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पानी को तरसता बुंदेलखंडः कपसा गांव में प्यास की गवाही दे रहे ढाई हजार चेहरे, सूख रहे इकलौते कुएं से कैसे बुझेगी प्यास?

ग्राउंड रिपोर्टः ''पानी की सही कीमत जानना हो तो हमीरपुर के कपसा गांव के लोगों से कोई भी मिल सकता है। हर सरकार ने यहां पानी की तरह पैसा बहाया, फिर भी लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई।''
kapsa

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले से करीब 48 किमी दूर कपसा गांव में करीब ढाई हजार चेहरे प्यास की गवाही देते हैं। ऐसी गवाही जो डबल इंजन की सरकार के तमाम दावों को चिंदी-चिंदी करते नजर आते हैं। कपसा गांव से करीब एक फर्लांग दूर सिवान में इकलौता कुआं सूखने की कगार पर है। इसमें सिर्फ आठ-दस दिन का पानी बचा है। इसके सूख जाने पर कपसा गांव की औरतों और उनके बच्चों को करीब दो किमी दूर से पानी ढोना पड़ेगा। यह कोई नई कहानी नहीं, सदियों पुरानी है। आमतौर पर हर साल गर्मी के दिनों में इस गांव की महिलाएं और बच्चे बीस-पचीस के झुंड में जंगली और पथरीले रास्ते से होकर पानी के लिए दौड़ लगाते हैं। इनकी जिंदगी का ज्यादा समय पानी के इंतजाम में ही खप जाता है। 

कपसा गांव के 55 वर्षीय हर प्रसाद के तीन बच्चे हैं शिवबरत, भवानी और अशोक। तीनों शादी-शुदा हैं। कोई मजूरी करता है तो कोई राजमिस्त्री का काम। इनकी पत्नियां हैं रामदुलारी, सुलोचना और गुड़िया, जिनकी जिंदगी में कोई रंग नहीं। इनकी मंजिल बहुत छोटी है। सिर्फ पानी ढोने,  खाना बनाने और बच्चों को पालने में ही कपसा की औरतें बूढ़ी हो जाती हैं। आमतौर पर हर घर की औरतें पानी ढोती हैं और पुरुष मजूरी करते हैं। मुश्किल सिर्फ औरतों की नहीं, स्कूल जाने वाले ज्यादातर बच्चे और बच्चियां अपनी माओं के साथ पानी के लिए कभी कुएं पर लाइन में खड़े नजर आते हैं तो कभी सिर पर पानी के डिब्बों के साथ। पेयजल संकट के सवाल पर हर प्रसाद भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं, "पानी की परेशानी सिर्फ हमें ही नहीं, समूचे गांव को है। कपसा गांव का इकलौता कुआं सूखने की कगार पर है। पानी जब खत्म हो जाएगा तब हमें दूसरे गांवों की ओर दौड़ना पड़ेगा। डबल इंजन की सरकार का हर घर को पानी देने का दावा झूठा है। अगर हमें पानी की सुविधा मिलती तो पथरीले रास्तों पर भागे-भागे क्यों दौड़ लगाते? हमारी दिनचर्या ऐसी है कि कभी आधी रात को पानी के लिए कुएं की ओर सरपट भागना पड़ता है तो कभी भरी दोपहरी और तपती धूप में। कपसा गांव में लगे ज्यादातर हैंडपंप सूख गए हैं। कुछ हैंडपंपों में काफी मेहनत के बाद बाल्टी-दो बाल्टी पानी आता भी है तो सिर्फ गंदा आता है।"

हर प्रसाद का पूरा कुनबा सुबह-शाम पानी ढोता है

पेयजल के भीषण संकट सिर्फ हर प्रसाद का कुनबा ही नहीं झेल रहा है। करीब 12 लाख की आबादी वाले हमीरपुर के 617 गांवों में हर घर की यही कहानी है। हमीरपुर बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ज़िला है। उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के छह जिले बुंदेलखंड में आते हैं, जहां पानी के बगैर सब सूना है। बिना जल वाली मछली की तरह यहां हर कोई तड़पता रहता है। करीब 97 लाख की आबादी वाले बुंदेलखंड में बहुतों के लिए पीने का पानी जुटाना रोज़ का संघर्ष है। कपसा की रामदुलारी कहती हैं, "जब पीने के लिए पानी मयस्सर नहीं है तो नहाएं कैसे? गांव के बाहर एक छोटा सा पोखरा है और उसी में समूचे गांव के लोग नहाते हैं। कई बार इसी पोखरे से हम पानी भी पीते हैं और इसी में हमारे मवेशी भी नहाते भी हैं। यह पोखरा भी तेजी से सूख रहा है। गर्मी के दिनों में नहाने के लिए साफ पानी हमारे नसीब में नहीं होता। आसपास के गांवों के कुएं सूख जाते हैं तो हमें 15 किमी दूर मौदहां तक पीने के पानी के लिए दौड़ लगानी पड़ती है।" कपसा गांव में कुएं के पास खड़ी सुलोचना बताती हैं, "दोपहर में पानी के डिब्बे लेकर आई थी और अब शाम हो चुकी है। सिर्फ दो डिब्बा पानी ही मिल पाया है। दूषित पानी से बीमारी होती है तो महंगा इलाज कराना पड़ता है। तब रोजी-रोटी में भी कठिनाई होती है।"

