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कॉरपोरेट कब्ज़े के ख़िलाफ़ जनान्दोलन का बढ़ता दायरा : बढ़ता दमन, गहराती साज़िशें
देश का सत्ता प्रतिष्ठान किसान आंदोलन के पुनर्जीवन की संभावनाओं से भयभीत है और उसके नेताओं के प्रति गहरी नफ़रत से भरा हुआ है, क्योंकि वह देश के सारे जनसंघर्षों की धुरी और सन्दर्भ-बिंदु बन चुका है।
लाल बहादुर सिंह
11 Jun 2022
Rakesh

देश के प्राकृतिक संसाधनों पर कॉरपोरेट कब्जे के खिलाफ लड़ाई का दायरा विस्तीर्ण होता जा रहा है। उसी अनुपात में उसके खिलाफ सत्ता के दमन और साज़िशों का दायरा भी बढ़ता जा रहा है।

देश मे पिछले दिनों चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन से जनसंघर्षों में लगी तमाम ताकतों को सीख और प्रेरणा मिली है। आज जगह-जगह जल-जंगल-जमीन को कारपोरेट से बचाने का अभियान जारी है। एक नया स्वागतयोग्य विकास यह हो रहा है कि किसान आंदोलन से प्रेरणा लेकर बस्तर के आदिवासी इलाकों में भी उसके खिलाफ प्रतिरोध अब व्यापक जनान्दोलन का रूप ले रहा है। आंदोलन के नेता खुले मन से किसान-आंदोलन के मॉडल से मिले सबक को स्वीकार कर रहे हैं। ताजा खबरों के अनुसार आंदोलन के दबाव में अडानी के 3 माइनिंग प्रोजेक्ट्स पर सरकार ने रोक लगा दी है।

स्वाभाविक है, देश का सत्ता प्रतिष्ठान किसान आंदोलन के पुनर्जीवन की संभावनाओं से भयभीत है और उसके नेताओं के प्रति गहरी नफरत से भरा हुआ है, क्योंकि वह देश के सारे जनसंघर्षों की धुरी और सन्दर्भ-बिंदु बन चुका है। किसान नेताओं को बदनाम करने, उनके ऊपर शारिरिक हमले प्रायोजित करने, किसान संगठनों में तोड़फोड़ करने, पूरे माहौल को बिगाड़ने के लिए साजिशों का सिलसिला जारी है।

हाल ही में भाजपा-शासित कर्नाटक में किसान-नेता राकेश टिकैत के ऊपर हमला हुआ, पहले एक हमलावर ने माइक के हैंडल से उनके सर पर वार किया, फिर जब उसे पीछे धकेला गया तो उसके दूसरे साथी ने उनके ऊपर स्याही डाल दी। पुलिस के अनुसार इन हमलावरों में एक murder convict था,जो हाल ही में "अच्छे आचरण" के लिए जेल से छोड़ा गया था !

टिकैत ने आरोप लगाया है कि सरकार उनकी हत्या कराना चाहती है। उन्होंने उस घटना का भी हवाला दिया, जब जनरल बिपिन रावत के घर वे श्रद्धांजलि अर्पित करने गए थे। वहां भी उनके खिलाफ जबरदस्त हंगामा किया गया था, उन्हें देशद्रोही और गद्दार बताते हुए उनके खिलाफ नफरत और उन्माद पैदा करने की कोशिश की गई थी, जिसकी परिणति उनके ऊपर हमले में भी हो सकती थी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने राकेश टिकैत पर बेंगलुरु में हुए हमले की निंदा करते हुए कहा है, "एसकेएम से जुड़े किसान संगठन कर्नाटक राज्य रैयत संघ द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता में राकेश टिकैत पिछले दिनों एक टीवी चैनल द्वारा किसान आंदोलन के विरुद्ध दुष्प्रचार का खण्डन कर रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने पूर्व नियोजित तरीके से उनके ऊपर हमला किया और दूसरे व्यक्ति ने स्याही फेंकी। हमलावर "जय मोदी" और "मोदी, मोदी" के नारे लगा रहे थे। "

