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बनारसः NIA का छापे में 'आपत्तिजनक' सवालों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध सभा और प्रदर्शन

''इंडिया गठबंधन से बीजेपी सरकार बहुत परेशान है। जो लोग सरकार के ख़िलाफ़ सवाल उठा रहे हैं वो उन्हें सवाल बना देना चाहती है। बड़ा सवाल यह है कि जल, जंगल और ज़मीन के लिए लड़ने वालों का दमन क्यों किया जा रहा है?''
NIA raids in Banaras

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की छापेमारी के विरोध में 6 सितंबर की शाम काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के स्टूडेंट्स और नागरिक समाज ने संयुक्त रूप से लंका स्थित बीएचयू गेट पर जोरदार नारेबाजी की और प्रदर्शन किया। पुलिस की जबर्दस्त घेराबंदी के बावजूद प्रदर्शन में भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा (बीसीएम), अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा), वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के कार्यकर्ता और प्रबुद्ध नागरिक शामिल हुए। इस दौरान छात्रों ने बताया कि छापे के दौरान NIA के अफसरों ने उनसे पूछा, ''बिहार में नीतीश और झारखंड में सोरेन सरकारों का विरोध क्यों नहीं करते हो?''

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने पांच सितंबर को वाराणसी स्थित भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा के दफ्तर समेत पूर्वांचल के प्रयागराज, चंदौली, आज़मगढ़ और देवरिया में आठ स्थानों पर छापेमारी की थी। इसके विरोध में आंदोलनकरी अपने हाथों में पोस्टर और बैनर लेकर बीएचयू गेट पर पहुंचे और नारेबाजी शुरू कर दी। मौके पर पहले से ही भारी पुलिस फोर्स तैनात थी। पुलिस ने प्रदर्शन को रोकने की बहुत कोशिश की। काफी जद्दोजहद के बाद पुलिस अफसरों ने सिर्फ आधे घंटे के भीतर आंदोलन खत्म करने की हिदायत दी। प्रदर्शन के दौरान पुलिस के जवान उन्हें चौतरफा घेरे रहे और आंदोलनकारी NIA के छापे के विरोध में नारेबाजी व प्रदर्शन करते रहे।

"सत्ता जाने का खौफ"

प्रदर्शन के बाद आयोजित प्रतिरोध सभा में ट्रेड यूनियन से जुड़े वीके सिंह ने छात्र-छात्राओं पर लगाए गए आरोपों को बकवास बताते हुए कहा, '' NIA अब बीजेपी सरकार की पोलिटिकल टीम की तरह काम कर रही है। जांच एजेंसी की मदद से उन लोगों के खिलाफ मुहिम छेड़ी जा रही है जो जल, जंगल, जमीन की लूट के खिलाफ और वंचित तबके के उत्थान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वामपंथी साहित्य पढ़ना अथवा रखना कोई जुर्म नहीं है। फिर भी स्टूडेंट्स व एक्टिविस्टों पर झूठे मुकदमे लादे जा रहे हैं और उन्हें अर्बन नक्सली बताकर सताया जा रहा है। सरकार उन लोगों पर सवाल खड़ा करने की कोशिश कर रही है जो उसकी दोषपूर्ण नीतियों का विरोध करते रहे हैं।' क्रांतिकारी भगत सिंह के वारिस मोदी सरकार से डरने वाले नहीं हैं।''

सिद्धि ने सुनाई छापे की दास्तां

भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा (BSM) की सह सचिव सिद्धि बिस्मिल ने पांच सितंबर को NIA की छापेमारी का ब्योरा पेश करते हुए बताया, ''सुबह करीब 5.30 बजे NIA की हमारे कमरे पर तलाशी लेने पहुंची। कमरे में मेरे अलावा BSM की अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद और सचिव इप्शिता रहती हैं। लखनऊ से आई NIA की टीम का नेतृत्व रश्मि शुक्ला कर रही थीं। पटना से राकेश कुमार मिश्रा के अलावा रांची से एक आईटी एक्सपर्ट भी जांच टीम में शामिल थे। इनके अलावा दो महिला उप-निरीक्षक, 10 महिला कांस्टेबल और लखनऊ से आए दो गवाह शामिल थे। इनके अलावा कुछ अन्य लोग सादे वर्दी में थे, जो अपनी पहचान छिपा रहे थे। इनके साथ लंका थाना पुलिस के अलावा भेलूपुर के एससीपी प्रवीण सिंह और कई आला अफसर भी मौके पर जमे हुए थे। करीब 40 से 50 पुलिसकर्मी कमरे के अंदर और बाहर मौजूद थे। कई खुफिया एजेंसियों के लोग भी मौजूद थे।''

