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यूपी से बाहर का मतलब केवल बंबई और दिल्ली नहीं है बल्कि सऊदी, ओमान और कतर भी है!

"योगी के समर्थक योगी के पांच काम गिनवा देंगे तो मेरा वोट योगी को चला जाएगा।"
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"लग रहा है कि एक-दो दिन के अंदर रूस यूक्रेन पर हमला कर देगा, अमेरिका वाले यूक्रेन को बचाएंगे।" उत्तर प्रदेश में बिहार बॉर्डर पर मौजूद पडरौना विधानसभा के सिंगपटी गांव की चाय की दुकान पर हाथ में दैनिक जागरण लिए तकरीबन 50 साल के व्यक्ति की जुबान से निकली इस राय को सुनकर मैं चौंक गया। सोचने लगा कि जिस इलाके में अधिकतर लोग या तो खेतिहर मजदूर हैं या छोटा मोटा काम करने के लिए उत्तर प्रदेश से बाहर जाकर प्रवासी मजदूर की तरह काम करते हैं, वैसे इलाके में रूस और यूक्रेन कैसे घुस गया? जिस इलाके में ढंग का एक स्कूल और कॉलेज नहीं है। ढंग की कोई लाइब्रेरी नहीं है। जो पूर्वांचल के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है। वहां रूस और यूक्रेन पर चर्चा चौंकाने वाली थी।

मैंने पलटकर पूछ दिया कि भारत की सीमा के भीतर चीन घुस गया है। इस पर आपकी क्या राय है? यह सवाल सुनते ही वह कहने लगे कि यह सब झूठ है। ऐसा नहीं हो सकता। अगर चीन भारत की सीमा के भीतर घुस गया रहता तो अब तक हर अखबार में छप चुका होता। हर न्यूज़ चैनल पर इसकी बात होती। हर जगह इसकी चर्चा होती। मैंने तो इस पर कुछ भी नहीं सुना। यह बात सुनते ही मैंने मोबाइल खोलकर विदेश मंत्री एस जयशंकर का वह बयान पढ़ दिया जिसमें वह भारतीय सीमा के भीतर चीनी अतिक्रमण को लेकर ऑस्ट्रेलिया से शिकायत कर रहे हैं। यह बयान पढ़ने के बाद महोदय का कहना था कि यह कौन है? मुझे नहीं पता। इतनी बड़ी बात होती तो मोदी जी अब तक जरूर कुछ ना कुछ कहते?

उस व्यक्ति का यह बयान इस बात का सबूत है कि कैसे हमारी मौजूदा मीडिया लोगों के बीच जायद समझ बनाने की वजह विकृत समझ बना रही है? कैसे लोग अपने आंख के सामने मौजूद परेशानियों को अनदेखा कर वैसी बातों में उलझ जाते हैं, जिन की अहमियत उनके जीवन के जरूरी बातों से बहुत कम है। इस बयान के साथ ही मैंने उत्तर प्रदेश चुनाव के पडरौना विधानसभा के सामाजिक और राजनीतिक मिजाज को समझने की शुरुआत की।

