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इंडिया गेट पर कैंडल मार्च: पहलवानों की हुंकार ''आवाज़ उठी है तो दूर तलक जानी चाहिए''

23 मई को दिल्ली के इंडिया गेट पर पहलवानों ने धरने का एक महीना पूरा होने पर कैंडल मार्च निकाला और 28 मई को नई संसद के सामने महिला महापंचायत की कॉल दी। 
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दिल्ली के इंडिया गेट पर अचानक ही मौसम ने करवट ली और आंधी चलने लगी। इस आंधी में कर्तव्य पथ पर जो तस्वीर साफ नज़र आ रही थी वे थी सैकड़ों की भीड़ में लहराता तिरंगा। लहराते तिरंगे की ओट में कभी इंडिया गेट दिखाई देता तो कभी छुप जाता, लोगों के हुजूम के बीच जो चीज़ परेशान कर रही थी वे भारी सुरक्षा बल। ऐसा महसूस हो रहा था जितने लोग हैं शायद उससे ज़्यादा पुलिस बल और सेना की तैनाती की गई थी, आख़िर क्यों? 

पुलिस और सुरक्षा बल की ये तैनाती दिल्ली के इंडिया गेट पर हुए पहलवानों के कैंडल मार्च के लिए की गई थी। क्या अब न्याय की मांग भी संगीनों के साए में की जाएगी। ये सवाल रह-रह कर उठ रहा था। 

23 मई को जंतर-मंतर पर पहलवानों के धरने का एक महीना पूरा हो गया। और इस मौक़े पर कैंडल मार्च निकाला गया। इसमें किसान नेता राकेश टिकैत, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ ही भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आज़ाद अपने समर्थकों की भारी भीड़ के साथ पहुंचे। 

इस कैंडल मार्च की ख़ास बात थी कि इसमें दिल्ली के आस-पास के अखाड़ों से रेसलर बनने की तैयारी कर रहे युवा पहलवान पहुंचे। जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल थे। साथ ही हरियाणा ख़ासकर रोहतक (साक्षी मलिक के गांव से भी) और सोनीपत से भारी संख्या में महिलाएं पहुंचीं। तमाम महिला संगठन, छात्र संगठनों के साथ ही दिल्ली की आवाम ने भी इस आंदोलन में हिस्सा लिया। 

Wresजंतर-मंतर से शुरू हुए धरने की तस्वीर, साभार: Twitter 

23 मई शाम पांच बजे जंतर-मंतर से शुरू हुआ मार्च इंडिया गेट पहुंचा। इस पूरे मार्च के दौरान कुश्ती पहलवान महासंघ के अध्यक्ष बीजेपी सांसद की गिरफ़्तारी के नारे लगे। साथ ही मार्च में शामिल भारी संख्या में भीम आर्मी के लोगों ने 'जय भीम' के भी नारे लगाए। जैसे ही मार्च शुरू हुआ सत्यपाल मलिक भी दिखे और वे भी कुछ दूरी तक इस मार्च का हिस्सा बने। इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि ''आज का दृश्य देखकर मैं आश्वस्त हूं कि ये कामयाब होंगे।'' 

''28 मई को नई संसद के सामने महिलाओं की महापंचायत होगी''

मार्च करते हुए इंडिया गेट पहुंचे पहलवानों ने बैरिकेड पर चढ़कर अपनी बात रखी, नारेबाज़ी की और मार्च में शामिल हुए लोगों को शुक्रिया अदा किया। यहां से बजरंग पुनिया की तरफ़ से अपील की गई कि ''28 मई को हमारी मातृशक्ति महापंचायत कर रही है। नई संसद भवन के सामने, जितनी भी मातृशक्तियां हैं उस दिन पंचायत में पहुंचे। साथ ही युवा साथी भी आएं, ये हमारे देश की बेटियों की इज्जत और मान-सम्मान की लड़ाई है।'' 

''आवाज़ उठी है तो ये दूर तलक जानी चाहिए''

