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यूपी: अवैध धर्मांतरण कानून को लेकर पुलिस पर अतिसक्रियता और दोहरे रवैए का आरोप क्यों लग रहा है?

इस कानून के तहत धड़ाधड़ एफ़आईआर और गिरफ्तारियां तो सुर्खियों में हैं ही साथ ही कट्टर हिंदूवादी संगठनों के दवाब के चलते पुलिस की कार्रवाई भी सवालों के घेरे में है।
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Image courtesy: Arre

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में अवैध धर्मांतरण कानून के तहत हो रही कार्रवाई और इस संबंध में पुलिस की अतिसक्रियता पर एक के बाद एक कई सवाल उठ रहे हैं। कई मामले संदेह के घेरे में हैं तो वहीं कुछ में पुलिस पर दोहरा रवैया अपनाने जैसे आरोप भी लग रहे हैं। हालांकि महिलावादी संगठन, नागरिक समाज के लोग और कुछ जानकर पहले ही इस पूरे अध्यादेश को लाने के पीछे सरकार की असली मंशा पर सवाल उठा चुके हैं।

क्या है पूरा मामला?

देश के सबसे बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश में इस कानून के लागू होते ही इस मामले में धड़ाधड़ एफ़आईआर दर्ज होने लगीं, कहीं गिरफ्तारियां हुईं तो कहीं शादी तक रुकवा दी गई। कई लोगों का ये भी आरोप है कि कुछ कट्टर हिंदूवादी संगठनों की अति सक्रियता भी इन मामलों में पुलिस पर कार्रवाई का दबाव बना रही है।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक ऐसे ही एक मामले में कथित ‘लव जिहाद’ की खबर सुन कुशीनगर जिले की एक शादी में पुलिस पहुंच गई। कासया पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले एक गांव में एक शख्स के घर पर हैदर अली और शबीला की शादी हो रही थी। पुलिस पहुंची तो घर के मालिक समेत हैदर, शबीला और मौलवी एजाज़ खान को अपने साथ थाने ले गई।

पुलिस को पूछताछ और छानबीन में पता चला कि शबीला आज़मगढ़ की रहने वाली है। उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट आजमगढ़ के मुबारकपुर थाने में दर्ज है। इसलिए पुलिस ने शबीला के घरवालों को बुलाकर उसे उनके सुपुर्द कर दिया।

शबीला के मुताबिक वो बालिग है और अपनी मर्ज़ी से हैदर से शादी कर रही है। उसने बताया कि वो अपने घरवालों को बताए बिना आज़मगढ़ से भागकर उसके पास आ गई थी। चूंकि, शबीला और हैदर दोनों बालिग थे और एक ही समुदाय से थे तो कोई केस बनता नहीं था।

क्या कहना है पुलिस का?

कुशीनगर पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार सिंह ने बताया कि पुलिस सूचना मिलने पर ही पहुंची थी। लेकिन पूछताछ में जब पता चला कि दोनों एक ही समुदाय के हैं और बालिग हैं, इसलिए दोनों को रिहा कर दिया गया। इसमें ‘लव जिहाद’ का मामला नहीं था।

पुलिस पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप

गौरतलब है कि इस अध्यादेश के तहत राज्य में पहला मामला बरेली ज़िले में दर्ज हुआ जिसमें पुलिस ने अभियुक्त को एक हफ़्ते के भीतर गिरफ़्तार करके जेल भी भेज दिया। लेकिन इसी ज़िले में एक हफ़्ते बाद जब एक लड़की के परिजन ने एफ़आईआर दर्ज कराई तो पुलिस ने नए अध्यादेश के तहत धाराएं दर्ज करने से मना कर दिया।

हालांकि ऐसे ही एक मामले में पड़ोसी ज़िले मुरादाबाद में इसी अध्यादेश के तहत मामला दर्ज किया गया है। और उस मामले में हुई कार्रवाई को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं।

बरेली का मामला

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार पांच दिसंबर को बरेली ज़िले के प्रेमनगर थाने में यहां के निवासी शाहिद मियाँ ने अपनी 22 वर्षीया बेटी के अगवा होने की एफ़आईआर दर्ज कराई। परिजनों ने सिद्धार्थ सक्सेना उर्फ अमन, उनकी बहन चंचल और एक फ़र्म के मालिक मनोज कुमार सक्सेना पर केस दर्ज कराया है। शाहिद मियां की बेटी चंचल के साथ मनोज कुमार सक्सेना के फ़र्म में ही काम करती थीं।

