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दिशा रवि की गिरफ़्तारी मोदी के 'न्यू इंडिया' की बीमार मानसिकता का सबूत है

युवा पर्यावरणविद की गिरफ़्तारी उन सभी राज्यों के युवाओं, महिलाओं, अभिभावकों और लोगों को सावधान कर देगी जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं।
दिशा रवि की गिरफ़्तारी मोदी के 'न्यू इंडिया' की बीमार मानसिकता का सबूत है

12 मार्च, 2017 को, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा राज्य विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दिल्ली में हुई एक विजय रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक एक नए भारत बनाने के सपने के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि जो संकेत वे अपने चारों ओर देख रहे हैं वे उन संकेतों के जरीए मिशन को हासिल करने के मामले में पूरी तरह आश्वस्त हैं। मोदी ने दो संकेतों का उल्लेख खासतौर पर किया था, "एक ऐसा न्यू इंडिया जो नारी शक्ति की आकांक्षाओं को पूरा कर रहा है... और दूसरा ऐसा न्यू इंडिया जो अपनी युवा शक्ति के सपनों को साकार कर रहा है।"

22 वर्षीय पर्यावरणविद् दिशा रवि को टूलकिट षड्यंत्र नामक मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। वह सिर्फ इतना चाहती हैं कि नए भारत के निर्माण में लगे अधिकारी जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनें, पर्यावरणीय को नुकसान न पहुंचाए, सतत विकास के मॉडल को अपनाएं, और किसानों सहित वंचित सामाजिक और व्यावसायिक समूहों की आवाज़ को सुनें, जो दोषपूर्ण नीतियों से उपजे संकटों के बारे में चेताते हैं या अपनी आवाज़ उठाते हैं। 14 फरवरी को गिरफ्तारी से पहले, दिशा अपने सपने को साकार करने के लिए संघर्ष की तैयारी में थी, जिस संघर्ष का मक़सद उनकी अपनी जरूरतों के बारे में नहीं था बल्कि अधिकतर उन लोगों के लिए था जिन्हे भारत के लोग कहते हैं।

दिशा की गिरफ्तारी इस बात की तसदीक है कि मोदी का न्यू इंडिया एक महिला की आकांक्षाओं से डरा हुआ है और इसलिए उसने उसे जेल में बंद कर दिया है। यानि एक युवा नागरिक के सपने को पूरा करने में असमर्थ न्यू इंडिया ने उसे राष्ट्र-विरोधी के रूप में बदनाम करने का फैसला किया है। व्यक्तिगत रूप से दिशा उन लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनका न्यू इंडिया का विचार भारतीय राष्ट्र से अलग है। इसलिए, या तो उन्हें निर्वासित कर देना चाहिए, या शांत करा देना चाहिए। दिशा को दोहराने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। मोदी का न्यू इंडिया सुलझा हुआ नहीं है। इसके बजाय, वह उन सभी को अलग-थलग या दंडित करना चाहता है जो न्यू इंडिया की उनकी अवधारणा को नहीं मानते हैं या उससे असहमत हैं। ऐसे सब लोगों के लिए सिर्फ ही एक संदेश है कि या तो वे न्यू इंडिया के राष्ट्र के विचार को माने अन्यथा कम से कम चुप रहे- या फिर वह सब भुगतने के लिए तैयार रहे जिसे दिशा रवि भुगत रही है। 

यह संदेश मुख्य रूप से युवाओं के लिए है। ये वे युवा हैं जो आदर्शवाद की मसाल थामें चलते हैं, और उनमें राष्ट्र के विचारों खिलाफ बोलने का माद्दा या ऊर्जा है। युवा तबके से बड़ी पीढ़ी की विवशता उन्हे विवश करती है- वे अपने रोजगार के माध्यम से परिवारों को सुरक्षा और अन्य जरूरतें पूरी करते है। उनके न्यू इंडिया राष्ट्र के विचार का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरने की संभावना नहीं होती हैं।

दरअसल, 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्र युवाओं के आंदोलनों से जूझ रहा है। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 2016 की अशांति के बारे में सोचें, जो आज भी जारी है। या 2017 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की महिला छात्रों द्वारा पुरुष छात्रों के समान अधिकार की मांग करने के आंदोलन के बारे में सोचें। दो साल बाद, जब नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ 2019-2020 में विरोध प्रदर्शन हुए तो युवाओं ने अपने को हुकूमत के खिलाफ सीधे टकराव में पाया जैसा पहले कभी नहीं देखा गया था।

बेंगलुरू की 19 वर्षीय पत्रकार अमूल्य लीना को ही ले लीजिए, जिन्हे एक रैली में "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" के नारे लगाने के लिए चार महीने तक जेल की हवा खिलाई गई, हालांकि, जैसा कि उनके फेसबुक पोस्ट में दिखाया गया है, वह अन्य कई देशों के नाम लेना चाहती थीं, क्योंकि वह  यह साबित करना चाहती थी कि वह ऐसे "एक अलग राष्ट्र का हिस्सा नहीं बनेगी" जिसे केवल "उस राष्ट्र को जिंदाबाद" कहकर हिस्सा बनाने की बात कही जाती है। सीएए के विरोध और 2020 के दिल्ली दंगों की पुलिस जांच में देश के युवा नेताओं-उमर खालिद, शारजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के नाम शामिल किए गए हैं। मुनव्वर फारुकी, जो एक स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं को सिर्फ कॉमेडी के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था, जो अभी 32 साल का भी नहीं है। 

