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दिग्गज पत्रकार और माकपा नेता मृदुल डे का निधन

डे ने बंगाली भाषा में मार्क्सवादी विचार और दर्शन पर कई किताबें लिखी हैं। वे फेफड़े के कैंसर से पीड़ित थें।
Mridul
मृदुल डे

दिग्गज पत्रकार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [सीपआईएम] की केंद्रीय समिति के पूर्व सदस्य मृदुल डे (Mridul Dey) का सोमवार को निधन हो गया। वह 76 वर्ष के थे। वह फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित थे और न्यू टाउन के सरकारी अस्पताल में भर्ती थे। उनके परिवार पत्नी और बेटा हैं।
डे ने अपने करियर की शुरूआत गणशक्ति के मुख्य रिपोर्टर के तौर पर की थी और सोवियत संघ के विघटन के दौरान उन्होंने कई विश्लेषणात्मक लेख लिखा था। उन्होंने वहां का दौरा किया था और कई विश्लेषणात्मक रिपोर्ट लिखी थीं।
डे को गणशक्ति को डेली मॉर्निंग फॉर्मेट में बदलने के लिए कुछ "साहसिक कदम" उठाने में उनकी भूमिका के लिए भी याद किया जाता है। वह कोलकाता प्रेस क्लब से भी जुड़े थे और एक बार इसके उपाध्यक्ष चुने गए थे।
दिग्गज पत्रकार और सीपीआई(एम) नेता का जन्म 1947 में चटोग्राम के आलमपुर गांव में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है। उनके पिता डॉ. जोगेशचंद्र डे स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे।
मृदुल डे ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के गोबरदंगा हिंदू कॉलेज से भौतिकी ऑनर्स में स्नातक किया। उन्होंने नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी से एमएससी किया। 1968 में उन्होंने मार्क्सवादी दर्शन की ओर रुख किया और छात्र आंदोलन में शामिल हो गए।
जल्द ही उन्हें सिलीगुड़ी में वैचारिक और शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ा। कांग्रेस सरकार ने उन्हें बिना किसी मजबूत आधार के एक महीने के लिए कैद कर लिया। उन पर यह आरोप लगाया कि उनके भौतिकी के नोट्स छात्रों को बम बनाने के तरीके पर प्रशिक्षित करने के लिए थे। बाद में, जेल से छूटने के बाद, उन्होंने कोलकाता का रुख किया और पार्टी के पूर्णकालिक सदस्य बन गए। हालांकि, उन्होंने गणशक्ति के साथ अपने संबंधों को बरकरार रखा और समाचार पत्र में नियमित लिखते रहे।

वर्ष 1985 में डे सीपीआईएम की पश्चिम बंगाल राज्य समिति के लिए चुने गए और 2001 में वे पार्टी के राज्य सचिवालय सदस्य बने। 2008 में कोयंबटूर में पार्टी कांग्रेस में उन्हें केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया था। पिछली पार्टी कांग्रेस में उन्हें सेवामुक्त कर दिया गया था।
डे मुजफ्फर अहमद मेमोरियल अवार्ड कमेटी के अध्यक्ष थे और प्रगतिशील साहित्य एवं सांस्कृतिक आंदोलन से भी जुड़े हुए थे। उन्होंने बंगाली राजनीति और मार्क्सवादी विचारों पर कई किताबें लिखी हैं।
 

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