शाहिद मियां कहते हैं, "एक दिसंबर को बेटी बैंक से पैसे निकालने गई थी और उसके बाद वापस नहीं आई। बाद में उसका नंबर भी बंद हो गया। फिर हमने 5 दिसंबर को प्रेमनगर थाने में तहरीर दी की मेरी बेटी का मनोज और अमन ने अपहरण कर लिया है। पुलिस ने अगले ही दिन लड़की को बरामद तो कर लिया लेकिन हमलोगों से न तो बात कराई और न ही मिलने दिया गया। हमें डर है कि उसे कुछ हो न जाए।"

इस मामले में बरेली के एसपी सिटी रवींद्र कुमार कहते हैं कि लड़की ने ख़ुद यह बात स्वीकार की है कि वो उसी लड़के के साथ रहना चाहती है।

रवींद्र कुमार कहते हैं, "मामले को दर्ज करके अगले ही दिन पुलिस ने लड़की को बरामद कर लिया। लड़की का मेडिकल टेस्ट कराने के बाद कोर्ट में उसके बयान दर्ज कराए गए। लड़का और लड़की दोनों बालिग़ हैं और लड़की ने कोर्ट में लड़के के पक्ष में बयान दिए हैं जिसके बाद कोर्ट ने लड़की को अमन के साथ उसके घर भेज दिया। धर्म परिवर्तन जैसी कोई बात नहीं है।"

पुलिस का कहना है कि लड़की ने अपने बयान में कहा है कि उसने 29 सितंबर को आर्य समाज मंदिर में अमन से शादी की थी और उन्होंने यह जानकारी अपने परिवार से छिपाई थी। लड़की के पास शादी के दस्तावेज़ भी थे।

पुलिस ने इस मामले को नए अध्यादेश के तहत दर्ज नहीं किया है क्योंकि पुलिस के मुताबिक़, परिजनों ने तहरीर में इस बात का ज़िक्र नहीं किया था कि लड़की का धर्मांतरण कराया गया है जबकि लड़की के पिता शाहिद मियां कहते हैं कि उन्होंने नए क़ानून के तहत ही केस दर्ज करने को कहा था लेकिन पुलिस ने अपने हिसाब से तहरीर लिखवाई और हमारी सुनी नहीं गई।

मुरादाबाद का मामला

रविवार, 6 दिसंबर को मुरादाबाद ज़िले में 22 वर्षीय एक युवक राशिद अली और उनके भाई को कांठ क्षेत्र में उस वक्त गिरफ़्तार किया गया जब वह अपनी पत्नी के साथ शादी का पंजीकरण करवाने जा रहे थे।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक पंजीकरण कार्यालय में दक्षिणपंथी समूह बजरंग दल के लोगों ने इन्हें पकड़ा लिया, पहले औपचारिकताओं को पूरा करने से रोका और उसके बाद फिर तीनों को स्थानीय पुलिस स्टेशन ले गए। सोशल मीडिया पर वायरल हुए 1 मिनट और 11 सेकंड के वीडियो में पुरुष मुरादाबाद के कांठ थाने के परिसर के अंदर महिला को घेरे हुए हैं।

"हमें धर्म परिवर्तन करने के लिए डीएम की परमिशन दिखाओ" इनमें से एक आदमी लड़की से ये कह रहा है, जबकि वहां दो पुलिसवाले खड़े थे जिनमें से एक ने लाठी ले रखी थी। फिर एक और आदमी ने कहा, "आपने नया कानून पढ़ा है या नहीं? ', एक और ने आगे जोड़ा.."ये तुम जैसे लोगों के लिए ही बनाना पड़ा है।"

हालांकि, महिला ने पत्रकारों को बताया कि उसकी और पुरुष की सहमति से शादी हुई थी। महिला ने कहा, "मैं एक वयस्क हूं, मेरी उम्र 22 साल है। मैंने 24 जुलाई को अपनी मर्जी से शादी कर ली। यह पांचवां महीना है हमारी शादी हुए।"