करीब ढाई हज़ार की आबादी वाले कपसा गांव के लोग कई पीढ़ियों से हर सुबह उठते ही पानी की फ़िक्र में जुट जाते हैं और गांव से करीब एक फर्लांग दूरी निछद्दम में एक मंदिर के पास बने इकलौते कुएं से पानी लाते हैं, तब जाकर इनका गला तर हो पाता है। इस गांव में हर आदमी की आधी रात पानी ढोने में गुजर जाती है। शाम होते ही दोबारा फिर इस गांव के लोग कुएं की तरफ रुख करते हैं। कपसा के 50 वर्षीय बच्चू वर्मा कहते हैं, "जब से होश संभाला है तब से लेकर आज तक हम कुएं से पानी ही ढो रहे हैं।" 75 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ब्रजरानी, भगवनिया सहित तमाम महिलाएं बताती हैं, "अगर हिसाब जोड़ा जाए तो आधा दिन पानी ढोने में गुज़र जाता है। यह सिलसिला तब से चल रहा है जब से हमने अपने घर के बाहर निकलना सीखा है।"

पानी ढोतीं कपसा की बेटियां

कपसा गांव में एक चबूतरे पर बैठे युवकों से बातचीत हुई तो बिंदा साहू बोले, "हमारे यहां सड़कें ठीक है और दूसरी सुविधाएं भी मौजूद हैं। दिक्कत है तो सिर्फ पीने के पानी की।" पास खड़े संजय शिवहरे और रामराज सिंह ने बताना शुरू किया, "समूचा कपसा गांव खारे पीनी के ऊपर बसा है। यहां धरती से ऐसा पानी निकलता है जो न पीने लायक होता है, न नहाने लायक। लाचारी में हमें पहाड़ियादाई और अछरौड़ कुएं से ढोना पड़ता है जो काफी दूर है। पांच साल पहले कपसा में पानी की सप्लाई के लिए सिजवाही ग्राम समूह पेयजल योजना से जोड़ा गया था। कुछ घरों तक पानी पहुंचा, लेकिन बाद में वह भी बंद हो गया।"

पानी के लिए इकलौते कुएं पर ऐसे लगती है लाइन 

मौदहा तहसील में केन नदी के तटवर्ती गांवों में पेयजल समस्या वाले गावों की फेहरिश्त में सिर्फ कपसा तक सीमित नहीं है। नायकपुरवा, इचौली, सिजवाही और टिकरी का दर्द एक जैसा है। मौदहा से बांदा जाने वाले मार्ग पर उर्दना तक करीब छह किमी सड़क जर्जर दिखाई दी और बाकी ठीक समझ में आई। कपसा गांव के राजू बताते हैं, "हमारे घरों की औरतों की जिंदगी पानी जुटाने में ही खप जाती है। पुरुष मजूरी करते हैं और महिलाएं-बच्चे पानी ढोते हैं। जिनके पास ट्रैक्टर या फिर मोटरसाइकिल है उन्हें पानी ढोने में थोड़ी आसानी होती है। गर्मी के दिनों में कभी-कभी बगल के गांवों से हम साइकिल अथवा बैलगाड़ी में पानी लाते हैं। हमारे गांव के लोगों को पानी मिलने लगे तो हर चीज़ सही हो जाएगी। सार कष्ट दूर हो जाएगा।''