" मुख्य आरोपी भरत शेट्टी की कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा, भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष, वर्तमान गृह मंत्री और सिंचाई मंत्री के साथ फोटो से अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह हमला भाजपा द्वारा प्रायोजित था। पिछले कुछ दिनों से एक टीवी चैनल द्वारा किसान आंदोलन के खिलाफ प्रचार के चलते तनावग्रस्त माहौल के बावजूद भाजपा सरकार ने सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए थे। स्याही की जगह एसिड या बम भी हो सकता था, जिसके परिणाम जानलेवा हो सकते थे। अब यह साफ है कि हमलावरों को भाजपा और कर्नाटक सरकार की पूरी शह प्राप्त थी। "

" इस घटना ने एक बार फिर भाजपा का किसान विरोधी चेहरा बेनकाब किया है। किसानों से बार-बार धोखा करने वाली और उन पर तरह तरह से हमले प्रायोजित करने वाली इस सरकार को किसान शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीकों से सबक सिखाना जानते हैं। "

SKM ने मांग किया कि हमले की घटना और इसके पीछे राजनैतिक षड्यंत्र की न्यायिक जांच का आदेश दिया जाये और राकेश टिकैत को सुरक्षा प्रदान की जाये।

हाल ही में टिकैत के नेतृत्व वाली BKU को, जिसने दिल्ली बॉर्डर पर चले आंदोलन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उसे कमजोर करने और उसमें तोड़फोड़ की कोशिश हुई।

भारतीय किसान यूनियन से अलग होकर अपनी अलग यूनियन बनाने वालों ने

स्वयं ही स्पष्ट कर दिया कि BKU ने विधानसभा चुनाव में भाजपा के विरुद्ध stand लिया, इसके विरोधस्वरूप वे अलग होकर अपनी अराजनीतिक यूनियन बना रहे हैं! राकेश टिकैत ने इशारा किया कि इन "अराजनीतिक" splitters में से कई भाजपा के विरुद्ध विपक्षी गठबंधन से टिकट पाकर चुनाव लड़ने के इच्छुक थे! अब UP में भाजपा की सरकार पुनः बन जाने के बाद उनके पलटी मारने के पीछे कुछ "दबाव" और "मजबूरियां" हो सकती हैं। "

दरअसल, किसान आंदोलन को जब दमन के बल पर सरकार नहीं कुचल पाई और अंततः उसे कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा, तब आंदोलन को खत्म करवाने के लिए मोर्चे के अंदर के कमजोर तत्वों की चुनावी महत्वाकांक्षा को हवा देते हुए या अन्य तरीकों से SKM के अंदर तोड़फोड़ की गई, अंततः संयुक्त किसान मोर्चा आंदोलन वापस लेने और दिल्ली मोर्चे से वापस लौटने के लिए बाध्य हो गया।

MSP की मांग पूरा हुए बिना आंदोलन खत्म करना एक ऐतिहासिक भूल थी, जिसके गम्भीर political repurcussions हुए और हो रहे हैं। UP के निर्णायक चुनाव समेत विभिन्न राज्यों के विधान-सभा चुनावों पर इसका विनाशकारी असर पड़ा।

सम्भवतः सबसे दूरगामी असर आंदोलन के गढ़ पंजाब के समाज और राजनीति पर पड़ रहा है, जो अभी एक unfolding story है।

किसान-आंदोलन की आंशिक जीत जरूर हुई, पर वह अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सका। चुनाव के सवाल पर किसान संगठनों के बीच भारी मतभेद के चलते आंदोलन की स्वाभाविक राजनीतिक परिणति ( political translation ) नहीं हो सका।

पंजाब के दोनों प्रमुख स्थापित दलों के खिलाफ जबरदस्त जनअसंतोष का फायदा उठाकर, विकल्प के अभाव में, एक ऐसी ताकत, बेशक किसानों के समर्थन से, सत्ता में आ गयी जिसका किसानों से कुछ लेना देना नहीं था।

