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उत्तर प्रदेश: सामाजिक सुरक्षा के मुद्दे पर लामबंद होते असंगठित मज़दूर

“दुर्भाग्य है कि देश की जीडीपी में 45 फ़ीसदी का योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र के क़रीब 95 फ़ीसदी मज़दूरों के लिए कोई योजना नहीं है।”
unorganised workers

उत्तर प्रदेश के क़रीब 8 करोड़ 30 लाख असंगठित मज़दूर सामाजिक सुरक्षा के सवाल पर लामबंद हो रहे हैं। असंगठित मज़दूरों के संगठनों का कहना है कि "देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 45 फ़ीसदी का योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का जीवन बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी के कारण कठिन हो गया है।"

मज़दूर संगठनों का कहना है कि "यह दुर्भाग्पूर्ण है कि ऐसे समय में सरकार उनको राहत देने की जगह, 'कल्याणकारी राज्य' की ज़िम्मेदारियों से पीछे हट रही है। इसलिए देश के 95 प्रतिशत असंगठित मज़दूरों को संगठित करना और उनकी सामाजिक सुरक्षा का इंतज़ाम करना आज के दौर के मज़दूर आंदोलन का प्रमुख दायित्व है।"

साझा मंच

प्रदेश के 100 से ज़्यादा असंगठित मज़दूर संगठनों ने 01 अगस्त, मंगलवार को, राजधानी लखनऊ एक-साथ आकर साझा मंच स्थापित किया है। इस मंच से सरकार से ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ 30 लाख असंगठित मज़दूरों के लिए आयुष्मान कार्ड, आवास, पेंशन, बीमा, मुफ्त शिक्षा व रोज़गार की मांग की गई है।

न्यूज़क्लिक ने लखनऊ में हुए सम्मलेन में उठी मांगों और असंगठित मज़दूर संगठनों की समस्याओं के बारे में मज़दूर नेताओं से बात करी। यूपी वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर कहते हैं कि "संविधान का अनुच्छेद 21, 39, 41 और 43 भारत के हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। इसी के तहत मज़दूरों के बेहतर जीवन और सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बनाए जाते हैं।"

"मज़दूरों के लिए कोई योजना नहीं"

कपूर आगे कहते हैं, "लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस देश में मज़दूरों के लिए बने कानूनों को लागू कराने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। देश की जीडीपी में 45 प्रतिशत का योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र के क़रीब 95 प्रतिशत मज़दूरों के लिए कोई योजना नहीं है।"

वे बताते हैं कि "असंगठित मज़दूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 2008 में कानून बना, कोरोना काल में मज़दूरों की हुई दुर्दशा को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ई-पोर्टल का निर्माण किया गया। लेकिन आज तक सामाजिक सुरक्षा कानून लागू नहीं किया गया।"

"श्रमिकों को मिले लाभार्थी का दर्जा"

दिनकर कपूर ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर तंज़ करते हुए कहा कि "सरकार लाभार्थियों की बड़ी बातें करती है, लेकिन यदि सरकार ईमानदार है तो ई-पोर्टल पर दर्ज पंजीकृत सभी श्रमिकों को लाभार्थी का दर्जा देकर सरकार द्वारा लाई गई योजनाओं का लाभ दिया जाए।"

बेकरी मज़दूरों की समस्या

बेकरी यूनियन के महामंत्री मोहम्मद नावाज़ी ने न्यूज़क्लिक ने बात करते हुए कहा कि "आज ज़्यादातर बेकरी मज़दूर ठेके पर काम कर रहे हैं जिनकी आमदनी मात्र 10 से 12 हज़ार रुपये महीना होती है, क्या इतने कम पैसों में घर का ख़र्च और बच्चो की अच्छी शिक्षा दोनों संभव है? अगर आज बच्चो को अच्छी शिक्षा नहीं मिलेगी तो इसका नकारात्मक असर कल देश पर पड़ेगा। लेकिन सरकार का धयान इस तरफ जाता ही नहीं है।"

बेकरी यूनियन के महामंत्री ने बताया कि कुछ पुराने मज़दूरों को पेंशन के नाम पर दो से ढाई हज़ार रुपये मिलते है। वह सवाल करते हैं, "क्या इस महंगाई के दौर में इतने कम पैसों में एक परिवार का गुज़ारा हो सकता है? उनका कहना हैं कि पेंशन कम से कम 5 हज़ार रुपये होनी चाहिए। नावाज़ी ने बताया कि "पहले किसी दुर्घटना पर 2 लाख और मौत पर 5 लाख तक का मुआवज़ा मिलता था, लेकिन ठेकेदारी प्रथा से यह ख़त्म हो गया है।"

"मेनस्ट्रीम मीडिया हमारी समस्या नहीं दिखाता"

घरेलू कामगार महिलाओं का कहना है कि वे संकट के दौर से गुज़र रही हैं लेकिन उनकी समस्याओं को लेकर होने वाले धरने, प्रदर्शन, सभाओं और आंदोलन आदि की ख़बरों को मुख्यधारा का मीडिया नहीं दिखाता है। महिला घरेलू कामगार संघ की अध्यक्ष सीमा रावत ने न्यूज़क्लिक ने कहा कि "सबसे पहले सरकार घरेलू कामगार महिलाओं के लिए 'न्यूनतम वेतन क़ानून' बनाये ताकि किसी का शोषण न किया जा सके। इसके अलावा घरेलू कामगार महिलाओं को भी संगठित क्षेत्र में काम करने वालों की तरह एक महीने में 4 और सभी त्योहारों पर छुट्टियां मिलें।"