राजू 

शादी के इंतजार में बूढ़े हो रहे युवा

हमीरपुर ज़िले के कपसा गांव में समस्या थोड़ी अलग है। यहां पूरे गांव में हैंडपंप का पानी खारा आता है। इसलिए लोग गांव के बाहर एक कुएं पर ही निर्भर हैं। यह कुआं जब सूख जाता है तब करीब दो किलोमीटर दूर से पानी ढोना पड़ता है। यहां पीने का पानी एक बड़ा ऐसा संकट है, जिसके चलते आसपास के गावों के लोग अपनी बेटियों की शादी कपसा में नहीं करना चाहते। ''न्यूजक्लिक'' से दुखड़ा सुनाते हुए रामकिसुन कहते हैं, ''भीषण पेयजल संकट का असर हमारे सामाजिक ताने-बाने पर पड़ रहा है। हालात ये हैं कि कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी इन गांवों में नहीं करना चाहता है। यहां शादी के इंतजार में तमाम युवा बूढ़े होते जा रहे हैं। पेयजल संकट के चलते कई लोगों की शादियां रुक गईं। जो बगल वाले गांव में रिश्तेदारी करने के लिए आते हैं वो कहते हैं कि कपसा गांव में शादी नहीं करेंगे। वहां पानी नहीं है इसलिए अपनी बेटियों का ब्याह नहीं करेंगे। ब्याह कर भी दें तो पानी ढोना उनकी नियति बन जाएगी। कपसा गांव में लोग अपनी बेटियों की शादी करने से कतराते हैं। बस पानी की वजह से इस गांव में करीब 40 फीसदी कुंआरा आदमी है। मनीष, पुनीत, संजय, दीपू राम बहादुर समेत पचासों लड़के कुंवारे घूम रहे हैं। इनकी शादियां सिर्फ पानी के संकट की वजह से नहीं हो पा रही हैं।''

हमीरपुर जिले में पेजलल संकट से जूझ रहे कपसा सरीखे सभी गांवों में बड़ी संख्या में युवा आज भी कुंवारे हैं। यदि किसी की शादी हो भी जाती है तो वह अपनी बहू को लेकर बाहर रहने निकल जाता है। रामकिशुन यह भी कहते हैं, ''शादी के बाद जो औरतें कपसा की बहू बनती हैं उन्हें रोजाना सात से आठ घंटे पानी ढोना पड़ता है। यहां औरतों को सिर पर बाल्टी अथवा प्लास्टिक का डिब्बा रखकर आते-जाते कोई भी देख सकता है। चुनाव के वक्त सभी दलों के नेता आते हैं और पानी ढोने की मुश्किलों से छुटकारा दिलाने के बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन बाद में उनके दर्शन नहीं होते। कई पीढ़ियां गुजर गईं, लेकिन पेयजल समस्या का स्थायी समाधान आज तक नहीं हुआ। बुंदेलखंड में अप्रैल-मई महीने से पीने के पानी का सबसे बुरा संकट दिखता है। यहां हर साल सूखे के हालात बनते हैं और फिर लोग कई किलोमीटर दूर जाकर पानी लाकर गुज़ारा करते हैं।''

रामकिशुन

कपसा में पेयजल समस्या के समधान के लिए कोशिशें बहुत हुईं, लेकिन सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं और ग्रामीणों को शुद्ध पानी नसीब नहीं हो सका। इस गांव से करीब एक फर्लांग दूर इकलौता कुंआ ही पानी का सहारा है, जो सूखने की कगार पर है। विश्व बैंक की सहायता से केन नदी से खंडेह पेयजल योजना के नाम से बनी योजना से कपसा, गुसियारी, फतेपुरवा, जिगनौड़ा, इचौली, नायकपुरवा आदि गांवों को पानी दिया जाना था, लेकिन वह योजना फेल हो गई। करीब 18 साल बाद कपसा, गुसियारी व फतेपुर गांव के लिए सिजवाही में तीन नलकूपों की स्थापना कर पानी की आपूर्ति के लिए टंकी बनाई गई, लेकिन वह भी सफेद हाथी साबित हुई। करोड़ों रुपये बर्बाद करने के बाद भी कपसा समेत किसी गांव को भी पानी नहीं मिला। अब पानी की सप्लाई के लिए एकल योजना बनाई गई है, जिससे समीपवर्ती गांव खंडेह और इचौली के लोगों को थोड़ी राहत मिली है। कपसा की योजना दो वर्ष बीतने के बाद शुरू नहीं हो सकी है। 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में कपसा के लिए 3 करोड़ 5 लाख की योजना स्वीकृति हुई थी। धन भी रिलीज हो गया था। जल निगम ने गांव के समीप दो नलकूप खुदवाएं, लेकिन खारा व कम पानी होने की वजह से इस योजना का भी दिवाला पिट गया। अब सिजवाही के निकट दो नलकूप स्थापित किए गए हैं। अवर अभियंता राम रतन कहते हैं, ''पूर्व में सिजवाही से जो पाइप लाइन कपसा के लिए डाली गई थी, उससे गांव के बाहर तक पानी की आपूर्ति हो रही थी। गांव के बाहर ही एक पुराने कुएं में गांव प्रधान ने इस पाइप लाइन का कनेक्शन डाला था और उसी से अब पानी भरा जा रहा है। पेयजल योजना में दो नलकूप तैयार किए गए हैं, लेकिन नीचे पत्थर होने की वजह से उन्हें काटने के लिए ड्रिल मशीन मंगाई गई है। कपसा में पानी की टंकी बननी है, जिसे पूरा होने में अभी कुछ और महीने लगेंगे।'' 

हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र के कपसा गांव की आर्थिकी खेती पर टिकी है। यहां चना, मसूर, लाही, मटर और गेहूं की खेती होती है। इस गांव में ठाकुर, शिवहरे, पाल, दलित, जाट, लोहार, कोइरी-कुशवाहा, तेली, साहू आदि जातियों के लोग रहते हैं। हालांकि संपन्नता सिर्फ ठाकुर और शिवहरे (कलवार) जाति के लोगों में दिखती है। भैरव कहते हैं, ''कपसा में सिंचाई का कोई साधन नहीं है। जमीन बढ़िया है, लेकिन खेती भगवान भरोसे होती है। पानी मिलने पर सब कुछ पैदा होता है। बिना पानी के सब सूना हो जाता है। बारिश के दिनों में बगीचे लगाए जाते हैं तो गर्मियों में सूख जाते हैं। कपसा में कुएं से पानी रस्सी से निकाला जाता है और यहां डिब्बों की लाइन लगती है। जून महीने में जब गांव के कुएं का पानी खत्म हो जाता है तब लोगों को टिकरी से पानी ढोना पड़ता है। कुछ लोग पहाड़िया से लाते हैं। पानी ढोने के लिए साइकिल, मोटरसाइल, ट्रैक्टर, बैलगाड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। गरीब तबके के लोगों के नसीब में सिर्फ सिर पर पानी ढोना लिखा होता है।''  

भैरव

हर आदमी ढोता है पानी

कपसा गांव के लोगों की स्थिति यह है कि गर्मी के दिनों में दुश्वारियां झेलते हुए लोग मौदहा स्थित अपने रिश्तेदारों के यहां रोजाना नहाने और कपड़े धोने तो जाते ही हैं। ग्रामीण मुमताज अहमद, कबीर अहमद, इरशाद कहते हैं, ''पानी की किल्लत ने सभी की दिनचर्या बदलकर रख दी है। अधिकांश लोग घर की औरतों और बच्चों को भोर में ही पानी ढोने के काम में लगा देते हैं। औरतें-बच्चे साइकिल, बैलगाड़ी या फिर पैदल ही पानी लेने के लिए निकल पड़ते हैं। अभी तो जून की महीना बाकी है। पानी का अभी यह हाल है तो बाद में क्या होगा? ''

कपसा गांव में अगर किसी के यहां कोई जलसा या फिर शादी-विवाह होता है तो सबसे ज्यादा मशक्कत पानी के लिए उठानी पड़ती है। दो दिन पहले ही लोग पानी की जुगत में जुट जाते हैं। ग्रामीण राममूरत सिंह, सागर वर्मा, बबलू प्रजापति व सुरेश प्रजापति कहते हैं, ''सिर्फ कपसा ही नहीं, गुसियारी, गुढ़हा, नायकपुरवा, इचौली जैसे गांवों में कई सालों से पानी की भीषण समस्या है। यहां की धरती की गोद से निकलने वाला पानी नकम की तरह खारा है, जिसे जानवर तक पीना गवारा नहीं करते। ऐसे में उस पानी को इंसान भला कैसे पी सकते हैं?'' नायकपुरवा निवासी सुरेश वर्मा कहते हैं, ''कुछ चुनी हुई जगहों पर ही कुओं का पानी ही मीठा है। बाकी सभी जगह हैंडपंप से गंदा और खारा पानी निकलता है। पीने के पानी का इंतजाम मीठे जल वाले कुओं से ही करना पड़ता है।''

यूपी सरकार ने नलकूप लगाकर कई गांवों तक पानी पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन ज्यादातर पेयजल योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। भीषण गर्मी में कोसों दूर पानी के लिए जाना पड़ता है। कहानी अभी भी पुरानी है। परिवार के एक सदस्य का पूरा दिन पानी के इंतजाम में बीत जाता है। कपसा गांव में सड़क किनारे मिले रवि और सौरभ। दोनों ने गांव की मुश्किलें गिनानी शुरू कर दी, ''गांव के अंदर की सड़कें जर्जर है। कपसा में पेयजल के लिए पांच योजनाएं बनीं, मगर कोई सफल नहीं हो सकीं। एक छोटा सा कुआं आखिर कब तक ढाई हजार लोगों की प्यास बुझाता रहेगा?'' 

