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राजनीति
असम एनआरसी : अंतिम लिस्ट जारी होने के बावजूद सारे पक्षकार नाख़ुश
अंतिम एनआरसी से बाहर किए गए 19 लाख से ज़्यादा लोग तो नाख़ुश और परेशान हैं ही, इसके अन्य सारे पक्षकार यहां तक की इस मुहिम को आगे बढ़ाने वाली असम राज्य सरकार भी बहुत ख़ुश नहीं है। सबकी अपनी-अपनी आपत्तियां हैं। ख़ास रपट
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
31 Aug 2019
NRC
फोटो साभार : indian express

एनआरसी में नागरिकों को शामिल करने का मुद्दा साल 1985 में हुए असम समझौते से निकलता है। इस समझौते के तहत ही बाहरी लोगों को बाहर करने के लिए एनआरसी को फिर से अपडेट करने के लिए कहा गया था। इस समझौते में तीन पक्षकार शामिल थे। असम राज्य, भारत सरकार और ऑल असम स्टूडेंट यूनियन यानी AASU.

AASU की तरफ़ से इस समझौते में यह प्रावधान किया गया था कि बाहरी लोगों की पहचान की जाएगी, उनका नाम डिलीट की जाएगा और उन्हें बाहर भेजा जाएगा।  इस लिस्ट पर AASU का कहना है कि हम इस लिस्ट से खुश नहीं हैं। ऐसा लग रहा है कि इसमें बहुत सारी गड़बड़िया हैं। हम मानते हैं कि यह अधूरा एनआरसी है। हम सुप्रीम कोर्ट में इसकी अपील करेंगे। इस लिस्ट में जो अंतिम आंकड़ें जारी हुए हैं वह बाहरी लोगों की सही संख्या नहीं बताते हैं। समय -समय पर सरकार द्वारा जारी आंकड़ें बताते हैं कि इस संख्या से ज्यादा बाहरी लोग असम में रह रहे हैं।

आपको बता दें कि असम में बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की अंतिम सूची शनिवार को ऑनलाइन जारी कर दी गई। चार साल की कार्यवाही के बाद इसमें कुल 19 लाख 6 हजार 657 लोगों को बाहर रखा गया हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने एनआरसी में शामिल होने का कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया था। यानी हाल-फिलाहल ये सारे लोग भारत की नागरिकता से बाहर कर दिए गए हैं। इन्हें अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए अब फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करनी होगी। या उसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार होगा।

इसे पढ़ें : एनआरसी की अंतिम सूची जारी, 19 लाख 6 हज़ार 657 लोग बाहर

इस पूरी प्रक्रिया पर 1220 करोड़ रुपए खर्च किये गए। 2500 एनआरसी सेंटर बनाये गए। तकरीबन 55 हजार सरकारी कर्मचारियों ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया। और इस पूरी प्रक्रिया के दौरान तकरीबन 6 करोड़ दस्तावेजों की छानबीन की गयी।

सुप्रीम कोर्ट में पहली बार इस पर याचिका दायर करने वाली गैर सरकारी संस्था असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू ) ने कहा कि एनआरसी की फाइनल लिस्ट त्रुटिपूर्ण है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने लिस्ट के सत्यापन की याचिका खारिज कर दी थी। एपीडब्ल्यू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा ने यह भी कहा कि क्या अपडेशन एक्सरसाइज में इस्तेमाल किया गया सॉफ्टवेयर इतना अधिक डेटा संभालने में सक्षम है और क्या किसी तीसरे पक्षकार के तौर पर सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ द्वारा इसकी जांच की गई थी या नहीं।

असम के वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा भी इस सूची से खुश नहीं  हैं। सरमा ने ट्वीट किया,
‘‘एनआरसी में कई ऐसे भारतीय नागरिकों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं जो 1971 से पहले शरणार्थियों के रूप में बांग्लादेश से आए थे क्योंकि प्राधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र स्वीकार करने इनकार कर दिया।"
 

#NRCAssam

Names of many Indian citizens who migrated from Bangladesh as refugees prior to 1971 have not been included in the NRC because authorities refused to accept refugee certificates. Many names got included because of manipulation of legacy data as alleged by many 1/2

— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 31, 2019

<

#NRCAssam

I reiterate that as requested by Central and State governments at least 20% reverification (bordering districts) and 10% re-verification(remaining districts) should be allowed by Honble Apex court for a correct and fair NRC. 2/2

— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 31, 2019

उन्होंने दूसरा ट्वीट किया, मैं दोहराता हूं कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के अनुरोध पर शीर्ष अदालत को सटीक एवं निष्पक्ष एनआरसी के लिए (सीमावर्ती जिलों में) कम से कम 20 प्रतिशत और (शेष जिलों में) 10 प्रतिशत पुन: सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए।’’

जिन लोगों को एनआरसी के तहत शामिल कर लिया गया है, उन्हें पहचान पत्र के तौर पर आधार कार्ड जारी कर दिया जाएगा। जिन्हें नहीं शामिल किया गया है, उन्हें आधार कार्ड जारी नहीं होगा।  ड्राफ्ट सूची आने के बाद जब 40 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर किया गया था, उसके बाद के आवेदन में प्रक्रिया में सबका बायोमेट्रिक पहचान भी ले लिया था। ताकि आधार कार्ड वाली कार्रवाई की जाए। और जो बाहरी हैं, उन्हें आधार कार्ड न दिया जाए।