कुशीनगर जिले में उत्तर प्रदेश की 7 विधानसभा की सीट है। सातों सीटों पर छठवें चरण में 3 मार्च को चुनाव होने वाले हैं। इन 7 सीट में से एक सीट पडरौना विधानसभा की है। पडरौना विधानसभा के अंतर्गत बांसी का इलाका भी आता है। यह उत्तर प्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर मौजूद है। बिहार की तरफ से उत्तर प्रदेश की एंट्री करते ही कुर्सी पर बैठे सबसे पहले इंसान से ही पूछा कि क्या यह बात सही है कि यूपी के बॉर्डर से बिहार में शराब की ढेर सारी सप्लाई होती है। उसने मुस्कुराते हुए कहा कि देखिए बॉर्डर पर तंबू गाड़ कर पुलिस वाले बैठे हैं। आती-जाती सवारी को चेक भी कर रहे हैं। आपको देखकर लगेगा कि इतने चाक-चौबंद हैं तो शराब की सप्लाई कैसे हो सकती है? लेकिन हकीकत यह है कि आपके देखने के दौरान ही मोटरसाइकिल की डिक्की में शराब रखकर दो लोग निकल गए। बॉर्डर पर शराब की सप्लाई होना कोई मुश्किल बात नहीं बशर्ते शराब ले जाने वाले पुलिस वालों को कमीशन की सप्लाई करते रहें। फिर आगे मैंने पूछा कि इस बॉर्डर के 10 किलोमीटर यूपी का एरिया ज्यादा विकसित है या बिहार का एरिया? तो उसने फिर मुस्कुराते हुए कहा कि जिधर के एरिया में सिटी होगा उधर का डेवलप होगा। इसमें बिहार और यूपी के सरकार का कोई योगदान नहीं है। अगर योगदान होता तो मेरा बच्चा विदेश जाकर कमाई ना करता। इस इलाके में अगर खेत नहीं है तो कमाई का कोई जरिया नहीं है। कमाने वाले यूपी से बाहर चले जाते हैं। यूपी से बाहर का मतलब केवल दिल्ली-मुंबई नहीं होता है। सऊदी, कतर ओमान भी होता है। तब मैंने पूछा कि चुनाव कौन जीत रहा है? तब उन्होंने कहा कि साइकिल की हवा चल रही है। मैं भी साइकिल पर दे दूंगा। लेकिन सच बताऊं तो जब तक मेरा बेटा घर पर रह कर के अपना परिवार पालने लायक कमाई नहीं करेगा तब तक तो मेरे लिए कोई नहीं जीत रहा। एक दूसरे को नमस्कार कहकर बात खत्म हुई। और मैं कुछ दूर जाकर चाय की दुकान पर बैठ गया।

वहां पुजारी जी नाम के व्यक्ति और सरकारी स्कूल के मास्टर साहब से मुलाकात हुई। पुजारी जी ने अपनी बात की शुरुआत समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी की कमियां गिनवाते हुईं की। वही रटी रटाई बातें बताने लगे जो मीडिया के जरिए फैली हुई है। लेकिन पुजारी जी ने यह भी कहा कि वह एक जमाने में खनन ठेकेदार हुआ करते थे। मैंने उनकी यह खनन वाली बात लेकर मास्टर साहब से पूछा कि खनन पर क्या नीति बननी चाहिए? मास्टर साहब ने कहा कि जो एक्सपर्ट कहे वही नीति बननी चाहिए। यही बात लेकर मैंने जब मास्टर साहब से कहा कि मोदी जी ने नोटबंदी बिना किसी एक्सपर्ट की राय की लागू कर दी थी? वह सही था या गलत? तो मास्टर साहब मुस्कुराने लगे। खूब हंसने लगे।कहे कि गलत किए थे। पुजारी जी फंस गए। जल्दी से बोल दिया कि मोदी जी ने नोट बंदी लागू करके गलत किया था। जितनी जल्दी बोला उतनी ही जल्दी यह भी बोल दिया कि नोट बंदी के फायदे भी थे। इसी वजह से घरों में रखा हुआ पैसा बाहर निकला। फिर मैंने जोर देकर कहा कि अगर यह बात इतनी अच्छी थी तो मोदी जी सलाह लेने से क्यों नहीं लिए? तो पुजारी जी अपने नेता के कामकाज पर सवाल उठता देख कर बात काटने लगे।

फिर आगे बात बढ़ी तो मैंने उनसे पूछा कि उत्तर प्रदेश की वार्षिक औसत आमदनी ₹44000 है। महीने में देखें तो मुश्किल से साढ़े तीन हज़ार रुपए। सरकार कहती है कि उत्तर प्रदेश में 37% लोग गरीब हैं। तो उत्तर प्रदेश अच्छा राज्य हुआ कि खराब राज्य? योगी जी ने अच्छा शासन किया है या बुरा शासन? यह बात सुनकर पुजारी जी ने कहा कि सब तो गरीब की राजनीति करते हैं। गरीबी खत्म करने की बात ही करते हैं। फिर बोलते बोलते जब अपने तर्कों को समेट नहीं पाए तो पुजारी जी ने कहा कि कांग्रेस भाजपा सपा बसपा इन चारों पार्टियों को वोट नहीं देना चाहिए। इनके अलावा कोई दूसरी पार्टी खड़ी होनी चाहिए। मैं उसको वोट दे दूंगा।

