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इतवार की कविता : 'पहाड़ों से बन रही हैं लड़कियां...'

ईरान में लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता के ख़िलाफ़ जारी आंदोलन के बीच पढ़िए कमला भसीन की यह कविता, जो बात करती है आज़ाद और मुखर होती महिलाओं की।
poem

हवाओं सी बन रही हैं लड़कियां

उन्हें बेहिचक चलने में मजा आता है

उन्हें मंजूर नहीं बेवजह रोका जाना

 

फूलों सी बन रही हैं लड़कियां

उन्हें महकने में मजा आता है

उन्हें मंजूर नहीं बेदर्दी से कुचला जाना

 

परिंदों सी बन रही हैं लड़कियां

उन्हें बेखौफ उड़ने में मजा आता है

उन्हें मंजूर नहीं उनके परों का काटा जाना

 

पहाड़ों सी बन रही हैं लड़कियां

उन्हें सिर उठा जीने में मजा आता है

उन्हें मंजूर नहीं सिर को झुका कर जीना

 

सूरज सी बन रही हैं लड़कियां

उन्हें चमकने में मजा आता है

उन्हें मंजूर नहीं पर्दों में ढका जाना

 

-कमला भसीन

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