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हरियाणा रोडवेज कर्मचारी क्यों है हड़ताल पर?

“ये हड़ताल केवल दो दिनों के लिए थी परन्तु सरकार की हठधर्मिता के कारण ये अनिश्चितकाल के लिए हो सकती है।”
haryana roadways strike हरियाणा में रोडवेज कर्मचारी हड़ताल पर

हरियाणा पुलिस, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस के कर्मचारी जिन्हें राज्य की कानून व्यवस्था, आपत अप्रिय दुर्घटनाओं व राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को देखने की जिम्मेदारी है वो आजकल हरियाणा रोडवेज की बसों के ड्राइवर और कंडक्टर बने हुए हैं। आप सोच रहे होंगे की  पुलिस रोडवेज की बस को क्यों चला रही है? ये प्रश्न स्वाभाविक भी है। आमतौर पर हमने पुलिस को राज्य की कानून व्यवस्था को संभालते हुए देखा है  परन्तु हरियाण में ऐसा क्या हुआ जो पुलिस और फायर मैन से लेकर एबुलेंस के कर्मचारी बस ड्राइवर और कंडक्टर बने हुए हैं। चलिए आपको पूरा घटनाक्रम बताते हैं:-

1993 के बाद हरियाणा में सरकार द्वारा किए जा रहे रोडवेज के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी 16 अक्टूबर से दो दिन का हड़ताल पर गए थे लेकिन आज पांच दिन बीत जाने के बाद भी ये हड़ताल खत्म नहीं हुई, बल्कि हालात और बिगड़ गए हैं।

दरअसल सरकार ने इस मामले में कर्मचारियों से बातचीत कर हल निकालने की बजाय कर्मचारियों पर एस्मा लगा दिया और उन्हें कई  गैरजमानती  धाराओं में जेल में डाल दिया। यही नहीं सैकड़ों कर्मचारियों को बर्खास्तगी का नोटिस भेज दिया सरकार की इस कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया और आंदोलनकारी कर्मचारी भड़क गए। हड़ताल आगे बढ़ गई लेकिन सरकार ने फिर भी बात करने की बजाय रोडवेज की बसों को पुलिस व अन्य विभाग के कर्मचारियों  से चलवाने का निर्णय किया।

युवाओं के हित की लड़ाई

रोडवेज के कर्मचारियों ने एक पर्चा निकला है जिसमें वो आम जनता को बता रहे हैं कि वो हड़ताल पर क्यों हैं। कर्मचारियों ने सरकार की नीतियों और हर बार निगम के घाटे का बहाना कर निजीकरण की कोशिशों पर हमला किया है।

रोड़वेज की हड़ताल क्यों.jpg

कर्मचारियों के मुताबिक वे राज्य के लोगों विशेष रूप से युवाओं के हितों के लिए एक बहादुरना लड़ाई लड़ रहे हैं। पर्चे में कहा गया है कि “वो अपने वेतन बढ़ोतरी व बोनस के लिए संघर्ष नहीं कर रहे, बल्कि आम जनता के हक व हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हरियाणा रोडवेज कर्मचारी मांग कर रहे हैं कि रोडवेज को 14,000 नई बसें खरीदनी चाहिए, ताकि 84000 नई नौकरियां पैदा की जा सकें।”

वे आगे बढ़कर कह रहे हैं कि “अगर सरकार के पास बस खरीदने के लिए पैसा नहीं है तो सभी सड़क परिवहन के कर्मचारियों के 10 महीने तक की अवधि के वेतन का 20% ले सकती है और इस पैसे से नई बसें खरीदें। यह पैसा कर्मचारियों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद वापस कर दिया जा सकता है।"

दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने बीजेपी की अगुआई वाली हरियाणा सरकार के राज्य सड़क परिवहन कर्मचारी को "प्रताड़ित और दमन" करने के लिए निंदा की है जो पूरे निगम को निजी क्षेत्र में सौंपने के प्रयासों के खिलाफ हड़ताल पर हैं। उन्होंने कहा कि "यह दु:खद और पीड़ा का विषय है कि हड़ताली यूनियन के साथ बातचीत शुरू करने के बजाय, सरकार ने विरोधाभासी और दमनकारी कार्रवाई मार्ग का सहारा लिया है।

