून ने यह भी कहा है, "दिग्विजय की गिरफ्तारी भले ही 31 मार्च को दिखाई हुई, लेकिन पुलिस उन्हें तभी से परेशान कर रही थी जब उनके अखबार ने अंग्रेजी का पेपर लीक किया। चार दिन पहले से ही “अमर उजाला” में नकल की खबरें लगातार प्रकाशित हो रही थीं। पत्रकारों ने अखबार में यहां तक लिख दिया था कि बोर्ड परीक्षा की कापियां बाहर हल की जा रही हैं। सैकड़ों बच्चों की सिर्फ "बी" कापियां ही जमा हो रही हैं। नकल माफिया के साथ प्रशासनिक अफसर भी इसमें इन्वाल्ब थे। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने निजी स्वार्थ और खुन्नस के चलते तीनों पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। ये अफसर पत्रकारों का उत्पीड़न थाने में करने से भी बाज नहीं आए। पुलिसिया तांडव झेलने वाले जांबाज पत्रकारों के पक्ष में “अमर उजाला” अखबार प्रबंधन का खड़ा न होना बेहद शर्मनाक है। यह वही अखबार है जिसने चुनाव से पहले योगी सरकार का भयंकर विज्ञापन हासिल किया था। विज्ञापन की शर्त पर दिलेर पत्रकार दिग्विजय सिंह और अजित कुमार ओझा को बलि का बकरा बनाया जाना कहां तक उचित है? मीडिया घरानों में अगर तनिक भी हया बची है तो अपने पत्रकारों को पहले अपना मानने के लिए आगे आए।"

"भड़ास" के संपादक यशवंत सिंह अपने वेब पोर्टल पर अमर उजाला प्रबंधन पर तल्ख टिप्पणी करते हुए लिखते हैं, " अतुल माहेश्वरी और वीरेन डंगवाल वाले तेवरदार परंपरा का यह अखबार इतना ओजहीन, इतना दब्बू और इतना पतित हो जाएगा ऐसी उम्मीद नहीं थी। बलिया लीक कांड को उजागर करने वाले जांबाज पत्रकार आज जेल में हैं तो बजाए डटकर उनके साथ खड़ा होने के, पुलिस प्रशासन की साजिशों और असफलताओं का पर्दाफाश करने के, "अमर उजाला" अखबार भयभीत छुटभैया न्यूज पेपर की तरह व्यवहार कर रहा है। इस अखबार की इतनी हिम्मत नहीं हो रही कि वह गिरफ्तार पत्रकारों को खुद के अखबार से जुड़ा बताए। वह डरा-सहमा सा लग रहा है। सब कुछ डर-डर, दब-दबकर छाप रहा है। बलिया से लेकर पूरे हिन्दी पट्टी तक में "अमर उजाला" के डरे हुए संपादकों और मालिकों के बारे में बातें हो रही हैं। इस घटना के बाद से यह अखबार उन चिरकुट अखबारों की श्रेणी में आ गया है जिसका मुख्य मकसद मुनाफा कमाना और सरकार व प्रशासन की दलाली करना है।"

यशवंत आगे लिखते हैं, "हम सब पूरा पत्रकार जगत निर्दोष पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई के विरोध में है, लेकिन "अमर उजाला" को क्या हो गया है? एक लाइन अपने पत्रकारों के लिए नहीं लिख रहा है। कभी यही "अमर उजाला" अपने छोटे से छोटे कस्बाई पत्रकार तक के लिए लड़ जाता था। इस अखबार के इस महापतन पर मन दुखी होता है। यह सब देख-सुनकर लगता है कि ये अखबार खुद के मीडिया/अखबार होने की प्रासंगिकता को खो चुके हैं। इनका छपना या न छपना दोनों अवस्था में बराबर है। पेपर लीक मामले में अगर प्रशासन "अमर उजाला" के संवाददाताओं को कसूरवार मानता है तो इस अखबार के वाराणसी संस्करण के संपादक भी कम जिम्मेदार नहीं है। इनके खिलाफ भी एफआईआर होनी चाहिए, क्योंकि वायरल खबर को अखबार में छापने का गुनाह और गोपनीता को भंग करने का काम संपादक ने किया है। क्या "अमर उजाला" यह नहीं पूछ सकता था कि वह कौन सी वजह थी जिसके चलते प्रशासन और शिक्षा विभाग ने सैकड़ों व वित्तविहीन विद्यालयों को केंद्र कैसे बना दिया? मुश्किल वक्त में अपने ईमानदार और साहसी पत्रकारों का साथ छोड़कर ये संपादक व मालिक लोग कैसे चैन से खाते-पीते होंगे? इनके अंदर थोड़ी भी संवेदना बाकी बची है या नहीं...? "

कैसे लीक हुआ पेपर?

