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क्या केंद्र के कृषि कानूनों की काट हैं पंजाब सरकार की ओर से लाए तीन नए कृषि विधेयक?

पंजाब विधानसभा ने केंद्र सरकार के कृषि संबंधी क़ानून को खारिज करने के लिए तीन नए विधेयक पारित किए हैं। हालांकि अभी इसे क़ानून बनाने के लिए राज्य के राज्यपाल और देश के राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी।
अमरिंदर सिंह
फोटो साभार : ट्विटर

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को लेकर बीते कई महीनों से किसान सड़कों पर हैं। देश के कई इलाकों में ज़ोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं। किसान चक्का जाम, रेल रोको और भारत बंद का आह्वान कर रहे हैं तो वहीं केंद्र सरकार अपने फैसले पर अडिग है। लेकिन अब पंजाब सरकार ने केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि क़ानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए विधानसभा के विशेष सत्र में 20 अक्तूबर को तीन नए कृषि विधेयकों को पारित किया।

पंजाब ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। पंजाब सरकार की ओर से विधानसभा में पारित कराए गए विधेयकों में भी इस बात का खास उल्लेख किया गया है कि कृषि, कृषि बाज़ार और ज़मीन प्राथमिक तौर पर राज्य के विषय हैं। इन तीन विधेयकों के अलावा विधानसभा ने एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें केंद्र सरकार से अपील की गई कि वो तीनों विवादास्पद कानूनों को तुरंत रद्द करे। इसके साथ ही एमएसपी को सुरक्षित करने के लिए और खाद्यान्न की सरकारी खरीद को जारी रखने के लिए नए कानून पास करे।

क्या है इन तीन संशोधित विधेयकों में?
 
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में कहा कि कृषि राज्य का विषय है लेकिन केंद्र सरकार ने इसे नज़रअंदाज किया है। तीनों विधेयकों में पंजाब सरकार ने दावा किया है कि केंद्र सरकार के क़ानून में मौजूद प्रावधानों को "पंजाब कृषि उपज बाज़ार अधिनियम, 1961 के तहत किसानों और खेतिहर-मजदूरों के हित और उनके जीविकोपार्जन को बचाने के लिए" बदल दिया गया है।

* कृषि उत्पादन, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन बिल 2020 – यह विधेयक राज्य में एपीएमसी अधिनियम 2016 को लेकर यथास्थिति बहाल करने की बात करता है। इस बिल में केंद्रीय कानून की धाराओं में संशोधन करने का प्रयास किया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि धान या गेहूं एमएसपी से कम कीमत पर न खरीदा जाए। अगर कोई शख्स या कंपनी किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर फसल बेचने को बाध्य करती है, तो इसे अपराध माना जाएगा। कम से कम तीन साल की सज़ा और जुर्माना भी लगेगा। विधेयक में यह भी कहा गया है कि केंद्रीय अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर किसी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

केंद्र सरकार का कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020 इस बात का जिक्र है कि किसान एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपना उत्पाद बेच सकते हैं, वो दूसरे ज़िलों और राज्यों में भी अपनी फसल बेच सकते हैं। इसके लिए उनको या उनके खरीदारों को एपीएमसी मंडियों को कोई फीस भी नहीं देनी होगी। लेकिन पंजाब की ओर से लाया गया बिल कहता है कि मंडियों के बाहर के खरीदारों को भी मंडियों के नियमों के हिसाब से चलना होगा।

* आवश्यक वस्तु (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) बिल 2020 - इस बिल में अनाज की जमाखोरी और कालाबजारी से बचाने का प्रावधान है। विधेयक में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि उत्पादन, आपूर्ति और वितरण भी राज्य के विषय हैं लेकिन केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानून में व्यापारियों को आवश्यक वस्तुओं के स्टॉक की असीमित शक्ति दी गई है। यह बिल पंजाब सरकार को विशेष हालात में कृषि उपज के उत्पादन, वितरण, आपूर्ति और भंडारण का विशेष अधिकार देता है ताकि किसानों और खेत-मजदूरों की रोजी-रोटी सुरक्षित की जा सके।

किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) बिल 2020 - यह बिल राज्य के किसानों को अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बेचने पर मजबूर होने से बचाता है। इसमें कहा गया है कि गेहूँ और धान की बिक्री तभी वैध मानी जाएगी जब केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर या उससे अधिक पर उसकी बिक्री हो रही हो।

अगर कोई कंपनी, व्यक्ति और कॉरपोरेट हाउस किसी किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर फ़सल बेचने को मजबूर करता पाया गया तो उसे तीन साल से कम की सज़ा नहीं होगी।

बिल में किसानों को ये भी अधिकार दिया गया है कि किसी तरह की विवाद की स्थिति में वे सिविल कोर्ट का रुख कर सकते हैं। जबकि केंद्र के बनाए कानून के मुताबिक, किसान को विवाद में राहत के लिए पहले समझौता मंडल के पास जाना होता है, फिर एसडीएम और उसके बाद ज़िला मजिस्ट्रेट के पास।

बता दें कि केंद्र की ओर से लाए गए कृषि कानून में सबसे ज्यादा विवाद एमएसपी को लेकर ही है। पहले सहकारी मंडियों में फसल की एक न्यूनतम कीमत मिलने का प्रावधान था। लेकिन मंडी के बाहर वो न्यूनतम कीमत मिलेगी या नहीं, इसे लेकर कोई नियम केंद्र के बिल में नहीं है। ऐसे में किसानों को डर है कि किसी फसल का उत्पादन ज्यादा होने पर व्यापारी किसानों को अपनी फसल कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर कर सकते हैं।

क्या राज्यों के पास केंद्र के खिलाफ जाने का अधिकार है?

गौरतलब है कि इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के शासन वाले प्रदेश सरकारों से यह कहा था कि वो केंद्र सरकार के कृषि क़ानून को निष्प्रभावी करने वाले क़ानून को लाने की संभावना पर विचार करें।

उन्होंने इसके लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 (2) का इस्तेमाल करने की बात कही थी। ये अनुच्छेद समवर्ती सूची में शामिल विषयों से जुड़ा हुआ है। इसमें राज्य विधानसभा की ओर से इस सूची में शामिल विषयों के संबंध में क़ानून बनाया जाता है जो कि संसद द्वारा बनाए गए पहले के क़ानून के प्रावधानों, या उस विषय के संबंध में मौजूदा क़ानून के ख़िलाफ़ हैं।

इसके मुताबिक राज्य विधानसभा में बनाया गया क़ानून राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया गया हो और उस पर राष्ट्रपति अपनी सहमति दे दे, ऐसी स्थिति में केंद्रीय क़ानून अप्रभावी होगा और राज्य का क़ानून प्रभावी होगा। लेकिन इस अनुच्छेद के साथ शर्त ये है कि राज्य सरकारों को इन अधिनियमों के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति चाहिए होती है। इसके साथ ही अगर राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति दे देते हैं तो भी केंद्रीय क़ानून सिर्फ़ उसी राज्य में प्रभावी नहीं होगा। ऐसे में प्रत्येक राज्य को अपना क़ानून बनाकर राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी होगी। इसके लिए राज्य के राज्यपाल की मंजूरी भी जरूरी है।

बता दें कि पंजाब के बाद राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की कोशिश चल रही है। ऐसे में पंजाब के इन तीन नए विधेयकों को आंदोलनरत किसानों ने आंशिक जीत बताया है। उनका कहना है कि उनकी लड़ाई जारी रहेगी। तो वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि अगर इन विधेयकों मंज़ूरी नहीं मिली, तो वो अदालत जाएंगे। साथ में उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें बर्खास्तगी का डर नहीं है, वो इस्तीफा साथ ही रखते हैं।

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