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फ़ीस बढ़ोतरी के खिलाफ FTII में भूख हड़ताल, IIMC छात्रों का आश्वासन के बाद धरना समाप्त

IIMC में प्रशासन द्वारा छात्रों को आश्वासन दिया गया कि 2 जनवरी 2020 को कार्यकारिणी परिषद् की बैठक होगी, जिसमें इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा। प्रशासन की ओर से पहले से जारी फीस सर्कुलर रद्द कर दिया गया है।
IIMC

देश में मंदी का असर है तो क्या सरकार इस मंदी में घाटे की भरपाई छात्रों के फीस के पैसों से करने वाली है? क्या देश के प्रतिष्ठित संस्थान अब धन उगाई का माध्यम बनने की ओर हैं? क्या समाज में आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति से सरकार शिक्षा का अधिकार छीन रही है? क्या फीस बढ़ोतरी निज़ीकरण की ओर एक कदम है? ये कुछ सवाल हैं जो आज देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के हाल को देखकर सभी के ज़हन में उठना लाज़मी है।

फीस बढ़ोतरी के विरोध में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से लेकर बनारस के आईआईटी बीएचयू तक छात्र सड़कों उतरे। एक ओर जहां भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान के छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्रों का आज बीते 14 दिनों से चला आ रहा प्रदर्शन प्रशासन के आश्वासन के बाद समाप्त हुआ है।

आज बात दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) और पुणे के भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान (एफटीआईआई) की। यह वही संस्थान है जहां से मीडिया और फिल्म जगत के बड़े चेहरे पढ़कर निकले हैं। लेकिन आज छात्र यहां बढ़ती फीस के खिलाफ संघर्षरत हैं। दोनों संस्थान स्वायत्त संस्था हैं और भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सानिध्य में चलते हैं। इनकी लगभग 70 प्रतिशत फंडिंग सरकार द्वारा ही की जाती है। अब जाहिर है फीस बढ़ोतरी के फैसले की जिम्मेदारी भी सरकार की ही होगी।

आईआईएमसी को पत्रकारिता का मक्का भी कहा जाता है। इसकी एक खास वजह भी है देश के बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों के संपादक इसी संस्थान के छात्र रहे हैं। लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया कवरेज से महरूम छात्र यहां बीते 14 दिनों से धरने पर बैठे थे, कई सवाल उठा रहे थे लेकिन आज जाकर प्रशासन ने उनकी मांगों को मानते हुए कार्रवाई का आश्वासन दिया है।

गौरतलब है कि आईआईएमसी में प्रदर्शन कर रहे छात्रों की ओर से 16 दिसंबर को एक प्रेस रिलीज जारी की गई थी, जिसमें छात्रों ने कहा था, ‘हम फीस वृद्धि के खिलाफ पिछले 14 दिनों से लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन प्रशासन का रवैया हमारी ओर गंभीर नहीं है। अगर प्रशासन अगले 24 घंटे में हमसे बातचीत नहीं करती है तो हमने विरोध को तेज करते हुए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने का फैसला किया है।’

इसके बाद आज 17 दिसंबर सुबह से छात्र भूख हड़ताल पर बैठे थे। लेकिन दोपहर बाद प्रशासन द्वारा छात्रों को आश्वासन दिया गया कि 2 जनवरी 2020 को कार्यकारिणी परिषद् की बैठक होगी, जिसमें इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा। प्रशासन की ओर से पहले से जारी फीस सर्कुलर भी रद्द कर दिया गया है। इसके बाद छात्रों ने फिलहाल अपना प्रदर्शन समाप्त कर दिया है।
कितनी फीस बढ़ी

आईआईएमसी ने इस साल रेडियो और टीवी कोर्स की फीस 1.68 लाख रुपये कर दी है, जो पिछले साल 1.45 लाख रुपये थी। वहीं उर्दू पत्रकारिता की फीस 55 हजार रुपये हो गई है। 2015 में जब इस कोर्स की शुरुआत हुई थी, तब फीस कुल 15 हजार रुपये थी। हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता कि फीस 95,000 है।