मैंने पूछा ऐसा क्यों ? तो उनका कहना था ऐसा इसलिए क्योंकि सभी पार्टियां केवल अपने लिए काम करती है। जो उनके पीछे पीछे चलते हैं, केवल उन्हीं को मुनाफा मिलता है। बाकी सब गरीब रहते हैं। अपने मुनाफे के लिए तो आरपीएन सिंह ने पार्टी बदल ली। ऐसे लोगों हैं तो कैसे गरीबी खत्म होगी? इतना जानने के बाद मैंने अंत में पूछा कि आप किसे वोट देंगे? तो उन्होंने आक्रामक शैली में कहा कि भाजपा चाहे देश बेच दे। ट्रेन बेच दी। कुछ भी बेच दे। वोट हम भाजपा को ही देंगे। हमारा वोट मोदी को जाएगा। यही मौजूदा वक्त की सबसे खराब बात हो चली है। लोग इतना ज्यादा बंट चुके हैं। सब कुछ जानते हुए भी अपनी सारी प्रतिक्रिया देते समय अपने बारे में ना सोच कर केवल उस पार्टी की बर्बादी के बारे में सोचते हैं जो उन्हें पसंद नहीं। उसे हराने के लिए गलत का साथ देने में खुद को थोड़ा भी गलत नही पाते।

वहां से उठा तो आगे बढ़ा। रास्ते के किनारे एक एक प्राथमिक स्कूल था। स्कूल के नाम पर केवल नाम लिखा था। स्कूल भवन के नाम पर खंडहर खड़ा था। उस खंडहर स्कूल के सामने की सड़क से गुजरती चमचमाती हुई गाड़ियों को देखकर बहुत अधिक शर्मिंदगी हुई। बच्चों की स्कूल ड्रेस फटे थे। कई दिन से धुले नहीं थे। मास्टर मतदाताओं को जागरूक करने के लिए उनकी रैली निकलवाने की तैयारी कर रहे थे। यह देखकर सबसे ज्यादा अफसोस हुआ।

एक बार सोच कर देखिए कि जिन बच्चों की स्कूल ड्रेस फटे हुए है। कई दिन से धुले नहीं है। स्कूल खंडहर की तरह है। बैठने के लिए ढंग की व्यवस्था नहीं है। अभिभावक इतने ज्यादा गरीब है जी पढ़ाई से ज्यादा उनकी साल भर में मिलने वाली 1100 रुपए की वजीफा की चिंता करते हैं। क्या वैसे बच्चे चुनाव, मतदाता, नागरिक जैसे शब्दों का मतलब भी जानते होंगे? क्या उन्हें पता होगा कि वे किस वजह से रैली में भाग ले रहे हैं, उसका मतलब क्या है? उनके शरीर पर पड़े फंटे ड्रेस देखकर हिंदुस्तान की सारी परेशानी सामने आकर खड़ी हो गई।

बात करने पर पता चला कि स्कूल के शिक्षक तो स्कूल की परेशानी लिख कर भेज देते हैं। लेकिन प्रधान की तरफ से इस पर कोई सुनवाई नहीं की जाती। स्कूल के शिक्षकों से बात करके ऐसा लगा जैसे कि उनके भीतर पढ़ाने का उत्साह नहीं है। उस पूरे माहौल को बदलने की ऊर्जा नहीं है। उन्हें अपनी सैलरी से मतलब है। अपनी जिंदगी से मतलब है। वह सिस्टम के मारे हुए लोग लगे। उनका साफ कहना था कि हम तो इस दिक्कत को लिखकर भेज चुके हैं। लेकिन आगे की बात प्रधान कलेक्टर और सरकार की बात है। जब तक ऊपर से लेकर नीचे तक स्थिति ठीक नहीं होगी तो हम क्या कर सकते हैं? अब जब मैं स्कूल छोड़ कर आगे बढ़ रहा था तो मास्टरों की बातचीत से ऐसा लगा जैसे उन्हें इस बात की कम चिंता है कि स्कूल में पढ़ाई कैसे होगी? बच्चों की हालत ठीक कैसे होगी? इससे ज्यादा चिंता इस बात की है कि अबकी बार सरकार योगी की बन रही है या अखिलेश की?

