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पत्रकारिता: मोटी फ़ीस ऐंठने वाले आईआईएमसी जैसे संस्थान प्लेसमेंट में निकले फिसड्डी

मीडिया जगत में जहाँ तेज़ी से नौकरियां जा रही हैं, वहीं नवोदित पत्रकारों के सम्मुख मीडिया में नई नौकरियां पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
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दुनिया को बदलने का सपना लेकर पत्रकारिता की पढ़ाई करने आए नवोदित पत्रकारों के सम्मुख कोरोना महामारी ने ऐसा संकट पैदा कर दिया है कि उन्हें आगे का भविष्य अंधकार में दिखने लगा है। मीडिया जगत में जहाँ तेजी से नौकरियां जा रही हैं वहीं नवोदित पत्रकारों के सम्मुख मीडिया में नई नौकरियां पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ ही पत्रकारों को भी योद्धा कहा और आग्रह किया था कि ‘आप अपने व्यवसाय, उद्योग में साथ काम करने वाले लोगों के प्रति संवेदना रखें और किसी को नौकरी से न निकालें’। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, कोरोना महामारी के दौरान मार्च से ही पत्रकारों की नौकरियां जाना शुरू हो गई। कई मीडिया संस्थानों ने बड़े स्तर पर पत्रकारों को नौकरियों से निकाला वहीं कुछ संस्थानों से बड़ी संख्या में पत्रकार बिना वेतन छुट्टी पर भेजे गए।

देश भर में नौकरियां जाने से लोग तेजी से अवसादग्रस्त हो रहे हैं और आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। दूसरी तरफ नवोदित पत्रकार हैं, जिन्होंने फ़िलहाल शोषण मुक्त समाज बनाने का सपना देखा है, उन्हें इस संकट में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? इस रिपोर्ट में हमने देश के विभिन्न पत्रकारिता शिक्षण संस्थानों से इसी सत्र में पढ़ाई पूरी कर चुके छात्रों से उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जानने की कोशिश की।

फ़ीस के रूप में मोटी रकम

भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी), भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा संचालित एक स्वायत्तशासी संस्थान है। देश में यह संस्थान पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में जाना जाता है। आईआईएमसी का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके पांच क्षेत्रीय कैम्पस भी हैं। संस्थान हिंदी पत्रकारिता, अंग्रेजी पत्रकारिता, रेडियो और टेलीविजन पत्रकारिता, विज्ञापन और जनसंपर्क में सनात्कोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम कराता है।

आईआईएमसी पर आए दिन मोटी फीस लेने के कारण सवाल उठते रहे हैं। प्रॉस्पेक्टस के अनुसार आईआईएमसी में 2019-20 सत्र में कुल 476 छात्र/छात्राएं अध्ययनरत हैं जिसमें से 274 नई दिल्ली कैम्पस में अध्ययनरत हैं। भारत के सुदूर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले छात्र पत्रकारिता की पढ़ाई करने आते हैं।

आईआईएमसी के छात्रों का मानना है कि आईआईएमसी की फीस में तब अप्रत्याशित रूप से वृद्धि आई जब 2008-09 में एग्जिक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग हुई और उस मीटिंग में तय किया गया कि फीस में 20 फीसदी की वृद्धि के साथ ही हर वर्ष की कुल फीस में दस फीसदी की वृद्धि होगी।

आईआईएमसी में दस माह का डिप्लोमा कोर्स होता है। 2019-20 प्रॉस्पेक्टस के अनुसार, अंग्रेजी एवं हिंदी पत्रकारिता के विद्यार्थी ट्यूशन फीस के तौर पर 95500 रुपए का और उर्दू पत्रकारिता का विद्यार्थी 55000 रूपए का भुगतान करते हैं। विज्ञापन एवं पीआर की फीस 1 लाख 31 हजार पांच सौ रुपए है वहीं अंग्रेजी एवं हिंदी भाषा में चलने वाले पाठ्यक्रम रेडियो और टेलीविजन की फीस 1 लाख 68 हजार पांच सौ रुपए है।

