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LGBTQ+ की मांग : ''समाज बस ये मान ले कि हम भी हैं''

''हमें Be yourself सिखाया जाता है। अगर आप उसे ही फॉलो नहीं कर पाते, या आप जो हो वो नहीं दिखा पा रहे हो तो अंदर से एक घुटन होती है।''
LGBTQ

दिल्ली क्वीयर प्राइड 2023 (Delhi Queer Pride 2023) के मौक़े पर स्टेज पर खड़ी आरती मल्होत्रा ने अपने बेटे की तरफ से जब ''हैप्पी प्राइड'' कहा तो उनके जवाब में उठी एक आवाज़ जैसे आसमान तक जाने को बेताब दिखी। बेहद इमोशनल मैसेज के साथ आरती ने अपने बेटे को याद किया और जैसे ही वो स्टेज से नीचे उतरीं उन्हें गले लगाने वालों की भीड़ लग गई, कई टीनएज बच्चे उन्हें गले लगाकर रोते दिखाई दिए। तो कई दूर से खड़े हुए सिर्फ उन्हें देख रहे थे और उनकी आंखों से गिरते आंसू जैसे बिन बोले आरती के दुख से ख़ुद को कनेक्ट कर रहे थे।

आरती मल्होत्रा ने स्टेज पर कहा कि ''अब और आरवी और प्रांशु को नहीं खो सकते''। आरवी और प्रांशु दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं। आरवी मल्होत्रा ने फरवरी 2022 में अपनी जान दे दी थी, जबकि प्रांशु ने हाल ही में ये क़दम उठाया। इसे इत्तेफाक कहा जा सकता है कि दोनों 16 साल के थे और 10वीं में पढ़ रहे थे। इन दोनों को बुली और होमोफोबिया का शिकार होना पड़ा जबकि आरती मल्होत्रा ने हमें बताया कि उनके मासूम बेटे ने तो और भी बहुत कुछ सहा था। ये दोनों उम्र की उस दहलीज पर खड़े थे जिसे बेहद नाजुक कहा जा सकता है। हर बच्चे के लिए ये उम्र का वो पड़ाव होता है जब वो शारीरिक और मानसिक बदलाव की गुत्थी को सुलझाने में उलझे होते हैं। जहां एक तरफ करियर में सही रास्ते को चुनने का दबाव होता है वहीं ख़ुद से जुड़े सवालों के भी जवाब की तलाश होती है।

imageदिल्ली क्वीयर प्राइड 2023 में शामिल युवक

पर ब्लैक एंड व्हाइट में देखने वालों से जुदा दुनिया भर में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके लिए ये दुनिया सतरंगी है। और 26 नवंबर की शाम जंतर-मंतर पर मानो इंद्रधनुष ज़मीन पर उतर आया हो, इंद्रधनुष में तो सात ही रंग होते हैं लेकिन यहां तो जैसे दुनिया के सभी रंग तैर रहे थे। मौक़ा था दिल्ली क्वीयर प्राइड 2023 (Delhi Queer Pride 2023) का। बाराखंभा से शुरू हुई ये परेड जंतर-मंतर तक पहुंची, दिल्ली क्वीयर प्राइड की वॉलिंटियर में से एक नूर इनायत के मुताबिक इस परेड में हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया।

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''Queer movement दुनियाभर में intersexual movement है''

LGBTQ+ समुदाय की इस परेड में ज़्यादातर लोगों ने पहचान, प्यार और कानूनी अधिकारों की बात की। नूर इनायत कहती हैं कि ''इस प्राइड परेड का मैसेज है इक्वालिटी, हर इंसान बराबर है, कोई क्वीयर (Queer) हो या कोई स्ट्रेट (straight) लेकिन उनका ख़ून एक ही रंग का है, तो हक समान क्यों ना मिले? Queer movement दुनियाभर में intersexual movement है, क्योंकि किसी इंसान की पहचान उनके queerness से तो नहीं हो सकती''

कौन होते हैं Queer?