एसटीएफ के एक अफसर के मुताबिक बलिया के भीमपुरा में स्थित महरजिया देवी इंका भीमपुरा कालेज को यूपी बोर्ड परीक्षा के लिए सेंटर बनाया गया था। यहां के कुछ परीक्षार्थियों की कापियां आर्यभट्ट झकड़ी इंका कसेसर में लिखी जा रही थी,  जो परीक्षा केंद्र नहीं है। नकल के जरिए कापिया हल कराने कि जिम्मेदारी भीमपुरा थाना क्षेत्र के कलवारी निवासी आनंद चौहान उर्फ मुलायम, चचेरे भाई मनीष चौहान व बृजेश चौहान संभालते थे। अंग्रेजी का प्रश्न-पत्र मुलायम चौहान ने ही आउट किया था। इसके अलावा महरजिया देवी इंका का प्रबंधक निर्भय नरायण सिंह और स्कूल का कर्मचारी राजू प्रजापति भी पेपर लीक मामले में शामिल थे। पुलिस ने इन सभी को जेल भेज दिया है।

पेपर लीक मामले में बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ है कि तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद पेपर आखिर लीक कैसे हो गए?  31 मार्च को "टाइम्स नाऊ" ने बलिया के डीएम इंद्र विक्रम सिंह और एसपी राजकरण नैयर के हवाले से कहा था कि अंग्रेजी का पेपर उनके जिले से लीक नहीं हुआ है। दोनों अफसरों ने प्रारंभिक जांच के बाद कहा है कि बलिया के सभी परीक्षा केंद्रों के अंग्रेजी प्रश्नपत्र के पैकेट सुरक्षित पाए गए हैं। लगता है कि किसी अन्य जिले से पेपर लीक होने की संभावना है। फिर अचानक अगले दिन एसटीएफ और पुलिस ने दावा कैसे ठोंक दिया कि स्कूल के दो प्रबंधकों के साथ मिलकर अंग्रेजी का पेपर लीक किया गया था। सील पैकेट से पेपर निकाला गया, फोटो खींचकर रख भी दिया गया और पैकेट सही सलामत रहा, यह बात किसी के गले से नीचे नहीं उतर रही है। पेपर लीक मामले में अगर पुलिस और एसटीएफ के जवान डीएम और एसपी से ज्यादा काबिल निकले तो आखिर ऐसे अफसरों की जरूरत ही क्या हैं?

बलिया के अफसरों की लानत-मलानत को उसी दिन से हो रही है जब से “अमर उजाला” के लिए खबरों का संकलन करने वाले नगरा के पत्रकार दिग्विजय सिंह की गिरफ्तारी के समय का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में दिग्विजय बलिया कचहरी में डीएम इंद्र विक्रम सिंह और एसपी राजकरण नैयर के खिलाफ नारेबाजी करते हुए दिख रहे हैं। वीडियो में दिग्विजय सिंह नारा लगाते हैं, "बलिया डीएम चोर है, बलिया एसपी गुंडा है। बलिया डीएम नकलखोर है। बलिया पुलिस-मुर्दाबाद।" कचहरी में मौजूद दिग्विजय के तमाम साथी जवाब में पुलिस-प्रशासन के खिलाफ नारे को दोहराते भी हैं। जेल जाने से पहले दिग्विजय सिंह मीडिया को बाइट देते हुए कहते हैं, "मुझे सूत्रों से खबर मिली कि संस्कृत विद्यालय का पेपर आउट हो चुका है। तभी मैने लीक पेपर की कॉपी अपने अखबार में प्रकाशित की। इसके बाद अंग्रेजी विषय का पर्चा मिला। उस पेपर को हमने नहीं भेजा था, लेकिन “अमर उजाला” ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। खबर छपने के बाद प्रशासन शिक्षा माफियाओं को पकड़ने की बजाए पुलिस हमें प्रताड़ित कर रहे हैं और झूठे इल्जाम थोप रही है। नकल माफिया को पकड़ने के बजाए बलिया पुलिस हमसे पूछ रही है कि पेपर कहां से आउट हुए? "

