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बनारस: सर्व सेवा संघ पर बुलडोज़र चलाने की तैयारी, ख़ाली कराया गया परिसर!

शनिवार सुबह क़रीब छह बजे, सर्व सेवा संघ परिसर, पुलिस छावनी में बदल गया। सैकड़ों पुलिस कर्मियों को साथ लेकर पहुंचे प्रशासनिक अफ़सरों ने परिसर में रहने वाले लोगों को आवास ख़ाली करने को कहा।
sarva sewa sangh

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में महात्मा गांधी की विरासत 'सर्व सेवा संघ' परिसर को खाली करा लिया गया। मौके पर पहुंची पुलिस और प्रशासन के अफसरों ने परिसर में रह रहे लोगों का सामान घरों से निकालना शुरू किया तो अफरा-तफरी फैल गई। परिसर में कई सालों से रह रहे लोगों को जब निकाला जाने लगा तो पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के साथ उनकी तीखी नोकझोंक हुई। इसी बीच कुछ लोग धरने पर बैठ गए और नारेबाज़ी व प्रदर्शन करने लगे। तभी पुलिस ने 62 दिनों से आंदोलन कर रहे कई सत्याग्रहियों को हिरासत में ले लिया और उन्हें पुलिस लाइन ले जाया गया। मौके पर पुलिस की कई गाड़ियां और बुलडोज़र खड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट में सर्व सेवा संघ की याचिका खारिज होने के बाद प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। माना जा रहा है कि वाराणसी जिला प्रशासन गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की विरासत को ज़मींदोज कर सकता है।

राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर शनिवार सुबह करीब छह बजे पुलिस छावनी में बदल गया। सैकड़ों पुलिस कर्मियों को साथ लेकर पहुंचे प्रशासनिक अफसरों ने परिसर में रहने वाले लोगों को आवास खाली करने की चेतावनी दी। अचानक पुलिस के पहुंचने से वहां अफरा-तफरी फैल गई और 62 दिनों से परिसर में सत्याग्रह आंदोलन चला रहे गांधी-विनोबा के समर्थ विरोध प्रदर्शन करने लगे। पुलिस की इस कार्रवाई से नाराज़ सर्व सेवा संघ के लोगों ने मेन गेट पर धरना शुरू कर दिया। इस दौरान पुलिस से कार्यकर्ताओं की नोकझोंक भी हुई। सत्याग्रह कर रहे गांधीवादियों का कहना था कि वो बुलडोज़र के आगे लेट जाएंगे,  लेकिन गांधी और जेपी की विरासत नहीं ढहने देंगे।

काफी जद्दोजहद के बाद पुलिस के सैकड़ों जवानों के साथ आए नगर निगम के कर्मचारियों ने परिसर में रह रहे लोगों के घरों से सामान निकालना शुरू कर दिया। पुलिस ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज को गेस्ट हाउस से बाहर नहीं निकलने दिया। इस बीच पुलिसिया कार्रवाई की फोटोग्राफी करने कर रहे लोगों के साथ अफसरों की तीखी नोकझोंक हुई। इसके बावजूद लोग कार्रवाई की वीडियोग्राफी करते रहे। विरोध के मद्देनज़र पुलिस अफसरों ने बनारस के 12 थानों की फोर्स को मौके पर तैनात किया है। पुलिस ने मुख्य गेट को पूरी तरह लॉक कर दिया है। बाहरी लोगों को अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है। मीडिया पर भी पाबंदी लगाई गई है।

नगर निगम और अग्निशमन विभाग की टीमें भी मौके पर पहुंची हुई हैं। आपा-धापी के बीच कई लोग अपने घरों का सामान निकालते दिखे। इससे पहले पुलिस की कार्रवाई से नाराज़ उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज के अलावा सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदन पाल, गांधीवादी नेता ईश्वरचंद, अनोखे लाल, एक्टिविस्ट नंदलाल मास्टर, राजेंद्र प्रसाद, राजेश मिश्रा, संजीव सिंह आदि को हिरासत में लेकर पुलिस लाइन ले जाया गया।

गांधीवादी नेताओं को गिरफ्तार करती पुलिस

शनिवार सुबह इलाके के बच्चे पढ़ाई करने पहुंचे तो भारी पुलिस फोर्स देखकर कुछ सहम गए। वो किसी तरह से अंदर पहुंचे और पढ़ाई करने के बजाय बालवाड़ी का सामान निकालना शुरू कर दिया। बच्चों की किताबें, कॉपियां, स्कूल बैग और स्टेशनरी का सामान जहां-तहा बिखरा पड़ा था। पुलिस ने सिर्फ बालवाड़ी केंद्र ही नहीं, विनोबा कुटी को भी अपने क़ब्ज़े में ले लिया।

