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पहलवानों का प्रदर्शन, समर्थन और न्याय की आस, सत्ता पर कई सवाल खड़े करती है!

आखिर अबतक बीजेपी से कोई इनकी खोज-खबर लेने क्यों नहीं पहुंचा और क्या कारण है कि ये पहलवान देश के शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी का शिकार बने हुए हैं।
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देश की संसद से महज़ कुछ ही दूरी पर प्रदर्शन कर रहे भारतीय पहलवान और उनका समर्थन कर रहे सैकड़ों महिला, बुजुर्ग और नौजवान न्याय की आस में बीते नौ दिनों से जंतर-मंतर पर बैठे हैं। चिलचिलाती धूप, गर्मी और बारिश का सामना कर रहे ये इंटरनेशनल मेडल विजेता खिलाड़ी अब तक सत्ता पर काबिज़ शीर्ष लोगों को नींद से उठाने में नाकामयाब रहे हैं। या यूं कहें कि जानते-बूझते ये खिलाड़ी देश के शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी का शिकार बने हुए हैं। कभी इनकी लाइट काट दी जाती है, तो कभी पानी बंद कर दिया जाता है। इतना ही नहीं इन खिलाड़ियों ने तो कई तरह की धमकी के भी संगीन आरोप लगाए हैँ।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या है - कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह में -  जो अब तक सत्ताधारी बीजेपी खामोश है और स्वयं 'बेटी बचाओं' का नारा देने वाले पीएम भी चुप्पी साधे हुए हैं? इन तमाम सवालों को अलग-अलग प्रदर्शनों में प्रमुखता से उठाने वाले महिला और नागरिक समाज के लोग भी अब सरकार से इस पर जवाब चाहते हैं। इन खिलाड़ियों के समर्थन में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में नागरिक समाज के लोग 'दखल' संगठन के नेतृत्व में चल रहे हस्ताक्षर अभियान और प्रदर्शन में ज़ोर-शोर से हिस्सा ले रहे हैं। तो वहीं हरियाणा में जनवादी महिला समिति आज, 1 मई (May Day) के अवसर पर कैंडल मार्च कर सरकार को नींद से जगाने की कोशिश कर रही है।

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न्याय में देरी, अन्याय को बढ़ावा देती है!

प्रदर्शन और समर्थन में शामिल कई लोगों से न्यूज़क्लिक ने बातचीत कर उनके रोष, आक्रोश और चिंताओं को समझने की कोशिश की। इस दौरान हरियाणा के पूर्व खेल मंत्री और मौजूदा कैबिनेट मंत्री संदीप सिंह की गिरफ्तारी का मामला भी उठाया जा रहा है, जिन पर एक जूनियर महिला कोच ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। संदीप सिंह के मामले में भी लगभग चार महीने बीतने के बाद भी चंडीगढ़ एसआईटी अभी किसी नतीज़े पर नहीं पहुंचीं। इस मामले में भी लगातार देरी के आरोप लग रहे हैं।

नारीवादी संगठन दखल ने अपने हस्ताक्षर अभियान में दो सूत्रीय मांग पर समर्थन मांगा है। इसमें आरोपी बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के तत्काल निलंबन और गिरफ्तारी की मांग शामिल है। हस्ताक्षर अभियान के दौरान तमाम वक्ताओं ने कहा कि जब देश के शीर्ष खिलाड़ियों को एक एफआईआर के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा, तो आम लड़कियों के न्याय की उम्मीद कहां रह जाती है। सरकार जब मेडल जीतने पर लड़कियों के साथ खड़े रहकर उनके साथ अपनी पीठ भी थपथपाती है तो अब जब वे सड़क पर धरना दे रही हैं, तो उनका दुख क्यों नहीं बांटती।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की एक छात्रा आकांक्षा ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि ये मुद्दा किसी एक या कुछ लोगों का नहीं है, ये मुद्दा पूरे देश का है। क्योंकि ये पहलवान बहुतों का हौसला, हिम्मत और रोल मॉडल रहे हैं, ऐसे में इन्हें सड़क पर न्याय मांगते देख कई सवाल एकाएक खड़े हो जाते हैं। अमूमन जो कार्यवाही किसी आम आदमी के लिए गंभीर आरोपों में होती है, बड़े पदों पर बैठे ये लोग इससे आसानी से बच जाते हैं और शायद यही वजह है कि ये कानून व्यवस्था को इतनी गंभीरता से नहीं लेते। हमें उदाहरणों की जरूरत है, न्याय में आस बनाए रखने और सभी महिलाओं में फिर से हिम्मत लौटाने के लिए।