उधर पुलिस ने कहा कि मामले में शिकायत हिंदू महिला की मां ने दर्ज की थी जिसने दावा किया था कि मुस्लिम व्यक्ति ने उसकी बेटी के साथ धोखे से शादी और धर्मांतरण करवाया था।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विद्या सागर ने एक बयान में कहा,  "हमने दोनों पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया है और मामले की पूरी जांच करेंगे। गिरफ्तार किए गए लोगों को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 की धारा 3 के तहत दर्ज किया गया है, जो कि जबरन धर्म परिवर्तन से संबंधित है।”

हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि पुरुष या महिला ने धर्म परिवर्तन किया था या नहीं या फिर ये लोग ऐसी कोई योजना बना रहे थे।

स्थानीय लोगों ने बताया कि बजरंग दल के कुछ लोगों ने इस मामले में काफ़ी हंगामा किया और पुलिस पर दबाव बनाया कि वो ग़ैर-क़ानूनी धर्मांतरण अध्यादेश के तहत मुक़दमा दर्ज करके अभियुक्त को गिरफ़्तार करे। इसी दबाव के चलते आनन-फ़ानन में यह कार्रवाई की गई।

बरेली और मुरादाबाद के इन दोनों ही मामलों में लड़की की ओर से कोई शिकायत नहीं की गई, बल्कि परिजनों की ओर से की गई। लेकिन एक मामले में पुलिस ने लड़की के बयान के आधार पर उसके पति के पास रहने की छूट दे दी जबकि दूसरे मामले में लड़की के यह स्वीकार करने के बावजूद कि उसने स्वेच्छा से शादी की है, लड़के को गिरफ़्तार कर लिया।

दोनों मामलों को लेकर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि बरेली में अभियुक्त हिन्दू हैं और उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि मुरादाबाद वाले मामले में अभियुक्त को तुरंत गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया क्योंकि वो मुस्लिम है।

ये भी सवाल उठ रहा है कि इस मामले में न तो लड़की की बात सुनी गई और न ही लड़के की, जबकि दोनों ही बालिग़ हैं।

सरकारी मंशा पर सवाल

इस संबंध में महिला अधिकारों के लिए कार्यरत शबनम कहती हैं कि जब सरकार इन कानून की बात कर रही थी तभी ये साफ हो गया था कि ये प्यार पर पहरा है।

शबनम ने न्यूज़क्लिक को बताया,  “कई और राज्यों में भी धर्म परिवर्तन के कानून हैं जैसे मध्य प्रदेश और ओडिशा या और भी लेकिन कहीं भी इस में न तो लव जिहाद का जिक्र है और नाही अंतर-धार्मिक विवाह का। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार का ये कानून साफ तौर पर अंतर-धार्मिक विवाहों को क़ानून-व्यवस्था से जोड़ने का कानून है। लड़का-लड़की, घरवाले सब राज़ी हों फिर भी आपको परिमशन चाहिए। ऐसे में मैं समझती हूं कि ये कानून निज़ता के अधिकार का भी हनन है।”

कानून का ज़ोर अपराध रोकने पर होना चाहिए न कि विवाह रोकने पर!

पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह के मुताबिक यूपी पुलिस की कार्रवाई पर कोई आश्चर्य करने जैसी बात ही नहीं है। क्योंकि ये कानून लाया ही इसलिए गया है ताकि कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति हिंदू महिलाओं से शादी न कर सके  और उनका धर्म परिवर्तन न हो।

ऋचा कहती हैं, “महिला सुरक्षा के नाम पर इस कानून को लाया गया है लेकिन आप खुद समझिए हमारे देश में एक साल में लगभग 30 हजार से ज्यादा अंतर-धार्मिक विवाह होते हैं, जिनमें आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश में कोई 5,000 से कुछ अधिक  होते होंगे। वहीं महिलाओँ के खिलाफ अपराध की बात करें तो 2018 की एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल अपराध का 15.8 प्रतिशत यानी 59, 445 मामले अकेले यूपी में दर्ज हुए हैं। ऐसे में कानून व्यवस्था का ज़ोर अपराध रोकने पर होना चाहिए ना कि अंतर धार्मिक विवाह रोकने पर। सरकार की प्राथमिकता साफ है।”

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