इसी का नतीजा है कि किसानों को नई सरकार बनने के बाद से लगातार उसके ख़िलाफ़ लड़ना पड़ रहा है। जाहिर है आप पार्टी और भगवंत मान सरकार की पंजाबी समाज मे कोई जड़ें ( roots ) नहीं है। उधर किसान-आंदोलन भी एक बड़ी ऊंचाई से नीचे उतर चुका है। फलस्वरूप पंजाब की राजनीति और समाज में एक भारी शून्य पैदा हो गया है जिसमें माफिया अपराधी ड्रग-कार्टेल अतिवादी अलगाववादी तमाम तरह की ताकतों को आगे आने का मौका मिल रहा है।

जाहिर है पंजाब का विकासमान माहौल किसान आंदोलन और लोकतांत्रिक ताकतों के लिये बेहद प्रतिकूल है और सत्ताधारी ताकतों और कारपोरेट को suit करता है। इसलिये इसमें सत्ताप्रतिष्ठान की प्रत्यक्ष-परोक्ष भूमिका हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

यह देखना बेहद त्रासद है कि जो पूरा पंजाब 6 महीने पहले तक किसान आंदोलन के रंग में सराबोर था, वहां एक बार फिर अलगाववादी, कट्टरपंथी नारे गूंज रहे हैं और प्रदेश हिंसा की एक अंधी सुरंग में प्रवेश करता जा रहा है।

दिल्ली में सत्तारूढ़ ताकतें जिस रास्ते पर देश को धकेल रही हैं, उसके फलस्वरूप पूरे देश में , सभी समुदायों में radicalisation हो रहा है, कट्टरपंथ, उन्माद और हिंसा की प्रवृत्तियां मजबूत हो रही है।

सन्दर्भ और किरदार अलग हैं, लेकिन जो ट्रेंड है, 80s दशक के खौफनाक घटनाक्रम की याद दिलाते हैं। सजग किसान नेताओं, जत्थेबंदियों और लोकतान्त्रिक ताकतों को मिलकर पंजाब को विनाश के रास्ते पर जाने से बचाना होगा।

अच्छी बात यह है कि चुनाव के समय पंजाब में जो तमाम किसान-संगठन संयुक्त किसान मोर्चा से अलग हो गए थे, वे फिर संयुक्त किसान मोर्चा ( SKM ) के बैनर तले गोलबन्द हो रहे हैं। मोर्चा MSP के सवाल को केंद्र कर किसान-आंदोलन की अगली लहर के लिए तैयारियों में लगा हुआ है।

केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में खरीफ की 14 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई बढ़ोतरी से पंजाब के और पूरे देश के किसान खुश नहीं हैं। किसान संगठनों के नेताओं ने एमएसपी में वृद्धि पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा है कि किसानों द्वारा वहन की जाने वाली लागत और अनुमानित महंगाई दर (6.7 प्रतिशत) को देखते हुए यह बहुत कम है। यह स्वामीनाथन आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप तो नहीं ही है, बढ़ी हुई महंगाई और लागत के अनुपात में भी नगण्य है।

उधर संकेत हैं कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में अडानी के कोयला खदान के लिए पेड़ों के कटान और जंगल पर कब्जे के खिलाफ जुझारू जनान्दोलन सफलता की ओर है, सरकार अंततः झुकने और अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर हो रही है।

यह साफ है कि जल-जंगल और जमीन पर कारपोरेट कब्जे के खिलाफ लड़ाई किसानों और आदिवासियों को जनपक्षधर लोकतान्त्रिक ताकतों की मदद से अपने बल पर ही लड़नी है, साथ ही सत्ता के दमन का मुकाबला करना है और उनकी साजिशों का भी मुंहतोड़ जवाब देना है। मंदसौर गोलीकांड की बरसी पर 6 जून को किसानों ने पूरे देश में इसी " एकता, संघर्ष और विजय " का संकल्प लिया।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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