आईआईएमसी में प्रवेश प्राप्त शत-प्रतिशत छात्रों को छात्रावास नहीं मिलता है। प्रवेश के बाद प्रति माह छात्रों को छात्रावास और मेस के लिए 4750 और छात्राओं को 6500 रुपए देने होते हैं। छात्रों के लिए छात्रावास में सीमित सुविधाएं हैं वहीं जिन छात्रों को छात्रावास नहीं मिलता उन्हें आसपास के क्षेत्रों में किराए पर कमरा लेकर रहना पड़ता है। अमूमन हर सत्र के विद्यार्थी फीस वृद्धि के खिलाफ आवाज उठाते हुए देखे जाते हैं।

प्रभाकर(25) हिंदी पत्रकारिता में 2019-20 सत्र के छात्र हैं और फीस वृद्धि के खिलाफ हुए आंदोलन में शुरू से शामिल रहे हैं। प्रभाकर फीस वृद्धि के लिए आईआईएमसी प्रशासन को दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि हम लोगों के आंदोलन के बाद एग्जिक्यूटिव काउंसिल की बैठक हुई, मीटिंग में कहा गया कि प्रति वर्ष फीस में दस फीसदी की हो रही वृद्धि बहुत ज्यादा होती जा रही है, इसलिए इस स्ट्रक्चर का रिव्यू होना चाहिए। आंदोलन के दबाव में काउंसिल की तरफ से यह बात कह दी गई लेकिन इनका मकसद था कुछ नहीं बदलना है जस का तस रखना है पावर का मिस यूज करना है, तो ऐसा इन्होंने किया। कमेटी भी बना ली, जांच भी हो गई लेकिन अंततः फीस वही रखी गई।

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कितनी हक़ीक़त कितना फ़साना

आईआईएमसी में फीस के रूप में मोटी रकम होने के बावज़ूद हर वर्ष बड़ी संख्या में छात्र आईआईएमसी से पत्रकारिता करने आते हैं। 2019-20 सत्र में कुल छात्रों की संख्या 476 है। आईआईएमसी की ऑफिसियल वेबसाइट के अनुसार सभी सीटें फुल हैं लेकिन कुछ छात्रों का कहना है कि एससी/एसटी की लगभग पंद्रह से अधिक सीटें खाली हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण छात्र महंगी फीस मानते हैं। हमने आईआईएमसी प्रशासन से फोन कर एससी/एसटी की खाली सीटों के बीरे में जानने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

वहीं फीस के रूप में मोटी रकम देने को तैयार छात्र यह उम्मीद पाल बैठते हैं कि आईआईएमसी से पत्रकारिता करने के बाद उनका प्लेसमेंट किसी अच्छे मीडिया संस्थान में होगा। लेकिन 2019-20 सत्र में दिल्ली कैम्पस से अभी तक कुल 274 छात्रों में बमुश्किल "पांच फीसदी" छात्रों का प्लेसमेंट हुआ है। अनपेड इंटर्न के रूप में प्लेसमेंट प्राप्त कुछ छात्रों ने सप्ताह भर के अंदर इंटर्न छोड़ भी दिया है। आधिकारिक तौर पर प्लेसमेंट प्रक्रिया बंद की जा चुकी है और नए सत्र 2020-21 में प्रवेश सम्बंधी अधिसूचना जारी हो चुकी है। हमने आईआईएमसी प्लेसमेंट हेड से प्लेसमेंट के सवाल को लेकर बात की लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।

शिवम भारद्वाज (23), हिंदी पत्रकारिता में 2019-20 सत्र के छात्र हैं। शिवम बरेली से हैं, आईआईएमसी के बारे में बड़ी-बड़ी बातें सुनकर रिश्तेदारों से उधार पैसे लेकर प्रवेश लिया था लेकिन शिवम अब निराश हैं। शिवम बताते हैं कि हर बात में आईआईएमसी वाले अपने को एक नम्बर बताते हैं कि हम नम्बर वन संस्थान हैं, प्लेसमेंट के मामले में भी और एजुकेशन क्वालिटी में भी। इसी वजह से यहां पढ़ने आ गए। सोचा था अच्छी पढ़ाई करने को मिलेगी, सबसे अच्छी पत्रकारिता की ट्रेनिंग मिलेगी और आईआईएमसी में पढ़ने के बाद किसी अच्छी जगह जॉब करने का मौका मिलेगा। लेकिन आईआईएमसी आने के बाद हर तरफ से निराशा ही मिली।