विनेश फोगाट ने भी इसी बात को दोहराते हुए कहा कि ''सभी बड़े-बुज़ुर्गों ने फैसला लिया है कि 28 तारीख़ को नई संसद भवन के सामने महिलाओं की महापंचायत होगी। हम सभी लोग भी पीछे खड़े रहेंगे, ताकत बनने का काम करेंगे लेकिन महिलाओं की महापंचायत है और महिलाएं ही इसको लीड करेंगी। जितनी भी हमारी बड़ी माताएं हैं, बहनें हैं, जो भी हमारे समर्थन में आएंगी हम चाहते हैं कि वे बढ़चढ़कर हिस्सा लें क्योंकि अगर ये आवाज़ उठी है तो ये आवाज़ दूर तलक जानी चाहिए। अगर आज देश की बेटियों को न्याय मिल जाता है तो आने वाली बेटियों को हम हिम्मत देने का काम करेंगे।'' 

''आंदोलन और मज़बूत होगा''

मार्च में शामिल हुए अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह ने लोगों की भीड़ को देखकर कहा कि ''देख लो ये कोई संगठन नहीं है, कोई मंच भी अभी नहीं बना। इसके बावजूद शांतिपूर्वक मार्च चल रहा है। ये लोगों की भीड़ नहीं, ये एक लहर है जो अब फैल रही है। गांव-गांव मोहल्ले- मोहल्ले जा रही है। कोई बुला कर नहीं लाया इस भीड़ को। ये स्वत: स्फूर्त है क्योंकि मसला सिर्फ़ सात महिलाओं का नहीं है बल्कि मसला पूरे देश के अंदर क़ानून और लोगों की सुरक्षा का है। ख़ासतौर से महिलाओं का है जिसका असर है। ये आंदोलन अभी और मज़बूत होगा और फैलेगा क्योंकि एक तरफ बहुत ही शक्तिशाली और ऐसी ताकत है जो क़ानून को नहीं मानती, लोकतंत्र को नहीं मानती उस ताकत से टकराना पड़ रहा है, ये कोई एक बृजभूषण की बात नहीं है। इतनी बड़ी ताकत उसे संरक्षण प्रदान कर रही है तो सभी राजनीतिक पार्टी, सभी सामाजिक संगठन उसका ये फ़र्ज़ बनता है कि वे इनके समर्थन में खड़े हों।''

''सरकार की हठ टूटेगी''

भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने कहा, ''देश की पहचान रहा है संघर्ष, आज़ादी के लिए भी संघर्ष करना पड़ा था और आज भी हम आज़ादी के 70-75 साल बाद भी वहीं खड़े हैं। लेकिन ये संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक बहनों को न्याय नहीं मिल जाता। मेरा मानना है कि आज नहीं तो कल सरकार की हठ टूटेगी। जनता बड़ी होती है लोकतंत्र में।'' 

oldकैंडल मार्च में आए वृद्ध व्यक्ति

हाथों में तिरंगा लिए और जबरदस्त नारेबाज़ी करते हुए लोगों का कारवां जंतर-मंतर से आगे बढ़ रहा था और आस-पास के ऑफिस, सड़क पर चलती हुई जनता इस जनसैलाब को खड़े होकर देखती नज़र आई, इस मार्च को मोबाइल में रिकॉर्ड करती दिखी। इतने गंभीर मुद्दे पर मार्च को भले ही मेन स्ट्रीम मीडिया को जिस तरह से कवर करना चाहिए था न किया गया हो लेकिन मार्च में शामिल हर चौथा शख़्स इस मार्च को सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव कर लोगों तक पहुंचाने का काम करता दिखाई दिया। 

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मार्च में दिल्ली से अपनी मां और कॉलोनी की तमाम महिलाओं के साथ एक छोटी बच्ची भी पहुंची थी जिससे हमने इस मार्च में शामिल होने का सबब जानना चाहा तो बच्ची का जवाब था, ''मैं अपनी दीदियों का साथ देने के लिए इस मार्च का हिस्सा बनने के लिए आई हूं।''