मौदहा ब्लॉक क्षेत्र के कपसा गांव के तमाम बुजुर्गों से बातचीत की गई तो सभी कहना था कि जब से उन्होंने होश संभाला है तब से पानी की तलाश करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। सूबे में जब योगी सरकार बनी तब उसने "हर घर नल योजना' के तहत हर घर तक पानी पहुंचाने की बात कही थी। दावा किया गया था कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही यह योजना शुरू हो जाएगी। मगर अफसोस, सरकार के पानी पहुंचाने के दावे झूठे निकले। कपसा गांव के रुद्र प्रताप सिंह, शत्रुध्न, सुनील, बाबू सिंह, संजय शिवहरे, जयशंकर के मुताबिक, ''आजादी के बाद से आज तक उन्हें शुद्ध पेयजल नहीं मिल सका है। हम पानी के लिए तीन किमी दूर जाने के लिए मजबूर हैं। अभी तो गनीमत है। आसमान से जब आग बरसती है तब इस गांव का इकलौता कुआं भी सूख जाता है और सारे हैंडपंप जवाब दे जाते हैं। तब तीन किमी दूर गुसियारी मार्ग से पहाड़िया के निकट वाले कुएं से पानी ढोना पड़ता है।'' 

पानी उतार देता है पानी 

हमीरपुर के पत्रकार राजीव त्रिवेदी के मुताबिक, ''गर्मी के दिनों में बुंदेलखंड की धरती जलविहीन हो जाती है। पेयजल की ज्यादतर योजनाएं कागजी हैं और पानी के लिए लोग एक गांव से दूसरे सुदूर गांव जाने के लिए मजबूर हैं। पानी की सही कीमत जानना हो तो हमीरपुर के कपसा गांव के लोगों से कोई भी मिल सकता है। हर सरकार ने यहां पानी की तरह पैसा बहाया, फिर भी लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई। कपसा का इकलौता कुआं इस गांव के करीब ढाई हजार लोगों की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है। अधिसंख्य ग्रामीण करीब 15 किलोमीटर दूर मौदहा में रिश्तेदारों के यहां से पानी लेने जाते हैं। कह सकते हैं, यदि कपसा निवासियों की रिश्तेदारी मौदहा न होती तो पानी उनका 'पानी' उतार देता।''

हमीरपुर जिले में करीब 150 ऐसे गांव हैं, जहां पानी के लिए लोगों को जंग करनी पड़ती है। पानी की टंकियां शोपीस बनी हुईं हैं और हैंडपंप धोखा दे रहे हैं। यही हालत तालाबों की है। विभागों के दावे और हकीकत में कोसों दूर का फासला है। बुंदेलखंड के मौदहा, राठ, सरीला क्षेत्र के कई गांवों ऐसे हैं, जहां पीने का पानी मिल जाए तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम हो गया। मौदहा प्रखंड में सिर्फ कपसा ही नहीं, बक्सा और छानी ऐसे गांव हैं, जहां जमीन के नीचे पानी की तलाश में लोग कई किलो मीटर तक भटकते हैं। कुआं आदि की खोदाई करने से पहले पत्थरों से टकराना पड़ता है। ममना, टाई, बीलपुर सहित दर्जन भर ऐसे गांव हैं, जहां गर्मियों में जलस्तर 160 फुट नीचे पहुंच जाता है। कुरारा ब्लाक के पतारा, नैठी, भौली, शेखूपुर में पानी का संकट हर वक्त बना रहता है। मौदहा तहसील में गर्मी ही नहीं, हर मौसम में लोगों को पीने के पानी का भीषण संकट झेलना पड़ता है। यही हाल यहां के अरतरा, करगांव, लेवा आदि गांवों का है। 

हमीपुर में जलकल विभाग, सिंचाई विभाग और जलनिगम की रिपोर्ट दावा करती हैं जिले में कहीं कोई पेयजल की समस्या नहीं है। इन महकमों के अफसरों ने हमीरपुर के कलेक्टर को जो सूची मुहैया कराई है उसमें जल संस्थान के 1907 हैंडपंप हैं, जिनमें 1709 बिल्कुल सही ढंग से काम कर रहे हैं। हमीरपुर में अनुरक्षित पाइप पेयजल योजनाओं की संख्या 88 है, जिसमें जल निगम की 28, जल संस्थान की 18 और ग्राम पंचायत की 42 पाइप पेयजल योजनाएं हैं। नंगा सच यह है कि सभी गावों के ज्यादातर हैंडपंप सूख गएं हैं, बिगड़े हैं या फिर मरम्मत के अभाव में उनमें से पानी नहीं आ रहा है। यही हाल तालाबों का है। कुछ एक तालाब ही बचे हैं, जिनमें पानी है। बाकी सब के सब सूख गए हैं। तापमान में उत्तरोत्तर वृद्धि बुंदेलों के लिए चिंता का बड़ा सबब होता है, क्योंकि बुंदेलखंड के अधिकांश क्षेत्र में पेयजल की किल्लत हो जाती है। कई बार तो खून बहने-बहाने की नौबत आ जाती है। मौदहा क्षेत्र में तो लोगों को पीने के पानी के लिए कई किलोमीटर की दूरी तक तय करनी पड़ती है।

