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सोशल मीडिया ट्रेंड के संस्थानों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विमर्श अब ज़रूरी : मुख्य न्यायाधीश

मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने बुधवार को कहा कि अब यह ज़रूरी हो गया है कि सोशल मीडिया ट्रेंड कैसे संस्थानों को प्रभावित करते हैं, इस विषय पर चर्चा शुरू की जाए।
: मुख्य न्यायाधीश

भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा कि अब इस बात पर विमर्श करना जरूरी हो गया है कि सोशल मीडिया ट्रेंड कैसे संस्थानों को प्रभावित करते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने 17वें पी डी देसाई मेमोरियल लेक्चर में "कानून के शासन" पर अपनी बात रखने के दौरान यह टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा, "जहां कार्यपालिका की तरफ से आने वाले भारी दबाव पर बहुत चर्चा की जाती है, उसके साथ अब जरूरी हो गया है कि सोशल मीडिया ट्रेंड संस्थानों को कैसे प्रभावित करते हैं, इसके ऊपर भी विमर्श शुरू किया जाए।"

हालांकि न्यायाधीश रमना ने साफ़ कहा कि इसका मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि न्यायपालिका और न्यायाधीशों को वर्तमान में जारी चीजों से पूरी तरह कट जाना चाहिए। न्यायाधीश किलों में बंद रहकर सामाजिक मुद्दों से जुड़े फ़ैसले नहीं दे सकते।

उन्होंने कहा कि पूर्वाग्रह और पक्षपात से अन्याय होगा, खासकर तब जब मामला अल्पसंख्यकों से संबंधित हो, ऐसी संभावना और बढ़ जाती है। इसलिए वंचित तबकों के लिए जब कानून के शासन के सिद्धांत को लागू किया जाता है, तो उसे इन समुदायों का विकास रोकने वाली सामाजिक स्थितियों के प्रति ज़्यादा समावेशी होना पड़ता है।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी शक्ति और कार्रवाई से संतुलन बैठाने के लिए न्यायपालिका को पूरी स्वतंत्रता मिलना जरूरी होता है। CJI रमना ने कहा, "न्यायपालिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से विधायिका या कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। नहीं तो कानून का शासन सिर्फ़ कल्पनाओं में रह जाएगा। ठीक इसी दौरान यह भी याद रखना चाहिए कि न्यायाधीशों को जनमत के हिसाब से भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, क्योंकि इस मत को सोशल मीडिया मंचों से बढ़ाकर पेश किया जाता है।"

न्यायाधीशों को दिमाग से काम लेना चाहिए, क्योंकि जिस बात का ज़्यादा हो-हल्ला हो रहा हो, जिसमें बहुमत का यकीन हो, जरूरी नहीं है कि वह सही चीज को प्रदर्शित कर रही हो।

उन्होंने कहा, "नए मीडिया उपकरणों के पास जनमत को एक पक्ष में झुकाने की बहुत ज़्यादा क्षमता होती है, लेकिन इनमें सही या गलत, असली या नकली में अंतर की योग्यता नहीं होती। इसलिए मीडिया ट्रायल न्यायिक फ़ैसलों में निर्देशित करने वाला तत्व नहीं हो सकता। इसलिए स्वतंत्र ढंग से अपने क्रियाकलापों को चलाना और सभी तरह के बाहरी दबाव में भी खड़े रहना जरूरी हो जाता है।"

CJI रमना ने इस बात पर जोर दिया कि कानूनों को पूरी तरह साफ़ और सुलभ होना चाहिए; गुप्त कानून की कोई जगह नहीं होती। इसके अलावा कानून को समानता के आधार पर लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि "न्याय की सुलभता", "कानून के समक्ष समता" का अहम पहलू होता है।

जस्टिस रमना ने कहा, "मुझे इस बात पर जोर देना होगा कि हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में न्याय तक पहुंच, कानून के शासन का आधार बनाता है। अगर वंचित तबके अपनी गरीबी, अशिक्षा या दूसरी कमजोरियों के चलते अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाएंगे, तो समान न्याय की गारंटी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। भारत में 'लीगल ऐड अथॉरिटी' को करीब़ 70 फ़ीसदी आबादी की सेवा करनी होती है, मतलब यह लोग मुफ़्त में कानूनी सहायता के हक़दार होते हैं, ऐसे में भारत का 'कानूनी सहायता तंत्र' दुनिया के सबसे बड़े कानूनी सहायता ढांचों में से एक बन जाता है।"

CJI रमना ने लैंगिक समानता पर भी बात रखी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के कानूनी सशक्तिकरण से ना केवल उन्हें समाज में अपने अधिकारों और जरूरतों के प्रति आवाज़ उठाने की ताकत मिली है, बल्कि इससे कानूनी सुधार प्रक्रिया में उनकी भागीदारी भी बढ़ी है।

जस्टिस रमना ने कहा कि कुछ सालों में शासक बदलने का अधिकार, तानाशाही के खिलाफ़ पुख़्ता प्रबंध नहीं कर देता। यह विचार कि जनता ही आखिर में संप्रभु है, वह मानवीय सम्मान और स्वायत्ता के विचार में पाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, "एक तार्किक जनविमर्श, मानवीय सम्मान का आंतरिक तत्व होता है। इसलिए यह सुचारू लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद जरूरी होता है। जैसा प्रोफ़ेसर जूलियस स्टोन ने अपनी किताब 'द प्रोविंस ऑफ़ लॉ' में लिखा- चुनाव, रोजाना होने वाले राजनीतिक विमर्श, आलोचना और विरोध प्रदर्शन की आवाज़ें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए जरूरी हैं।"

मुख्य न्यायाधीश ने कानून के शासन को बनाए रखने में वकीलों की भूमिका पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वकीलों के लिए जरूरी होता है कि वे अपना कर्तव्य का पालन पूरे सम्मान और कानूनी प्रक्रिया के हिसाब से करें, जिसमें कोर्ट, प्रतिपक्ष के वकील, मुवक्किल, पीड़ित, गवाह और प्रक्रिया में शामिल दूसरे लोगों का पूरा सम्मान हो।

जस्टिस रमना कहते हैं, "हमें आर्थिक पहलू से प्रेरित स्वहित में काम करने वाले नहीं, बल्कि सामाजिक गुणों से प्रेरित व्यवहार की जरूरत है।"

उन्होंने आगे कहा, "हमें सामाजिक जवाबदेही के बारे में एक पेशेवर विचारधारा की जरूरत है। मैं यहां युवा और वरिष्ठ वकीलों से जरूरतमंदों की तरफ हाथ बढ़ाने की गुजारिश करता हूं। न्याय तक पहुंच को सुलभ बनाना सामाजिक न्याय से कम नहीं है। यह तय किया जाए कि आर्थिक हालात, लिंग, वर्ग या जाति कभी न्याय पाने की राहत में बाधा ना बने।"

यह लेख मूलत: द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Imperative to Start Talking About Impact of Social Media Trends on Institutions: CJI

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