पत्रकार दिग्विजय सिंह यहीं नहीं रुकते। अपनी गिरफ्तारी को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला बताते हुए कहते हैं, " बलिया के जो डीएम कहते थे कि हम बुलडोजर चलाएंगे, सबको नंगा करेंगे, आज वह खुद नंगे हो गए हैं। आज भी नकल नहीं रुकी है। बलिया में धड़ल्ले से नकल हो रही है। दो नंबर की कॉपियां यहां जमा की जा रही है। प्रशासन को भ्रम है कि हम चुप बैठ जाएंगे।" हालांकि बलिया पुलिस अभी तक इसी दावे पर अड़ी है कि विवेचना में मिले सबूतों के आधार पर तीनों पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है।

तीन थाने में रिपोर्ट दर्ज

पेपर लीक मामले में पुलिस ने बलिया सिटी कोतवाली, नगरा और सिकंदरपुर थाने में तीन अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की है। पुलिस का दावा है कि “अमर उजाला” ने संस्कृत और अंग्रेजी का पेपर वायरल होने की खबर छापी थी। शिक्षा विभाग के अफसरों ने जांच की तो संस्कृत का पेपर फर्जी निकला। संस्कृत का जो पेपर इस अखबार ने छापा था वह साल 2017 का था। पेपर के ऊपर 2022 लिखकर छापा गया और बेचा गया। अंग्रेजी का जो पेपर था उसका ऊपरी पन्ना छापा गया, वह दिशा-निर्देश वाला पेज था, प्रश्नपत्र का कोड सही था। बलिया में नकलविहीन परीक्षा कराने की जिम्मेदारी डीएम इंद्र विक्रम सिंह के अलावा जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) बृजेश कुमार मिश्र की थी। बताया जा रहा है कि डीआईओएस ने कई ऐसे स्कूलों को परीक्षा केंद्र बना दिया था जो मानक को पूरा नहीं करते थे या फिर ब्लैक लिस्टेड थे। डीएम ने भी बदनाम कालेजों पर परीक्षा कराने के लिए अपनी संस्तुति दी थी।

यूपी के एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार का कहना है कि जो लोग गिरफ्तार कर जेल भेजे गए हैं, उन सभी के मोबाइल में अंग्रेजी का यह पेपर परीक्षा से पहले पहुंचा हुआ था। यह लोग पेपर बेचकर पैसा बनाने में लगे हुए थे। पेपर लीक होने की वजह से यूपी के जिन 24 जिलों में परीक्षाएं रद हुई हैं, उनमें आगरा, मैनपुरी, मथुरा, अलीगढ़, गाजियाबाद, बागपत, बदायूं, शाहजहांपुर, उन्नाव, सीतापुर, ललितपुर, महोबा, जालौन, चित्रकूट, अम्बेडकरनगर, प्रतापगढ़, गोंडा, गोरखपुरी, आजमगढ़, बलिया, वाराणसी, कानपुर देहात, शामली और एटा शामिल हैं। इस बीच बलिया के एसपी राजकरण नैयर ने कहा है, "पेपर लीक मामले में अब तक गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या 34 हो गई है, जिसमें पेपर लीक करने वाले गिरोह का मास्टरमाइंड मुलायम चौहान भी शामिल है। गिरफ्तार पत्रकार अजित एक वित्तविहीन विद्यालय में सहायक अध्यापक थे। यूपी बोर्ड की मौजूदा परीक्षा में उन्होंने कक्ष निरीक्षक का भी कार्य किया था।