प्यासे रह जाते हैं बुजुर्ग और बच्चे

ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के राष्ट्रीय संयोजक एवं प्रदेश महासचिव देवी प्रसाद गुप्ता कहते हैं, ''सिर्फ कपसा ही नहीं, समूचा हमीपुर जिला पेयजल संकट को लेकर अभिषप्त है। यहां रात का अंधेरा दूर भी नहीं होता कि लोग पानी की खोज में निकल पड़ते हैं। जिन गांवों में हैंडपंप लगे हैं उससे थोड़ा सा पानी गिराता है और फिर हांफते हुए जबाव दे देता है। बुंदेलखंड में पानी का संकट बहुत पुराना है। यहां ट्यूबवेल सफल नहीं हैं। हैंडपंप के पानी में लौह तत्व की अधिकता है। यह भी एक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण है। मौदहां इलाके में ऐसे तमाम लोग मिल जाएंगे जो गर्मी के दिनों में पानी की कमी के चलते महीने में सिर्फ दो-तीन दिन ही नहाते हैं और कपड़े धोते हैं। बच्चे खुजली और उल्टी-दस्त के शिकार होते हैं।''

देवी प्रसाद यह भी कहते हैं, ''बुंदेलखंड में पेयजल को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कतें बुजुर्गों और बीमार लोगों को झेलनी पड़ती हैं। बढ़ते जल-संकट के बीच कई बार चूक हो जाती है तो बुजुर्गवार प्यासे रह जाते हैं। बुंदेलखंड के अधिसंख्य स्कूलों में हैंडपंप चालू हालत में नहीं हैं। बच्चे बोतल में पानी लेकर जाते हैं। ज्यादा प्यास लगने पर वह घर लौट आते हैं। तमाम गांवों में पानी के स्रोत ऊंची जातियों के कब्जे में हैं। गरीब तबके के लोगों को पानी उनके रहमोकरम पर ही मिल पाता है। कपसा और आसपास के कई गांवों को एक मर्तबा ड्राई बेल्ट घोषित किया गया था। करीब 25 साल पहले लिफ्ट पेयजल पाइप लाइन बिछाई गई थी, लेकिन वह भी सफल नहीं पाई। अनुपयोगी होने के कारण लोग पाइप उखाड़ ले गए लोग।''

पढ़ाई से ज्यादा जरूरी पानी की ढुलाई

कपसा के समीपवर्ती गांव इचौली के युवराज सिंह और उनका कुनबा दशकों से इस इलाके का प्रतिनिधित्व यूपी विधानसभा में करता रहा है, लेकिन हालात जस के तस हैं। हमीरपुर विधानसभा के मौजूदा विधायक डा. मनोज प्रजापति (भाजपा) और सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल पेयजल संकट के समधान के लिए दावे तो बड़े-बड़े करते हैं, लेकिन इनकी कोशिशें नक्कारखाने में तूती साबित हो रही हैं। हालांकि पेयजल व्यवस्था दुरुस्त रखने और प्यासे लोगों की मुश्किलों के शीघ्र निस्तारण के लिए हमीरपुर के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रभूषण ने इस बार विकास भवन में पेयजल कंट्रोल रूम खुलवाया है, जिसका फोन नंबर 05282-221196 है। यहां कर्मचारियों की चौबीस घंटे की ड्यूटी लगाई गई है। पेयजल व्यवस्था के लिए डीपीआरओ राजेंद्र प्रकाश को नोडल अधिकारी बनाया गया है और इनका मोबाइल नंबर 7007722946 सार्वजनिक किया गया है। प्रशासन के लाख दावों के बावजूद लोगों की प्यास बढ़ती जा रही है और संकट पहले से ज्यादा गहराता जा रहा है। 

