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सुंदर नर्सरी झुग्गी: चलेगा बुलडोज़र तो कहां जाएंगे बेघर लोग, क्या होगा बच्चों की पढ़ाई का? 

''सबसे बड़ी दिक्कत हो रही है बच्चों के स्कूल की, कोशिश कर रहे हैं कि आस-पास किराए पर घर मिल जाए पर मिल नहीं पा रहा, अगर हमने घर दूर लिया तो बच्चे कैसे स्कूल जा पाएंगें, अब बच्चों के स्कूल छूट जाएंगे''
Sundar Nursery Slum

जिस वक़्त पूरा देश क्रिकेट वर्ल्ड कप के जोश में डूबा था, उसी वक़्त कई लोगों को चिंता थी कि उनके बच्चों का स्कूल अब छूट जाएगा, कई बच्चों के पेपर चल रहे थे तो कई आने वाले एग्जाम की तैयारी में लगे थे लेकिन अब वो पढ़ाई को भूलकर ये सोच रहे थे कि आगे क्या होगा? कोई परिवार रिक्शे पर सामान लाद रहा था तो कोई मिनी ट्रक पर सामान रख रहा था। कपड़ों की गठरी पर बैठी एक छोटी बच्ची की गोद में महज़ चंद महीने के बच्चे को यूं रखा गया था जैसे वो भी कोई सामान ही हो। हाथों में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, समेत तमाम डाक्यूमेंट की फाइल लिए लोग इधर से उधर दौड़े जा रहे थे, पूरी बस्ती में बेचैनी और अफरा-तरफी साफ नज़र आ रही थी। 

यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट 'हुमायूं के मकबरे' के क़रीब मथुरा रोड पर डीपीएस स्कूल और सुंदर नर्सरी ( निज़ामुद्दीन) के बीच तिकोनी सी जगह में एक झुग्गियों का झुरमुट है। यहां बेहद तंग कमरों में कई-कई लोगों के परिवार रहते हैं, अंधेरे कमरे, घर के बाहर बने चूल्हे, गंदगी के ढेर के बीच क़रीब 500 से 700 परिवार बसते हैं।  

झुग्गी ख़ाली करने का नोटिस 

इसी झुग्गी बस्ती में घुसते ही कई जगहों पर घर खाली करने के नोटिस चिपके दिखते हैं, कुछ और आगे बढ़े तो एक बैनर नुमा बड़ा सा पोस्टर भी हवा में लहराता दिखाई दिया। 'भूमि तथा विकास कार्यालय, आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार' की तरफ से लगे इस बैनर पर हाई कोर्ट का आदेश का हवाला देते हुए 20.11.2023 तक घर ( अवैध अतिक्रमण) खाली करने का आदेश दिया गया है, और ऐसा न करने पर 21.11.2023 को अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करने की बात लिखी हुई है। 

बैनर की तरह लगा नोटिस

लोगों के मुताबिक ये पोस्टर और नोटिस 18 नवंबर को लगाए गए थे और साथ ही पुलिस के द्वारा तुरंत ही झुग्गियों को खाली करने के आदेश दिए गए।  यहां ज़्यादातर कूड़ा बीनने वाले, रिक्शा चलाने वाले और कोठियों में डोमेस्टिक हेल्पर के तौर पर काम करने वाली महिलाएं रहती हैं। इस झुग्गी में कई लोग जहां किराए पर रहने वाले हैं तो कुछ लोगों का दावा है कि वो यहां 40-40 साल से रह रहे हैं। 

''पूरा जंगल था यहां हम तब से रह रहे हैं''

एक घर के आगे कई बुजुर्ग महिलाएं बैठी थीं, उनमें से एक बुजुर्ग की आंखों में मोतियाबिंद उतरता दिख रहा था, वे हमसे हाथ जोड़ कर कहने लगीं '' पूरा जंगल था यहां हम तब से रह रहे हैं, सालों से हम यहां रह रहे हैं, बिजली हमने लगवाई कह सुनकर, पानी लगवाया, हम यहां अंधेरे में भी रहे, शौचालय बनवाया यहां, ये सब हमने ख़ुद कह-कह कर लगवाए, यहां कुछ नहीं था, कहां-कहां से पानी लाते थे पीने का, ऐसे-ऐसे दिन देखे और अब ग़रीबों को धकेला जा रहा है यहां से, अब क्या करें रो-रोकर जा रहे हैं, क्या करें, कमरे भी नहीं मिल पा रहे हैं, रात को नींद नहीं आई, ना खाना खाया जा रहा है''