''NIA टीम ने हमें सर्च वारंट दिखाया, जिसमें लिखा था कि माओवादी अथवा उनके फ्रंटल संगठन होने के शक में वो हमारे सामान, कमरे, लैपटॉप मोबाइल आदि को सर्च कर सकते हैं। झूठे और भ्रामक आरोपों के कारण हमने वारंट पेपर पर दस्तखत करने से साफ इनकार कर दिया। एनआईए अफसरों ने सबसे पहले आकांक्षा का मोबाइल फ्लाइट मोड में डालकर आईटी एक्सपर्ट के हवाले कर दिया, जिसने उस फ़ोन को अपने साथ लाए हुए लैपटॉप में लगा लिया। वो कुछ भी बताने से इनकार करते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक आकांक्षा के कमरे में लैपटॉप जांच की गई। बाद में उन्होंने दो सिम कार्ड और एसडी कार्ड जब्त कर लिया। NIA ने सबसे पहले आकांक्षा आज़ाद के कमरे की तलाशी ली।''

नौ घंटे तक हुई पूछताछ

सिद्धि ने यह भी बताया,''छापे के दौरान हर एक कॉपी, डायरी, किताब, कपड़े, बैग, सूटकेस, रजाई-कंबलों के जांच शुरू कर दी। कॉपी डायरी में एक-एक अक्षर की जांच की और उससे जुड़े सवाल करते रहे। आधार कार्ड का फोटो भी लिया। कमरे का सारा सामान इधर-उधर फेंक दिया। बाद में NIA ने हमारे और इप्शिता के कमरे डायरी, कॉपी, किताबों की जांच की। इस बीच उन्होंने पत्रकार रूपेश कुमार की रिहाई की मांग और कैमूर से गिरफ्तार रोहित व सर्व सेवा संघ को ढहाए जाए के विरोध वाले पोस्टरों को देख तो कई सवाल किए। दस्तक मैगज़ीन देखकर पत्रकार सीमा आज़ाद और एक्टिविस्ट विश्वविजय के बारे में पूछताछ की। बाद में इप्शिता के लैपटॉप और मेरे मोबाइल जांच-छानबीन की।''

''NIA अफसर रश्मि शुक्ल ने सिद्धि फ़ोन के चैट्स पर भी कई सवाल किए। साथ ही ओबीसी रिज़र्वेशन के आंदोलन पर भी पूछताछ की। उन्होंने भगत सिंह छात्र मोर्चा के आर्थिक स्त्रोत और हम तीनों के खर्च से जुड़े सवाल किए। घर में आय के साधन के बाबत पूछताछ की। उन्होंने इप्शिता के बैंक अकाउंट से जुड़े कुछ सवाल किए। बातचीत के दौरान उनका विशेष जोर हमारी जाति-बिरादरी के बारे में जानकारी हासिल करने पर ज्यादा थी। NIA के लोगों ने हमारे संगठन के अखबार 'मशाल' का 2 अंक, सीमा आज़ाद प्रकाशित 'दस्तक' का 3 अंक, गांव चलो अभियान का सर्कुलर (2018-2019) और भगत सिंह छात्र मोर्चा के चंदे की रसीद, मजदूर किसान एकता मंच (नया नाम मेहनतकश मुक्ति मोर्चा) का पुराना पर्चा आदि उठाकर ले गए।''

"दमन कर रही सरकार"

सिद्धि ने यह भी बताया, ''NIA के लोगों ने मुझे और आकांक्षा आजाद को हाउस अरेस्ट कर रखा था। हमारी बिल्डिंग में किसी के आने-जाने पर पूरी पाबंदी थी। संगठन से जुड़े आदर्श, अमर आदि तीन-चार साथी आए तो NIA के अलावा पुलिस टीम ने उनके साथ मारपीट और बदतमीजी की। उनके फोन भी छीन लिए। साथ ही उनका करियर बर्बाद करने की धमकी तक दी गई। NIA ने हमारे कुछ साथियों को 12 नवंबर को लखनऊ में तलब किया है। हमें आशंका है कि NIA हमारे मोबाइल फ़ोन में छेड़छाड़ कर सकती है और भीमा कोरेगांव केस की तरह कुछ भी इंप्लांट कर सकती है।''

