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विशेष : सोशल मीडिया के ज़माने में भी कम नहीं हुआ पुस्तकों से प्रेम
यह कहा जाता है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस युग में युवा पीढ़ी पुस्तकों से विमुख हो रही है। युवा हमेशा मोबाइल पर लगे रहते हैं उनको पुस्तक पढ़ने का न तो शौक है और न ही समय। लेकिन विश्व पुस्तक मेले ने इस सबको ग़लत साबित किया।
प्रदीप सिंह
13 Jan 2020
book fair

किताबों के महाकुंभ यानी विश्व पुस्तक मेला (World Book Fair 2020) का कल, रविवार को समापन हो गया। 4 जनवरी को शुरू हुए पुस्तक मेले में दो–तीन दिन खराब मौसम और बूंदा-बांदी की वजह से भीड़ कम आई लेकिन अंतिम दिन पुस्तक प्रेमियों का भारी हुजूम देखने को मिला। रविवार होने की वजह से पुस्तक मेले में कॉलेज गोइंग यूथ के साथ-साथ नौकरीपेशा लोग पूरे परिवार के साथ आए। पुस्तक मेले में पुस्तकों के साथ ही फन एंड फूड की भी व्यवस्था थी।

यह कहा जाता है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस युग में युवा पीढ़ी पुस्तकों से विमुख हो रही है। युवा हमेशा मोबाइल पर लगे रहते हैं उनको पुस्तक पढ़ने का न तो शौक है और न ही समय। हिंदी की पुस्तकें नहीं बिकती हैं, इस तरह की बात हम आए दिनों सुनते रहते हैं। लेकिन पुस्तक मेले में पुस्तक खरीदने वाले लोगों की उम्र, वर्ग और पेशा देख कर यह कहा जा सकता है कि संचार क्रांति के युग में भी पुस्तकों से लोगों का मोह कम नहीं हुआ है। पुस्तक न बिकने की बात प्रकाशकों की गढ़ी हुई है। पुस्तक मेले में भारी संख्या में युवाओं का किताबें खरीदना इस बात की गवाही है।

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पुस्तक मेले का आनंद लेते हुए हमने, युवाओं के साथ ही प्रकाशकों से भी यह जानने की कोशिश की कि किस तरह की पुस्तकें ज्यादा बिक रही हैं? युवा या अन्य खरीदार किस तरह की पुस्तकों को खरीदना पसंद कर रहा है? क्या आज के युवाओं के दिलोदिमाग पर चेतन भगत जैसे लेखक ही राज कर रहे हैं या हिंदी साहित्य की कालजयी रचनाएं, इतिहास, राजनीतिशास्त्र और भारतीय ज्ञान को समृद्ध करने वाले बहुतेरे लेखकों की किताबें भी उनकी पसंद में शामिल हैं?

युवाओं से बात करने के बाद यह धारणा छूमंतर हो गई कि हिंदी लेखकों और वैचारिक पुस्तकें नहीं बिकती हैं। हाथों में किताबों का थैला लिए राजेश नाम के एक युवक से हमने जानने की कोशिश की कि उन्होंने कौन सी किताबें खरीदी हैं? राजेश ने बताया, "दिनकर की रश्मिरथी, गांधी की आत्मकथा और हमारा संविधान उन्होंने खरीदा है।" राजेश कहते हैं, “कॉलेज में हमारे कई दोस्त रश्मिरथी की तारीफ़ करते थे। दोस्तों से लेकर रश्मिरथी को पढ़ा तो बहुत मजा आया, इस बार खरीद ही लिय़ा। संविधान जानना जरूरी है और गांधी के आत्मकथा की भी चर्चा होती रहती है इसलिए हमने 'सत्य के प्रयोग' को खरीदा।”

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पुस्तक प्रेमियों की पसंद जानने के लिए हमने संवाद, सामयिक, राजकमल, पेंगुइन, प्रकाशन विभाग, एनबीटी, एनसीआरटी, राजपाल एंड संस और प्रभात प्रकाशन के स्टॉल पर जाकर जायज़ा लिया।

“एनबीटी और प्रकाशन विभाग के स्टॉल पर सस्ती और अच्छी किताबों का होना किसी से छिपा नहीं है। कॉलेज के छात्र, प्राध्यापक औऱ सरकारी नौकरी वालों के साथ ही पत्रकार और बुद्धिजीवी यहां पर अपनी पसंद की किताबों को छांटते हुए मिले।” कारण पूछने पर चंद्रभान कहते हैं कि एनबीटी और प्रकाशन विभाग की किताबें तथ्यात्मक रूप से सही होने के साथ ही सस्ती भी होती हैं इसलिए पुस्तक मेला आने वाला हर शख्स यहां पर जरूर आता है।

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संवाद प्रकाशन के आलोक श्रीवास्तव कहते हैं कि, “वैचारिक और राजनीतिक पुस्तकों के साथ-साथ देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे महापुरुषों के साथ ही विश्व स्तर की चर्चित पुस्तकें युवाओं की पसंद हैं। भगत सिंह. अंबेडकर और अन्य क्रांतिकारियों के साथ ही नेहरू,पटेल और दूसरे महापुरुषों के जीवन पर आधारित पुस्तकें हर पुस्कत मेले में बिकती हैं।”

