किसान आंदोलन: कुछ मुद्दों पर सहमति के बाद किसान का हुआ अंतिम संस्कार, 4 सितंबर को फिर होगी वार्ता

21 अगस्त को पुलिस हिंसा मे मारे गए किसान प्रीतम सिंह का कल 25 अगस्त को आखिरकार अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान संगरूर जिले के लौंगवाल मे बड़ी संख्या मे किसान जुटे और उन्हे अंतिम विदाई दी। पोस्टमार्टम के बाद पटियाला से उनका शव एक फूलों से सजी एंबुलेंस से एक बड़े काफिले के साथ संगररू पहुंचा जहां पहले उनका शव अनाज मंडी लाया गया। वहां पहले से किसान यूनियनों के बड़े नेता और बड़ी संख्या मे हरियाणा पंजाब के किसान जुटे हुए थे।
किसान नेताओ ने इसे शहादत कहा और सभी मे पंजाब सरकार को लेकर काफी गुस्सा दिखा।
हालांकि आपको बता दें सरकार ने किसान संगठनों की लगभग सभी मांगों से सहमति जताई है। मृत किसान के परिवार को दस लाख का मुआवजा दिया और उनके सभी कर्ज माफ करने और परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी भी देने की बात कही।
भारतीय किसान यूनियन एकता आजाद के अध्यक्ष जसविंदर सिंह लोंगोवाल ने कहा सरकार ने 21 तारीख के मामले मे हमारी मांग मानी है। जबकि 22 तारीख के चंडीगढ़ कूच के मसले अभी भी बचे हैं। इसके लिए सरकार ने हम से वादा किया है की 4 सितंबर को वो हमारी मीटिंग केंद्र सरकार से कराएगी। उस दिन हमारी मांगे नहीं मानी जाती तो हम एक बार फिर बड़ी कॉल देंगे। जिसमे सभी किसान जत्थे बन्दियां साथ होंगी। सरकार को लग रहा है जैसे दिल्ली के आंदोलन के बाद संयुक्त किसान मोर्चे मे बिखराव आ गया था वैसा ही अब होगा। लेकिन 21 तारीख की घटना के बाद सभी किसान संगठन एकजुट हो गए और सभी यहां शहीद किसान सरदार प्रीतम सिंह को अंतिम विदाई देने आए हैं।
जसविंदर सिंह ने पंजाब सरकार को लेकर कहा कि भगवंत मान सरकार के रवैये ने साबित कर दिया कि वह किसान विरोधी है। भले सरकार व प्रशासन ने किसानों की मांग को स्वीकार कर लिया लेकिन इस अत्याचार को किसान भूलेंगे नहीं। इन सरकारों की पार्टियां अलग अलग हैं लेकिन इनकी किसानों को लेकर नीति एक ही है।
प्रीतम सिंह को याद करते हुए उन्होंने कहा वो एक पढे़ लिखे किसान नेता थे। वो हर आंदोलन मे आते थे बल्कि अपने गांवों मे लगातार किसानों के बीच काम करते थे। ये परिवार का तो नुकसान है ही। लेकिन ये किसान यूनियन और किसान आंदोलन के लिए बहुत बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई संभव नहीं है।
वो कहते हैं पंजाब सरकार ने किसानों पर हमला किया और इस बेरहम कारवाई का उनके पास कोई जबाब नहीं है। हमारा आंदोलन 22 तारीख को चंडीगढ़ मे केंद्र सरकार के खिलाफ था तो 21 को ला एण्ड ऑर्डर का सवाल कहा से आया? पंजाब पुलिस हरियाणा के साथ मिलकर 21 की सुबह से ही किसान नेताओं को उठाने क्यों लगी? इसके विरोध मे पंजाब के कई जिलों मे किसानों ने टोल नाके जाम किए तो फिर मुख्यमंत्री के जिले संगरूर मे किसानों को नेशनल हाइवे पर जाने से क्यों रोक? संगरूर मे किसानों पर 21 को जो बेरहम हमला हुआ और उसी हमले मे किसान प्रीतम सिंह की हत्या हुई है। इसकी जिम्मेदार पंजाब पुलिस है। किसानों ने ये सभी सवाल प्रशासन से बातचीत मे उठाए जिसका प्रशासन कोई जबाब नहीं दे सका।
इसी तरह हरियाणा सरकार ने भी किसानों पर पहले बल प्रयोग किया और उसके बाद उनसे वार्ता की। बाद में सरकार उनकी सभी मांगों को मानने को तैयार हो गई।
चंडीगढ़ की मीटिंग में शामिल भारतीय किसान यूनियन (भगत सिंह) के अध्यक्ष अमरजीत सिंह मोहरी ने कहा था, “हरियाणा प्रशासन के साथ कई मुद्दों पर हमारी चर्चा हुई। केंद्र सरकार के साथ 4 सितंबर को हमारी मीटिंग तय हुई है। बांध से लेकर बाढ़ ग्रस्त इलाक़ों में उचित प्रबंधन को लेकर भी हमारी सहमति बनी है।”
उन्होंने बताया था कि खेतों मे जो बड़ी मात्रा मे बाढ़ के साथ रेत आई उसके खनन को लेकर कोई कारवाई नहीं होगी। किसान उसका खनन कर सकेगा। जिसका 40% मुनाफा किसान को और बाकी 60% मे खनन कंपनी और सरकार का हिस्सा होगा। इसी तरह मकानों और पशु धन के नुकसान पर सहमति बनी।
अंबाला मे एक किसान रवींद्र के टांग कटने का मामला भी है। उसके इलाज का पूरा खर्च समेत उसे पांच लाख की आर्थिक मदद और एक नौकरी का वादा भी था। इस बारे में चंडीगढ़ मे हरियाणा सरकार और किसान यूनियन नेताओ की बैठक बुधवार 24 अगस्त को हुई थी। जिसमे इस काम के लिए अंबाला के डीसी को अधिकृत किया गया था। हालांकि किसान यूनियन का कहना है प्रशासन अभी भी इस मसले पर टाल मटोल कर रहा है। अंबाला के अनाज मंडी मे भारतीय किसान यूनियन भगत सिंह और हरियाणा के अन्य किसान संगठनों ने धरना लगाया हुआ है। भारतीय किसान यूनियन भगत सिंह का कहना है कोई भी अधिकारी इस नौजवान रवींद्र को उचित मुआवजे और नौकरी के सवाल पर खुलकर जबाब नहीं दे रहा है और न ही इसकी प्रक्रिया शुरू कर रहा है। हम सरकार को चेतवानी देते है कि वो जल्द से जल्द इस मसले का हल करे नहीं तो हम एक बार फिर बड़ा आंदोलन करेंगे।
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