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ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी को नेताओं की बजाय अफ़सरों पर भरोसा!

अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन नौकरशाहों को ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ का रथ प्रभारी बनाए जाने के मायने समझा रहे हैं। साथ ही विधानसभा चुनावों और आम चुनाव की राजनीति पर बात कर रहे हैं।
narendra modi
फ़ोटो : PTI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार नहीं बल्कि कई बार यह साबित कर चुके हैं कि वे अपनी सरकार के मंत्रियों और पार्टी के नेताओं की बजाय नौकरशाहों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपनी सरकार की नीतियों और योजनाओं के प्रचार के लिए भी अफसरों पर भरोसा दिखाया है। सरकार की ओर से विकसित भारत संकल्प यात्रा के लिए पूरे देश में रथ निकल रहे हैं और इन रथों का प्रभारी आईएएस अधिकारियों को बनाया गया है। यानी जो काम सरकार के मंत्रियों और भाजपा के नेताओं को करना चाहिए, वह काम अफसर करेंगे। विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार में अफसरों को उतारने का विरोध कर रही हैं, जो कि स्वाभाविक और जायज भी है।

विपक्षी पार्टियों के साथ ही पूर्व अधिकारियों ने भी इस पर सवाल उठाया है लेकिन लगता नहीं कि इस योजना में कोई तब्दीली आएगी, क्योंकि सरकार जब संवैधानिक संस्थाओं और सेना का राजनीतिकरण करने में कोई संकोच नहीं कर रही है तो नौकरशाही क्या चीज है! बहरहाल, सरकार की इस योजना को देख कर लग रहा है कि प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी के नेताओं का चेहरा दिखाने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उन्हें चुनाव अपने चेहरे पर लड़ना है। इसलिए नेताओं की बजाय अधिकारी मोदी की तस्वीरों के साथ रथ लेकर देश भर में घूमेंगे। शायद प्रधानमंत्री को लगता है कि नेताओं की बजाय अधिकारियों का चेहरा लोगों को ज्यादा यकीन दिलाएगा कि सरकार अच्छा काम कर रही है।

शांति निकेतन में 'आचार्य नरेंद्र मोदी’

महात्मा गांधी से जुड़ी जगहों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें (महात्मा गांधी की तस्वीरें से भी बड़ी) और नाम लगाने के बाद अब गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर की बारी है। गुरुदेव के बनाए विश्व भारती विश्वविद्यालय में एक नाम पट्टिका लगी है, जिस पर आचार्य के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम लिखा है। नाम पट्टिका में एक तरफ लिखा है आचार्य नरेंद्र मोदी तो दूसरी ओर उप आचार्य हैं विश्वविद्यालय के कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती। गौरतलब है कि कोरोना के समय प्रधानमंत्री मोदी ने बाल और दाढ़ी बढ़ाई थी तब भी कहा जा रहा था कि वे गुरुदेव का लुक बना रहे हैं ताकि 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में उसका फायदा मिले। हालांकि भाजपा को कोई फायदा हुआ नहीं।

बहरहाल, विश्व भारती विश्वविद्यालय में आचार्य के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की पट्टिका लगाने के बाद विवाद शुरू हो गया है। तृणमूल कांग्रेस ने इसे गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर का अपमान बताया है। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि तीन तरह की नाम पट्टिकाएं अलग-अलग जगह पर लगाई जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि गुरुदेव ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना ही की है तो वे हर जगह मौजूद है और हर जगह उनकी छाप है। बहरहाल, फिर छह-सात महीने बाद आम चुनाव हैं और बंगाल में गुरुदेव और प्रधानमंत्री मोदी की चर्चा शुरू हो गई है।

भाजपा तेलंगाना में बाहरी नेताओं के भरोसे

भाजपा तेलंगाना का विधानसभा चुनाव बाहरी नेताओं के भरोसे लड़ रही है। पार्टी ने चुनाव अभियान समिति की कमान एटला राजेंद्र को सौंपी है, जो कुछ समय पहले ही के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की भारत राष्ट्र समिति छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए हैं। वे हुजूराबाद विधानसभा सीट से विधायक थे। भाजपा में शामिल होने पर उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दिया और भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ कर जीते। उन्हें हराने के लिए तब मुख्यमंत्री केसीआर ने बड़ा जोर लगाया था लेकिन वे जीत गए। इसीलिए भाजपा ने उन्हें चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया है। एटला राजेंद्र दो सीटों से चुनाव लड़ेंगे। उनकी एक सीट तो पारंपरिक हुजूराबाद है और दूसरी गजवेल सीट है, जहां से मुख्यमंत्री केसीआर चुनाव लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री को घेरने के लिए भाजपा ने यह दांव चला है।

