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CAA आंदोलन के दौरान योगी को ‘खुला पत्र’ लिखने वाले छात्र को राजनीति विज्ञान में मिले 100% अंक

सूफ़ी सिद्धार्थ कबीर ने अपने ‘खुले पत्र’ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से कहा था कि “सरकार की आलोचना और विरोध करना” नागरिकों का मौलिक अधिकार है।
Sufi Siddhartha Kabir

केवल 15 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को “खुला पत्र” लिखकर “लोकतंत्र और संविधान” की व्याख्या करने वाले छात्र ने इंटरमीडिएट (बारहवीं) की परीक्षा में “राजनीति विज्ञान” विषय में 100 में 100 अंक प्राप्त किए हैं।

नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरुद्ध चल रहे आंदोलन और प्रदर्शनों के दौरान वर्ष 2019-20 में हो रही गिरफ़्तारियों के समय कक्षा 9 के छात्र, सूफ़ी सिद्धार्थ कबीर ने अपने “खुले पत्र” में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से कहा था कि “सरकार की आलोचना और विरोध करना” नागरिकों का मौलिक अधिकार है।

सूफ़ी कबीर अब क़रीब 17 वर्ष के हैं और उन्होंने हाल ही में इंटरमीडिएट (बारहवीं) की परीक्षा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से 95.8 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की है। कक्षा 9 में उन्होंने ने अग्रेज़ी में जो “खुला पत्र” लिखा था, वह सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हुआ था।

उस समय मीडिया में भी कबीर के पत्र पर ख़बरें आई थीं। क़रीब तीन वर्ष बाद कबीर की राजनीतिक समझ पर एक बार फिर चर्चा हो रही है क्योंकि कक्षा 9 के वक़्त छोटी उम्र में “लोकतंत्र और संविधान” पर “खुला पत्र” लिखने वाले छात्र ने बोर्ड परीक्षा में भी “राजनीति” पर अपने ज्ञान का बेहतरीन उद्धरण पेश किया है।

लखनऊ में न्यूज़क्लिक ने सूफ़ी कबीर से उनके राजनीतिक विचारों और भविष्य की योजना के बारे में जाना।

सूफ़ी कबीर अपने पिता दीपक कबीर और माता वीना राना की ही तरह महिलाओं,अल्पसंख्यकों, दलितों और वंचितों के उत्पीड़न के विरुद्ध मुखर होकर बोलने के पक्षधर हैं।

राजनीतिक समझ का जन्म

उन्होंने ने बताया कि परिवार में माता-पिता के बीच होने वाली राजनीतिक चर्चा से इनके अंदर राजनीतिक समझ ने जन्म लिया। लेकिन इस दौरान उन्होंने खुद अलग-अलग विषयों की किताबों का अध्यन कर के अपनी समझ में इजाफा किया है और साथ ही स्पष्टता पैदा करी है।

घर के माहौल में राजनीतिक विषयों पर होने वाली चर्चा के साथ-साथ अपने आस-पास की घटनाओं पर सवाल कर के भी उन्होंने बहुत कुछ सीखा है।

रंगमच और एक्टिविज़म से जुड़े दीपक कबीर के बेटे को डॉ. भीमराव अंबेडकर, कार्ल मार्क्स और नोम चोम्स्की जैसे राजनीतिक चिंतकों को पढ़ना पसंद है।

फिल्म मेकिंग में भी रूचि

अपने भविष्य के बारे में बात करते हुए कबीर कहते है कि उनकी रूचि “राजनीति विज्ञान” में है। फ़िलहाल वह दिल्ली विश्वविद्यालय से “राजनीति विज्ञान” में स्नातक (बैचलर्स ऑफ आर्ट्स, बीए ऑनर्स) करने की तैयारी कर रहे हैं। जिसके बाद वह फिल्म मेकिंग में स्नातकोत्तर करना चाहते हैं क्योंकि वह अपना भविष्य फिल्म मेकिंग में बनाना चाहते हैं।

वह बताते हैं कि बॉलीवुड में उनकी पसंदीदा फिल्म 'मसान और कोर्ट' हैं। इसके अलावा 'पोर्ट्रेट ऑफ ए लेडी ऑन फायर' और 'चुंगकिंग एक्सप्रेस' आदि फिल्म भी उनको पसंद हैं। 'वोंग कार-वाई' और 'ल्फांसो क्वारोन' उनके पसंदीदा फिल्म निर्देशक हैं।

"द केरल स्टोरी एक षड्यंत्र"

फिल्मों में रूचि रखने वाले सूफ़ी कबीर कहते हैं, "हाल में रिलीज़ हुई विवादास्पद फिल्में “द कश्मीर फाइल्स” और “द केरल स्टोरी” जिसका दक्षिणपंथियों द्वारा बहुत प्रचार किया गया, केवल षड्यंत्र है।"