सर्व सेवा संघ परिसर में बालवाड़ी के संचालक सौरभ सिंह ने 'न्यूज़क्लिक' से कहा, "पुलिसिया दमन से बालवाड़ी के बच्चे सहमे हुए हैं और उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि उनके भविष्य का क्या होगा? बालवाड़ी में उन बच्चों को पढ़ाया जा रहा था जो पहले कूड़ा बीनते थे और वो स्कूल की फीस तक भरने की स्थिति में नहीं थे। सर्व सेवा संघ इन बच्चों को मुफ्त में शिक्षा और भोजन मुहैया करा रहा था। इन बच्चों के पढ़ने और खेलकूद का सामान सर्व सेवा संघ मुहैया कराता था। पुलिस की सख्ती के चलते बालवाड़ी के बच्चे बहुत सारा सामान कमरों से नहीं निकाल पाए और पुलिस ने उन पर ताला जड़ दिया।"

सौरभ आगे कहते हैं, "सर्व सेवा संघ ने पिछले 70 सालों में करीब 1500 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। इनमें ज़्यादातर पुस्तकें गांधी, विनोबा और जयप्रकाश नारायण की वैचारिकी से संबंधित हैं। इन पुस्तकों को पुलिस ने नहीं निकालने दिया। सर्व सेवा संघ की बहुत सारी किताबें और महत्वपूर्ण दस्तावेज़ अभी तक कमरों में पड़े हुए हैं। इन कमरों पर पुलिस पहरा दे रही है। गांधी और विनोबा के समर्थक पुलिस प्रशासन से यह सवाल पूछ रहे हैं कि आख़िर उनका गुनाह क्या है?”

सर्व सेवा संघ परिसर में रह रहीं गांधी अनुयायी जागृति राही ने कहा, "परिसर में रह रहे लोगों ने सामान निकालने का समय मांगा, तो पुलिस ने हमें कोई मोहलत नहीं दी। हमें तत्काल परिसर से बाहर चले जाने का हुक्म सुना दिया गया। पुलिस के जवानों ने गाधीवादियों को पुलिसिया कार्रवाई का वीडियो तक नहीं बनाने दिया। इस मुद्दे को लेकर काफी देर तक नोकझोंक चलती रही। हम सभी को पुलिस ने धमकाया और हमारे कमरों को बुलडोज़र से गिरा देने की धमकी दी।"

संघ परिसर में रह रहे लोगों का निकाल कर फेंका गया सामान

सर्व सेवा संघ के मामले को लेकर सियासत गरमा गई है। प्रशासन की इस कार्रवाई पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने ट्वीट किया, "मोदी जी दुनिया भर में जाकर गांधी के नाम पर राजनीति करना बंद कीजिए। देश और दुनिया के लिए शर्म की बात है कि जिस गांधी ने देश को आज़ादी दिलाई उसी देश में उनकी विरासत पर आज वाराणसी में बुलडोज़र चलाने की कार्रवाई हो रही है।" इसके अलावा आम आदमी पार्टी, सामाजवादी पार्टी समेत सभी विपक्षी दलों ने पुलिस की इस कार्रवाई की कड़ी भर्त्सना की है।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की थी याचिका

सर्व सेवा संघ ने इसी महीने सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी संख्या-14209/2023 दायर की थी, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट की रिट संख्या-21078/2023 में पारित आदेश के खिलाफ थी। इस याचिका में याची था अखिल भारत सर्व सेवा संघ और प्रतिवादी थे उत्तर प्रदेश शासन, केंद्र सरकार, रेलवे और अन्य। 17 जुलाई 2023 को हुए फैसले की प्रतिलिपि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 20 जुलाई को डाली गई। फैसले में इस बात का विस्तार से ज़िक्र किया गया है कि याची सर्व सेवा संघ के अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलों का संज्ञान लिया गया। याची के अधिवक्ता के मुताबिक बनारस के जिलाधिकारी ने कई दशक पहले की रजिस्टर्ड सेल डीड की वैधता के बारे में जो फैसला सुनाया है वह कानूनी तौर पर वैध नहीं था। उन्हें सिर्फ गांधी विद्या संस्थान के बारे में सोचना चाहिए था, न कि सर्व सेवा संघ के पूरे भूखंड के बारे में। वैसे भी किसी संपत्ति की टाइटिल पर फैसला करने का अधिकार जिलाधिकारी के पास नहीं है। बनारस में जिलाधिकारी के फैसले के फौरन बाद रेलवे ने ध्वंस की कार्रवाई शुरू कर दी। दूसरी ओर, रेलवे के अधिवक्ता ने कहा कि जब स्थानीय न्यायालय में संपत्ति के स्वामी की घोषणा और स्थनादेश के लिए याचिकाकर्ताओं ने एक मुकदमा दायर कर रखा है तब उन्हें यहीं बात दोहराने की क्या ज़रूरत है?