काशी विद्यापीठ की एक छात्रा अंजली कहती हैं, “बृजभूषण सिंह पर लगे आरोपों की लिस्ट लंबी है, उनका व्यवहार पूरे यूपी में चर्चित है। ऐसे में अगर वो सच में निर्दोष हैं, तो जांच के लिए उन्हें खुद ही आगे आकर अपना इस्तीफा सौंप देना चाहिए था, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी जल्द हो जाता और उन्हें भी सभी आरोपों पर सफाई पेश करने का मौका मिल जाता। लेकिन उनकी टालमटोल बातें और पहलवानों पर आरोप-प्रत्यारोप अपने आप में उन्हें कई सवालों के बीच घेर रही है। इंसान में किसी पद का लालच उसकी नैतिकता से इतना बड़ा कैसे हो सकता है ये राजनीति में ही देखने को मिल सकता है।"

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निष्पक्ष जांच के लिए इस्तीफा और गिरफ्तारी जरूरी

जनवादी महिला समिति की कार्यकर्ता आशा बताती हैं कि वे धरने पर बैठे पहलवानों से बीते कई दिनों से संपर्क में हैं। इन पहलवानों के चेहरों पर उम्मीद से लेकर निराशा और फिर कई बार छलकते आंसू उन्होंने अपनी आंखों से देखा है। उनके मुताबिक ये पहलवान बहुत कुछ नहीं चाहते बस छोटी सी मांग है उनकी निष्पक्ष जांच की और ये तभी हो पाएगी, जब बृजभूषण शरण सिंह अपना पद छोड़ेगे और गिरफ्तार होंगे। क्योंकि इन पहलवानों पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है, आखिर कौन है, जो इनके घर से लेकर धरना स्थल तक इनकी मुश्किलें बढ़ा रहा है, लाइट, पानी काट रहा है और बार-बार वापस लौटने की धमकी दे रहा है। इन सभी सवालों के जवाब शायद तभी मिलेंगे जब इन खिलाड़ियों की मांगे मानी जाएंगी।

आशा के अनुसार जनवादी महिला समिति बीते चार महीने से हरियाणा में संदीप सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है, लेकिन सरकार वहां भी चुप है और यहां भी। दोनों मामलों में बीजेपी के नेता सामने हैं और संघर्ष कर रही महिला खिलाड़ी सिर्फ और सिर्फ न्याय मांग रही हैं। वो सिर्फ आरोपी की जांच चाहती हैं लेकिन पूरा सिस्टम कहीं न कहीं आरोपी को जांच और कार्यवाही से ही बचाने में लगा है, अगर सब सही ही है, तो इन्हें किस बात का डर है। ये हालात कुलदीप सेंगर के समय भी थे, ये हालात अजय मिश्र टेनी से लेकर तमाम आरोपी नेताओं के समय में रहे हैं। और अब शीर्ष खिलाड़ियों के समय में भी हैं, इनके लिए कोई मायने नहीं रखता।

इन पहलवानों का साफ कहना है कि जब तक यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक ये सभी यहां से नहीं जाएंगे। ऐसे में इनका संघर्ष दिन-प्रतिदिन राजनीति का दंगल भी बनता जा रहा है, जहां सत्ता पर बीजेपी को छोड़ सभी पार्टी के नेता और संगठन पहुंच रहे हैं। इन खिलाड़ियों ने सभी से अपनी लड़ाई में शामिल होने की अपील के साथ ही बीजेपी नेताओं के न आने पर निराशा भी जताई है।

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