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इस वर्ष फसल की कम कीमतों के कारण किसानों को दो लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान

हज़ारों किसान 20-21 नवम्बर 2017 को दिल्ली में मोदी के धोखे के खिलाफ बुलाई किसान मुक्ति संसद में शरीक होने आ रहे हैं.
farmers mahapadav

दिल्ली में 9-11 नवंबर को श्रमिकों के सफल महापडाव के बाद,अब किसानों की राजधानी पर कब्ज़ा करने की बारी है. पूरे भारत के हजारों किसान अपने फसलों की बेहतर कीमतों और कर्ज़े से मुक्ति की माँग करने के लिए दिल्ली में इकट्ठा होंगे.इस कार्यक्रम को किसान मुक्ति संसद कहा जा रहा है और इसमें उन किसानों के परिवार भी इस कार्यक्रम में शामिल होंगें जिन्होंने कर्ज़े की वजह से आत्महत्या की है I

नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान वायदा किया था कि किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत मिलेगी. उन्होंने विश्वास दिलाया था कि अगर वे चुने गए तो,उनकी सरकार एम.एस. स्वामिनाथन आयोग के सुझाए गये  न्यूनतम समर्थन मूल्य के फ़ार्मूले को लागू करेगी जिसके तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण लागत और 50 फ़ीसदी मुनाफ़े को जोड़कर किया जाना चाहिए I

मोदी को चुनाव जीते और प्रधानमंत्री बने तीन साल से अधिक बीत चुके हैं. लेकिन अब भी इस वायदे के बारे में कोई चर्चा नहीं है. वास्तव में, कृषि मंत्री ने तो संसद में इनकार ही कर दिया कि ऐसा कोई वायदा किया भी गया था.

इस विश्वासघात की किसानों को क्या कीमत चुकानी पड़ी है? 180 से अधिक किसान संगठनों के संयुक्त मंच- अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी )- ने यह अनुमान लगाया है कि इस साल खरीफ़ की 7 प्रमुख फ़सलों के लिए किसानों को जो कीमतें मिली, वो मोदी के वायदे से 2 लाख करोड़ रूपये कम थी. इन 7 फ़सलों में धान, मक्का, सोयाबीन, कपास, बाजरा, मूँगफली और उड़द के बाज़ार में लाये जाने और सैकड़ों मण्डियों में इनके दामों का विश्लेष्ण किया I किसान संघर्ष समिति ने इसे #किसानकीलूट (किसानों की लूट) करार दिया है.

उदाहरण के लिए, हरियाणा के एक किसान भगत सिंह ने 19 क्विंटल बाजरे की फसल बेची. जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) 1,425 रुपये है और प्रधानमंत्री के चुनाव वादे के अनुसार योग्य समर्थन मूल्य 1,917 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन किसान को केवल 1,135 रुपये प्रति क्विंटल ही मिला. इसका मतलब है कि सरकार ने 14,858 रुपये की #किसानकीलूट की. ऐसे ही आंध्र प्रदेश से एक महिला किसान, गद्दाम ललिथमम्मा ने 31 क्विंटल मूँगफली को मात्र 2,600 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,450 रुपये है और प्रधानमंत्री द्वारा किये गए वायदे के अनुसार समर्थन मूल्य 6,134 रुपये होना चाहिए. इसका मतलब यहाँ भी सरकार ने इस किसान से 1,09,554 लूट लिए.

एआईकेएससीसी ने पाया कि इस साल के लिए तय किये गये न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से किसानों को  35,968 करोड़ रुपये का नुक्सान होगा. इसका मुख्य कारण यह है कि ज़्यादातर जगहों पर किसानों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलता. प्रधानमंत्री के वायदे अनुसार अगर लागत + 50% मुनाफा सहित न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना करें तो यह नुकसान विशाल 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक बैठता है. प्रधानमंत्री के वायदे की तुलना में उनके वर्तमान नुकसान और संभावित नुक्सान के बीच इस अंतर का कारण यह है कि घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी अपने आप में नाकाफ़ी है. 2017-18 की खरीफ़ की 14 में से 7 फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से कम तय किया गया. जबकि अन्य 7 फसलों में यह लागत से महज 2% से 19% ही ज़्यादा है.

ईंधन, कीटनाशकों और उर्वरकों और यहाँ तक की पानी की बढ़ती लागत, सरकार द्वारा सब्सिडी में की जा रही कटौती आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से कीमतों में लागत और आय के बीच असंतुलन बढ़ गया है. एक अन्य प्रमुख कारण है अर्थव्यवस्था को कृषि उत्पादों के आयात के लिए खोलना और भारतीय कृषि उत्पादन का वैश्विक बाज़ार के साथ समन्वय जिसके कारण भारत में कीमतों कम हो गयी हैं, जैसे कि चाय, मूँगफली, रबर आदि में देखा गया है. टी.आई.एस.एस. के आर. रामकुमार के अनुसार, वर्ष 1990-91 और 2011-12 के बीच कृषि निर्यात लगभग 13% की दर से बढ़ा जबकि कृषि आयात लगभग 21% की दर से.

कीमतें निर्धारण में इस घोर अन्याय की  वजह से देश भर में किसान कर्ज़े की चपेट में धकेले जा रहे हैं और इसी  वजह से किसान आत्महत्या भी कर रहे हैं. इसके विरुद्ध पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. पिछले दो वर्षों में किसानों ने महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और कई अन्य राज्यों में अपने उत्पादों के लिए बेहतर कीमतों के लिए संघर्ष किये. इसके अलावा, 300 से ज्यादा संगठनों के मंच भूमि अधिकार आंदोलन ने 2016 में देशभर में किसान जत्थों का आयोजन किया और एआईकेएससीसी ने देशभर में 10,000 किलोमीटर से ज़्यादा लम्बी एक किसान मुक्ति यात्रा का आयोजन किया जिसमें  अपने संघर्षों को मज़बूत करने के लिए लगभग 50 लाख किसानों से मिले.

हाल में हुई एक प्रेस बैठक में एआईकेएससीसी के नेताओं ने कहा कि किसानों की इस लूट को संबोधित (का मुकाबला) करने के लिए हम 20 नवंबर 2017 को दिल्ली में बड़ी संख्या में किसान मुक्ति संसद के लिए संसद मार्ग पर संगठित होने के लिए एकत्रित हो रहे हैं. कीमतों के सही और किफायती आंकलन के साथ उसकी कानूनी पात्रता के रूप में पूर्ण उत्पादक मूल्य और उत्पादन की लागत पर कम से कम 50% लाभ, सभी किसानों को को उनकी कृषि उत्पादों के लिए मिलनी चाहिए, यही हमारी मुख्य  माँग है, इसके साथ ऋण से स्वतंत्रता की मांग के अलावा, जिसमें व्यापक स्तर पर तत्काल ऋण माफी ही नहीं बल्कि एक वैधानिक संस्थागत तंत्र का भी गठन होना चाहिए जिससे किसानों के लगातार कर्ज़े में रहने के कारणों का निवारण किया जा सके I”

20 नवंबर को, एक बिल का मसौदा पेश किया जाएगा जिसमें उपरोक्त दो माँगें सम्मिलित हैं, इसे किसानों की संसद में बहस के बाद पारित किया जाएगा. एआईकेसीसी राजनीतिक दलों के नेताओं और प्रधानमंत्री को भी संसद में आने के लिए आमंत्रित करेगी - लेकिन शर्त एक ही है कि वे विधेयक और माँगों का समर्थन करें हैं.

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