इंडिया गेट पर हरियाणा की महिलाओं की हुंकार

भीषण गर्मी में लोगों की इस भीड़ ने बेशक सत्ता के गलियारों तक इस मार्च की तपिश पहुंचा दी होगी। इंडिया गेट पर रोहतक से आईं तमाम महिलाओं के तेवर भी देखने लायक थे। एक महिला ने हमसे कहा, ''बेटियों को इंसाफ नहीं मिला तो डूब कर मर जाने की बात है। ये सरकार बिल्कुल गूंगी और बहरी हो चुकी है। क्या ऐसे बेटी पढ़ाएंगे और ऐसे बेटी बचाएंगें''? फिर बेहद नाराज़गी के साथ इस महिला ने अपनी स्थानीय भाषा में कहा, ''इंसाफ नी मिला तो और खाप ईक्कठी होकर आवेंगी। कह दीओ अपणे मोदी ने।'' साथ ही उन्होंने कहा कि ''अब इलेक्शन आ रहे हैं और अब हम इन्हें वोट नहीं देंगे। कह देना इस बार वोट मांगेने भी विदेश ही चले जाएं। हम तो वोट नहीं देंगे उन्हें। बृजभूषण इन्हीं की पार्टी का है तो उसे बचा रहे हैं। अभी किसी और पार्टी का होता तो अब तक उसे फांसी पर चढ़ा दिया होता। उन्हीं की पार्टी का है इसलिए बचा रहे हैं।'' 

रोहतक से ही आईं महिलाओं की एक टोली से हमने बात की उनमें से एक महिला ने कहा, ''इन बेटियों को जल्दी न्याय मिलना चाहिए। नहीं मिला तो और भी छोटी बच्चियां हैं उन्हें आने में डर लगेगा। अगर इस तरह का काम हो रहा है तो हम बेटियों को किसके भरोसे भेजेंगे। ये बोलते हैं कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' और बेटियों के साथ ये सब हो रहा है, और बेटियों पर ये हंगामा हो रहा है तो अब कहां हैं सब? 28 मई को महिला पंचायत बुलाई गई है और उसमें इससे भी ज़्यादा महिलाएं आएंगी, हम चाहते हैं जल्द से जल्द बृजभूषण को गिरफ़्तार किया जाए। अगर सरकार जल्दी मान जाए तो ठीक वर्ना अब हम आरोपी को पकड़ कर खींच लाएंगे। और मोदी जी को भी वोट नहीं मिलेगा इस बार।'' 

Aidwa

''आगे मंत्री-संतरी का घेराव होगा''

इंडिया गेट पर जगह-जगह जत्थों में महिला, किसान और तमाम संगठन बैठे नज़र आए। कोई गीत गा रहा था तो कोई नारेबाजी कर रहा था, तो कोई तेज आंधी में अपनी मोमबत्ती को जलाए रखने की जदोजेहद करता दिखा। भारतीय भीम अवार्डी, अंतरराष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमति सांगवान ने कहा कि ''महम (रोहतक) में हुई महापंचायत में फैसला लिया गया था कि 28 मई को नए संसद भवन के सामने महिलाओं की महापंचायत होगी, तो उस दिन (28 मई को) महिलाओं की तरफ से भी रोष प्रकट किया जाएगा। पॉक्सो कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है तो उसपर वे (महिलाएं) कैसे ज़्यादा से ज़्यादा रोष प्रकट करें। पंचायत में इसपर चर्चा होगी। इसके अलावा आगे सरकारी मंत्री, संतरी लोगों के घेराव का भी प्रोग्राम बनाया जाएगा। आंदोलन बहुत ही शांतिपूर्वक चल रहा है लेकिन अब सख्त रुख़ अपनाना होगा क्योंकि सरकार ने तमाम हदें पार कर दी हैं। किसी भी तरह का कोई जन दबाव का वे ज़रा भी बोझ नहीं मान रहे। तानाशाही में मगरूर हैं वे तो इस घमंड को तोड़ने की ज़रूरत है''। 

''NRC-CAA के बाद दिल्ली का बड़ा प्रोटेस्ट है ये''

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी भी इस मार्च में शामिल हुईं। उन्होंने कहा,''मुझे लगता है कि NRC-CAA के बाद इतना बड़ा प्रोटेस्ट दिल्ली में हो रहा है। माहौल बिल्कुल वही है, जिसमें कोई एक जगह या एक तरह के लोग शामिल नहीं हैं। पहलवानों के समर्थन में आम जनता यहां आकर जुटी है और मुझे बहुत ख़ुशी है कि लोग इस तरह से अपनी आवाज़ उठाने के लिए यहां आए हैं।'' उन्होंने एक महीने से चल रहे पहलवानों के धरने पर कहा कि ''ये सरकार नहीं सुनेगी, ये सरकार महिला विरोधी है, ये आम जनता, किसान, महिला, कामगार सबकी विरोधी सरकार है। जब तक इस सरकार को हराया नहीं जाएगा, तब तक कोई भी मुद्दा आम जनता का सुना नहीं जाएगा। फिर वे बेरोज़गारी का हो भुखमरी का हो चाहे महिला शोषण का हो।'' 