दिशा और अन्य लोगों की गिरफ्तारी उनके समान उम्र के युवाओं को चेतावनी है कि अगर आप भी उनकी तरह की सक्रियता का अनुकरण करते हैं तो आपको भी जेल में डाल दिया जाएगा, आपकी पढ़ाई में अडचण पैदा हो सकती है और आपके करियर में रुकावट आ सकती है। उन्हें केवल पेशेवर रोजगार या सिविल सेवक बनने की पढ़ाई करनी चाहिए। राजनीति उनका खेल नहीं है। न ही उन्हें मुखर रूप से देश में बढ़ते दुखों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करनी चाहिए। वे हुकूमत का विरोध करने का जोखिम अपनी खुद की कीमत पर कर सकते हैं। महिलाओं के लिए, दिशा का हश्र सब युवाओं को हुकूमत के खिलाफ सार्वजनिक रूप से आंदोलन करने के खतरों से अवगत कराता है। यह बेटी बचाओ, बेटी पढाओ के हुकूमत के कार्यक्रम का उद्देश्य नहीं है?

ऐसा नहीं है कि युवाओं के लिए सार्वजनिक जगहें वर्जित हैं, वे चाहे पुरुष हो या महिला, सब के लिए वर्जित है। आखिरकार, उनके सब के पास सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल होने का विकल्प है, जैसे कि राम मंदिर निर्माण के लिए चन्दा इकट्ठा करने का अभियान, जोकि कई शहरों में देखा जा रहा है। वे हिंदुत्व का प्रचार करने के लिए सोशल मीडिया वारियार बन सकते हैं, यहां तक कि बदतमीजी भरी टिप्पणी भी कर सकते हैं।

वे गाय की रक्षा के आंदोलन का हिस्सा बन सकते हैं, नदियों और जंगलों को बचाने में योगदान दे सकते हैं, गरीबों और बेरोजगारों के लिए धर्मार्थ कार्य कर सकते हैं, नागरिकों के कर्तव्यों पर प्रकाश डालते हुए सूचना का प्रसार कर सकते हैं और अस्पृश्यता से लड़ सकते हैं, तब तक जब तक कि उपरोक्त मुद्दों पर आपकी गतिविधियां हुकूमत की दोषपूर्ण नीतियों को चुनौती नहीं देती हैं। 

हुकूमत, दूसरे शब्दों में कहे तो उन बच्चों के लौकिक पितृसत्ता के समान है, जो मॉडल बच्चे उनकी विचारों को मानते हैं- और इससे भटकने वालों के खिलाफ गंभीर रूप से कार्यवाही की जाती है, यहां तक कि उन्हें घर से बाहर भी निकाला जा सकता है।

दिशा को गिरफ्तार करके, हुकूमत ने सबको सावधान करने का संदेश भी भेजा है, यहाँ तक कि उन माता-पिताओं के लिए जिनके बच्चे कॉलेजों में हैं या अभी भी उन पर निर्भर हैं। यह माता-पिता की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों के बारे में तय करें कि वे किसी किस्म के कठोर विचार ग्रहण न करें जो हुकूमत के खिलाफ क्रोध को भड़काता हो या यथास्थिति पर सवाल उठाता हो। उन्हें अपने बच्चों के कार्यों और सोशल मीडिया पोस्ट की निगरानी करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे हुकूमत के खिलाफ बात या कोई कार्रवाई नहीं करने  जा रहे हैं। उनकी उम्र उनके खिलाफ हुकूमत को कार्रवाई नहीं करने देगी। इसलिए, माता-पिता को सलाह दी जा रही है कि वे घर पर ही सुधारतमक उपाय करें अन्यथा उन्हे जेल में भेजा जा सकता है और वे अपने बच्चों के लिए भावनात्मक रूप से पीड़ित होंगे- और ऐसे माता-पिता हुकूमत की बेड़ियों से अपने बच्चों को आज़ाद करने के लिए अपनी ऊर्जा और धन दोनों बर्बाद कर रहे होंगे। 

ऐसा लगता है कि बीजेपी शासित राज्यों में रहने वाले माता-पिताओं को अपने बच्चों की अधिक चिंता करनी पड़ती है बजाय विपक्ष द्वारा शासित राज्यों के। दिशा कर्नाटक की रहने वाली हैं, और अमूल्य लीना भी। फारुकी को मध्य प्रदेश में गिरफ्तार किया गया था। इन दोनों राज्यों में भाजपा का शासन है। उत्तर प्रदेश को ले वहाँ कई सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। केंद्र सरकार दिल्ली में पुलिस को नियंत्रित करती है, वहाँ भी ऐसे युवा नेताओं/नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है, और असम में भी गिरफ्तार किया गया हैं जहां भाजपा शासन करती है। इस पहलू को मद्देनजर रखते हुए चार राज्यों-पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु के मतदाताओं को इस बात को याद रखना होगा कि जब वे अगले कुछ महीनों में अपनी नई विधानसभाओं का चुनाव करें तो मोदी के न्यू इंडिया के विचार के आसपास की राजनीति परिवारों को अशांत करने की धमकी देता है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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