एसपी की तल्ख टिप्पणी पर वरिष्ठ पत्रकार मधुसूदन सिंह कहते हैं, "अमर उजाला” के वरिष्ठ पत्रकार अजित कुमार ओझा बलिया में सेकेंड ब्यूरोचीफ के पद पर कार्यरत थे। वह मुख्य रूप से एजुकेशन वीट पर काम करते थे। “अमर उजाला” ने अजित कुमार ओझा को विधिवत मानदेय पर नियुक्त किया था। प्रेस ला के मुताबिक वित्तविहीन विद्यालय में कार्य करने वाला शिक्षक भी लोकतंत्र के चौथे खंभे की मजबूती के लिए जुनूनी तौर पर पत्रकारिता कर सकता है। प्रेस ला में यह तक स्पष्ट किया गया है कि अंगूठाटेक आदमी भी अखबार का संपादक हो सकता है। प्रखर पत्रकार अजित कुमार ओझा बलिया के एक वित्तविहीन स्कूल में टीचर जरूर थे, लेकिन वह बच्चों को शौकिया तौर पर पढ़ाने के लिए जाया करते थे।

निशाने पर क्यों हैं डीआईओएस?

पेपर लीक मामले में बलिया में पहली गिरफ्तारी निलंबित डीआईओएस बृजेश कुमार मिश्र की हुई। सत्ता में इनकी धमक और रसूख के अलावा इनके आचरण को लेकर अब तमाम किस्से-कहानियां सामने आ रही हैं। मीडिया में यह बात प्रमुखता से प्रकाशित की जा रही है कि इनके पास अकूत संपत्ति है। प्रयागराज के सिविल लाइंस हनुमान मंदिर के पास इनकी करोड़ों की कोठी और झूंसी में कई एकड़ का फार्म हाउस है। मूल रूप से बिहार के रहने वाले बृजेश कुमार मिश्रा के पास वहां शापिंग मॉल भी है। हालांकि, उन्होंने ज्यादातर संपत्तियां अपने करीबी रिश्तेदारों के नाम खरीदी हैं। झूंसी में बृजेश का जो फार्म हाउस है, उसमें दुर्लभ गिर नस्ल की करीब तीन सौ गायें पाली गई हैं। इस डेयरी और फार्म हाउस का काम उनका एक करीबी रिश्तेदार देखता है।

बलिया के डीआईओएस बृजेश कुमार मिश्रा

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बृजेश कुमार मिश्रा साल 2007 से 2009 तक प्रयागराज में बेसिक शिक्षा अधिकारी के तौर पर तैनात थे। उन पर शिक्षकों की जांच के नाम पर बेवजह निलंबित करने और फिर बहाल करने के नाम पर पैसे वसूलने का आरोप था। बलिया में शिक्षक भर्ती में धांधली का भी उन पर आरोप लगा था और वह प्रकरण भी उस समय अखबारों में सुर्खियां बना था। शिक्षा मंत्री से सीधी पकड़ और अधिकारियों को धन-बल से अपने पाले में रखने में माहिर बृजेश कुमार मिश्रा प्रयागराज, प्रतापगढ़, हरदोई, जौनपुर में भी तैनात रहे हैं। हरदोई में उनके पास बीएसए के अलावा जिला विद्यालय निरीक्षक का चार्ज था। उस समय भी यह सवाल उठा था कि क्या प्रदेश में शिक्षा विभाग अधिकारियों से खाली हो गया है जो एक अधिकारी को बीएसए और डीआईओएस दोनों महत्वपूर्ण चार्ज दे दिया गया है?  प्रयागराज के तत्कालीन डीएम आशीष कुमार गोयल ने बृजेश कुमार मिश्रा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच के आदेश दिए थे। प्रशासन के आदेश पर उनके आवास पर छापा भी मारा गया था। हालांकि, बृजेश कुमार मिश्रा के आवास से कुछ बरामद नहीं हुआ था। स्पेशल टास्क फोर्स ने पेपर लीक के साथ-साथ अब डीआईओएस के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की जांच भी शुरू कर दी है।

क्यों हो जाता है पेपर लीक?

