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दुनिया भर में खाद्यान्न ढांचे में आए बदलावों से ग़रीब और मध्यम आय वाले देशों में बढ़ रहा है मोटापे पर आधारित कुपोषण

लांसेट रिपोर्ट बताती है कि ग़रीब और मध्यम आय वाले एक तिहाई से ज़्यादा देशों में पारस्परिक कुपोषण बढ़ रहा है। 1990 में यह समस्या 45 देशों में थी, जो 2010 के दशक में बढ़कर 48 देशों में पहुंच गई।
Global Food System Changes
Image Courtesy: bbc.com

अनाज और खाने की आपूर्ति करने वाले खाद्यान्न ढांचे में बड़े बदलावों ने कुपोषण के मुद्दे को और उलझा दिया है। ख़ासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में। लांसेट के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि ''खाद्यान्नों ढांचे में बड़े बदलावों'' के चलते ग़रीब देशों में मोटापा और अल्प पोषण बढ़ रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ नॉर्थ कैरोलिना के चैपल हिल गिलिंग स्कूल ऑफ़ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में प्रोफ़ेसर और पहले पेपर के मुख्य लेखक एम पॉपकिन और न्यूट्रीशन प्रोफ़ेसर वी आर केनन बताते हैं ''हमारे शोध के मुताबिक़, कम आय वाले देशों में 20 फ़ीसदी युवा, मोटापे से प्रभावित हैं। अल्प पोषण और मोटापे से जुड़े ''अधिभार (Over weight)'' की दोहरी मार भी कम आय वाले देशों पर ही पड़ती है। वैश्विक पहुंच वाली यह दोहरी मार आधुनिक खानपान की आदतों से जुड़ी है। यह आधुनिक खाद्यान्न कम और मध्यम आय वाले देशों के परिवारों को सुरक्षित और स्वस्थ्य खुराक की आपूर्ति को रोकते हैं।''

दुनियाभर में 2.3 अरब बच्चे और युवा अधिभार से प्रभावित हैं। वहीं 15 करोड़ बच्चे अविकसित हैं। हालांकि मध्यम आय वाले देशों में यह मुद्दे व्यक्ति, परिवारों और समुदायों में एक-दूसरे से पारस्परिक हैं। ''कुपोषण के दोहरे भार'' के नाम से मशहूर लांसेट अध्ययन इन पारस्परिकताओं की जांच करता है। इनमें ज़िम्मेदार सामाजिक कारक और खाद्यान्न ढांचे के बदलाव, बॉयोलॉजिकल प्रभाव और कुपोषण से निपटने वाली नीतियों का अध्ययन हैं। 

रिसर्चर ने सर्वे के डाटा को अपने काम के लिए इस्तेमाल किया है। उन्होंने 1990 और 2010 के दशक में मध्य और निम्न आय वाले देशों के डाटा का इस्तेमाल मार झेलने वाले देशों की पहचान के लिए किया है। इसके मुताबिक़, '' 20 फ़ीसदी से ज़्यादा महिलाएं दुबलेपन की शिकार हैं। 20 फ़ीसदी लोग अधिभार से पीड़ित हैं। वहीं 30 फ़ीसदी लोग वेस्टिंग (ऊंचाई की तुलना में कम वजन) से जूझ रहे हैं।''

विश्लेषण के नतीजों से पता चलता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में एक तिहाई से ज्यादा देश कुपोषण की इस दोहरी पारस्परिकता से पीड़ित थे। 1990 के दशक में 123 देशों में से 45 और 2010 के दशक में 126 देशों में से 48 देश इसका शिकार थे। सहारा क्षेत्र के 29, दक्षिण एशिया के सात, पूर्वी एशिया के नौ और प्रशांत महासागर के तीन देश इसमें शामिल थे। 

2010 के दशक में, 1990 की तुलना में 14 निम्न आय वाले देशों में कुपोषण की दोहरी मार की समस्या पैदा हुई। यह ट्रेंड बताते हैं कि ग़रीब देशों में मोटापा बढ़ रहा है, जबकि एक बड़ी आबादी दुबलेपन और बौनेपन जैसी समस्याओं का शिकार है।

पेपर के लेखक पॉपकिन बताते हैं, ''कुपोषण के उभरते मुद्दे उन लोगों की भयावहता बताते हैं, जिनकी ख़राब खुराक से सुरक्षा नहीं है। ग़रीब, न्यूनतम और मध्यम आय वाले देश लोगों के खान-पान, घर-ऑफ़िस में चलाफिरी, यातायात में आवाजाही की आदतों में बड़े परिवर्तन आ रहे हैं। नई पोषण वास्तविकता खाद्यान्न ढांचे से जु़ड़ी हुई है, जिसने वैश्विक स्तर पर प्रसंस्कृत खाद्यान्नों की उपलब्धता करवाई है। यह प्रसंस्कृत खाद्यान्न अधिभार से जुड़े होने के साथ-साथ छोटे बच्चों और शिशुओं पर भी बुरा असर डालते हैं। इनकी वजह से अब ताज़ा सब्ज़ियों और खाद्यान्नों के बाज़ार ख़त्म हो रहे हैं। बड़े सुपरमार्केट बढ़ रहे हैं। इन बदलावों में खाद्यान्न चेन का अधिकार सुपरमार्केट के हाथों में होना और कृषि व्यवसाय से जुड़ी कंपनियों का उभार भी शामिल है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Global Food System Changes Led to Overweight-Malnutrition in Low and Moderate Income Countries

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