एक बुजुर्ग महिला संतो अपने घर के आगे बैठी सोच में पड़ी दिखी, संतो ने बताया की वे अकेली रहती हैं और कोठियों में डोमेस्टिक हेल्पर के तौर पर काम करके किसी तरह से जी रही थीं लेकिन जब से नोटिस के बारे में पता चला है उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कहां जाएंगी वे कहती हैं कि '' हम यहीं रहेंगे, हम जाएंगे भी तो कहां, कोई जगह नहीं जहां जाएं'' 

''15 दिन पहले CCTV कैमरे लगे हैं, क्यों लगे हैं''

संतो अकेली ऐसी नहीं थी जिन्हें ये नहीं पता कि अगर घर टूटेगा तो वो कहां जाएंगी, बहुत से लोग इसी उलझन  में फंसे हैं। एक नाराज महिला ने कहा कि ''अगर ये अवैध घर हैं तो बताएं बिजली के मीटर क्यों लगाए यहां 15 दिन पहले CCTV कैमरे लगे हैं, क्यों लगे हैं'' 

कुछ लोग अपने कागजों में एक टोकन नम्बर दिखा रहे थे उनका दावा है कि ये उनकी झुग्गियों के नंबर हैं जो सरकार की तरफ से ही उन्हें जारी किए गए हैं, यहीं रहने वाले एक शख्स अशोक ने इस टोकन के बारे बताया कि '' ये सरकार ने हमें साल 1991 में दिए थे, जिस पर लिखा है 'परमानेंट हाउस', लेकिन अब जो नोटिस आया है उसमें झुग्गी के बारे में नहीं लिखा है, उसमें लिखा खसरा नंबर 484, हम तो खसरा में आते भी नहीं है अब ये क्या करना चाहते हैं क्या नहीं हम नहीं जानते, ना ही हमारे कागज़ों में खसरा लिखा है'' लोगों का आरोप है कि नोटिस में झुग्गियों का ज़िक्र नहीं है लेकिन पुलिस उन्हें जगह खाली करने के लिए कह रही है, इसपर कई लोगों ने एक साथ कहा कि '' हम कैसे खाली कर देंगे, इतने सालों से हम यहां पर रह रहे हैं और उसमें लिखा है कि खसरा नंबर लेकिन हमारे पास तो प्रूफ हैं, और पुलिस कह रही है कि खाली कर दो नहीं तो 21 तारीख़ को आ कर हम तोड़ देंगे''। 

झुग्गी में लगा नोटिस

''ना हम घर के ना हम घाट के''

इन्हीं झुग्गियों में हमें सपना मिली जो कहती हैं कि '' मैं यहां काफी सालों से रह रही हूं, मेरे बच्चे यहीं पैदा हुए, बड़े हुए, हम लोग कोठियों में काम करते हैं और इन लोगों ने एकदम से नोटिस यहां लगा दिए बिल्कुल हमारे पास कोई चारा नहीं छोड़ा कि हम कहीं कमरा भी लें किराए पर, कोठियों में काम करने वाले, रोज की मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं, कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी बेटी की शादी है घर में दहेज का सामान रखा पड़ा है, लाइट तक काट दी गई थी बहुत रिक्वेस्ट की तो लाइट दी, ऐसे हालात कर दिए हैं कि ना हम घर के ना हम घाट के, कुछ लोग हैं जो किराए के घर लेने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वो कह गए हैं कि अगर आप खाली नहीं करोगे तो मंगलवार को सुबह आठ बजे आकर ये मत कहना कि सामान दब गया, वे बार-बार आ रहे हैं और बार-बार यही चीज़ बोले जा रहे हैं'' 

''15 दिन का बच्चा लेकर मैं कहां जाऊंगा''