पहले कहा जा रहा था कि भाजपा अपने चार में से किसी एक सांसद को उनके खिलाफ लड़ाएगी। पार्टी ने तीन सांसदों को टिकट दिए हैं लेकिन किसी को भी केसीआर या उनके परिवार के दूसरे सदस्यों के खिलाफ नहीं उतारा है। केसीआर के बेटे केटी रामाराव के खिलाफ भाजपा ने रानी रूद्रम्मा रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। वे भी कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुई हैं। इस तरह भाजपा ने केसीआर के खिलाफ लड़ाई के मोर्चे पर बाहरी नेताओं को लगाया है। उसके उम्मीदवारों की पहली सूची में कई बाहरी नेता शामिल हैं।

संजय सिंह की राज्यसभा सीट का क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करके फैसला सुरक्षित रखा है। माना जा रहा है कि उनको जमानत मिल जाएगी। वैसे भी उन्हें जेल गए आठ महीने हो गए हैं, इसलिए जमानत मिलने की संभावना है। लेकिन आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह थोड़े दिन पहले ही गिरफ्तार हुए है, इसलिए उनके तत्काल जमानत पर रिहा होने की कम संभावना है। इसीलिए सवाल है कि सिसोदिया बाहर आ गए और संजय सिंह जेल में ही रहे तो दोनों की स्थितियों में क्या बदलाव आएगा? गौरतलब है कि राज्यसभा संजय सिंह का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो जाएगा सो, बड़ा सवाल है कि अगर जनवरी तक संजय सिंह को जमानत नहीं मिलती है तो क्या उनके जेल में रहते ही उन्हें अरविंद केजरीवाल फिर से राज्यसभा में भेज देंगे? जेल में रह कर लोग लोकसभा और विधानसभा का चुनाव तो लड़े और जीते हैं लेकिन जेल मे बंद किसी नेता को राज्यसभा दी गई हो इसकी मिसाल नहीं है। हालांकि केजरीवाल मिसाल बनाते रहते हैं लेकिन उनको भी एक बहाना मिल जाएगा। इसीलिए इस बात की संभावना जताई जा रही है कि अगर सिसोदिया जेल से बाहर आ जाते हैं तो उन्हें संजय सिंह की जगह राज्यसभा भेज दिया जाए। फिर संजय सिंह के जेल से बाहर आने के बाद पार्टी उनके लिए कोई भूमिका देखेगी। बहरहाल, दिल्ली से आम आदमी पार्टी के तीनों राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो रहा है और इस बार केजरीवाल क्या दांव चलते हैं, यह देखने वाली बात होगी।

भाजपा में टूट गया उम्र का बंधन

भाजपा में दस साल पहले मोदी-शाह का युग शुरू होने के बाद एक अघोषित नियम बना था कि 75 साल उम्र वालों को चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा। दूसरा अघोषित नियम यह बना था कि एक परिवार से दो लोगों को टिकट नहीं मिलेगा। लेकिन इस बार भाजपा ने चुनाव में उम्र के नियम को शिथिल या खत्म कर दिया है। उसने मध्य प्रदेश में कई ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जिनकी उम्र 75 के आसपास या उससे ज्यादा है। इससे भाजपा के कई पुराने नेताओं की उम्मीदें जाग गई हैं। कई ऐसे नेता, जिनकी उम्र 70 साल से ज्यादा थी और इस आधार पर लोकसभा चुनाव में अपने टिकट को लेकर आश्वस्त नहीं थे, उन्हें अब लग रहा है कि अगर वे जीतने की स्थिति में होंगे तो उम्र के आधार पर उनका टिकट नहीं कटेगा।

बहरहाल, मध्य प्रदेश में भाजपा ने 81-81 साल के दो नेताओं को चुनाव में उतारा है। दोनों के नाम नागेंद्र सिंह हैं। एक सतना की नागौद सीट से तो दूसरे रीवा की गुढ सीट से उम्मीदवार बनाए गए हैं। इनके अलावा पूर्व वित्त मंत्री 76 साल के जयंत मलैया को फिर से दमोह सीट से उतारा गया है। 74 साल की माया सिंह को ग्वालियर ईस्ट सीट से फिर से टिकट मिला है तो पूर्व स्पीकर 73 साल के सीताशरण शर्मा को होशंगाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में ही पहले भाजपा कई नेताओं का टिकट उम्र के आधार पर काट चुकी है। लोकसभा स्पीकर रहीं सुमित्रा महाजन को पिछले लोकसभा चुनाव में इसी वजह से टिकट नहीं मिला था। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और पूर्व मंत्री सरताज सिंह को भी इसी आधार पर उम्मीदवार बनाने से इनकार कर दिया गया था।