कबीर का कहना है, "जब पीएम नरेंद्र मोदी पर बनी बायोपिक और राम सेतु जैसी “हिंदुत्व” पर आधारित फिल्म नहीं चल सकी तो एक षड्यंत्र के तहत एक धर्म विशेष को फिल्मों द्वारा निशाना बनाया जाने लगा जिसका उद्देश्य समाज में नफ़रत पैदा करना है।"

सूफ़ी का ख़त 

न्यूज़क्लिक ने सूफ़ी कबीर से उनके खुले ख़त के बारे में भी सवाल किए जो उन्होंने उस समय दिसंबर 2019 और जनवरी-फरवरी 2020 में लिखा था जब उनके पिता दीपक कबीर, समेत हज़ारों लोग सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान जेलों में बंद थे।

बता दें कि आरोप लगा था कि सीएए के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में क़रीब 20 प्रदर्शकारियों की मौत हो गई थी जिसका इल्ज़ाम पुलिस पर लगा था। हालांकि पुलिस ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।

इसके अलावा प्रदेश भर में असहमति की आवाज़ उठाने वाले ऐक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी चल रही थी।

ऐसे में सूफ़ी कबीर के ख़त से सोशल मीडिया पर हलचल मच गया था। उल्लेखनीय है उन्होंने मुख्यमंत्री को संबोधित अपने ख़त में लिखा था, "आपने अलोकतांत्रिक काम किया है और फिर भी खुद को लोकतांत्रिक कहने में कामयाब रहे हैं, उसके लिए बधाई।"

कबीर ने जनवरी 2020 की शुरुआत में लिखे अपने पत्र में कहा कि, “प्रिय श्रीमान योगी जी, मुझे उम्मीद है कि आपका साल अच्छा बीता होगा, आपको लोगों की आवाज़ को दबाने, बच्चों की हत्या आदि ख़बरें प्राप्त हुई होंगी। मैं निश्चित नहीं कि आप उस पर कैसी प्रतिक्रिया देंगे।"

कबीर ने अपने और उस वक़्त के हालात के बारे में लिखा कि, "एक 15 साल के बच्चे का अच्छा समय नहीं है जब उसके पिता पिछले 15 दिनों से जेल में हैं। मैंने अपने ही शहर के आस-पास ऐसी क्रूरता देखी है कि "नया साल मुबारक हो" के बारे में सोचना भी व्यर्थ है।"

इसके अलावा अपने पत्र में उन्होंने लिखा :

"मैंने हमेशा सोचा है और मुझे हमेशा सिखाया गया है कि विरोध करना, सरकार की आलोचना करना और एक अन्यायपूर्ण क़ानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना हमारा संवैधानिक अधिकार है।

मैं ऐसे माहौल में पला-बढ़ा हूं जहां मैंने बहुत कम उम्र से ही विरोध प्रदर्शनों में जाना शुरू कर दिया था, मैंने अपने आस-पास देखा है और उससे सीखा है कि हमें हमेशा अन्याय के ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए। ईमानदार होने के लिए हमने बस इतना ही किया है।

मुझे आप बताएं कि आपकी पुलिस ने हिंसक लोगों को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया। मुझे जानना है कि आप ने राज्य भर में हज़ारों बेगुनाहों को क्यों गिरफ़्तार किया है?

मेरी उम्र 15 साल है, इन 15 सालों में जितने बीजेपी नेता किसी परीक्षा में पास हुए हैं, उससे ज़्यादा विरोध-प्रदर्शनों और जुलूसों में, मैं शामिल हुआ हूं। ये सब पहले तो कभी नहीं होता था। लोगों के दिलों में ऐसा डर मैंने कभी अनुभव नहीं किया। आपके सांप्रदायिक प्रचार से मेरे दोस्त अंदर तक डरे हुए हैं, ऐक्टिविस्ट और निर्दोषों को बंद कर दिया गया है, और दंगाई खुले घूम रहे हैं।"

(नोट : यह सूफ़ी कबीर के खुले ख़त का मोटे तौर पर किया गया अनुवाद है।)

कबीर ने बताया कि उन्होंने यह पत्र उस समय लिखा जब उन्हें एहसास हुआ कि "एक लोकतांत्रिक सरकार ने तानाशाही रवैया अपना लिया है। सरकार द्वारा अपनी शक्तियों का ग़लत उपयोग किया जा रहा था, उन लोगों के ख़िलाफ़ जो एक विवादास्पद क़ानून के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे थे।"

"राजनीतिक बदलाव आएगा"

अगस्त में 18 साल के होने जा रहे सूफ़ी को विश्वास है कि "देश में राजनीतिक बदलाव आएगा। सूफ़ी मानते हैं कि लोगों में मूल मुद्दों जैसे रोज़गार आदि को लेकर बेहद निराशा है और जिस दिन जनता का ध्यान विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था की तरफ़ चला गया, उस दिन देश में राजनीतिक बदलाव ज़रूर हो जायेगा।"

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