देवेश मिश्रा (21), हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं। इस समय अनपेड इंटर्न कर रहे हैं। दुबारा दिल्ली जाने से डर रहे हैं क्योंकि दिल्ली में रहने के लिए एक स्थायी नौकरी की जरूरत है। देवेश कहते हैं कि हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि जैसे कोई रेमंड का चमचमाता सूट पहना कर नीचे टूटा हुआ चप्पल पहना दिया हो। आईआईएमसी से पत्रकारिता की डिग्री लिया, सोचा था इतने बड़े संस्थान से निकलूंगा तो कहीं अच्छी जगह जॉब मिलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बार आईआईएमसी में प्लेसमेंट के लिए ऐसी-ऐसी कम्पनियां आईं जिसका हमने कभी नाम ही नहीं सुना। हिंदी पत्रकारिता के छात्रों के लिए दो कम्पनियां आई थी जिनका हम नाम सुने हैं, पीआईबी और इनशार्ट। वहीं उर्दू पाठ्यक्रम के लिए एक भी कम्पनी नहीं आई। उर्दू-हिंदी विभाग से एक भी छात्र का प्लेसमेंट नहीं हुआ।

ऑनलाइन परीक्षा और प्लेसमेंट का सवाल

कोरोना संक्रमण के चलते 24 मार्च से हुए लॉकडाउन के बाद से देश भर में शिक्षण संस्थाओं को अनिश्चितत काल के लिए बंद कर दिया गया। यही वह समय था जब आईआईएमसी के छात्रों की परीक्षाएं और प्लेसमेंट होना था। छात्रों का कहना है कि कोटा पूर्ति के लिए उनकी कुछ ऑनलाइन कक्षाएं चलीं। लेकिन संसाधन और इंटरनेट के अभाव में सभी छात्र इसमें शामिल नहीं हो सके। ऑनलाइन कक्षाओं के उपरांत ही संस्थान द्वारा ऑनलाइन प्लेसमेंट और परीक्षाएं आयोजित कराई गईं।

आस्था सव्यसाची (25), ने B-Tec किया है, छह लाख के पैकेज की नौकरी छोड़ कर 2019-20 सत्र में आईआईएमसी में प्रवेश लिया था। आस्था मानती हैं जो सोच कर वे आई थीं, आईआईएमसी में वह नहीं मिला। अब वे निराश हैं। आस्था बताती हैं कि यदि मैं आज नौकरी कर रही होती तो लगभग एक लाख सैलरी होती। मैं आईआईएमसी इतने पैकेज की उम्मीद से नहीं आई थी, उम्मीद थी पढ़ाई अच्छी होगी, लेकिन अप टू द मार्क पढ़ाई नहीं मिली। कभी-कभी तो लगता है मुझे आईआईएमसी की जगह जामिया ही चूज करना चाहिए था, मेरा जामिया में भी हुआ था।

आस्था आगे कहती हैं कि ऐसा कहा जाता है कि भारत का सबसे अच्छा पत्रकारिता संस्थान आईआईएमसी है जो कि मुझे नहीं लगता, क्योंकि यदि ऐसा होता तो इन्श्योर करते कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को प्लेसमेंट मिले। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है कॉलेज में अभी भी दो-दो, पांच-पांच हजार महीने की सैलरी देने वाली कम्पनी आ रही है। जो प्लेसमेंट का प्रॉसेस था वह ऑनलाइन था जबकि हमें पता है देश में इंटरनेट कनेक्शन कैसा है, बहुत सारे बच्चे ऑनलाइन प्लेसमेंट में नहीं बैठे, तो उनके पास तो अवसर ही खत्म हो गया।

अमन मरांडी (26), झारखंड, धनबाद के आदिवासी समाज से हैं। अमन का घर ग्रामीण इलाके में है और पिता छोटी जोत के किसान हैं। अमन ने पत्रकारिता की पढ़ाई इसलिए चुनी ताकि वे जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़े हो सकें। लेकिन ऑनलाइन प्लेसमेंट की ऐसी गाज गिरी कि सारी उम्मीद पर पानी फिर गया। अमन बताते हैं कि लॉकडाउन में मैं घर पर हूँ। आईआईएमसी का इस बार ऑनलाइन प्लेसमेंट हो रहा था। मेरे यहां नेटवर्क की समस्या रहती है इसलिए मैं प्लेसमेंट में नहीं बैठ पाया। आईआईएमसी वाले बोल रहे थे कि ऑफलाइन प्लेसमेंट भी होगा, यदि ऑफलाइन होगा तो उसमें बैठूंगा। नहीं होगा तो आगे देखूँगा। ऑनलाइन परीक्षा के सवाल पर अमन ने कहा कि उसमें भी समस्या हुई लेकिन जैसे-तैसे हो गया।