निखिल आसान शब्दों में बताने की कोशिश करते हैं कि कौन होते हैं क्वीयर। वे कहते हैं, ''हिंदी में हम एक शब्द इस्तेमाल करते हैं समलैंगिक जिन्हें अपने ही जैसे लोग पसंद आते हैं, आदमी को आदमी और इसी तरह औरत को औरत। पर हम ये भी मानते हैं कि आदमी और औरत के अलावा इंसान अपने आपको बहुत अलग तरह से आइडेंटिफाई कर सकता है।'' वे आगे आज़ादी से जीने की बात करते हुए कहते हैं कि ''हम जिसे प्यार करना चाहते हैं उससे करेंगे, इज्जत से रहेंगे, ख़ुशी से रखेंगे, हमारा भी सम्मान किया जाए।''

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दिल्ली क्वीयर प्राइड 2023 की शुरुआत साल 2008 में हुई थी और हर साल इसमें हिस्सा लेने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। हमने नूर इनायत से पूछा कि क्या इस तरह की प्राइड परेड का फायदा होता है। इसके जवाब में वे कहती हैं कि समाज को और देश की अदालतों को लगता है कि हमारी संख्या कम है जबकि ऐसा नहीं है। वे कहती हैं कि ''आप देख लीजिए हज़ारों लोग इस प्राइड में शामिल हुए थे और ये वो लोग थे जो घर से बाहर निकल पाए, और जब तक आप लोगों को सड़कों पर नहीं देखेंगे तब तक आपको पता नहीं चलेगा कि कितनी बड़ी संख्या है।''

होमोफोबिक कमेंट का शिकार हुआ प्रांशु!

इस प्राइड परेड में आरवी और प्रांशु के लिए इंसाफ की मांग करते हुए कई पोस्टर दिखे। आख़िर कौन थे ये दोनों? मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के 16 साल के क्विर (Queer) प्रांशु ने 21 नवंबर को सुसाइड कर लिया था। प्रांशु के इंस्टाग्राम हैंडल के मुताबिक वो एक मेकअप आर्टिस्ट था जिसने ख़ुद से ये हुनर सीखा था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिवाली के दिन प्रांशु ने एक ट्रांसफॉर्मेशन वीडियो पोस्ट किया था लेकिन उस पोस्ट पर उसे बुली किया गया, होमोफोबिक कमेंट किए गए थे।

बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ रही एक मां

वहीं फरीदाबाद के Queer छात्र आरवी मल्होत्रा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। आरवी मल्होत्रा भी 16 साल का था और फरीदाबाद के नामी स्कूल में 10वीं का छात्र था। साल 2022 में आरवी ने भी सुसाइड कर लिया था। आरवी की मां आरती मल्होत्रा अपने बेटे के लिए आज तक इंसाफ के लिए लड़ रही हैं, वो भी दिल्ली क्वीयर प्राइड 2023 में शामिल हुईं। आरती एक सिंगल मदर हैं और आरवी उनका इकलौता बेटा था। वे बताती हैं कि ''स्कूल में लगातार उसे बुली किया जा रहा था, छठी-सातवीं क्लास से उसके साथ ये सब शुरू हो गया था लेकिन उसने काफी बाद में बताया। चूंकि मैं सिंगल मदर थी तो उसे लगा कि मां को परेशान नहीं करना इसलिए नहीं बताया, लेकिन जो उसे बुली कर रहे थे उनकी हिम्मत इतनी बढ़ती गई की उसके साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट हुआ, जिसकी वजह से उसकी मानसिक हेल्थ पर भी असर पड़ा।''

आरती बताती हैं कि उनके बेटे को मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा और वक़्त के साथ चीजें ठीक भी हो गई थीं लेकिन फिर एक दिन स्कूल में उसे कुछ ऐसा बोला गया कि जिसकी वजह से सब कुछ बिगड़ गया, आरवी वो सब नहीं सह पाया, और इस दुनिया से चला गया लेकिन आरती ने भी अपने बेटे को न्याय दिलाने की जिद पकड़ रखी है।

imageदिल्ली क्वीर प्राइड 2023 में आरती मल्होत्रा एक लड़के से मिलते हुए

''बेहतर होगा कि स्कूल ये सब बताए, समझाए''  
 
आरवी को गए दो साल होने वाले हैं और आरती इस वक़्त हर तरह से कोशिश कर रही हैं कि किसी और बच्चे को इस तरह से न गुज़रना पड़े। हमने उनसे पूछा कि क्या सोसाइटी को LGBTQ+ समुदाय के प्रति और जागरूक होने की ज़रूरत है? तो उनका जवाब था, ''एजुकेट होने की ज़रूरत है, लेकिन स्कूल हिचकते हैं कि ये बातें नहीं करनी चाहिए जबकि बच्चे में जब थोड़े बदलाव आने लगते हैं तो वे इंटरनेट पर एक्सप्लोर करने लग जाते हैं या फिर फ्रेंड्स से बातें करने लगते हैं, तो उन्हें ग़लत जानकारी मिल जाती है। तो, मैं कहना चाहती हूं कि ग़लत जानकारी, गलत इंसान से लेने से बेहतर होगा कि स्कूल ये सब बताए और समझाए। इस पर बात करने में कुछ ग़लत नहीं हैं। थर्ड जेंडर भी है, सेक्सुएलिटी different होती है, मेल, फीमेल के अलावा।'' वे आगे कहती हैं कि ''बुलिंग को लेकर भी बात होनी चाहिए''।

