नमाज़ियों से पुलिस की बदसलूकी के ख़िलाफ़ राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद!
पिछले शुक्रवार (जुमा के दिन) को राजधानी दिल्ली में जिस प्रकार पुलिस ने नमाज़ पढ़ रहे लोगों को गालियां देते हुए लात मारकर अपमानित किया यह आने वाले समय की भायवहता का नमूना है।
इस घटना के महज एक दिन पहले ही कर्नाटक में भाजपा नेता के विवादास्पद बयान ने तो मानो दिल्ली वाली घटना की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। इसमें वे सार्वजनिक रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं-समर्थकों को संबोधित करते हुए इस बात की घोषणा करते हैं कि “अबकी बार चार सौ पार” इसलिए करना सबसे ज़रूरी है कि देश के वर्तमान संविधान को हटा कर “मनुवादी संविधान” स्थापित करना है।
इससे एक मतलब तो यह साफ़तौर से यही निकलता है कि विविधताओं से भरा हुआ यह देश किसी लोकतांत्रिक संविधान की बजाय “बहुसंख्यक धर्म विशेष की सत्ता” द्वारा संचालित किया जाएगा। जिसमें दूसरा धर्म वालों की हैसियत “दूसरे दर्जे” की ही रहेगी।
दिल्ली में नमाज़ियों के साथ हुई बर्बरता किसी भीड़ द्वारा नहीं बल्कि देश की राजधानी स्थित दिल्ली-पुलिस द्वारा अंजाम दिया गया। जिस पर देश के संविधान प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के अनुपालन के साथ साथ वहां के सभी नागरिकों की सुरक्षा-संरक्षा की अहम जिम्मेदारी है।
केंद्र सरकार की दिल्ली पुलिस के अमानवीय और नफ़रती-सांप्रदायिक रवैये के खिलाफ 11-12 मार्च को भाकपा माले के आह्वान पर ‘दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद’ किया गया। जिसके तहत झारखंड और बिहार में भी विभिन्न स्थानों पर सड़कों पर प्रतिवाद मार्च निकाले गए और देशविरोधी उक्त कांड के ख़िलाफ़ तीखा विरोध प्रदर्शित किया गया।
झारखंड की राजधानी रांची समेत गिरिडीह-बगोदर, धनबाद, रामगढ़, गढ़वा-पलामू इत्यादि स्थानों पर माले समेत कई अन्य वाम व सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हाथों में विरोध पोस्टर लहराते हुए प्रतिवाद किया।
बिहार में राजधानी पटना के अलावा आरा, दरभंगा, गया, मुजफ्फरपुर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, बेगुसराय, समस्तीपुर, नालंदा समेत कई स्थानों पर प्रतिवाद किया गया।
पटना में जीपीओ गोलंबर के प्रदर्शन के दौरान “पुलिस का भगवाकरण नहीं चलेगा, गंगा-जमुनी तहज़ीब पर हमला नहीं सहेंगे, दिल्ली पुलिस द्वारा किये गए सांप्रदायिक-दमन कांड के जिम्मेवार मोदी-शाह जवाब दो, दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल बर्खास्त करो, नफ़रत-हिंसा और सामाजिक विभाजन की राजनीति नहीं चलेगी” जैसे नारे लगाए गए। यह प्रतिवाद मार्च शहर के मुख्य मार्ग से होकर बुद्धा स्मृति पार्क परिसर के नजदीक पहुंचकर एक सभा में तब्दील हो गया।
अभियान का नेतृत्व करते हुए भाकपा माले महासचिव ने अपने संबोधन में दिल्ली की घटना को पूरी दुनिया में भारत को शर्मशार करनेवाला बताते हुए कहा कि, दिल्ली में नमाज़ पढ़ रहे लोगों पर किया गया पुलिस बर्बर बर्ताव दरअसल वह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बनाए संविधान पर हमला है। 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस तरह का सांप्रदायिक माहौल बनाकर भाजपा वोटों का ध्रुवीकरण करना चाह रही है। देश की जनता इसका मुकम्मल जवाब देगी। पुलिस द्वारा नमाज़ियों को लात मारना, भाजपा की नफ़रती राजनीति और उसके व्यापक प्रचार-प्रसार का ही परिणाम है। देश के संविधान में सबको भाईचारा, अपनी-अपनी धार्मिक आस्था रखने-मानने की आजादी सुनिश्चित की गयी है लेकिन भाजपा उसे आज ख़त्म कर देने पर आमादा है।
बिहार कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हमें ऐसे दिन भी देखने पड़ रहें हैं कि अब नामज़ पढने पर भी पुलिस दमन-अपमान का शिकार होना पड़ रहा है। इसके खिलाफ प्रतिवाद कर रहे माले कार्यकर्ताओं-नेताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि- जब भी ऐसे संकटपूर्ण हालात सामने आते हैं तो जाने क्यों “सेक्युलर” कहलाने वाले मौन रह जाते हैं लेकिन लाल झंडे के लोग पूरी मुखरता के साथ सड़कों पर अपना विरोध जताने में तनिक देर नहीं करते हैं। इससे काफी हौसला मिलता है।
प्रतिवाद सभा को माले के बिहार विधायक दल नेता महबूब आलम व अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की राष्ट्रिय माहासचिव मीना तिवारी समेत कई अन्य नेताओं ने भी संबोधित किया।
वक्ताओं ने अपने संबोधनों में भाजपा और गोदी मीडिया द्वारा “मुसलमानों के सड़क पर नमाज़ पढ़ने” पर उठाये जा रहे सवालों के जवाब में पूछा कि आज दिल्ली में सड़क पर नमाज़ पढ़े जाने का विरोध करनेवाले क्या बताएंगे कि इसी दिल्ली समेत देश के सभी राज्यों में सड़कों पर मंदिर बने हुए हैं? किसकी अनुमति से आये दिन सड़कों पर उन्मादी नारे लगाते हुए धार्मिक जुलूस निकाले जाते हैं, बीच सड़क पर सैकड़ों मंदिर बना रखे हैं, हर थाने तक में बड़े बड़े मंदिर बनाकर पूजा-पाठ कराये जाते हैं, सड़कों पर आये दिन निकलने वाले हिंदू धर्म की रैली-शोभा यात्राओं में पुलिस के लोग दौड़ दौड़कर पानी पिलाते दिखाई देते हैं?
वहीं दूसरी ओर, इसी दिल्ली में जब सड़कों पर देश के किसान विरोध करना चाहते हैं तो सड़कों पर कीलें ठोक दी जा रही हैं। कहीं भी सड़कों पर विरोध करने की आजादी-अधिकार नहीं दिया जा रहा है। इसलिए मामला “सड़क पर नमाज़ पढ़ने” अथवा धर्म मात्र का नहीं है। सच यही है कि आज भाजपा-राज देश के लोगों के तमाम संवैधानिक अधिकारों समेत धर्म मानने की तक की आज़ादी को खत्म कर देने की साजिश कर रहा है। जिसे एकजुट होकर परास्त करके ही आने वाले समय में इस देश के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा संभव है।
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