मार्च में दिल्ली के तमाम छात्र संगठन भी पहुंचे। मैंने आइसा (All India Students' Association) की स्टेट सेक्रेटरी नेहा से बात की तो उन्होंने कहा कि ''30 दिन हो गए पहलवानों को न्याय की मांग करते हुए, ये लड़ाई सिर्फ़ रेसलिंग वर्ल्ड तक सीमित नहीं है, खेल संघ तक सीमित नहीं है, WFI तक सीमित नहीं है। ये हर उस औरत की लड़ाई है जिसने अपने आप को ऐसे हालत में पाया है।'' 

''आरोपियों के पक्ष में खड़ी होती है बीजेपी''

JNU से ही आए एक छात्र संगठन से जुड़े शौर्या से भी हमने बातचीत की और उन्होंने कहा कि ''हम यहां इस बात को दोहराने आए हैं कि धरने के एक महीने बाद भी न तो रेसलिंग फेडरेशन से, न स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया से, न अनुराग ठाकुर से, और न ही प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से कोई ठोस बयान इनकी बेसिक मांगों पर आया है कि उस पर क्या कार्रवाई हो रही है। बीजेपी सिर्फ WFI में ही नहीं, उन्नाव में, कठुआ में अलग-अलग जगहों पर जहां भी महिलाओं का उत्पीड़न हुआ है उसके खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की आवाज़ को दबाती है और जो आरोपी हैं उनके पक्ष में खड़ी होती है''।   

कई अखाड़ों के पहलवान भी इंडिया गेट पहुंचे

छात्रों के अलावा कई उभरते हुए रेसलर भी इस मार्च में पहुंचे। गुड़गांव के बख्तावर अखाड़े से क़रीब 50 रेसलर के एक ग्रुप से हमारी बात हुई, इस ग्रुप को लेकर आए एक कोच से हमने पूछा कि तैयारी कर रहे इन रेसलर पर क्या असर पड़ रहा है तो उनका जवाब था, ''सारा असर तो इन्हीं पर पड़ने वाला है, ये आने वाली पीढ़ी है, इन्हीं के लिए तो ये सारी लड़ाई है। इस ग्रुप में इंटरनेशनल खेल चुके और आगे की तैयारी कर रहे एक रेसलर दशरथ से हमारी बात हुई। दशरथ ने बताया की वे 2022 में एशियन चैंपियनशिप खेल चुके हैं। दशरथ कहते हैं कि ''हम यहां अपने सीनियर्स को समर्थन देने आए हैं, हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा कि उनके साथ ये सब हो रहा है। इन सब से हम बहुत दुखी हैं।'' 

इसी टीम में हमें तन्वी और यशिका मिलीं। वे भी रेसलिंग करती हैं। तन्वी स्टेट लेवल तक खेल चुकी हैं। इन बच्चों से हमें पता चला कि ये बहुत दिनों से मेहनत कर रहे थे लेकिन इस विवाद की वजह से इनके स्टेट लेवल के कंपटीशन पोस्टपोन हो गए। 

ऐसे ही सोनीपत से भी क़रीब डेढ़ सौ रेसलर्स के एक ग्रुप से हमारी बात हुई उन्होंने भी यही कहा कि इस विवाद का खेल पर और खिलाड़ियों पर बहुत असर पड़ रहा है। 

खेल से जुड़ा मामला है तो खेल पर असर ज़रूर पड़ेगा, जिन खिलाड़ियों को अखाड़े में होना चाहिए था, तैयारी करनी चाहिए थी वे पिछले 30 दिन से जंतर-मंतर पर बैठे हैं।

पहलवानों के समर्थन में इंडिया गेट पर उमड़ी जनता में नाराजगी थी तो न्याय मिलने की उम्मीद भी। लेकिन अब देखना होगा कि जंतर-मंतर से इंडिया गेट पहुंचा पहलवानों का ये प्रोस्टेट कब तक जारी रहता है और सरकार की नींद कब टूटती है? 
 

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