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उत्तराखंड: विकास के नाम पर विध्वंस की इबारत लिखतीं सरकारें

देहरादून में जोगीवाला से पेसिफिक गोल्फ सिटी तक, सहस्त्रधारा रोड को फोर लेन सड़क में बदलने का कार्य शुरू हो चुका है, इसके लिए लगभग 2,200 पेड़ों को काटा जायेगा, जिसके लिये प्रशासन द्वारा पेड़ों को चिह्नित भी कर दिया गया है।
Uttarakhand

ये कैसी राजधानी है, ये कैसी राजधानी है, हवा में जहर घुलता है और जहरीला पानी है !
शहर में पेड़ लीची के बहुत सहमे हुए से हैं, सुना है एक 'बिल्डर' को नयी दुनिया बसानी है !! 
न चावल है, न चूना है, न बागों में बहारें है, वो देहरादून तो गम है फ़क़त रस्मे निभानी है !!!

चन्दन सिंह नेगी की एक कविता की यह पंक्तियां दून वैली की वर्तमान स्थिति को बहुत ही सटीकता के साथ बयां करती हैं इस कविता को पढ़ने पर ऐसे लगता है कि दो दशक पहले ही कवि को वर्तमान स्थिति का आभास था लेकिन हुक्मरान और जनता अभी भी इस समस्या से अनजान है।

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक बार फिर पेड़ों पर आरी चलने की तैयारी है, देहरादून एयपोर्ट के विस्तार, देहरादून के ही बालावाला में साइंस रिसर्च इंस्टीटूट और देहरादून-सहारनपुर हाईवे के लिये पहले ही हजारों पेड़ों को काटने की योजना बनाई गयी है और अब जोगीवाला से पेसिफिक गोल्फ सिटी तक सहस्त्रधारा रोड को फोर लेन सड़क में बदलने का कार्य शुरू हो चुका है, इस सड़क को फोर लेन सड़क में बदलने के लिये लगभग 2,200 पेड़ों को काटा जायेगा, जिसके लिये प्रशासन द्वारा पेड़ों को चिन्हित भी कर दिया गया है, साथ ही भानियावाला से ऋषिकेश तक की सड़क को फोरलेन बनाने की कवायद शुरू हो गई है।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने इसका प्रारंभिक सर्वे शुरू कर दिया है। भानियावाला से जौलीग्रांट चौक तक एलिवेटेड हाईवे बनेगा, जिसके अंतर्गत रानीपोखरी और ऋषिकेश के बीच हाथियों के लिए दो अंडर पास भी बनाए जाएंगे। देहरादून मार्ग पर प्रसिद्ध सात मोड को भी सीधा करने की योजना है। आप को यहाँ बताते चलें कि यह क्षेत्र राजा जी नेशनल वन अभ्यारण्य के अंदर आता है जो हाथियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, इस पर पर्यावरणविदों का कहना है कि पहले ही हरिद्वार-देहरादून और हरिद्वार-ऋषिकेश फोर लेन सड़क के बन जाने से हाथियों का यह इलाका काफी सिमट कर रह गया है, ऐसे में भानियावाला से ऋषिकेश तक फोर लेन सड़क के बनने से यहाँ रहने वाले जंगली जंतुओं पर काफी बुरा असर पड़ेगा।

सिटीजन फॉर ग्रीन दून के सोशल मीडिया से साभार

देहरादून को दून वैली के नाम से भी जाना जाता है, गंगा और यमुना के बीच फैला यह भू-भाग अपने आप में प्रकृति की सुन्दर छठा को संजोए हुए उत्तराखंड में अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद से, राज्य की अस्थाई राजधानी होने के कारण, दून वैली में बढ़ती जनसंख्या और जनसुविधा के लिए लगातार हो रहे निर्माण कार्यों के कारण दून वैली की प्राकृतिक सुंदरता कहीं पीछे छूटती जा रही है। दून वैली में हो रहे विकास कार्यो के लिए लगातार जंगलो और पेड़ो को कटा जाता रहा है। 