दलित वोटों के लिए सभी पार्टियों की राजनीति

एक तरफ मंडल की राजनीति तेजी से शुरू हो गई है। हर जगह जाति गणना और अन्य पिछड़ी जातियों का आरक्षण बढ़ाने और पिछड़ी जातियों के अंदर अत्यंत पिछड़ी जातियों का वर्गीकरण करके आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था करने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर दलित वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति भी शुरू हो गई है। सभी पार्टियां इस दिशा में किसी न किसी तरह का अभियान चला रही है। बिहार में जनता दल (यू) ने दलित समुदायों तक पहुंच बनाने के लिए भीम संसद यात्रा निकाली है, जिसकी टैग लाइन है 'संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ, देश बचाओ।’ जनता दल (यू) के विधायक और राज्य सरकार के मंत्री अशोक चौधरी इसका नेतृत्व कर रहे हैं। पांच नवंबर को पटना में भीम संसद होगी, जिसमें एक लाख लोगों को जमा करने का लक्ष्य है।

उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने कांसीराम के स्मृति दिवस के मौके पर दलित संवाद यात्रा शुरू की है। उत्तर प्रदेश में ही भाजपा ने भी दलितों को लुभाने का अभियान शुरू किया है। 17 अक्टूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हापुड़ से इसकी शुरुआत की। उधर महाराष्ट्र में शिव सेना ने डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की पार्टी के साथ तालमेल किया है।

एक और सहयोगी ने भाजपा का साथ छोड़ा

कई छोटी-छोटी प्रादेशिक पार्टियों को जुटा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जुलाई दिल्ली में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की बैठक की थी। उस बैठक में कुछ 38 पार्टियां शामिल हुई थीं और इसी के आधार भाजपा ने कहा था कि बेंगलुरू में हुई विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक में शामिल 27 पार्टियों के मुकाबले एनडीए मे ज्यादा पार्टियां जुटी हैं। लेकिन उसके बाद दो पार्टियों ने एनडीए छोड़ने की घोषणा कर दी है। पहली तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी अन्ना डीएमके है, जिसने भाजपा से गठबंधन खत्म कर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। दूसरी पार्टी मिजोरम में सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट है। इस बार के चुनाव में भी उसके सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने की संभावना है। उसके नेता और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने न सिर्फ भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन से अलग होने का ऐलान किया, बल्कि यह भी कहा कि वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा नहीं करेंगे। अभी तय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी प्रचार के लिए मिजोरम जा रहे हैं या नहीं, लेकिन अगर वे जाते हैं तो मुख्यमंत्री उनसे दूरी रखेंगे। माना जा रहा है कि मणिपुर की घटना की वजह से उन्होंने यह रवैया अख्तियार किया है। इसका असर पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों पर भी हो सकता है। उधर आंध्र प्रदेश में भाजपा की एक और सहयोगी जन सेना पार्टी के नेता पवन कल्याण भाजपा से अलग तेलुगू देशम पार्टी के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री लड़ेंगे लोकसभा चुनाव

सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाने के बाद भाजपा अब अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों को लोकसभा का चुनाव लड़ाएगी। वैसे कई पूर्व मुख्यमंत्री पहले से सांसद हैं, लेकिन जो नहीं हैं उन्हें भी अब चुनाव लड़ाया जाएगा। सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाने के पीछे तर्क यह है कि उनके एक लोकसभा क्षेत्र में छह से आठ विधानसभा सीटें आती हैं और उनके एक सीट से लड़ने का असर बाकी सभी विधानसभा सीटों पर पड़ता है। उसी तरह पूर्व मुख्यमंत्रियों के लोकसभा का चुनाव लड़ने से राज्य की सभी सीटों पर असर होगा।

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। बताया जाता है कि जयराम ठाकुर को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को अभी तक विधायक दल का नेता नहीं चुना गया है। उन्हें भी लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री डीवी सदानंद गौड़ा पहले से लोकसभा सदस्य हैं। बीएस येदियुरप्पा की उम्र बहुत ज्यादा हो गई है इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी सांसद हैं। कुछ दिन पहले राज्यसभा भेजे गए त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब को भी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा जा सकता है। झारखंड में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा लोकसभा सदस्य हैं और रघुबर दास को ओडिशा का राज्यपाल बना दिया गया है। बचे बाबूलाल मरांडी तो वे प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। अगर राज्य में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ नहीं होते हैं तो उन्हें भी लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपानी को भी इस बार लोकसभा का चुनाव लड़ाया जाएगा। मध्य प्रदेश के मौजूदा और छत्तीसगढ़ व राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अगर चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नहीं बन पाते हैं तो उन्हें भी लोकसभा का चुनाव लड़ाया जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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