भूख हड़ताल पर बैठे हिंदी पत्रकारिता के छात्र देवेश ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘हम 3 दिसंबर से शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। आज हमने परीक्षाएं भी दी हैं और इसके साथ ही हम अनिश्चितकालिन भूख हड़ताल पर बैठे थे। पहले प्रशासन फीस स्ट्रक्चर और एक्सीक्यूटीव काउंसील की बैठक बुलाने पर ढुलमूल रवैया अपना रहा था। आज हमें आश्वासन मिला है। हमने इस संबंध में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भी पत्र लिखा था लेकिन उस पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
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आईआईएमसी ने आठ दिसंबर को एक बयान जारी कर कहा था कि इस संबंध में संस्थान छात्रों से बात कर रहा है। एस संबंध में एक कमेटी का भी गठन भी किया गया है। 15 दिंसबर तक छात्रों से इंतजार की बात कही गई थी। यह भी कहा गया था कि आईआईएमसी एक वित्त पोषित संस्थान नहीं है साथ ही अपडेटेड सुविधाओं का भी हवाला दिया गया है।

इस संबंध में देवेश का कहते हैं, संस्थान की वेबसाइट के अनुसार आईआईएमसी भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित है। अपडेट सुविधाओं के नाम पर संस्थान ने कोरा झूठ बोला है। हम 200-250 छात्रों के बीच केवल 7 से 8 एडिटिंग के लिए मैक के सिस्टम हैं वो भी पुराने, कैमरे की संख्या भी लगभग इतनी ही है। लाइब्रेरी में पुरानी किताबे हैं, पेज डिजाइन के लिए पुराने साफ्टवेयर और कंप्यूटर सिस्टम हैं।

प्रदर्शन में शामिल छात्र रंजन राज ने बताया, ‘हमरा प्रदर्शन शांतिपूर्ण है। हम कोई नारा नहीं लगा रहे थे, न ही संस्थान का माहौल खराब कर रहे थे। हम नियमित कक्षाओं में जा रहे हैं और आज से परीक्षाएं भी दे रहे हैं। हमारी मांग संस्थान प्रशासन ने फिलहाल मान ली है और आपातकालिन कार्यकारिणी परिषद् की बैठक बुलाई गई है। साथ ही पहले से जारी फीस सर्रकुलर को भी रद्द कर दिया है।

वहीं, पुणे स्थित भारतीय फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के छात्रों ने भी 16 दिसंबर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। एफटीआईआई स्टूडेंट्स एसोसिएशन की ओर से देर रात जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों और वार्षिक संयुक्त प्रवेश परीक्षा की फीस में पिछले कई वर्षों से वृद्धि हुई है। जिसके खिलाफ छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ रहे हैं।

एफटीआईआई छात्र एसोसिएशन के अध्यक्ष वी. अदिथ के नेतृत्व में छात्रों ने मांग की है कि 2008 में एफटीआईआई गवर्निंग काउंसिल द्वारा लिए गए 10 फीसदी शुल्क वृद्धि के फैसले को निरस्त किया जाए और जेईटी (संयुक्त प्रवेश परीक्षा) 2020 तक प्रवेश पर रोक लगाई जाए।
एफटीआईआई छात्रों का कहना है कि देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो संस्‍थान में दाखिला चाहते हैं, लेकिन फीस बढ़ोतरी के कारण वह ऐसा करने में असमर्थ होंगे। फीस बढ़ोतरी की इस गति को रोकना होगा। फीस बढ़ोतरी को लेकर छात्र पिछले तीन साल से विरोध कर रहे हैं। लेकिन कोई सुनवाई न होने के कारण अब उन्हें भूख हड़ताल करनी पड़ रही है।

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एफटीआईआई के छात्र राहुल सिंह ने कहा, शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के शुल्क 2013 के बाद से हर साल 10 प्रतिशत बढ़ी हैं। ये क्यों लगातार बढ़ती जा रही है, हमारी समझ से परे है। एफटीआईआई के छात्र पिछले चार वर्षों से इस मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं।

एकेडमिक काउंसिल में इस मुद्दे को प्रशासन कोई तवज्जों नहीं दे रहा है। प्रवेश परीक्षा की फीस 10,000 रुपये कर दी गई है और ट्यूशन फीस सालाना 1,18,323 रुपये कर दी गई है। हमारा मानना है कि इस अनुचित फीस बढ़ोतरी के खिलाफ एक मजबूत रूख अपनाया जाना चाहिए क्योंकि देश भर में ये बढ़ोतरी कई लोगों को इस प्रमुख शिक्षा से वंचित कर रही है।

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