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दिल्ली: स्कूलों में आधार कार्ड और बैंक खातों न होने के कारण 60,000 से अधिक छात्रों की पात्रता अस्वीकार

प्रशासनिक विफलताओं ने अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के हज़ारों बच्चों को प्रभावित करेंगे और उनके अधिकारों को खत्म करेंगे |
aadhar card

दिल्ली सरकार के स्कूलों के 64,641 छात्रों के पास बैंक खातें न होने के कारण विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से मिलने वाला पैसा देने से स्कूल इनकार कर रहे हैं। दिल्ली सरकार के आंकड़ों में कहा गया है कि वर्तमान में नामांकित 15,33,750 छात्रों में से 4.2 प्रतिशत के पास बैंक खाते नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप छात्रवृत्ति और योग्य छात्रों को अन्य फंडों द्वारा मिलने वाले धन को पूरी तरह से रोक दिया गया है । दिलचस्प बात यह है कि बैंक खातों के न होने के मुख्य कारणों में से एक आधार कार्ड का न होना है। बैंक खातों को खोलने की ज़िम्मेदारी स्कूलों को सौंपी गई है जो छात्र के पहचान के लिए एक पत्र जारी करते हैं।

शिक्षा निदेशालय पैसों के वितरण को छोड़कर, अब राशि सीधे छात्रों के बैंक खातों में स्थानांतरित करता है। प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के अलावा, दिल्ली सरकार के स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों को वर्दी और स्टेशनरी  के लिए धन मिलता है। वर्तमान मानदंडों के अनुसार कक्षा XI और कक्षा XII के छात्रों को 1,400 रु , कक्षा 9 तक के छात्रों को 1,100 रु  और उससे जूनियर छात्रों 800रु मिलते हैं | 

प्रशासनिक विफलता अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के हज़ारों बच्चों के वज़ीफ़े के मरने की संभावना है। यह पहली बार नहीं है कि आधार कार्ड स्कूलों में प्रवेश और अधिकार प्राप्त करने में बाधा बन गया हो। उत्तर-पूर्व दिल्ली के कई निवासियों ने इस साल मार्च में आरोप लगाया था कि आधार नम्बर  न होने के कारण निगम के स्कूल उन्हें  प्रवेश नहीं दे रहे थे |

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, एक स्कूल प्रिंसिपल, जिन्होंने नाम न बताने का अनुरोध किया,ने कहा कि सिस्टम में विभिन्न स्तरों पर विसंगतियां मौजूद हैं। उन्होंने कहा, "यदि छात्रों के पास आधार कार्ड नहीं हैं, तो हम उनके माता-पिता से जल्द से जल्द नामांकन करने का अनुरोध करते हैं। पहले हम नकद वितरित करते थे, अब सभी लेन-देन ऑनलाइन किए जाते हैं। खाते के स्तर पर एक और समस्या मौजूद है, यहाँ  मैंने देखा है कि दिल्ली के बाहर से आये लोगों  के पास दिल्ली के बहार का आधार कार्ड होता है ,इस कारण उन छात्रों को भी उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है।
 
इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, छात्र सरकार की ज़िम्मेदारी हैं और स्कूल इस ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकते हैं। उन्होंने कहा, "नीतियों को जानबूझकर जटिल तरीके से तैयार किया गया है। छात्र अपने बैंक खाते को खोलने और अधिकार प्राप्त करने के लिए सभी दस्तावेज क्यों दें ?  स्कूल प्रमाण पत्र बैंक खातों को खोलने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। इसमें सभी जानकारियाँ हैं ,जो बैंक खाते खोले जाने के लिए आवश्यक है । यदि आधार संख्या प्रस्तुत किए बिना शून्य खाते खोले जाए, तो मासूम बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित होना पड़ेगा "।
 
उन्होंने कहा, "मुझे उन छात्रों में से एक याद है, जिसके पास बैंक खाता नहीं था, जब हम उसके नामांकन के लिए आधार केंद्र गए। कुछ तकनीकी कारणों से,उसकी उंगलियों स्कैन नहीं हुई और आधार केंद्र ने उसको आधार कार्ड देने इनकार कर दिया। फिर ,दिल्ली उच्च न्यायालय में हमारे मुकदमे के बाद वह प्रवेश पाने में सक्षम हुआ था । यह दृष्टिकोण उन नीतियों के उद्देश्य को खत्म कर देता है जो लोगों के कल्याण के  जरूरी हैं। 

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