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सिटीजन फॉर ग्रीन दून के सोशल मीडिया से साभार

दून वैली में अनियोजित और अनावश्यक रूप से हो रहे विकास पर 8 सितम्बर 2021 को देहरादून में विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं ने मिलकर प्रेस वार्ता की, जिसमें सिटीजन फॉर ग्रीन दून, राजपुर कम्युनिटी इनिशिएटिव और फ्रेंड्स ऑफ दून मौजूद थे। प्रेस वार्ता के दौरान विकास कार्यों से प्रकृति को होने वाले नुकसानों के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया कि मानकों का उल्लंघन और जल्दबाजी में की जा रही, अनियोजित परियोजनाओं ने आपदाओं को हमारे घर के करीब लाकर खड़ा कर दिया है, अवैध खनन, पहाड़ को काटना, नदी स्रोतों और जलग्रहण क्षेत्रों में परियोजनाओं की मंजूरी, हमारी घाटी के पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर रही है।

स्थिरता, जैव विविधता की हानि, घटते हरे-भरे जंगल, वन्यजीवों के आवास और उनके गलियारों का विनाश, बढ़ता प्रदूषण, प्रदूषित जल निकाय और नदियों पर होने वाला अतिक्रमण, आज दून वैली के लिए चिंता का विषय हैं, इसी साल हमने देखा किस प्रकार रानीपोखरी का पुल नदी में आये तेज़ बहाव के कारण ताश के पत्तो के तरह टूट गया। संथाला देवी में हुए भूस्खलन की घटना में बड़े-बड़े पत्थर पानी के साथ नीचे आ गए और मालदेवता क्षेत्र में स्थानीय निवासियों के घर मिट्टी और बजरी से भर गए।

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हम अपने राज्य के ऊपरी इलाकों में जो देखते थे अब वह दून घाटी में भी घटित होने लगा है। दून घाटी में जल भराव, अचानक आयी बाढ़, भूस्खलन, राजमार्गों पर गिरने वाले पत्थर और मलबा जीवन के लिए खतरा बन रहा है। जंगल की आग अब केवल प्राकृतिक घटनाएं नहीं हैं, बल्कि गर्मी के मौसम में पहाड़ियों को साफ करने के लिए झाड़ियों में आग लगा दी जाती है। यह भी भूमि और मडस्लाइड के प्रमुख कारणों में से एक बन गया है, इस आग में मिट्टी का हरित आवरण नष्ट हो जाता है और ढलान वाली मिट्टी कमजोर हो जाती है। देहरादून-मसूरी मार्ग पर डीआईटी यूनिवर्सिटी के पीछे (जो वन्यजीव निवास और वन्यजीव गलियारा था) पांच-छह किलोमीटर रिज क्लीयरिंग और राजपुर से तपोभूमि तक, चार करोड़ के बजट से बनी सड़क, चार महीने के भीतर पूरी तरह से नष्ट हो गई। अब ये बहस महज संरक्षण बनाम विकास के बारे में नहीं है, अब सवाल हमारे और हमारे प्राकृतिक संसाधनों के अस्तित्व का है।

काफी हद तक दून वैली की इस दुर्दशा का प्रमुख कारण विकास एजेंसियों, नगर निकायों, स्थानीय निकायों की विफलता और सभी दलों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। एमडीडीए, पीडब्ल्यूडी, स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन, देहरादून और मसूरी के नगर निगम और ऐसे अन्य निकाय अपने कानूनी जनादेश को पूरा करने में विफल रहे हैं। कई बार वे खुद काम करने में असफल हो जाते हैं और कई बार उन्हें काम नहीं करने दिया जाता, हाल ही में हमने देखा कि कैसे नवनियुक्त सचिव हरवीर सिंह जिन्होंने सुधारात्मक उपाय करने और एमडीडीए के भीतर प्रचलित कार्य संस्कृति में सुधार करने, अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का संकल्प लिया था, उनके इस कार्य के लिए सचिव का रातों रात तबादला कर दिया गया। इसी प्रेस वार्ता में विभिन्न संगठनों ने निर्णय लिया कि अगर हमें इन भव्य पुराने जीवन देने वाले पेड़ों को बचाने के लिए एक और चिपको आंदोलन शुरू करना पड़ा तो हम वह भी करेंगे।