क्षेत्रीय पत्रकारिता संस्थानों का हाल

आईआईएमसी ही नहीं अन्य पत्रकारिता संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा जैसे पत्रकारिता संस्थानों की कमोबेश यही स्थिति है। पत्रकारिता के वेलस्किल्ड छात्र अवसादग्रस्त हैं। उनके सामने कोरोना महामारी से बड़ी चुनौती कहीं नौकरी पाना हो चुका है। क्षेत्रीय संस्थानों में एक भी ऐसी कम्पनियां प्लेसमेंट के उद्देश्य से नहीं गईं जिनके बारे में छात्र/छात्राओं को पता हो।

रुचि पांडेय (23), हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2018-20 सत्र में एमए की छात्रा हैं। रुचि के पास मीडिया में काम करने का दो साल का अनुभव है। लेकिन वे मानती हैं कि संस्थान में इस लायक पत्रकारिता की पढ़ाई नहीं होती कि यहां से निकलने के बाद प्लेसमेंट मिल जाए। रुचि बताती हैं कि मुझे याद नहीं कि दो साल एमए करने के दौरान कोई मीडिया कम्पनी कैम्पस में आई हो या किसी अनुभवी पत्रकार को बुलाया गया हो। विभाग में इस तरह से पत्रकारिता के छात्रों को ट्रेंड नहीं किया जाता कि उन्हें पता चले फील्ड में किस तरह से काम होता है और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा छात्रों का उद्देश्य एमफिल-पीएचडी करना है लेकिन सबको प्रवेश तो मिलेगा नहीं इसके बाद उन्हें मीडिया इंडस्ट्री की तरफ देखना होगा। रुचि आगे व्यंगात्मक अंदाज में कहती हैं कि मैं इस सत्र में उत्तीर्ण होने वाले छात्रों के प्लेसमेंट के विषय में क्या ही कहूँ अभी तक हमारे संस्थान से निकली पिछली बैच में ही किसी को प्लेसमेंट नहीं मिला है।

आईआईएमसी में हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम निदेशक आनंद प्रधान यह मानते हैं कि इस वर्ष आईआईएमसी में प्लेसमेंट अच्छा नहीं हुआ है लेकिन वे इस संकट को पूर्णतयः कोरोना महामारी का संकट न मानकर एक साल से जारी आर्थिक गिरावट को मुख्य वजह मानते हैं। आनंद प्रधान कहते हैं कि मीडिया इंडस्ट्री की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और इसके कारण वो रिक्रूटमेंट (भर्ती) नहीं कर रहे हैं। जो लोग जॉब कर रहे हैं उनकी सैलरी कट हो रही है। उनकी नौकरियां जा रही हैं। संकट गहरा है जबतक अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं आएगा तबतक मीडिया इंडस्ट्री में सुधार नहीं आएगा। जबतक सुधार नहीं आएगा वे रिक्रूटमेंट नहीं करेंगे।

वे आगे कहते हैं कि मुझे लगता है यह कठिन समय है लेकिन मैं अपने विद्यार्थियों से पिछले एक साल से कह रहा हूँ कि उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के लिए छोटे-छोटे प्रकल्प और अपने-अपने प्रोजेक्ट शुरू करना चाहिए। पत्रकारिता करने के लिए कम्युनिटी जर्नलिज़्म का इस्तेमाल कर सकते हैं, यूट्यूब चैनल शुरू कर सकते हैं। पांच-सात लोग मिलकर कुछ नया प्रयोग कर सकते हैं। हो सकता है क्लिक कर जाए, बहुत सारे ऐसे प्रयोग हुए हैं। इस तरह के बहुत छोटे-छोटे प्रकल्पों की गुंजाइश है।

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