आम आदमी पार्टी की छात्र एवं युवा इकाई (सीवाईएसएस) के प्रदेश अध्‍यक्ष वंशराज दुबे कहते हैं, "सरकार में आने से पहले भाजपा का वादा 70 लाख रोजगार देकर प्रदेश को नौकरियों के मामले में नंबर वन बनाने का था, लेfक‍न सरकार में आने के बाद इस पार्टी ने यूपी को पेपर लीक में नंबर वन बना fद‍या। अगस्त 2017- सब इंस्पेक्टर पेपर लीक, फरवरी 2018-यूपीपीसीएल पेपर लीक, अप्रैल 2018-यूपी पुलिस का पेपर लीक, जुलाई 2018-अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का पेपर लीक, अगस्त 2018-स्वास्थ्य विभाग प्रोन्नत पेपर लीक, सितंबर 2018-नलकूप आपरेटर पेपर लीक, 41520 सिपाही भर्ती पेपर लीक, जुलाई 2020-69000 शिक्षक भर्ती पेपर लीक, अगस्त 2021-बीएड प्रवेश परीक्षा पेपर लीक, अगस्त 2021-पीईटी पेपर लीक, अक्टूबर 2021-सहायता प्राप्त स्कूल शिक्षक/प्रधानाचार्य पेपर लीक, अगस्त 2021-यूपीटीजीटी पेपर लीक, नीट पेपर लीक, एनडीए पेपर लीक, एसएससी पेपर लीक, नवंबर 2021 में यूपीटीईटी पेपर लीक और अब योगी के दोबारा सत्ता संभलाते ही अंग्रेजी का पेपर लीक हो गया। पेपर लीक करने वाले माफिया आजाद घूम रहे हैं और पकड़े जा रहे हैं निर्दोष और छुटभैये। पत्रकारों को तो जानबूझकर फंसाया जा रहा है।" आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता सांसद संजय सिंह ने इस प्रकरण में ताजा ट्वीट करते हुए कहा है, "आदित्यनाथ जी आपका यही रवैया तानाशाही कहलाता है। पेपर लीक का खुलासा करने वाले जिन पत्रकारों की बहादुरी को सम्मानित करना था, उन्हें आप गिरफ़्तार करा रहे हैं। पेपर लीक तो काला दाग है ही “अमर उजाला” के पत्रकार की गिरफ़्तारी कायरता है।"

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यूपी बोर्ड पेपर लीकर होने के मामले में एक बार फिर योगी सरकार को आड़े हाथ लिया और एक अप्रैल को ट्वीट करते हुए लिखा, "भाजपा सरकार को उप्र में 'पेपर लीक पर चर्चा" करनी चाहिए। पिछले साल 28 नवंबर को यूपी टीईटी पेपर लीक से लाखों युवाओं को आघात लगा था। एक्शन के नाम पर दिखावटी कदमों के अलावा कुछ नहीं हुआ। यूपी के युवा आजतक नहीं जान पाए कि यूपी सरकार के किस भ्रष्ट तंत्र ने पेपर लीक को अंजाम दिया? नतीजतन, एक और पेपर लीक।"

प्रियंका गांधी ने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा, "इस बार भी सरकार दिखावटी कदमों के अलावा कुछ और नहीं कर रही है। पेपर लीक की खबर लिखने वाले पत्रकार को जेल भेजा जा रहा है। लेकिन, पेपर लीक करने वाला तंत्र सरकार में पैठ जमाए बैठा है। उस पर न कोई बुलडोजर चलता है, न कोई बदलाव आता है।" इससे पहले 30 मार्च को प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा था कि भाजपा सरकार के परीक्षा तंत्र में भ्रष्टाचार चरम पर है। प्रियंका गांधी ने लिखा, "यूपी बोर्ड 12 वीं का अंग्रेजी का पेपर लीक हो गया और परीक्षा रद्द करनी पड़ी। 15 से अधिक परीक्षाओं के पेपर लीक वाली भाजपा सरकार के परीक्षा तंत्र में भ्रष्टाचार चरम पर है। यूपी के युवा नहीं चाहते कि उनका प्रदेश पेपर लीक जैसी चीजों के लिए जाना जाए। सरकार को इस दिशा में गंभीर व टिकाऊ कदम उठाने होंगे।"

अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला

बलिया में पत्रकारों की गिरफ्तारी ने विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे दिया है। वाराणसी में पहली अप्रैल को कांग्रेजनों ने राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। महानगर कांग्रेस कमेटी की ओर से दिए गए ज्ञापन में कहा गया है, "अजित कुमार ओझा, दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्ता की गिरफ्तारी लोकतंत्र पर हमला है। कांग्रेस इसका पुरजोर विरोध करेगी। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने कहा, "पत्रकारों की गिरफ्तार निंदनीय है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घृणित कदम है। पत्रकारों की रिहाई होने तक कांग्रेस कार्यकर्ता इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करते रहेंगे।" प्रतिनिधिमंडल में फ़साहत हुसैन बाबू,अशोक सिंह, डॉ राजेश गुप्ता, परवेज खां, आशीष पाठक, किशन यादव, आकाश कन्नौजिया, राज जायसवाल, आजाद, कृष्णा गौड़ समेत तमाम कार्यकर्ता मौजूद थे।

यूपी में इंटरमीडिएट परीक्षा का पेपर लीक होने की घटना को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर तीखा हमला किया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "उत्तर प्रदेश में इंटरमीडिएट बोर्ड की परीक्षा रद। आज 2 बजे से 12वीं की अंग्रेजी की परीक्षा थी, बच्चे एग्जाम सेंटर पहुंचे तो पेपर ही लीक! भाजपा राज में #PaperLeak आए दिन जारी है, भर्ती तो दूर अब बोर्ड परीक्षा भी चुनौती बनी। क्या युवाओं के लिए बस झूठे वादे ही हैं?" कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री अजय राय ने एक बयान में कहा है, "पेपर लीक को रोकने में नाकाम योगी सरकार अब लीक कांड का खुलासा करने वाले लोकतंत्र के प्रहरी पत्रकारों को गिरफ्तार कर प्रताड़ित कर रही है। कुछ ही दिनों में यूपी जंगलराज में बदल गया है। योगी सरकार का सरकारी अमला एक ओर जहां परीक्षाओं की सुचिता हत्या कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसका पर्दाफाश करने वाले पत्रकारों का गला घोंटने की कोशिश कर रहा है। सच दिखाने वाले पत्रकारों को गिरफ्तार किया जाना लोकतंत्र के चौथे खंभे के अलावा संविधान पर प्रहार है।"

बलिया के पत्रकारों की रिहाई के लिए राज्यपाल को संबोधित ज्ञपान देते कांग्रेस कार्यकर्ता 

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा है, "पत्रकारों की गिरफ्तारी पर राजनीतिक दलों के द्वारा जो विरोध किया जा रहा है वो जायज है। इसके साथ ही देश के सभी पत्रकार संगठनों को भी इस सवाल पर आगे आना चाहिए। एक तरफ यह सरकार और उसका अमला जहां परीक्षाओं की सुचिता की हत्या कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसका पर्दाफाश करने वाले पत्रकारों की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है। यह अभिव्यक्ति की आजादी पर खुला हमला है। अगर लोकतंत्र को बचाना है और संविधान की गरिमा को कायम रखना है तो स्वतंत्र और भयमुक्त पत्रकारिता के लिए आमजन को सड़क पर उतर कर विरोध करना होगा। संसद और विधानसभाओं में इस सरकार और उसके पिछलग्गुओं का कब्जा हो गया है। वहां अन्याय और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना तकरीबन असंभव सा हो गया है। ऐसे में सड़क ही ऐसी जगह है जहां अपने आक्रोश और असंतोष के साथ अपनी जायज मांगों के लिए संगठित मुहिम चलाई जा सकती है।

श्रीवास्तव ने यह भी कहा है, "ताजा घटनाक्रम से यह बात भी पूरी तरह साफ हो गई है कि मीडिया घरानों पर काबिज पूंजीपति भाजपा सरकार की जी-हुजूरी में चारणयुग को भी मात देने लगे हैं। इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि जिन मीडिया संस्थानों के पत्रकारों को सरकार और सरकारी मशीनरी निशाने पर ले रही है उन संस्थानों के मालिकान न सिर्फ चुप्पी साधे हुए हैं, बल्कि समूचे प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। प्रेस की आजादी और लोकतंत्र के लिए इससे ज्यादा चिंता की और कोई बात हो ही नहीं सकती है।"

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