हाईकोर्ट के फैसले के प्रकाश में वाराणसी के जिलाधिकारी ने 26 जून 2023 को दिए गए अपने फैसले में यह माना का है कि रेलवे ने यह ज़मीन साल 1941 में रक्षा विभाग से खरीदी थी। इस ज़मीन को आगे चलकर किसी निजी संगठन अथवा व्यक्ति को बेचने की नीति नहीं थी। इसके अलावा जिलाधिकारी ने यह भी कहा है कि अगर ज़मीन बेचनी ही थी तो रेलवे बोर्ड की पूर्व अनुमति के साथ सार्वजनिक निविदा के प्रकाशन के साथ यह कार्य किया जाना चाहिए था।

डीएम ने यह भी कहा था कि याची अपनी सेल डीड की सत्यता का सत्यापन नहीं करा पाए हैं। याचियों ने डीएम के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन वहां उन्हें कोई राहत नहीं मिली थी। अलबत्ता एक सलाह देते हुए कोर्ट ने कहा कि वह स्थानीय न्यायालय में लंबित मुकदमें के मामले में आवेदन कर सकते हैं। याची के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बार-बार डीएम के नज़रिए पर आपत्ति की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीएम का फैसला हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में आया है। हाईकोर्ट के उस आदेश को कहीं चुनौती नहीं दी गई है। ऐसी सूरत में डीएम का फैसला गलत नहीं ठहराया जा सकता है। सेल डीड के अलावा याचियों के पास अपने समर्थन में कोई और दस्तावेज़ नहीं मिला। इन्हीं आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने फैसला सुनाया कि याची स्थानीय न्यायालय में लंबित सिविल मुकदमे को ले जाए। यहां उनकी एसएलपी खारिज की जाती है। हाईकोर्ट के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याची सर्व सेवा संघ को कोई राहत नहीं दी। हालांकि ख़बर है कि सर्व सेवा संघ ने सुप्रीम कोर्ट में एक और एसएलपी दायर की है।

इससे पहले वाराणसी के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने सर्व सेवा संघ के निर्माण को अवैध घोषित करते हुए समूची ज़मीन को उत्तर रेलवे की संपत्ति माना है। सर्व सेवा संघ भवन को ध्वस्त करने के लिए उत्तर रेलवे प्रशासन ने 30 जून 2023 की तिथि तय की थी, लेकिन इस फैसले का विरोध शुरू हो गया। इस बीच सर्व सेवा संघ ने सिविल कोर्ट में एफटीसी सीनियर डिवीजन कोर्ट में वाद दायर किया है। सुनवाई की तारीख अभी तक तय नहीं हुई है।

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गांधीवादी नेता रामधीरज ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हाईकोर्ट के निर्देश पर हमने सिविल कोर्ट में एक वाद दायर किया था। 20 जुलाई के दिन हम कोर्ट में मौजूद रहे और हम शाम पांच बजे तक जज साहब का इंतजार करते रहे। सिविल कोर्ट में सर्व सेवा संघ के मामले में सुनवाई नहीं हो पाई। हमने आज पुलिस से ऑर्डर की कॉपी मांगी तो कहा जा रहा कि अपने वकील को बुलाइए। हम आपको कोई कागज नहीं देंगे।"

1961 में बना था संघ भवन

गांधी के विचारों को दुनिया भर में फैलाने के लिए मार्च 1948 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद सर्व सेवा संघ की स्थापना की गई थी। विनोबा भावे के मार्गदर्शन में 62 साल पहले सर्व सेवा संघ भवन की नींव रखी गई। सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय मंत्री डॉ. आनंद किशोर के मुताबिक साल 1960 में इस ज़मीन पर गांधी विद्या संस्थान की स्थापना की कोशिशें शुरू हुईं। भवन का पहला हिस्सा साल 1961 में बनाया गया और साल 1962 में जय प्रकाश नारायण यहां खुद रहा करते थे। आचार्य विनोबा भावे की पहल पर सर्व सेवा संघ ने ये ज़मीन 1960, 1961 एवं 1970 में रेलवे से खरीदी हैं। डिवीज़नल इंजीनियर नार्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन रजिस्टर्ड सेल डीड हैं। यह भवन 3 बार में पूरा बन सका था। जैसे-जैसे जमीनें खरीदी जाती रही, वैसे-वैसे भवन बनता चला गया। करीब 1971 तक 3 बार में यहां निर्माण पूरा हुआ। दावा है कि यह भवन गांधी स्मारक निधि और जयप्रकाश नारायण द्वारा किए गए दान-संग्रह से बनवाया गया था।

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