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चुनाव आते ही बीजेपी वालों को लोगों के खाने से क्या दिक्कत हो जाती है?

ग़ाज़ियाबाद के लोनी से विधायक नंदकिशोर गुर्जर का तानाशाही रवैया एक बार फिर देखने को मिला, जब उन्होंने अपने इलाके की सभी मीट की दुकानें बंद करवा दीं।
NAND KISHOR GURJER
स्क्रीन शॉट

‘’क्या खाना है, क्या पहनना है’’ इस बारे में फैसला लेने का हक हर देशवासी को है, लेकिन आज़ादी के 70 साल बाद भी इस मुल्क में बहुत लोगों को इसकी भी आज़ादी नहीं है। अंग्रेजों की तरह सत्ताधारी पार्टी का एक नुमाइंदा आता है और हमारे खाने पर, पहनावे पर हंटर चलाकर चला जाता है।

दरअसल हम बात कर रहे हैं गाजियाबाद के लोनी से बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर की... जिनकी राजनीति एक बार फिर लोगों का रोज़गार छीनने का काम कर रही है, सत्ता के नशे में चूर नंदकिशोर गुर्जर ने लोनी इलाके की सारी मीट की दुकानें बंद करवा दी हैं, नंद किशोर गुर्जर मीट की दुकानों पर पहुंचे और धमकी दी, कि ‘इस इलाके में एक भी मुर्गे की दुकान नहीं चलने दूंगा।’

अब सवाल ये हैं कि क्या नंद किशोर गुर्जर खुद को कानून से ऊपर समझते हैं, या फिर उन्हें किसी के रोज़गार और परिवार के पालन से मतलब नहीं रह गया है। क्योंकि जिस जनता ने गुर्जर को अपना प्रतिनिधि चुना है, वो उसी जनता की थाली से खाना छीनने में लगे हुए हैं।

नंद किशोर गुर्जर का ये तानाशाही रवैया पहले भी देखा जाता रहा है, कि कैसे नंदकिशोर गुर्जर अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ पहुंचकर एक समुदाय को धमकाते और डराते हैं, इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है। हालांकि इस वीडियो की हम स्वतंत्र तौर पर पुष्टि नहीं कर सकते।

वीडियो में दुकान पर पहुंचकर नंदकिशोर गुर्जर चिल्लाते नज़र आए कि लोनी में इल्लीगल काम बिल्कुल नहीं होने दूंगा। अब विधायक नंद किशोर गुर्जर को कोई ये बताए कि क्या मुर्गे की दुकानें सिर्फ लोनी में हैं, या फिर इस देश में मीट खाना मना है। उनकी इन हरकतों पर राज्य में बैठी सरकारें, केंद्र सरकार और पुलिस ने अपनी आंखे मूंद रखी हैं। क्योंकि जो किसी को नहीं दिखता है वो आजकल नंदकिशोर गुर्जर को दिख जाता है, तभी तो अपनी दुकान से दो परिवार पाल रहे लोगों का काम इन्हें इल्लीगल लगने लगा है।

वैसे ये कहना ग़लत नहीं होगा कि चुनाव आते ही बीजेपी के तमाम नेता ऐसी ऊल-जुलूल हरकतों के लिए सक्रिय हो जाते हैं, और अल्पसंख्यक समुदायों पर अपना रौब दिखाते हैं, इसका उदाहरण कुछ दिनों पहले क्रिसमस पर देखने को मिला था, जब भारतीय जनता पार्टी के शह पर पलने वाले बजरंग दल ने ईसाइयों के त्यौहार में खलल डालने की कोशिश की थी। कुल मिलाकर इन सब बातों का मकसद एक ही है कि कैसे प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके चुनाव में लाभ लिया जाए।

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