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"यह हमारे अमेरिका का वक़्त है" : एएलबीए अर्जेंटीना में करेगा तीसरी महाद्वीपीय बैठक

क्षेत्र में बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच अर्जेंटीना लैटिन अमेरिकी जन आंदोलनों के मंच की तीसरी बैठक की मेज़बानी करेगा।
Argentina

27 अप्रैल से 1 मई तक अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स शहर में लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के जन आंदोलनों, ट्रेड यूनियनों और वामपंथी राजनीतिक संगठनों के 150 से अधिक प्रतिनिधि एकत्र होंगे। यह अवसर एएलबीए आंदोलनों के प्लेटफॉर्म की तीसरी महाद्वीपीय असेंबली का है, जहां यह प्लेटफॉर्म आगे के लिए अपनी रणनीति तय करने की कोशिश करेगा।

एएलबीए ने एक विज्ञप्ति के ज़रीए होने वाली अपनी असेंबली की घोषणा की है जिसमें उन्होंने कहा है कि "अमेरिका के सामाजिक आंदोलनों द्वारा जारी पत्र के 13 साल बाद, बेलेम डो पारा (जिसे मंच की स्थापना का पल माना जाता है) से, अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में उत्पन्न संकट के संदर्भ में, महामारी और हमारे अमेरिका में बदलाव के मद्देनजर, लोगों और लोकप्रिय आंदोलनों के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर लोगों के एकीकरण को मजबूत करने की दिशा में आने वाली चुनौतियों पर गहराई से विचार करेगा जोकि अनिवार्य है।

बयान में कहा गया है कि "हमारी असेंबली को पहले एक केंद्रीय प्रश्न का जवाब देना होगा: कि हम इस समय में हमारे पास मौजूद ताकतों के साथ एक आम परियोजना के तहत एकसाथ लड़ने के लिए महाद्वीप के लोगों को एक साथ कैसे ला सकते हैं; और हम साम्राज्यवाद को हराने के लिए ताकतों के बीच संतुलन कैसे बना सकते हैं और कैसे हम हमारे अमेरिका में दूसरी और निश्चित स्वतंत्रता के लिए लोगों की जीत की दिशा में काम कर सकते हैं।"

इस असेंबली के चार दिनों के सत्र के भीतर, प्रतिनिधि वर्तमान संदर्भ में प्लैटफ़ार्म के महत्वपूर्ण कार्यों, विस्तार की रणनीतियों और काम को आगे बढ़ाने के तरीकों पर बहस करेंगे। असेंबली के केंद्रीय उद्देश्यों में से एक लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना है ताकि लोगों के आंदोलनों के सामने उत्पन्न कार्यभार को समझा जा सके।

असफलताएं 

दिसंबर 2016 में हुई पिछली सभा के बाद से, आंतरिक राजनीति में बदलाव आया है और ताकतों के भू-राजनीतिक संतुलन के कारण पूरे क्षेत्र में व्यापक बदलाव हुए हैं।

इस दौरान की एक प्रमुख घटना धुर-दक्षिपंथी और रूढ़िवादी ताकतों की महत्वपूर्ण मजबूती रही है, जिसमें उनकी चुनावी जीत से लेकर, उनके द्वारा प्रगतिशील और क्रांतिकारी सरकारों को अस्थिर करने के प्रयास शामिल हैं। यह सिलसिला 2015 में अर्जेंटीना में मौरिसियो मैक्री के चुनाव, 2017 में होंडुरास में जुआन ऑरलैंडो हर्नांडेज़ की (धोखाधड़ी) जीत और कोलंबिया में इवान ड्यूक की जीत, ब्राजील में जेयर बोल्सोनारो की जीत और 2018 में चिली में सेबेस्टियन पिनेरा के चुनाव से शुरू हुआ था। इसी दौरान, वेनेजुएला के खिलाफ एकतरफा दादागिरी देखी गई, जो 2014 में शुरू हुई, और गति पकड़ते हुए देश को लंबे समय तक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकट में डाल दिया था। संयुक्त राज्य अमेरिका से सैन्य हस्तक्षेप के खतरों से लेकर समानांतर राष्ट्रपति को थोपने तक की निरंतर अस्थिरता की कार्रवाइयाँ थीं। क्यूबा को भी इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि ट्रम्प प्रशासन ने प्रतिबंधों को कम करने और दोनों देशों के बीच संबंधों को खोलने के लिए की गई सभी प्रगति को उलट दिया था।

बोलिविया में मूवमेंट टुवर्ड्स सोशलिज्म (एमएएस) की प्रगतिशील सरकार को 2019 के चुनावों के बाद तख्तापलट का सामना करना पड़ा, जिसे अमेरिकी राज्यों के संगठन (ओएएस) से वैधता मिली थी।