वह कहती हैं कि "सरकार आंगनवाड़ी की तरह एक स्थान बनाये जहां घरेलू कामगार महिलाएं अपने 6 महीने से 2 साल तक के बच्चो को छोड़कर काम पर जा सकें। घरेलू कामगार महिलाओं का भी ई-श्रम कार्ड बना था लेकिन इसका लाभ 20 प्रतिशत महिलाओं को भी नहीं मिला है।" सीमा रावत के अनुसार केवल राजधानी लखनऊ में 10 हज़ार  घरेलू कामगार महिलाएं हैं।

"कुली का काम ख़त्म"

कुली यूनियन के अध्यक्ष राम सुरेश यादव का कहना है कि रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुलियों का काम लगभग ख़त्म हो गया है। वह कहते हैं कि इस असंगठित मज़दूर वर्ग की सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा को देखते हुए रेलवे को, कुलियों को स्थायी नौकरी देना चाहिए।"

राम सुरेश यादव ने बताया कि "प्लेटफार्म पर जाने के लिए लिफ्ट आदि लगने समेत कई आधुनिक सुविधाओं के चलते यात्रिओं ने कुलियों की सेवाएं लेना लगभग बंद कर दिया है। उन्होंने ने बताया कि "कुली यूनियन लगातार पत्राचार के ज़रिये अधिकारीयों और सरकार को अपनी समस्या से अवगत कराती रही है लेकिन सरकार या अधिकारयों की तरफ से बराबर जवाब नहीं मिलता है।"

“10 हज़ार से कम मज़दूरी"

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महामंत्री उमाशंकर मिश्रा ने कहा कि "देश में अधिकतर मज़दूर 10 हज़ार से कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मजबूर हैं। यह असंगठित वर्ग किसी तरह अपने परिवार की जीविका को चलाते हैं। प्रदेश में तो हालत इतनी बुरी है कि पिछले 5 सालों से 'न्यूनतम मज़दूरी' का भी वेज रिवीज़न तक नहीं किया गया। परिणामस्वरूप प्रदेश में मज़दूरी की दर केंद्र के सापेक्ष बेहद कम है।"

उत्तर प्रदेश असंगठित क्षेत्र भवन एवं वन कास्तकार कामगार यूनियन के प्रदेश महामंत्री प्रमोद पटेल ने बताया कि "निर्माण मज़दूरों के पंजीकरण, नवीनीकरण और योजनाओं के लाभ में 'परिवार प्रमाण पत्र' देने की नई शर्त से मज़दूर लाभ से वंचित हो जायेंगे।" 

असंगठित मज़दूरों की नेता सीता का कहना है कि “अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक आईएलओ कन्वेंशन में भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद घरेलू कामगारों के लिए न तो कानून बनाया गया और ना ही बोर्ड का गठन किया गया है।"

रोज़गार अधिकार कानून की मांग

संयुक्त युवा मोर्चा के केंद्रीय टीम के सदस्य गौरव सिंह ने 'रोज़गार अधिकार कानून' बनाने की मांग की और कहा कि "सरकार निवास से 25 किलोमीटर के अंदर साल भर न्यूनतम मज़दूरी पर रोज़गार देने की गारंटी दे।" श्रम क़ानून सलाहकार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद तारिक किदवई ने कहा कि "नई श्रम संहिता में काम के घंटे 12 कर दिए हैं जिसके कारण मज़दूर आधुनिक गुलामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर होगा।" वहीं मज़दूर किसान मंच के प्रदेश महामंत्री डा बृज बिहारी ने कहा कि "प्रदेश से श्रमिकों का ही पलायन नहीं हो रहा है यहां की पूंजी भी पलायित हो रही है। इसके अलावा मनरेगा का बजट भी कम कर दिया गया है।"

उपश्रमायुक्त कार्यालय, लखनऊ में असंगठित मज़दूरों के साझा मंच की तरफ से मज़दूर प्रतिनिधियों के सम्मेलन में यह मांग भी की गई कि "असंगठित मज़दूरों को 5000 रूपये पेंशन की गारंटी, मज़दूरों के बच्चों को 'शिक्षा अधिकार कानून' के तहत मुफ्त शिक्षा की गारंटी, छात्रवृत्ति, मृत्यु होने पर 5 लाख का बीमा और दुर्घटना पर 2 लाख का बीमा, अंत्येष्टि लाभ और मज़दूरों की बेटियों के विवाह के लिए सरकारी सहायता दी जाए।"

'सामाजिक सुरक्षा बोर्ड' की 3 अगस्त को होने वाली बैठक के मद्देनज़र असंगठित मज़दूरों के सवालों एक मांग पत्र अपर श्रमायुक्त लखनऊ के माध्यम से प्रमुख सचिव श्रम व रोज़गार को भेजा गया है।

सम्मेलन की अध्यक्षता एटक के ज़िला अध्यक्ष रामेश्वर यादव, एचएमएस के प्रदेश मंत्री एडवोकेट अविनाश पांडे, इंटक के प्रदेश मंत्री संजय राय, सेवा की प्रदेश संगठन मंत्री सीता, कुली यूनियन के अध्यक्ष राम सुरेश यादव, घरेलू कामगार अधिकार मंच की सीमा रावत और निर्माण कामगार यूनियन की ललिता ने की। इसके अलावा सम्मलेन का संचालन भवन निर्माण कामगार यूनियन के प्रदेश महामंत्री प्रमोद पटेल ने किया। सम्मेलन में मांग पत्र बेकरी यूनियन के महामंत्री मोहम्मद नावाज़ी ने रखा।

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