जिस वक़्त हम सपना से बात कर रहे थे एक युवक ने आकर बताया कि पुलिस कुछ बोलने भी नहीं दे रही जो कुछ बोल रहा है उनकी लिस्ट बना रही है, '' अगर हम कुछ पूछ रहे हैं तो वे कहते हैं कि इनका नाम लिखो, एक दम ही हमारे घर तोड़ देंगे तो हम कहां जाएंगे, मेरा बच्चा हुआ है वो सिर्फ 15 दिन का है इस सर्दी में उसे कहां लेकर जाऊंगा, कोई कहता है कि झुग्गी की जगह फ्लैट मिलेंगे मुझे फ्लैट नहीं चाहिए मुझे छोटी सी कुटिया दे दो मैं उसी में गुज़ारा कर लूंगा, क्या जब यहां झुग्गी बन रही थी तब किसी को नहीं पता था, हमारे बिजली बिल आते हैं, वोटर कार्ड, आधार कार्ड सब हैं, वोट लेने के वक़्त तो सारे आ जाएंगे बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सभी की तरफ से सिर्फ आश्वासन मिलते हैं हमारे घर टूट जाएंगे तो हम आश्वासन लेकर कहां जाएंगे''। 

घर खाली करता एक परिवार

''मेरा बेटा ICU में है''

रोती हुई नसीमा कहती हैं कि '' मैं और सिर्फ मेरी एक बेटी है, ऐसे में हम कैसे घर तलाश करने जाएं, कैसे सामान शिफ्ट करें कुछ समझ नहीं आ रहा है''। यहीं रहने वाली ज़मीरुनिस्सा भी बेहद परेशान हैं वो भी रोती हुई बताती हैं कि '' मेरे ऐसे हालात हैं जो किसी के ना हों, मेरा बेटा ICU में है, तीन-चार दिन से वो ICU में है, मैं लोगों से मदद की गुहार लगा रही हूं'' 

''हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि किराया देकर कहीं रह पाएं'' 

जिस वक़्त हम ज़मीरुनिस्सा से बात कर रहे थे झुग्गी की दूसरी महिलाएं भी अपनी-अपनी परेशानियां बताने लगी वे कहने लगी कि '' हमें कह रहे हैं कि घर खाली करो, हम कहां जाएंगे, हमारे पास पैसे नहीं हैं, घर नहीं मिल रहे हैं जो घर किराए के मिल रहे हैं वो 10-15 हज़ार के मिल रहे हैं, जब सरकार कह रही है कि 'जहां झुग्गी वहां मकान' तो मान क्यों नहीं रही है, हम लोग यहीं रहना चाहते हैं, हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि किराया देकर कहीं रह पाएं'' 

''हमारी बात किसी तरह सरकार तक पहुंचा दी जाए'' 

लोग परेशान हैं कि बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा, नाराज़ महिला ने कहा कि '' बच्चों का स्कूल है, ट्यूशन है, स्कूल ख़त्म हो जाएगा, यहां बहुत से छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने वाले हैं, हमारा तो भविष्य ख़राब हुआ सो हुआ लेकिन हमारे बच्चों का भी भविष्य ख़राब हो जाएगा, यहां कोई कूड़ा बीनता है, कोई ठेला लगाता है, लेकिन जब से नोटिस लगा है कोई काम पर नहीं गया डर के मारे की पीछे से झुग्गी टूट जाएगी, अगर झुग्गी टूट भी रही है तो हमारा कहीं ना कहीं इंतज़ाम कर दिया जाए, हम चाहते हैं कि हमारी बात किसी तरह सरकार तक पहुंचा दी जाए'' । 

''अब बच्चों के स्कूल छूट जाएंगे''

एक परिवार अपना सामान ई रिक्शा पर लाद रहा था उन्होंने बताया कि '' हम यहां से सराय काले खां जा रहे हैं, जिन लोगों के अपने घर हैं वो घर नहीं छोड़ कर जा रहे हैं लेकिन हम तो किराएदार हैं तो हमें कहीं ना कहीं तो शिफ्ट होना ही पड़ेगा'' तभी एक शख्स ने बताया कि  ''किराया भी कोई 10 हज़ार मांग रहा है को 15 हज़ार, ग़रीब आदमी कहां से देगा, हम यहां 1986 से रह रहे हैं, सबसे बड़ी दिक्कत हो रही है बच्चों के स्कूल की कोशिश कर रहे हैं कि आस-पास किराए पर घर मिल जाए पर मिल नहीं पा रहा, अगर हमने घर दूर लिया तो बच्चे कैसे स्कूल जा पाएंगें, अब बच्चों के स्कूल छूट जाएंगे, किसी ने हमारे बारे में सोचा ही नहीं, हमारी आवाज़ किसी तक नहीं जा पा रही है'' 

''हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई है क्या करें''?