इक्वाडोर में प्रगतिशील ताकतों को पूरी तरह से तब एक अलग ही किस्म का झटका लगा था, जब पूर्व प्रगतिशील लेनिन मोरेनो ने अमेरिका और ओएएस के इशारे पर राजनीतिक चेहरा बदल लिया था, और राफेल कोरिया के प्रशासन के सदस्यों के खिलाफ एक राजनीतिक चुड़ैल की तरहसे उनका शिकार करना शुरू कर दिया था। उसने आईएमएफ की शर्त पर ऋण लिया और कठोर प्रतिबंध लागि किए, और साथ ही विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे की शरण समाप्त कर दी थी।

जीत

हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में, जब महामारी ने दुनिया को तबाह कर दिया और नवउदारवादी व्यवस्था के गहरे अंतर्विरोधों और क्षेत्र में भारी असमानताओं को उजागर किया, सड़कों के आंदोलनों और मतपेटियों के ज़रिए लोगों की महत्वपूर्ण जीत भी हुई है।

चिली, कोलंबिया और हैती में बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह न केवल अपने देशों को पंजो पर खड़ा करने में कामयाब रहे, बल्कि सड़कों पर लामबंद होकर अपने क्षेत्रों की मांगों को उठाने के साथ-साथ दमनकारी राष्ट्रों की असमान रूप से हिंसक प्रतिक्रियाओं पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान भी आकर्षित अकर्ने में कामयाब रहे। चिली में विद्रोह पहले ही संवैधानिक रास्ते के माध्यम से महत्वपूर्ण संरचनात्मक और संस्थागत परिवर्तन ला चुका है जिसने दिसंबर 2021 में प्रगतिशील गेब्रियल बोरिक की हालिया चुनावी जीत को सुनिश्चित किया और पिनोशे-युग के संविधान को दोबारा लिखने का मार्ग खोला। कोलंबिया में 10-सप्ताह लंबी राष्ट्रीय हड़ताल चली थी जो सभी क्षेत्रों में प्रगतिवादियों के लिए एक गौरव का पल था और अंत में अल्वारो उरीबे वेलेज़ की राजनीतिक प्रवृत्ति को सर्वसम्मति वाले समर्थन में झटका लगा, जिसने दशकों से सभी प्रकार के राजनीतिक असंतोष और सामाजिक संघर्ष के जवाब में हिंसा और दमन का सहरा लिया था। देश में आगामी चुनावों में गुस्तावो पेट्रो के नेतृत्व में प्रोग्रेसिव हिस्टोरीक पेक्ट आगे बढ़ रहा है।

तख्तापलट के बाद बोलीविया में लगातार बड़े पैमाने पर हुई लामबंदी ने वास्तविक सरकार को अक्टूबर 2020 में चुनाव करने पर मजबूर किया और सत्ता से इवो मोरालेस के हिंसक निष्कासन के बाद केवल एक वर्ष के भीतर एमएएस ने चुनाव के साथ तख्तापलट को पलट दिया। 

होंडुरास की जनता ने लिबरे पार्टी के शियोमारा कास्त्रो की चुनावी जीत के साथ 2021 में 12 साल के तख्तापलट से थोपी गई तानाशाही को भी हरा दिया है। यह भ्रष्टाचार, प्रतिबंधों, मानवाधिकारों के उल्लंघन और स्वदेशी भूमि और प्रकृति की रक्षा के खिलाफ लगातार लामबंदी की परिणति थी।

अन्य महत्वपूर्ण प्रगतिशील चुनावी जीत में 2019 में अर्जेंटीना में अल्बर्टो फर्नांडीज और क्रिस्टीना फर्नांडीज के नेतृत्व में फ्रेंट डी टोडोस की जीत हुई, 2019 में मैक्सिको में एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर की जीत हुई, 2021 में निकारागुआ में नेशनल लिबरेशन के लिए सैंडिनिस्टा फ्रंट का फिर से चुनाव शामिल है, और 2021 में फ्री पेरू पार्टी के पेड्रो कैस्टिलो की जीत शामिल है।

इन जीतों ने एक बार फिर क्षेत्र में राजनीतिक मानचित्र को बदल दिया है, रूढ़िवादी आक्रमण को पीछे छोड़ दिया है, और अपने साथ आंदोलनों के सामने नई चुनौतियां लेकर आए हैं। पूरे क्षेत्र में आंदोलन इन सरकारों के साथ कैसे जुड़ेंगे, उनकी मांगों को सुना जाएगा, और अपरिहार्य साम्राज्यवादी और रूढ़िवादी हमलों के आने पर उनका बचाव कैसे किया जाएगा, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, जो आगामी एएलबीए सभा में चर्चा के लिए आमद है। 

विज्ञप्ति में एएलबीए ने जोर दिया है कि "तीसरी असेंबली एक नए क्षण को चिह्नित करेगी ताकि प्लेटफ़ॉर्म बाधाओं को दूर कर सके और ग्रेट होमलैंड की यूनियन को हासिल करने के लिए काम करना जारी रख सके, इसके लिए अधिक संगठनों को लाना होगा, कार्रवाई के बेहतर उपकरण तैयार करने होंगे और संघर्ष में नए लोगों को शामिल करना जारी रखना होगा ताकि  आम लोगों के लिए स्वदेशी-एफ्रो समाजवाद को हासिल किया जा सके।“ 

साभार : पीपल्स डिस्पैच 

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