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ज्ञानवापी केस: हाई कोर्ट के फ़ैसले से पहले बदले गए जज, सर्वे के बीच नई याचिका दायर

इलाहाबाद हाई कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद के सबसे पुराने वाद में सुनवाई के बाद 28 अगस्त 2023 को फ़ैसला आना था, लेकिन कुछ रोज़ पहले ही न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया का तबादला हो गया।
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फ़ोटो : PTI

उत्तर प्रदेश के बनारस में ज्ञानवापी में ASI सर्वे के बीच डिस्ट्रिक कोर्ट में एक नई याचिका दायर होने और इलाहाबाद हाई कोर्ट में फैसले से कुछ ही रोज़ पहले फिर दोबारा सुनवाई किए जाने से मामला गरमा गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर 12 सितंबर 2023 को इस पर फैसला सुनाएंगे कि जिन मामलों की सुनवाई पूरी हो चुकी है, उसमें फैसला आएगा अथवा नई कोर्ट इस मामले को दोबारा सुनेगी? श्रृंगार गौरी केस की याचिकाकर्ता राखी सिंह की ओर से बनारस के जिला जज डॉ. एके विश्वेश की अदालत से ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने का भी वैज्ञानिक सर्वे कराने की मांग उठाई है, जिस पर कोर्ट 08 सितंबर 2023 सुनवाई करेगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद के सबसे पुराने वाद में सुनवाई के बाद 28 अगस्त 2023 को फैसला आना था, लेकिन कुछ रोज़ पहले ही न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया का तबादला हो गया। मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की एकल पीठ ने इस मामले की फाइल तलब की और उन्होंने फिर 28 अगस्त 2023 को ही इस मामले की सुनवाई शुरू कर दी। यह वह मामला है जिसमें बनारस के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी वाद मित्र की हैसियत से मुकदमा लड़ रहे हैं। इस वाद से जुड़े दो वादकारियों का निधन हो चुका है।

आना था फैसला, शुरू हो गई सुनवाई

ज्ञानवापी मामले में तीन बार जजमेंट रिज़र्व होने के बाद फिर से सुनवाई किए जाने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर मुस्लिम पक्ष ने कड़ा एतराज़ जताते हुए दोबारा सुनवाई नहीं किए जाने की दलील पेश की। मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि पिछले कई सालों में लगभग 75 कार्य दिनों तक इस मामले में सुनवाई हुई। इसी 28 अगस्त 2023 को फैसला आने वाला था। ऐसे में अब इस मामले में फिर से सुनवाई नहीं की जा सकती। हाई कोर्ट अब इस मामले में 12 सितंबर को अपना फैसला सुनाएगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ज्ञानवापी विवाद से जुड़ी पांच याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा है। इनमें से तीन याचिकाएं 1991 में वाराणसी की अदालत में दाखिल किए गए केस की पोषणीयता से जुड़ी हुई हैं। दो अर्जियां ASI के सर्वेक्षण आदेश के खिलाफ हैं। साल 1991 के मुकदमे में विवादित परिसर हिंदुओं को सौंपे जाने और वहां पूजा अर्चना की इजाजत दिए जाने की मांग की गई थी। हाई कोर्ट को मुख्य रूप से यही तय करना है कि वाराणसी की अदालत इस मुकदमे को सुन सकती है या नहीं? इस मामले में 12 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश अहम फैसला सुनाएंगे। पहले इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की अदालत में चल रही थी।

विवादित आकृति के सर्वे के लिए याचिका

ज्ञानवापी मस्जिद में एडवोकेट कमिश्नर सर्वे के दौरान 16 मई 2022 को एक आकृति मिली थी, जिसे हिंदू पक्ष शिवलिंग बता रहा है तो मुस्लिम पक्ष फव्वारा। इस विवाद के तूल पकड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वजू स्थल को सील करते हुए वहां सुरक्षा बलों का कड़ा पहरा बैठा दिया। डिस्ट्रिक कोर्ट ने वजूखाने को छोड़कर मस्जिद के बाकी हिस्सों का सर्वे करने का आदेश दिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बनारस के जिला जज के फैसले पर अपनी सहमति की मुहर लगाई थी।

याचिकाकर्ता राखी सिंह ने एक नई याचिका दायर करते हुए वजूखाने का ASI सर्वे कराने की मांग उठाई है। वह विश्व वैदिक सनातन संघ (वीवीएसएस) की संस्थापक सदस्य हैं। वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कुमार विश्वेश ने चार याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर श्रृंगार गौरी पूजन की याचिका पर सुनवाई के दौरान 21 जुलाई 2023 को ज्ञानवापी परिसर के ASI सर्वे का आदेश दिया था। राखी सिंह के अधिवक्ता अनुपम द्विवेदी ने जिला जज की अदालत में 62 पन्नों की याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने विस्तार से अपना पक्ष रखा है। डिस्ट्रिक कोर्ट ने राखी सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए इस वाद पर सुनवाई के लिए 08 सितंबर की तारीख तय की है।

वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कुमार विश्वेश ने ‘वजूखाना’ क्षेत्र को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर में ASI को रेडार (जीपीआर), खुदाई, डेटिंग आदि तकनीक के जरिए वास्तविक संरचनाओं पता लगाने का आदेश दिया था। पिछले चार अगस्त से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे का काम चल रहा है। चार सितंबर को सर्वे रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया है। बताया जा रहा है कि ज्ञानवापी के सर्वे में अभी और समय लग सकता है और ASI कोर्ट से और समय मांग सकती है।   

इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव ने शिवलिंग के दावों को नकारा

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने न्यूज़क्लिक से कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने विवादित इलाके को सील करने का आदेश दिया है। ऐसे में डिस्ट्रिक कोर्ट याचिका दायर करने का कोई मतलब नहीं है। हमारे अधिवक्ता राखी सिंह की याचिका का अध्ययन कर रहे हैं। ज्ञानवापी परिसर का ASI सर्वे हो रहा है तो वजुखाने को छोड़ दिया जाना ठीक नहीं है। हम राखी सिंह की याचिका का स्वागत करते हैं। उसका भी ASI सर्वे कर लें तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। हम भी जानना चाहते हैं कि ASI  की रिपोर्ट कितनी सच है और कितनी झूठी? अगर फव्वारे को शिवलिंग बताया जाएगा तब हम यह मान लेंगे कि किस तरह का इंसाफ हो रहा है?"

यासीन दावा करते हैं, "हमारे पास इससे जुड़े तमाम दस्तावेज़ हैं जो प्रमाणित करते हैं कि वजूखाना और फव्वारे का निर्माण साल 1937 के बाद हुआ। हम भी उससे जुड़े दस्तावेज़ पेश करेंगे कि फव्वारे का निर्माण कब कराया गया। याचिकाकर्ता जिस आकृति को शिवलिंग बता रहे हैं, वह सही मायने में हमारे वजुखाने का फव्वारा है। हम चाहते हैं कि ASI हमारे फव्वारे का भी सर्वे करे। साथ ही हमें उसे चलाने का मौका भी दे।"

काफी पुराना है यह विवाद

ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी पुराना है। करीब छह सौ साल पहले इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। मुगल काल में बनी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष लगातार यह दावा करता आ रहा है कि आदि विश्वेश्वर महादेव के मंदिर को तोड़कर वहां दूसरा ढांचा खड़ा किया गया। इस विवाद के चलते कई मर्तबा बनारस में झगड़े-फसाद हुए। इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब साल 1919 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई, जिसमें ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी गई। अंग्रेजी हुकूमत ने इस विवाद को कोई खास अहमियत नहीं दी। साल 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व पर फिर बहस तेज़ हो गई। उस समय तीन मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि पूरे परिसर को मस्जिद का हिस्सा घोषित किया जाए। इस सुनवाई के दौरान ज्ञानवापी में नमाज़ अदा करने का अधिकार स्पष्ट रूप से यह कहते हुए दिया गया था कि इस तरह की प्रार्थना परिसर में कहीं और की जा सकती है।

वाराणसी कोर्ट के फैसले को वर्ष 1942 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने 1942 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और हिंदू पक्ष की याचिका खारिज कर दी।

साल 1989 में अयोध्या में रामजन्म भूमि का ताला खुला तो बीजेपी 'अयोध्या, मथुरा, काशी' के नारे से नई सियासी जमीन खोजने लगी। पांच दशक के अंतराल के बाद ज्ञानवापी का मामला फिर सुर्खियों में है। अक्टूबर 1991 में 'स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर' के नाम पर भक्तों ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई है। बताया जाता है कि इस मंदिर को वर्ष 1669 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त किया गया। उन्हें मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। हिंदू पक्ष का तर्क यह है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 ज्ञानवापी मस्जिद पर लागू नहीं होता है, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि पूजा स्थल कानून इस मामले में भी लागू होता है।

21 साल दबा रहा विवाद

साल 1998 से लेकर 2019 तक ज्ञानवापी का केस निष्प्रभावी रहा। दिसंबर 2019 में वाराणसी जिला कोर्ट में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वकील विजय शंकर रस्तोगी ने याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का पुरातत्विक सर्वे कराया जाए। यह याचिका बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक एक महीने बाद दायर की गई थी। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने पूरे ज्ञानवापी परिसर के ASI सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका का विरोध किया। 2020 में याचिकाकर्ता ने फिर से एक याचिका के साथ निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, मंदिर-मस्जिद को लेकर कई बार विवाद हुए हैं लेकिन ये विवाद आज़ादी से पहले के हैं, उसके बाद के नहीं। ज़्यादातर विवाद मस्जिद परिसर के बाहर मंदिर के इलाक़े में नमाज़ पढ़ने को लेकर हुए थे। सबसे अहम विवाद साल 1809 में हुआ था जिसकी वजह से सांप्रदायिक दंगे भी हुए थे।

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के मुताबिक, "साल 1937 में फ़ैसले के तहत मस्जिद का एरिया एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर तय किया गया था, लेकिन साल 1991 में सिर्फ़ मस्जिद के निर्माण क्षेत्र को ही घेरा गया और अब मस्जिद के हिस्से में उतना ही क्षेत्र है। यह कितना है, इसकी कभी नाप-जोख नहीं की गई है। ऐसे भी मौक़े आए कि जुम्मे की नमाज़ और शिवरात्रि एक ही दिन पड़ी, लेकिन तब भी सब कुछ शांतिपूर्वक रहा।"

उल्लेखनीय है कि 18 सितंबर 1991 में बने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। और यदि कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। चूंकि, अयोध्या से जुड़ा मुक़दमा आज़ादी के पहले से अदालत में लंबित था, इसलिए अयोध्या मामले को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया था। हाल के दिनों में ज्ञानवापी से जुड़े मामलों में फिर से तेज़ी आ गई है, जिसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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