पानी में खर्च हो गए अरबों रुपये

''न्यूजक्लिक'' ने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के हमीरपुर के साथ बांदा, चित्रकूट, महोबा के कुछ गांवों में जाकर ज़मीनी हालात देखने की कोशिश की। पड़ताल में एक बात साबित हुई कि विकास के नाम पर यहां कई सालों से हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिनमें से सबसे ज्यादा पैसा पानी के संकट को दूर करने में खर्च किया गया। हमीरपुर के कपसा समेत हजारों गांवों में पैसा तो पानी की तरह बहा, लेकिन लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई। डबल इंजन की सरकार के लाख दावों के बावजूद लोग आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए जूझ रहे हैं। लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक, बुंदेलखंड पैकेज के तहत उत्तर प्रदेश को साल 2009 से 2019 के बीच तीन चरणों में 3107.87 करोड़ रुपये दिए गए। इस धन का इस्तेमाल बुंदेलखंड के सात ज़िलों में अलग-अलग विकास योजनाएं शुरू करने, किसानों की हालत सुधारने और पीने के पानी समस्या को दूर करने में होना था। सरकारी धन खप गया, लेकिन हजारों गांव प्यासे ही रह गए। 

बुंदेलखंड में पेयजल संकट को लेकर साल 2019 में नीति आयोग ने द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) के सहयोग से एक रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश को बुंदेलखंड स्पेशल पैकेज के तहत जितना पैसा दिया गया उसका 66 फीसदी यानी 1445.74 करोड़ रुपये का इस्तेमाल पानी का संकट मिटाने के लिए किया गया, लेकिन ज़मीनी हकीक़त नहीं बदली। 

बांदा के वरिष्ठ पत्रकार राकेश सिंह कछवाह और अरविंद सिंह कहते हैं, ''बुंदेलखंड के मौदहा, राठ, सरीला क्षेत्र के कई गांवों ऐसे हैं, जहां पीने का पानी मिल जाए तो समझो बड़ा भाग्य है। हमीरपुर के मौदहा के कपसा, बक्सा छानी ऐसे गांव हैं, जहां जमीन के नीचे पानी की तलाश में खोदाई करने से पहले पत्थरों से टकराना पड़ता है। सरीला तहसील ममना, टाई, बीलपुर सहित एक दर्जन ऐसे गांव हैं जहां का पानी लेविल 160 फुट नीचे पहुंच जाता है। कुरारा ब्लाक के पतारा, नैठी, भौली, शेखूपुर में पानी का संकट रहता है। मौदहा तहसील में गर्मी ही नहीं, बल्कि हर मौसम में लोगों को पीने के पानी का भीषण संकट झेलना पड़ता है। कपसा गांव में तो लोग कई किलो मीटर दूर चलकर पानी लाते हैं। यहां कुएं तो हैं ही नहीं हैंडपंप भी नजर नहीं आते। यही हाल यहां के अरतरा, करगांव, लेवा आदि गांवों का है। राठ में गर्मी के दिनों में भूगर्भ जल स्तर करीब 30 से 35 मीटर नीचे तक पहुंच जाता है। सरीला में करीब बीस फुट तक नीचे चला जाता है।''

बुंदेलखंड में झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और महोबा के ज्यादातर इलाके सिंचाई के साथ पीने पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। गर्मी का सीजन शुरू होते ही बुंदेलखंड के ग्रामीण-कस्बाई क्षेत्रों में पीने के पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं। चन्द्रशेखर आजाद विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डा. विवेक नारायण सिंह के मुताबिक, ''बुंदेलखंड के ज्यादातर गांवों में पानी 30 से 35 मीटर नहीं है। गर्मी के दिनों में वह बीस फुट और नीचे तक खिसक जाता है।'' 

चित्रकूट के मानिकपुर तहसील के गोपीपुर, जारो माफी, चुरेह केशरुआ, सरहट, गिदुरहा, रानीपुर कल्याणगढ़, कोटा कंदैला, ऊंचाडीह, ऐलहा, बढ़ेहा की हकीकत टटोलने पर हैरान करने वाला सच दिखता है। चित्रकूट के मानिकपुर तहसील के गोपीपुर, जारो माफी, गिदुरहा आदि गांवों में पानी के लिए लोगों को रोजाना जूझना पड़ता है। गर्मी के मौसम में दो से तीन किलोमीटर तक महिलाओं की कतारें दिखाई देती हैं। हालत यह है कि सुबह से लेकर शाम तक दैनिक जीवन के लिए पानी इकट्‌ठा करने की जंग लड़ी जाती है। नागेश प्रसाद दुबे बताते हैं कि पेयजल संकट के चलते पिछले कई सालों से हमारी पत्नी अपनी बेटियों के साथ मायके रह रही है। यहां नहाने तक के लिए पानी नहीं है। गर्मियों में यहां एक दो डिब्बा पानी मिल पाता है। पत्नी अब गांव में आने को तैयार नहीं है। पानी के लिए आपस में लड़ाई झगड़े होते रहते है।  

क्या कर रही है योगी सरकार?

उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार ने जून 2020 में 'हर घर जल' योजना के तहत बुंदेलखंड के हर घर तक पाइपलाइन के ज़रिए पानी पहुंचाने का वादा किया है। इस योजना की समय सीमा जून 2022 तक रखी गई है। यह योजना केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन का हिस्सा है। इसके तहत साल 2024 तक हर घर तक पाइपलाइन से पीने का पानी पहुंचाने की योजना है। जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, 25 नवंबर 2021 तक देशभर के कुल 19,22,41,339 ग्रामीण घरों में से 8,55,08,916 यानी करीब 44.48 फीसदी ग्रामीण घरों में पाइप लाइन का कनेक्शन पहुंच गया है।

हालांकि बुंदेलखंड में घोषणा होने के महीनों बीत जाने के बाद भी यह योजना हकीकत में तब्दील नहीं हो पाई है। कई जगहों पर रेज़रवॉयर बनाए जा रहे हैं और पाइप लाइनें बिछ रही हैं लेकिन पीने के पानी का संकट दूर होता नज़र नहीं आता। पानी भरने के लिए यहां अक्सर लोगों में झगड़ा होता है।'हर घर जल' योजना की ही तरह चित्रकूट के पाठा इलाके में साल 1973 में पाठा पेयजल परियोजना शुरू की गई थी। जिसके तहत यहां पानी की टंकियां बनावाई गईं और लोगों को पाइपला इन से घर-घर पानी पहुंचाने का वादा किया गया, लेकिन हालात जस के तस ही रहे। कुछ जगहों पर पाइपलाइन पहुंची लेकिन पानी नहीं पहुंचा और जहां पानी पहुंचा भी तो कुछ वक़्त बाद वो भी ठप हो गया।

बांदा ज़िले के कालिंजर तरहटी का हाल बेहद खराब है। यहां सड़क किनारे लगे एक हैंडपंप से पूरे गांव के लोग पानी पीते हैं। यूपी जल निगम की ओर से इस हैंडपंप पर सोलर सिस्टम से एक मोटर लगाया गया है उसी के जरिए पानी आता है। अगर धूप नहीं निकलती तो पानी मिलना मुश्किल हो जाता है। वहीं इतनी बड़ी आबादी के बीच सिर्फ एक नल होने से भी कई समस्याएं हैं। बांदा जिले के कलिंजर तरहटी में पीने के पानी के लिए लोगों को काफ़ी मेहनत और इंतज़ार करना पड़ता है। पानी लेने आई गीता बताती हैं, ''चौबीस घंटों में यहां मुश्किल से एक बार पानी मिलता है। यही हाल चित्रकूट के पाठा क्षेत्र का है। यहां जगह-जगह पानी की टंकिया लगाई गई हैं। लेकिन बिजली न आने के कारण अक्सर लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है।''

यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह दावा करते हैं, ''बुंदेलखंड में हालात पहले और खराब थे। अभी हमारी सरकार ने हर घर जल योजना शुरू की है और पानी पहुंचाने का काम हो रहा है। धीरे-धीरे बदलाव दिखेगा। दशकों से चली आ रही समस्या को एक दिन में ख़त्म नहीं किया जा सकता। थोड़ा वक़्त लगेगा, लेकिन सरकार के प्रयास सफल होंगे। पीने का पानी हो या खेती के लिए पानी, हमारी सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। हम बांध और नहरें बना रहे हैं। तालाब भी खुदवा रहे हैं। धीरे-धीरे समस्या ख़त्म हो जाएगी।''

जलशक्ति मंत्री के मुताबिक, यूपी के बुंदेलखंड इलाके में 1200 किमी पाइप लाइन बिछाई जानी है, जिसमें से 500 किमी पाइप लाइन बिछाई जा चुकी है, जिससे 50 गांवों को शुद्ध पानी मिल सकेगा। 46 में 40 टैंक बनाए जा चुके हैं जिससे जून महीने के आखिर तक पानी की आपूर्ति शुरू करने का लक्ष्य तय किया गया है। बुंदेलखंड की जल परियोजनाओं में 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। बुंदेलखंड और विंध्‍य क्षेत्र के लोगों को हम उम्‍मीद से बेहतर जलापूर्ति करने जा रहे हैं। हमें लगता है कि बुंदेलखंड के हर गांव की प्यास बुझाने का पीएम नरेंद्र मोदी का ख्वाब जल्द ही पूरा हो जाएगा।'' 

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