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मध्यप्रदेश: कोविड संक्रमण के नाम पर किसानों से लूट की छूट  

किसानों का दर्द यह है, कि ‘सौदा पत्रक प्रणाली’ के तहत खरीदी करने वाले एक भी व्यापारी किसानों को गेहूं का समर्थन मूल्य देने को राजी नहीं हैं। दूसरी तरफ़ ‘अनाम’ साइलो खरीदी कर रहे हैं लेकिन यहां भी न तौल सही है न दाम सही।
कटनी ज़िले के बहोरीबंद में साइलो केंद्र कृत व्यवस्था के तहत गेहूं की खरीद की जा रही है।
कटनी ज़िले के बहोरीबंद में साइलो केंद्र कृत व्यवस्था के तहत गेहूं की खरीद की जा रही है।

भोपाल: कोविड-19 महामारी और इसके चलते लॉकडाउन के तहत मध्यप्रदेश की 269 मण्डियां लगभग बंद है। ऐसे में अपने को किसानों के हितचिंतक बताने वाली मध्य प्रदेश सरकार ने रबी फसलों की खरीदी के लिए सौदा पत्रक प्रणाली शुरू की है। इस प्रणाली के अंतर्गत किसान मण्डियों का दौरा किए बगैर व्यापारियों को बुलाकर अपने दरवाजे उपज बेच सकते हैं। मण्डी बोर्ड की आयुक्त प्रियंका दास ने बताया, कि 24 अप्रैल से यह प्रणाली लागू कर दी गई है। हालांकि यह प्रणाली अगस्त 2019 से मध्यप्रदेश में लागू है, किन्तु इसका उपयोग अभी लॉकडाउन में प्रभावी ढंग से किया जा रहा है। इसके लिए व्यापारियों के फोन नम्बर पोर्टल पर दे दिये गये हैं। जिससे किसान अपनी उपज बेचने के लिए सीधे व्यापारियों से संपर्क कर सकते हैं। साथ ही व्यापारियों को भी किसानों से कितनी मात्रा में उपज खरीदी की गई तथा उसका भुगतान की प्रक्रिया कैसे और कितनी की गई है, इसका उल्लेख पोर्टल पर करना अनिवार्य होगा। जिससे सरकार के पास लेन-देन का पूरा आंकड़ा मौजूद रहे। यह प्रणाली मण्डी परिसर के बाहर व्यापारी और किसानों के बीच व्यापार प्रतिबद्धता का एक कानूनी दस्तावेज  कहा जा सकता है।

लेकिन किसानों का दर्द यह है, कि इस सौदा पत्रक प्रणाली के तहत खरीदी करने वाले एक भी व्यापारी किसानों को गेहूं का समर्थन मूल्य देने को राजी नहीं हैं। उनके पास इस समय समर्थन मूल्य से कम पर गेहूं बेचने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। क्योंकि सहकारी समितियां अक्सर कोरोना पॉजिटिव कर्मचारी के नाम पर बंद कर दी जाती हैं और लॉकडाउन के कारण शहरों की मण्डिया बंद है।

किसानों को यह चिंता भी सता रही है, कि 30 अप्रैल के बाद उनके द्वारा लिये गये कर्ज पर उन्हें 12 से 14 फीसदी तक बैंक को ब्याज अदा करना होगा। वरना वे डिफाल्टर कहलायेंगे और उन्हें अगली फसल के लिए कर्ज भी नहीं मिलेगा। उधर व्यापारियों का कहना है, कि उनके पास समर्थन मूल्य देने के लिए पैसे नहीं हैं।

इसी तरह औने-पौने दामों पर इंदौर जिले में व्यापारियों ने किसानों से एक लाख क्विंटल गेहूं की खरीदी कर ली है। वहीं मुरैना जिले पोरसा विकासखण्ड के ग्राम गिदौली के किसान शिवनाथ ने 50 क्विंटल गेहूं 1750 प्रति क्विंटल की दर से बेचकर व्यापारी से 87,500 नगद भुगतान प्राप्त कर लिये। इसी गांव के दिनेश ने 30 क्विंटल सरसों 3835 प्रति क्विंटल की भाव से बेची। इन दोनों फसलों की खरीदी समर्थन मूल्य से कम पर की गई है। सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 1950 रुपये प्रति क्विंटल,  जबकि सरसों का 4650 रुपये निर्धारित किया है। यानी सब कुछ सरकार की नाक के नीचे हो रहा है।

छिंदवाड़ा जिले सहजपुरी गांव के किसान गुलाब सिंह पवार बताते हैं, कि उनके यहां सहकारी समिति में एक कर्मचारी के संक्रमित होने से सेंटर को बंद कर दिया गया है और व्यापारी गेहूं के लिए 1200 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक देने को तैयार नहीं है। किसानों के पास पैसे नहीं है, इसलिए वे इस दाम पर गेहूं बेचने के लिए मजबूर हैं। इस तरह किसानों को सरकार की निगरानी में लूटा जा रहा है।

होशंगाबाद जिले के गांव कोटला खेड़ी के किसान बृज मोहन पटेल बताते हैं, कि इस बार प्राकृतिक आपदा के कारण 25 एकड़ में लगभग 100 क्विंटल उत्पादन कम हुआ है। ऊपर से सरकारी व्यवस्था के चलते समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है। किसानों का शोषण चक्र इसी तरह चलता रहा, तो कर्ज में डूबे किसानों के पास आत्महत्या के अलावा कोई चारा ही नहीं बचेगा।

