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बिहारः फूलगोभी का बीज उगाकर किसानों ने अपना क़िस्मत बदला

फूलगोभी का बीज उगाने वाले किसान संजीव कहते हैं कि उन्होंने गांव के अन्य बेरोज़गार युवाओं के साथ मिलकर साल 2005 अन्नादता कृषक क्लब की स्थापना की और वैज्ञानिक प्रशिक्षण तथा उच्च तकनीक का इस्तेमाल करके बीज की खेती शुरू की।
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चकवारा (बिहार): मनीष कुमार, अरुण कुमार सिंह, दिनेश कुमार और सुनील कुमार अन्य किसानों से बिल्कुल अलग हैं। ये लोग कई एकड़ ज़मीन लीज पर लेकर पारंपरिक फसलों के बजाय फूलगोभी के बीज की खेती कर रहे हैं। इससे उनकी आमदनी में वृद्धि हुई है और उनकी ज़िंदगी में बदलाव आया है।

दर्जनों अन्य छोटे और सीमांत किसान अपने पैतृक गांव वैशाली ज़िले के चकवारा में आज काफी खुश हैं। सुनील कहते हैं, "फूलगोभी के बीज की बुवाई ने गांव का चेहरा ही बदल दिया है क्योंकि यह काफी लाभ देने वाला है।"

अरुण कहते हैं कि वे किसान जो दशकों तक बुनियादी ज़रुरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करते रहे उनके लिए फूलगोभी के बीज का उत्पादन काफी बेहतर साबित हुआ है। इसने धान, गेहूं या किसी अन्य फसल के विपरीत आमदनी के साथ-साथ बाजार के मामले में भी सफलता हासिल की है।

ये किसान इस गांव के प्रगतिशील किसान संजीव कुमार को इसका श्रेय देते हैं जिन्हें इसका अगुआ माना जाता है।

संजीव कहते हैं, “यह न तो आसान था और न ही समस्याओं से दूर था। शुरू में, केवल कुछ किसानों ने ही फूलगोभी की खेती की क्योंकि किसानों को नुकसान का डर था। कुछ किसानों को जब इससे फायदा हुआ तो इसने दूसरों को प्रेरित किया और इसकी तरफ लोगों का झुकाव होने लगा।”


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संजीव कहते हैं कि उन्होंने गांव के बेरोज़गार शिक्षित युवाओं के एक समूह के साथ मिलकर साल 2005 में नाबार्ड और बैंक ऑफ इंडिया की मदद से अन्नादता कृषक क्लब की स्थापना की और वैज्ञानिक प्रशिक्षण और उच्च तकनीक का इस्तेमाल करके फूलगोभी के बीज की खेती शुरू की।

चकवारा की तरह वैशाली ज़िले में दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां लगभग 500 किसान फूलगोभी के बीज की खेती कर रहे हैं। वे एजेंटों के माध्यम से देश-विदेश में गुणवत्ता वाले फूलगोभी के बीज की आपूर्ति कर रहे हैं। सुनील कहते हैं, वे सालाना लगभग 10 टन बीज की खेती और आपूर्ति कर रहे हैं जो सीधे या छोटे व्यापारियों द्वारा बेचा जाता है।

संजीव कहते हैं, किसान गुणवत्ता के आधार पर 3000 रुपये से 20,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीज बेच रहे हैं।

वे आगे कहते हैं, “निर्यात लाइसेंस की कमी के कारण किसानों ने अब तक मांग के बावजूद विदेशों में सीधे तौर पर बीज की आपूर्ति नहीं की है। कुछ किसानों ने निर्यात के लिए लाइसेंस हासिल करने का आवेदन किया है। हमें इसके मिलने की उम्मीद है।“

संजीव जैसे छोटे और सीमांत किसान जिनके पास बड़ी ज़मीन का अभाव है उन्होंने फूलगोभी के बीजों को उगाने के लिए लीज या ठेके पर ज़मीन ले रखी है। उन्होंने कहा कि कड़ी मेहनत ने उन्हें समृद्ध बना दिया है। इसके लिए बीज के बाज़ार का शुक्रिया।

चकवारा और इसके पड़ोसी गांवों जैसे लोधीपुर, रामभद्र, मीनापुर, करनपुरा, नवादा खुर्द, दौलतपुर और सेंदुआरी के कई किसान बीज की खेती के चलते समृद्ध हो गए हैं।

वैशाली में चकवारा और अन्य गांवों के फूलगोभी के बीज ने देश भर में अपना नाम और ब्रांड बना लिया है।

बीज की खेती में अपने नई खोज के लिए कई पुरस्कार प्राप्त करने वाले संजीव कहते हैं कि चकवारा और अन्य गांवों के युवा जिन्होंने बड़े पैमाने पर बीज की खेती को अपनाया है वे सरकारी नौकरियों में कम रुचि रखते हैं या अन्य काम के लिए पलायन करते हैं। उन्होंने कहा, "अधिकांश युवा बीज की खेती में लगे हैं क्योंकि इसमें अवसर और आमदनी किसी भी अन्य काम की तुलना में बेहतर है।"

मौजूदा सर्दी के मौसम में किसानों को सैकड़ों एकड़ ज़मीन में काम करते हुए देखा जा सकता है। चारों तरफ, कई गांवों में फूलगोभी के बीजों के साथ पीले-पीले फूलों को देखा जा सकता है जो यहां खुशी का एक प्रतीक बन गई है।

एक अन्य किसान रंजीत कुमार कहते हैं, “यह हमारी आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया है, इसने हमें नाम, प्रसिद्धि और पैसा दिया है। चकवारा में ग्रामीणों की जीवन शैली को देखें। उनके पास किसी भी शहरी इलाके की तरह आरामदायक जीवन के लिए आधुनिक घर हैं जिनमें सभी बुनियादी सुविधाएं जैसे टेलीविजन, एयर-कंडीशनर, दो और चार पहिया वाहन हैं।”

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