आगे चले तो तकरीबन 55 साल की अबुल कलाम से बात हुई। 55 साल के अबुल कलाम 80 साल के महादेव मिश्रा की तरफ देखकर कहने लगे कि पहले के जमाने में हिंदू-मुस्लिम मोहब्बत थी। अब नहीं है। हिंदू मुस्लिम साथ मिलकर काम नहीं कर पा रहे हैं। बहुत अधिक दरार डाल दी गई है। मजदूरी का काम भी अब हिंदू मुस्लिम साथ मिलकर नहीं कर पाते हैं। गांव नगर में मोहब्बत है। लेकिन वह मोहब्बत भी दिखावटी हो गई है। अब खुद देखिएगा हिंदू भाजपा को वोट देगा और मुस्लिम बेचारा साइकिल को देगा।

वहीं पर बाबूराम कुशवाहा थे। उन्होंने पूरे जोश के साथ बोला कि योगी के समर्थक योगी के कोई पांच काम गिनवाए दे। इस बार अखिलेश की आंधी है। योगी समाज बांटने का काम करते हैं। आप ही बताइए 80,20 कहने का मतलब क्या होता है? यह समाज बांटना नहीं हुआ तो क्या हुआ? यह बात सुनकर अबुल कलाम कहते हैं कि हिजाब पर नहीं विकास पर बात होनी चाहिए। सब लोग अपने परिवार के लिए तो मर रहे हैं। तो बिजली-सड़क-पानी खाना बात क्यों नहीं होती। घर का मुखिया ठीक होता है, तभी घर अच्छे से चलता है। मुखिया अच्छा नहीं है। मोदी जी खुद को देश वाला कहते हैं। लेकिन वह खुद बताएं कि उन्होंने आज तक क्या सच बोला है? उनकी सारी बातें तो झूठ ही होती हैं।

बात पडरौना विधानसभा की थी तो आर पी एन सिंह पर भी बात हुई। आर पी एन के लिए एक मारक टिप्पणी यह आई कि वह तो नचनिया है। जब देखे की कमाई नहीं हो पा रही है तो नाच के उधर चले गए। भाजपा में उन्हें सम्मान नहीं मिलेगा।

आगे बढ़े तो समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ताओं का कार्यालय आ गया। वहां कार्यकर्ताओं को लाल गमछा दिया जा रहा था। मैंने भी खुद को पत्रकार बताकर परिचय दिया। पत्रकार होने के नाते मुझे भी लाल गमछा मिल गया। लाल गमछा लपेटकर मैंने पडरौना विधानसभा के युवा अध्यक्ष शिव बचन यादव से बात करनी शुरू की। लगा कि नौजवान है तो थोड़ा इनकी बातचीत से अंदाजा लगाते हैं कि भारत की राजनीति का भविष्य क्या होने वाला है?

इनसे पूछा कि राजनीति का मतलब क्या है? उन्होंने कहा कि जनता की भावनाओं को ध्यान में रखना। मैंने पूछा कि तब तो राम मंदिर बनना बहुत अच्छा है। जनता की भावना को ध्यान में रखा गया है? तो उन्होंने कहा कि नहीं जनता की भावना तब पूरी होगी जब उसे रोजगार दिया जाएगा? तब मैंने उनसे पूछा कि क्या आप कह रहे हैं कि राम मंदिर बनाना ठीक नहीं है? रोजगार पहले चाहिए। तब बेचारे उलझ गए। सोच में पड़ गए इधर जवाब दिया तब भी खाई और उधर जवाब दूंगा तब भी खाई। आगे मैंने पूछा कि बताइए कि उत्तर प्रदेश की आबादी कितनी है? नहीं बता पाए। फिर मैंने पूछा कि उत्तर प्रदेश में गरीबी कितनी है? इसका जवाब भी नहीं दे पाए। तब मैंने शिव बचन यादव से पूछा कि अगर आप चुनाव लड़कर विधायक बनना चाहते हैं और प्रधानमंत्री बनने की इच्छा भी पालते हैं तो क्या आपको यह नहीं पता होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में गरीबी कितनी है? तब उन्होंने जवाब दिया कि मैं तो अभी अभी राजनीति में नया आया हूं।

मैंने पूछा कितने साल हुए? उन्होंने कहा दो साल हुए। तब आगे मैंने पूछा कि 2 साल पहले आप क्या करते थे? उन्होंने कहा कि मैंने राजनीति शास्त्र में पढ़ाई की। मैंने पूछा कि यह बताइए राज्य का मतलब क्या होता है? उन्होंने हाथ जोड़ा और हंस कर भाग गए। कहा कि ये सब अभी नहीं सीखा है। मुझे सुनाई दिया कि वह कह रहे हैं कि यह सब जानने से वोट नहीं मिलता है। मैं भी वहां से भारत की राजनीति का भविष्य सोचते हुए लौट चला।

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