''बहुत से केस होते हैं पर उन्हें परिवार के द्वारा छुपा लिया जाता है''

हाल ही में प्रांशु भी उन्हीं हालात से गुज़रा जिनसे कभी आरवी गुज़रा था जिस पर आरती कहती हैं कि ''ये दो केस तो सामने आ गए, आपको क्या लगता है कि क्या दुनिया में अभी तक सिर्फ दो ही केस हुए होंगे। नहीं ऐसा नहीं है, बहुत से केस होते हैं पर उन्हें छुपा लिया जाता है परिवार के द्वारा क्योंकि उन्हें शर्म महसूस होती है। वो सोचते हैं कि अगर हम बताएंगे तो बदनामी होगी, तो बहुत कम केस होते हैं जो सामने आते हैं।''

''एंटी बुलिंग लॉ की ज़रूरत''

दिल्ली क्वीयर प्राइड से जुड़ी नूर इनायत भी प्रांशु की ऑनलाइन बुलिंग और घटना पर कहती हैं कि ''समाज में बदलाव तब आता है, जब लॉ लोगों को एम्पावर करता है, अगर आप एंटी बुलिंग लॉ नहीं बनाएंगे तो जिसके साथ घटना हो रही है तो उसके पास लीगल मार्ग क्या है, लोग बोलते हैं सोसाइटी बदले तो लॉ बदले, नहीं दोनों साथ में बदलेंगे, लॉ इन्पावर करता है।''

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''सोसाइटी में सभी की तरह सम्मान मिलना चाहिए''

दिल्ली क्वीयर प्राइड में पहली बार हिस्सा लेने वाले सौरभ कहते हैं कि ''ये बहुत अच्छा लगता है कि आपके जैसे बहुत से लोग जमा होते हैं जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, क्योंकि हमें बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है और ये स्ट्रगल acceptance का है। लोग हमें स्ट्रेंजर की तरह देखते हैं। अभी भी सोसायटी दो पार्ट में बंटी हुई है ख़ासकर पुरुषों के लिए। लेकिन हम कहना चाहते हैं कि सभी समान हैं।'' प्रांशु की मौत पर सौरभ कहते हैं कि ''मेरा विश्वास है कि अगर आप सोसाइटी में रह रहे हो आपको भी सभी की तरह सम्मान मिलना चाहिए। हमें यही सिखाया जाता है कि Be yourself. अगर आप उसे ही फॉलो नहीं कर पाते, या आप जो हो वो नहीं दिखा पा रहे हो तो अंदर से एक घुटन होती है। प्रांशु के सुसाइड का सब पर प्रभाव पड़ा है, पर धीरे-धीरे ही सही लोग एजुकेट हो रहे हैं, लेकिन अभी भी काफी टाइम लगेगा।''

imageप्राइड परेड में हिस्सा लेने वाले सौरभ

''अगर सपोर्ट नहीं कर रहे तो कम से कम हेटफुल कमेंट तो ना करें''

दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ज़ैबी रहमान भी दिल्ली क्वीयर प्राइड में शामिल हुई थी, प्रांशु के सुसाइड पर एक सवाल के जवाब में वे कहती हैं कि ''लोगों को इस कम्युनिटी के बारे में जानना पड़ेगा। वो बच्चा था उसे कमेंट्स में इतना बुली किया कि उसने सुसाइड कर लिया। लोगों को और ज़्यादा जागरूक होना पड़ेगा। वो क्या कह रहे हैं सोचा होगा।'' वे आगे कहती हैं कि ''अगर कोई समाज में बता रहा है जैसे कि 'मैं गे हूं' तो लोगों को उसे थोड़ा सपोर्ट करना होगा और अगर सपोर्ट नहीं कर रहे तो कम से कम उसे हेटफुल कमेंट तो न करें, समाज बस ये मान ले कि हम भी हैं।''

''स्कूल को भी इस पर बात करनी होगी''

वहीं आरती से जब हमने जानना चाहा कि क्या क़दम उठाए जा सकते हैं जो समाज में LGBTQ+ समुदाय के लिए जिंदगी को आसान बनाया जा सके तो उनका कहना था कि ''जब तक हमारी किताबों में, हमारे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव नहीं आते हम लोग इस समुदाय को स्वीकार नहीं करते। तब तक परिवार के लिए मुश्किल होगा। पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में बात होनी चाहिए, बताना चाहिए पेरेंट्स को, स्कूल को भी इसपर बात करनी होगी।''

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