यहाँ सबसे ज़रूरी बात यह समझने वाली है कि बाहरी करार दे दिए गए लोगों की सभी अपील खारिज कर दिए जाने के बाद उन्हें देश के किसी भी इलाके से आधार कार्ड नहीं मिल सकेगा। यानी जिन्हें लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है ,उन्हें आधार कार्ड तभी मिलेगा जब वह खुद की नागरिकता साबित कर देंगे। अन्यथा उन्हें आधार कार्ड कभी नहीं मिल सकेगा।

केंद्र सरकार और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने असम के लोगों को भरोसा दिलाया है कि लिस्ट में नाम न होने पर किसी भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जाएगा और उसे अपनी नागरिकता साबित करने का हरसंभव मौका दिया जाएगा। जिनका नाम लिस्ट में नहीं होगा वो फ़ॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील कर सकेंगे। सरकार ने अपील दायर करने की समय सीमा भी 60 से बढ़ाकर 120 दिन कर दी है। 

जिन लोगों का नाम लिस्ट में नहीं है उन्हें 120 दिन के भीतर अपनी नागरिकता को फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील करने का अधिकार मिला है। इसके बाद फॉरेन ट्रिब्यूनल इन मामलों का निपटारा करने में छह महीने लेगी। इसलिए किसी को डिटेंशन सेंटर तभी भेजा जाएगा जब वह दस महीने के भीतर अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगा।

 

केंद्र सरकार ने जून में फैसला लिया था कि कह इलेक्ट्रॉनिक फॉरेन ट्रिब्यूनल बनाएगी। और राज्य में मौजूद 100 फॉरेन ट्रिब्यूनल की संख्या बढ़ाकर 1000 करेगी।

फॉरेन ट्रिब्यूनल की स्थापना सरकार द्वारा 1964 में निकले आदेश फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के तहत हुई थी। यानी यह किसी अधिनियम से या कानून से नहीं बना है सरकार के आदेश से बना है। इस ट्रिब्यूनल की अधिकारिता यह है कि यह फॉरेनर्स एक्ट 1946 के तहत किसी विदेशी घोषित कर सकती है। क्योंकि यह ट्रिब्यूनल है , इसलिए यह एक अर्धन्याययिक संस्था है, इसलिए इसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जज, वकील और नौकरशाह करते हैं।

एक गैर सरकारी संस्था सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (CPJ) की तरफ से तकरीबन 100 पैरालीगल को प्रशिक्षित किया गया है। ये उन लोगों की क़ानूनी मदद करने के लिए मौजूद हैं, जिनका नाम एनआरसी से बाहर किया गया है। CPJ की तरफ से कहना है कि हम नहीं चाहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को जरूरी क़ानूनी  सलाह के आभाव में बहुत अधिक कष्ट सहना पड़े। CPJ के सदस्य जमशेर अली का दो दिन पहल द हिन्दू अख़बार में बयान छपा था।

जमशेर अली के मुताबिक “बंगाली भाषी लोगों से लेकर धार्मिक अल्पसंख्यकों तक, गोरखाओं से लेकर आदिवासियों तक…हर कोई परेशान है। लोग मर रहे हैं। कुछ ने आत्महत्या कर ली है, कुछ की डिटेंशन सेण्टर में मौत हो गयी है। लिस्ट सामने आने के बाद जिन्हें बाहर किया जाएगा , उन्हें बहुत अधिक परेशानी महसूस होगी। इसलिए CJP इन सभी लोगों तक इनकी धार्मिक या भाषाई पृष्ठभूमि पर ध्यान दिए बिना पहुँच रहा है।

कब-कब क्या हुआ?

1951 - आज़ादी के बाद पहली सेंसस के आंकड़ों से पहली एनआरसी को जारी किया गया।

जनवरी 1980 - ऑल असम ऑफ़ स्टूडेंट यूनियन (AASU) ने एनआरसी को अपडेट करने की मांग की।

अगस्त 1985 - असम समझौते हुआ , जिसमे एनआरसी को अपडेट करने की बात कही गयी।

जुलाई 2009 - असम के गैर सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स ने एनआरसी अपडेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका थी कि एल्क्ट्रोल रॉल (मतदाता सूची) में तकरीबन 41 लाख बाहरी शामिल हो गए हैं। इन्हें बाहर किया  जाए।

अप्रैल 2010 - केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत  बारपेटा और छायगोन में एनआरसी की अपडेशन की प्रक्रिया पूरी की जाए।

जुलाई 2010 - छायगोन में एनआरसी की अपडेशन की प्रक्रिया तो पूरी हो गयी लेकिन बारपेटा में चार लोगों की पुलिस फायरिंग में मौत हो गयी।

2013 - सरकारी डावांडोल रवैया को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी अपडेशन की प्रक्रिया पूरी कराने की खुद ज़िम्मेदारी ली।

दिसंबर 2017 - एनआरसी का पहला ड्राफ्ट जारी हुआ। 3.29 करोड़ लोगों के आवेदन से तकरीबन 1.9 करोड़ को बाहर कर दिया गया।

जुलाई 30, 2018 - एनआरसी का दूसरा ड्राफ्ट जारी हुआ। इसमें  तकरीबन 41 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया।

31 अगस्त 2019- अंतिम लिस्ट जारी हुई जिसमें से 19 लाख, 6 हज़ार, 657 लोगों को बाहर कर दिया गया।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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