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अदालत ने क्यों कहा कि 'जिहादी साहित्य' रखना अपराध नहीं होगा?

दिल्ली की एक अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक कि ऐसी सामग्री न हो कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के फिलॉसफी का निष्पादन किया गया है। इसे अपराध मान लेना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

"केवल एक विशेष धार्मिक दर्शन वाले 'जिहादी साहित्य' रखना अपराध नहीं होगा, जब तक कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के दर्शन (फिलॉसफी) के अमल को दिखाने के लिए कोई सामग्री मौजूद न हो।"

ये टिप्पणी राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए के एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने की। प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा के मुताबिक यह मानना कि केवल जिहादी साहित्य रखना, जिसमें विशेष धार्मिक दर्शन शामिल हो, अपराध होगा, यह कानून की समझ से परे है। यद्यपि इस प्रकार के साहित्य को कानून के किसी प्रावधान के तहत स्पष्ट रूप से या विशेष रूप से प्रतिबंधित न किया गया हो....जब तक कि ऐसी सामग्री न हो कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के दर्शन का निष्पादन किया गया है। ऐसा प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ है।

बता दें कि अदालत ने यह टिप्पणियां अगस्त 2021 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा कथित रूप से आईएसआईएस विचारधारा का प्रचार करने और नए सदस्यों की भर्ती करने के आरोप में गिरफ्तार 11 लोगों के खिलाफ आरोप तय करते समय कीं। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और 121ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 17 (आतंकवादी कृत्य के लिए धन जुटाना), 18 (साजिश), 18बी (आतंकवादी कृत्य के लये किसी की भर्ती करना) 20 (किसी आतंकवादी संगठन का सदस्य होना) और 38, 39 और 40 के तहत मुकदमा चलाया गया है। हालांकि, अदालत ने कहा कि जिहादी साहित्य रखना यूएपीए की धारा 20 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा और इसलिए आईपीसी की धारा 121ए और यूएपीए की धारा 18, 18बी, 17 और 40 के तहत आरोप तय करने के लिए प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता है।

क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक 11 आरोपियों में से अदालत ने नौ लोगों: मुशाब अनवर, रीस रशीद, मुंडादिगुट्टू सदानंद, मारला दीप्ति, मोहम्मद वकार लोन, मिज़ा सिद्दीकी, शिफ़ा हारिस, ओबैद हामिद मट्टा और अम्मार अब्दुल रहमान के खिलाफ आरोप तय किए हैं। अदालत के आदेश में उल्लेख किया गया है कि आरोपी व्यक्तियों में से एक इरशाद थेके कोलेथ कथित तौर पर फरार होकर विदेश चला गया है।

कोर्ट ने एक अन्य आरोपी मुज़मिल हसन भट को यह कहते हुए कि सभी आरोपों से मुक्त कर दिया कि उसने कभी भी आईएसआईएस का सदस्य होने का दावा नहीं किया और संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया। अदालत ने कहा कि हामिद मट्टा ने प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने का दावा नहीं किया बल्कि वह अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त था. इसलिए उन पर यूएपीए की धारा 2 (ओ) और 13 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

न्यायाधीश ने कहा कि ‘ऐसी कोई सामग्री एकत्र नहीं की गई है जिससे मालूम चले कि किसी भी आरोपी ने हथियार या गोला-बारूद या विस्फोटक पदार्थ खरीदे या उसे हासिल करने का प्रयास किया, या कोई आतंकवादी कृत्य करने की योजना बनाई ताकि आम जनता के मन में बड़े पैमाने पर अशांति या भय पैदा हो सके।’

आदेश में आगे कहा गया, ‘संक्षेप में कहें तो यह मानने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि कोई भी आरोपी व्यक्ति भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश कर रहा था। यह दोहराया जाता है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने किसी भी आतंकवादी गतिविधियों की तैयारी और/या योजना बनाने के लिए कोई हथियार, गोला-बारूद या विस्फोटक या अन्य हानिकारक उपकरण एकत्र किए।’

हालांकि, जज ने कहा कि अभियोजन पक्ष की इस कहानी कि आरोपी व्यक्तियों का ‘गुप्त सोशल मीडिया ऐप के माध्यम से आईएसआईएस की विचारधारा का प्रचार करने का एक सामान्य एजेंडा था’ और उन्होंने ‘एक सुनियोजित आपराधिक साजिश के तहत कमजोर मुस्लिम युवाओं को आईएसआईएस में शामिल करने के लिए प्रभाव में लेकर, उकसाकर और कट्टर बनाने के लिए समान विचारधारा वाले लोगों का समर्थन हासिल करने का प्रयास किया’ को प्रथमदृष्टया प्रमाणित करने के लिए सामग्री है।

गौरतलब है कि अदालत की संबंधित साहित्य को लेकर की गई ये टिप्पणी काफी सुर्खियां बटोर रही है। इसका असर आने वाले दिनों में की अन्य सुनवाइयों में भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में अब सरकार और प्रशासन की इन मामलों के संबंध में एक नई तैयारी भी सामने आ सकती है, जो साहित्य के तथाकथित जिहाद से निपटने के लिए बनाई जाए।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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