''NIA ने बनारस के महामनापुरी कॉलोनी स्थित बीसीएम के दफ्तर को करीब नौ घंटे तक खंगाला, लेकिन वहां NIA को कोई ऐसा सबूत नहीं मिला है जिससे वह स्टूडेंट्स और एक्टिविस्टों के देश विरोधी गतिविधियों के इल्जाम में लपेट सके। जांच एजेंसी के लोग वो पत्रिकाएं उठाकर ले गए जो खुलेआम बाजार में बिकती हैं। भगत सिंह छात्र मोर्चा ने बीते 27 अगस्त 23 को बनारस के सर्व सेवा संघ, आजमगढ़ के खिरियाबाग, कैमूर में बाघ अभ्यारण्य के नाम पर जमीनों की लूट और सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं को आतंकवादी बताकर की जा रही गिरफ्तारी के खिलाफ प्रतिरोध सभा आयोजित की थी। मोदी सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में हमारा विरोध-प्रदर्शन आगे भी जारी रहेगा।''

कार्यक्रम का संचालन करते हुए भगतसिंह छात्र मोर्चा की सचिव इप्शिता ने कहा, ''आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार अपने विरोधियों को बल पूर्वक दबाने में जुटी है। एनआईए, ईडी, एटीएस, आयकर की ताबड़तोड़ छापेमारी इसी कड़ी का हिस्सा है। ये एजेंसियां मोदी सरकार की ‘बी’ टीम की तरह काम कर रही हैं। इनका इस्तेमाल सिर्फ विरोधियों को दबाने के लिए किया जा रहा है। हमारे दफ्तर पर NIA की छापेमारी सरकार की इसी साजिश का हिस्सा है। इनका असल मकसद जनता के मन में खौफ बैठाना है।'' बीसीएम के सदस्य अनुपम ने कहा, ''NIA जैसी संस्था बीजेपी की कठपुतली बन गई है जो सिर्फ सरकार के इशारे पर नाचती हैं। पुलिस और सरकारी खुफिया एजेंसियां बृजभूषण सिंह और अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के खिलाफ जांच करने से क्यों कतरा रही हैं?''

''प्रोपगेंडा खड़ा करना मकसद''

इस बीच NIA ने प्रेस रिलीज जारी किया है जिसमें करीब दस एक्टिविस्ट, एडवोकेट, पॉलिटिकल लीडर और स्टूडेंट्स के बारे में कहा है कि वो भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने में जुटे थे। इन्हें सीपीआई (माओवादी) की विचारधारा का प्रचार और कैडरों को प्रेरित करने का काम छात्रों को सौंपा गया है। NIA के आरोपों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए किसान नेता राजीव यादव ने कहा है कि जनता का ध्यान भटकाने के लिए यह जांच एजेंसी एंटी नेशनल प्रोपगेंडा खड़ा करना चाहती हैं। राजीव लंबे समय से आजमगढ़ के खिरियाबाग में किसानों की जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। दमन करने के लिए एसटीएफ इन्हें दो बार उठा चुकी है। ''न्यूजक्लिक'' से बातचीत में राजीव कहते हैं, ''इंडिया गठबंधन से बीजेपी सरकार बहुत परेशान है। जो लोग सरकार के खिलाफ सवाल उठा रहे हैं वो उन्हें सवाल बना देना चाहती है। बड़ा सवाल यह है कि जल, जंगल और जमीन के लिए लड़ने वालों का दमन क्यों किया जा रहा है?''

रिहाई मंच के मुखिया राजीव यह भी कहते हैं, ''पूर्वांचल में NIA की छापेमारी बीजेपी सरकार की सोची-समझी चाल है, क्योंकि वह मूलभूत सवालों से भाग रही है। इस सरकार ने पिछले आठ सालों में कुछ किया ही नहीं। इंडिया गठबंधन बना तो वह बौखला गई। वामपंथी साहित्य पढ़ना अथवा रखना कोई गुनाह नहीं है। बीजेपी के लोग हर रोज हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं। भारतीय संविधान के नजरिये से देखें तो ये देशद्रोह है। भारत में खुलेआम मनावाधिकार का हनन किया जा रहा है। बहस के मुद्दे से गायब करना बीजेपी सरकार का मुख्य मकसद है। यूपी में मुख्तार, अतीक, ज्ञाननवापी, अयोध्या, मथुरा के अलावा किसी अन्य मुद्दे पर न तो मेन स्ट्रीम की मीडिया को कोई चिंता है, न सरकार को। सच यह है कि प्रोपगंडा खड़ा करने के अलावा इन्हें कुछ आता ही नहीं है।''

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