अपने आंदोलन को लेकर रोडवेज कर्मचारियों ने हरियाणा रोडवेज कर्मचारी तालमेल कमेटी बनाई है जो सभी ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच है, इसमें आरएसएस के भारतीय मज़दूर संघ को छोड़कर सभी मज़दूर संगठन  शामिल हैं, लेकिन उसके कई सदस्य भी संगठन से बाहर आकर इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। इस कमेटी में  इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन, आल इण्डिया ट्रेड यूनियन, हिंद मजदूर सभा, एसईडब्ल्यूए, एआईसीसीटीयू, टीयूसीसी शामिल हैं। इनका कहना है कि पिछले तीन सालों से, बीजेपी की अगुआई वाली हरियाणा सरकार हरियाणा रोडवेज को खत्म करने और पूरे यात्री परिवहन को निजी ऑपरेटरों को सौंपने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि 2017 में इस तरह के एक कदम को एक सशक्त कर्मचारी आन्दोलन के माध्यम से ट्रेड यूनियनों द्वारा रोक गया था।

तालमेल कमेटी कहना है कि "अब, सरकार ने फिर से 'किलोमीटर' के आधार पर राज्य परिवहन मार्गों में काम करने के लिए 720 निजी बसों को अनुबंध पर लेने के लिए कदम उठाए हैं। यह स्पष्ट है कि सरकार की इस तरह की कार्रवाई अंततः सबसे कुशलता से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का निजीकरण करने के लिए प्रेरित है।

तालमेल कमेटी का कहना है कि  सरकार भारी नुकसान का हवाला देते हुए सार्वजनिक परिवहन को बंद करने की कोशिश कर रही है. जबकी दूसरी तरफ वास्तविकता यह है कि जो भी नुकसान सार्वजनिक परिवहन को हो रहा है वह इस कारण है कि मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारी बाजार की कीमतों में दो से तीन गुना पर बसों के स्पेयर पार्ट्स खरीद रहे हैं, ताकि वे अपने कमीशन बना सकें।

सरकार अप्रशिक्षित ड्राइवरों से बस चलवा रही

रोडवेज से बाहर के अधिकतर कर्मचारी जिन्हें हड़ताल के खिलाफ बसों का ड्राइवर व कंडक्टर बनाया गया है वो कैमरे पर साफतौर पर कहते नजर आ रहे हैं कि उन्हें जबरदस्ती भारी वाहन चलाने को मज़बूर किया जा रहा है।

इस स्वीकारोक्ति के बाद ये साफ हो जाता है कि ये आम जनता जो इन बसों में सफर कर रही है उनकी जान के साथ सीधे खिलावाड़ किया जा रहा। जिनके द्वारा सरकार बसों को चला रही है वो सार्वजनिक बसों को चलाने के लिए प्रशिक्षित नहीं है। यहाँ तक उन्हें तो रोडवेज के रूटों के साथ ही कितना किराया है उसकी भी जानकारी नहीं जिस कारण भी लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

इस बीच एक ऐसी घटना घटी जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, दरअसल एक सब इंस्पेक्टर जिसे कंडक्टर बनाया गया था उसने लोगों से पैसे तो लिए लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया है।

तालमेल कमेटी के सदस्य  धर्मवीर हुड्डा ने न्यूज़ क्लिक से बात करते हुए कहा कि सरकार सार्वजनिक परिवहन को निजी हाथों में बेचना चाहती है, सरकार बार-बार घाटे की बातकर इसके निजीकरण का प्रयास करती है, उन्हें पता होना चाहिए ये सार्वजनिक परिवहन है, उद्योग नहीं जो इससे लाभ कमाया जाए। सबसे मजेदार यह है कि अभी की खट्टर सरकार ने जो निजी बसों के लिए समझौता किया है उसके मुताबिक जितनी लागत में रोडवेज की बसें चलती हैं उससे महंगी दरों पर करार किया गया है।

उन्होंने कहा पहले हमारी केवल एक मांग थी लेकिन अब कुल दो प्रमुख मांगे हैं:-

1.   सरकार द्वारा प्रस्तावित निजीकरण के निर्णय को वापस लिया जाए

2. जिन भी कर्मचारियों पर आन्दोलन के दौरान कार्रवाई हुई है उन्हें तत्काल वापस ले।

धर्मवीर हुड्डा ने न्यूज़ क्लिक से कहा कि सरकार की हठधर्मिता के कारण ही हड़ताल जो दो दिनों के लिए थी उसे हमनें 22 अक्टूबर तक जारी रखने का फैसला लिया है। सरकार अगर फिर भी नहीं मानी तो हम अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएँगे।

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