इटारसी में गेहूं की फ़सल

इसी तरह इटारसी तहसील के किसान हेमंत दुबे बताते हैं, कि चूंकि मध्यप्रदेश के 110 लाख हेक्टेअर में गेहूं का उत्पादन होता है और कभी-कभी तो यहां पंजाब से भी अधिक गेहूं का उत्पादन होता है। सरकार के पास इतना सारा गेहूं प्रोक्योरमेंट की क्षमता नहीं है, इसलिए वह हमेशा ना-नुकुर करती है। आम तौर पर 30 अप्रैल के बाद सरकार के बहाने शुरू हो जाते है। कभी बारदाना न होने या कर्मचारियों की कमी, लेकिन इस बार कोरोना महामारी का बहाना मिल गया है।

होशंगाबाद के किसान लीलाधर बताते हैं, कि सरकार प्रचार करती है, कि वह सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को बिना ब्याज के कर्ज दे रही है। लेकिन गेहूं की खरीदी 20 मार्च से शुरू होती है, जो 15 मई तक चलती है। किसानों को कर्ज चुकाने की अंतिम तिथि 30 अप्रैल है। अगर 15 मई तक उपज की खरीदी हो रही है, तो 30 अप्रैल तक जिस किसान की उपज बिकी ही नहीं, उसके पास कर्ज चुकाने का पैसा कहां से आयेगा! ऐसे में उससे ब्याज वसूला जाएगा।

दरअसल फसल चक्र और वित्तीय वर्ष दोनों अलग-अलग है। वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च है, जबकि फसल चक्र खरीफ जून से शुरू होता है, जिसकी कटाई अगस्त सितम्बर में होती है, दूसरा रबी फसल लगभग 15 अक्टूबर के बाद शुरू होकर अप्रैल-मई तक चलता है। किसानों के पास पैसा फसल बेचने के बाद ही आता है। इसलिए किसानों के लिए सरकार को अलग वित्तीय वर्ष बनाने पर सोचना होगा, जिससे  किसान कर्ज के बोझ तले न दबे।

मध्यप्रदेश किसान सभा के उपाध्यक्ष अशोक तिवारी मुरैना जिले के कैलारस विकासखंड का उल्लेख करते हुए बताते हैं, कि मुरैना में दो तरह की फसल सरसों और गेहूं का उत्पादन होता है। सरसों का रकबा ज्यादा है। इस बार शुरुआत में किसानों को सरसों की फसल पर समर्थन मूल्य से अधिक दाम मिले। इसका एक कारण यह रहा, कि इस बार किसानों ने संगठित होकर स्वयं सरसों के दाम तय किये, इसलिए व्यापारियों को मजबूरन उनके तय किये दामों पर सरसो खरीदना पड़ा। लेकिन कोरोना संक्रमण के फैलने के कारण गेहूं के साथ ऐसा नहीं हो सका। यहां व्यापारी 1600-1700 प्रति क्विंटल से अधिक देने को तैयार नहीं है। और अब तो सरसों के भी पूरे दाम नहीं मिल रहे। 

कटनी के बहोरीबंद में साइलो केंद्र कृत व्यवस्था के तहत गेहूं की खरीद की जा रही है।

दूसरी तरफ कोरोना महामारी के नाम पर सहकारी समितियों को बंद कर कटनी जिले के बहोरीबंद में साइलो केंद्र कृत व्यवस्था के अंतर्गत गेहूं की खरीदी की जा रही है। जहां 50 से 60 गांव के किसान अपनी उपज लाकर बेच रहे हैं। यहां किसानों की भारी भीड़ देखी जा सकती है। किसानों का कहना है, कि यहां से आखिरी गांव लगभग 30 किलोमीटर दूर है। इतनी दूर से अपनी उपज लाकर बेचने में उनका समय, साधन और पैसा तीनों खर्च  हो रहा है। उपज की तौल के लिए भी उन्हें लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है, इसलिए वे परेशान हैं। यहां 24 घण्टे 300 से 400 ट्रकों और ट्रालियों की लम्बी कतारे  देखी जा सकती है।

मध्य प्रदेश किसान सभा के जिला संयोजक विजय पटेल बताते हैं, कि अगर तौल की बात करे, तो साइलो में एक ही बड़ा तौल कांटा है, जिसमें 50-60 टन अनाज तौलने की क्षमता है। अब उसमें अगर दो या तीन टन गेहूं तौला जाएगा, तो माप तो गड़बड़ होगा ही। इस तरह यहां किसानों को लूटा जा रहा है। न तौल सही, न दाम सही।

इसके अलावा कोरोना महामारी में इतनी भीड़ जुटाकर किसानों से गेहूं खरीदने का औचित्य किसी को समझ में नहीं आ रहा है। किसानों को यह भी नहीं पता , कि यह साइलो किसका है, उपज कौन खरीद रहा है। किसके लिए खरीदी हो रही है। बस किसानों के पास एसएमएस आता है और वे अपनी उपज लेकर यहां हाजिर हो जाते हैं। यहां आने वाले किसान बताते हैं,  कि वे यहां सुबह 7 बजे लाईन में लग जाते हैं और शाम के 7-8 बजे और कभी-कभी तो रात के 10 बजे तक उनका नंबर आता है। वे इस जोखिम को उठाने के लिए मजबूर है।

बहरहाल, किसानों की आय दोगुनी करने का नारा देने वाली सरकार किसानों को लूटने के लिए तरह-तरह की तरकीबे अपनाती है। इस बार सरकार को कोरोना संक्रमण का बहाना मिला है। वह समर्थन मूल्य देकर उपार्जन प्रक्रिया को दुरुस्त करने के बजाय किसानों को जोखिम में डाल रही है।

(भोपाल स्थित रूबी सरकार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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