जनचेतना, नवारूण और कुछ छोटे प्रकाशकों की राय भी यही है कि यदि किताब अछ्छी है तो युवा ही नहीं हर आयु के लोग उस पुस्तक को खरीदने से नहीं हिचकते हैं।

राजपाल एंड संस के प्रबंधक ने कहा कि देखिए कुछ किताबें ऐसी हैं जिनको पसंद करने वालों की संख्या कम नहीं है। आज भी आचार्य चतुरसेन, फणीशवरनाथ रेणु, बृन्दावनलाल बर्मा, प्रेमचंद के साथ ही दुष्यंत कुमार और धूमिल को पढ़ने वालों की संख्या कम नहीं हुई है।

प्रभात प्रकाशन के पीयूष कुमार कहते हैं, “देश का सामाजिक, आर्थिक औऱ राजनीतिक वातावरण पाठकों के जेहन को प्रभावित करता है। हमारे यहां आने वाले पुस्तक प्रेमी हिंदी साहित्य के कालजयी रचनाओं को खरीदते हैं तो नए लेखकों की रचनाओं को भा खरीदते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पाठकों की पसंद किसी खांचे में कैद नहीं है। वे प्रेमचंद को भी खरीदते हैं तो चेतन भगत को भी।”

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राजकमल प्रकाशन के आमोद माहेश्वरी कहते हैं, “हिंदी साहित्य की जो किताबें विश्वविद्यालयों के कोर्स में शामिल हैं स्वभाविक रूप से वो ज्यादा बिकती हैं लेकिन किसी कारण समय चर्चित हुई किताब भी खूब बिकती है।”

डीयू में पढ़ने वाली स्वाति ग़ज़ल और कविताओं की किताबें पसंद करती हैं। वो कहती हैं कि बातचीत के क्रम में शेर और कविताओं के उपयोग से बात या भाषण प्रभावी हो जाती और दोस्तों पर इसका असर भी पड़ता है। वाद-विवाद प्रतियोगिता से लेकर कहीं भी ऐसी पुस्तकें लाभदायक होती हैं।

सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज कहते हैं कि उपन्यसों के साथ ही पत्रकारिता,पर्यावरण और वैचारिक पुस्तकें भी पसंद की जाती हैं। चर्चित उपन्यास तो हमेशा बिकते हैं। लेकिन पुस्तक मेले में कविता औऱ कहानी की पुस्तकें भी बिकती हैं।

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सरकारी प्रकाशकों मसलन एनसीआरटी, प्रकाशन विभाग और एनबीटी के स्टॉल पर सरकारी अधिकारी, प्राध्यापक, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले प्रोफेशनल्स के साथ ही कॉलेज के छात्रों और युवाओं की खूब भीड़ देखने को मिली। छात्र जहां कोर्स की किताबें और कम्पटीशन में काम आने वाली किताबों को खरीदने में जुटे थे वहीं सरकारी नौकरी वाले लोग वैज्ञानिक शब्दावली और कार्यालयों में दिन प्रतिदिन उपयोग आने वाली किताबों का खरीदते दिखे।

पुस्तक मेले में आने वाले सिर्फ पुस्तक ही खरीदने नहीं आते हैं। पुस्तक मेला में हर वर्ष बच्चों को ध्यान में रखते हुए बाल मंडप बनाया जाता है। बाल मंडप में बच्चों को खेल के साथ ही लेखन, वाद-विवाद और कहानी-कविता प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। बाल मंडप में ‘जीवन में शिष्टाचार और खुशी' शीर्षक की एक लघु नाटिका का मंचन था। बच्चों ने बताया कि उन्हें कौन-कौन से काम करने से खुशी मिलती है। इसके साथ ही बाल मंडप में किड्स मोटिवेशनल ग्रुप द्वारा ‘स्लोगन-राइटिंग पोस्टर मेकिंग' शीर्षक कार्यक्रम रखा गया था। पुस्तक मेले में हर बार की तरह इस बार भी थीम मंडप, बाल मंडप, लेखक मंच और सेमिनार हॉल में आयोजित कार्यक्रमों ने लोगों का मन मोह लिया।

23 हज़ार वर्ग मीटर पर फैले हुए पुस्तक मेले में 600 से अधिक प्रकाशक और 1300 से अधिक स्टॉलों के साथ मेले में 20 से अधिक विदेशी प्रतिभागी भी शामिल रहे।

मेले की थीम ‘‘लेखकों के लेखक महात्मा गांधी’’ विषय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। डॉ. कमल किशोर गोयनका ने गांधी के अनेक अनछुए पहलुओं की जानकारी देते हुए उनको एक ‘विशिष्ट लेखक' बताया और कहा कि उनके जैसा प्रभूत लेखन करने वाला संभवतः उस युग में कोई नहीं था। नंदकिशोर आचार्य ने गांधी को एक ‘विद्रोही लेखक' बताया और कहा कि गांधी मानव के बर्बरीकरण के खिलाफ थे। डॉ. राजीव राज ने कहा कि गांधी संभवतः सार्वकालिक महान पत्रकार हैं, जिन्होंने निडर होकर अपने समय की व्यवस्था की कुरीतियों को उजागर किया। गांधी ने पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में देखा जो आज के पत्रकारों में नदारद है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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