सिटीजन फॉर ग्रीन दून के सोशल मीडिया से साभार

सिटीजन फॉर ग्रीन दून के सदस्य हिमांशु अरोड़ा का कहना है कि देहरादून अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है लेकिन यदि पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर सड़क के लिये पेड़ों को काटा जाता है या किसी भी प्रकार के निर्माण के लिए प्रकृति का दोहन किया जाता है तो वह दिन दूर नहीं जब देहरादून दिल्ली बन जायेगा और यदि ऐसा हुआ तो कोई भी पर्यटक देहरादून क्यों आयेगा। इस लिए आज देहरादून वासियों को यह तय करना होगा कि इस अंधे विकास की कीमत क्या होगी, कब तक हम प्रकृति को हो रहे इस नुकसान को अनदेखा करते रहेंगे, इसलिए हमने यह तय किया है कि इस परियोजना में काटे जाने वाले पेड़ो पर रक्षा सूत्र बंधे जायेगे और सरकार फिर भी नहीं मानती है तो एक बार फिर पेड़ो से चिपक कर चिपको आंदोलन की शुरुआत की जायेगी।

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ह्यूमन राइट्स लॉयर और कंज़र्वेशन एक्टिविस्ट रीनू पॉल का कहना है कि राजधानी बनने के बाद देहरादून में लगातार निर्माण कार्यों के लिये पेड़ो को काटा गया है, जिसका सीधा असर दून वैली के मौसम पर हुआ है, पिछले कुछ सालो में हमने देखा है कि किस प्रकार तापमान में वृद्धि और बारिश की मात्रा में बदलाव हुए हैं। विकास बहुत आवश्यक है लेकिन किस कीमत पर होगा, यह जानना बहुत आवश्यक है क्योकि यदि दून वैली में इसी प्रकार विकास के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ होता रहा तो प्राकृतिक आपदाएं बढ़ेंगी और जल्द ही दून वैली से उसकी पहचान छिन जायेगी, समय रहते सरकार को सतत विकास की सही परिभाषा को समझना होगा और जनता को भी नींद से जगा कर अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये इस अंधे विकास से लड़ना होगा। 

देहरादून सहस्त्रधारा रोड का वर्तमान दृश्य, इन्ही पेड़ों को काटे जाने की योजना हैं।

दून साइंस फोरम के संयोजक विजय भट्ट कहते हैं कि पिछले दो दशकों में देहरादून का प्राकृतिक सौन्दर्य अंधे विकास की भेंट चढ़ चुका है, दून वैली में गर्मियों के मौसम में, मानसून से पहले भी बारिश हो जाती थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसा नहीं होता इसके अतरिक्त जो तालाब और जोहड़ हुआ करते थे जिनके होने से भूजल का स्तर बना रहता था वह आज समाप्त हो चुके हैं, नयी बसावट के चलते देहरादून के चारों ओर खेत कम हुए हैं, जिस कारण देहरादून की पहचान यहाँ का बासमती चावल, लीची के पेड़ और चाय के बागान आज लगभग समाप्त हो चुके हैं। यह तो तय है कि विकास की कीमत चुकानी होती है लेकिन हमारे हुक्मरानों ने हमारे शहर से उसकी प्राकृतिक धरोहर जो दून वैली की पहचान होती थी उसी को छीन लिया है।

विजय भट्ट आगे कहते हैं कि हम विकास के विरोध में नहीं हैं लेकिन सरकार को विकास के साथ-साथ हमारी प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर दोनों की ओर ध्यान देने की जरुरत है।

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(लेखक देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं । विचार  व्यक्तिगत हैं।)

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