समीना कहती हैं कि '' हम यहां 30-35 साल से रह रहे हैं, अभी कुछ नहीं पता की कहां जाएंगे, हम कहीं नहीं जाएंगे यहीं रहेंगे अपने घर में, जब बुलडोज़र आ जाएगा तब देखा जाएगा कहां जाएंगे, हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई है क्या करें? आस-पास के स्कूलों में बच्चे पढ़ रहे हैं, हम घर खाली नहीं करेंगे जो लोग किराए पर हैं वो खाली कर रहे हैं लेकिन जिनके अपने मकान में ही रहेंगे, हमारी तो जैसे-तैसी कट जाएगी लेकिन बच्चों की तो सारी जिन्दगी का मसला है, उनकी लाइफ खराब हो जाएगी, किसी का बच्चा नौंवी में है किसी का 12वीं में तो किसी का 10वीं का पेपर है, हमारी छोटी मोटी कमाई है कोई फुटपाथ पर दुकान लगाता है, छोटे-मोटे काम हैं हमारे, ग़रीब लोग हैं तभी तो ऐसी झुग्गी-झोपड़ी में ही रहते हैं पैसे होते तो महलों में रह लेते''। 

चूंकि कोर्ट के ऑर्डर हैं तो प्रशासन को कार्रवाई करनी पड़ेगी लेकिन ऐसे में एक बार फिर से बड़ा सवाल खड़ा होता है कि इतने शॉर्ट नोटिस पर लोग कहां जाएंगे? जिन बच्चों के स्कूल हैं उनकी पढ़ाई का क्या होगा?

'मज़दूर आवास संघर्ष समिती' की प्रतिक्रिया 

सुंदर नर्सरी झुग्गी में लगे नोटिस और उसकी वजह से बढ़ी लोगों की परेशानी पर 'मज़दूर आवास संघर्ष समिती' से जुड़े निर्मल गोराना अग्नि  ने कहा कि '' स्लम के लोग बता रहे हैं कि उनके पास DUSIB ( Delhi Urban Shelter Improvement Board ) के सर्वे के पेपर हैं, तो अगर DUSIB के सर्वे के पेपर हैं तो उन्हें इसे Recognize करना चाहिए notified करना चाहिए, तो कैसे ये notified नहीं है दूसरा- ये कह रहे हैं कि बस्ती exist ही नहीं करती 2006 में और ऐसा कोर्ट भी कह रहा है लेकिन लोगों के जो डाक्यूमेंट हैं वो 2006 से पहले के भी हैं तो डाक्यूमेंट में तो लोगों की बस्ती बोल रही है।  सैटेलाइट इमेज में कोई गड़बड़ी हो सकती है पर लोगों के डॉक्यूमेंट में कैसे गड़बड़ी हो सकती है, लोगों के पास वीपी सिंह के समय के कार्ड हैं, टोकन हैं तो लोग तो यहीं पर रहते थे तो यहां पर कुछ dispute सा लग रहा है, कोर्ट को इतनी अफरा-तफरी ना करके इसपर संज्ञान लेना चाहिए और आज फिर से ये लोग कोर्ट गए हैं कल मैटर लगा हुआ है, तो देखते हैं कोर्ट इसको किस तरह से लेता है मैं यही कहूंगा 'मज़दूर आवास संघर्ष समीति' की तरफ से किस जिस तरह से लोगों के पास DUSIB के सर्वे के पेपर हैं,  लोगों के पास वहां पर रहने के आईडी प्रूफ हैं जो कि कोर्ट के आदेश के भी विपरीत जा रहे हैं, उनके पास डाक्यूमेंट हैं तो कोर्ट इसपर पुन: विचार कर सकता है अभी ऊपर की कोर्ट हैं इस तरह से डेमोलिशन में जल्दबाज़ी नहीं दिखानी चाहिए और कोर्ट को संवेदनशीलता रखते हुए फिर से इसपर गहन विचार करना चाहिए''।

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