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पुष्पेंद्र यादव एनकाउंटर मामला : फिर सवालों के कठघरे में खड़ी है यूपी पुलिस!

मामले की गंभीरता को देखते हुए झांसी के डीएम शिवसहाय अवस्थी ने मैजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दे दिए हैं। वहीं एडीजी प्रेम प्रकाश ने कहा है कि इस मामले की जांच में अगर पुलिसवाले दोषी पाए जाएंगे, तो उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा।
फोटो सभार : सोशल मीडिया
फोटो सभार : सोशल मीडिया

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक बार फिर पुलिस एनकाउंटर को लेकर सवालों के कठघरे में खड़ी है। मामला झांसी के मोंठ इलाके में हुए पुष्पेंद्र यादव के एनकाउंटर से जुड़ा है। एक ओर जहां पुलिस दावा कर रही है कि एनकाउंटर में मारा गया पुष्पेंद्र लुटेरा और खनन माफिया था तो वहीं पुष्पेंद्र के घरवाले और गांववाले इस एनकाउंटर को फर्जी करार दे रहे हैं, साथ ही इस मामले की सीबीआई जांच की मांग पर भी अड़े हैं।

ख़बरों के अनुसार एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे मोंठ तहसील में धरने पर बैठे 39 लोगों को गिरफ्तार कर पुलिस ने जेल भेज दिया है। ये सभी पुष्पेंद्र यादव के समर्थन में तहसील में धरना दे रहे थे।

क्या है पूरा मामला ?

झांसी की मोंठ पुलिस ने मीडिया को बताया कि 5 अक्टूबर की रात करीब 9 बजे मोंठ इंस्पेक्टर धर्मेंद्र सिंह चौहान पर बदमाशों ने बमरौली बाइपास के पास फायरिंग की और उनका मोबाइल और कार लूटकर फरार हो गए। जिसके बाद देर रात एरच के करगुवां निवासी विपिन, पुष्पेंद्र व रविंद्र के खिलाफ इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया गया। आरोप लगाया गया कि 29 सितंबर को बालू से भरा ट्रक बंद किए जाने के विरोध में इंस्पेक्टर पर हमला किया गया था। घटना के बाद पुलिस ने हमलावरों की घेराबंदी की थी।

एसएसपी डॉ. ओपी सिंह के अनुसार गुरसराय क्षेत्र में उसी रात करीब 2.30 बजे फरीदा गांव के पास सड़क पर कार आती दिखी। पुलिस ने कार को रोकने का प्रयास किया। इस दौरान कार सवारों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी। जवाब में पुलिस ने भी गोली चलाई, जो पुष्पेंद्र के सिर में जा लगी। मौका पाकर दोनों साथी भाग निकले। पुलिस टीम पुष्पेंद्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंची, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।

पुष्पेंद्र के घरवालों के किया फर्जी एनकाउंटर का दावा

पुष्पेंद्र के घरवालों के अनुसार पुष्पेंद्र के पास दो ट्रक थे, जिनसे वो बालू और गिट्टी की ढुलाई करता था। उनका कहना है कि पुलिस ने पहले तो उसके खिलाफ फर्जी केस किया और फिर एनकाउंटर में उसे मार दिया।
पुष्पेंद्र की पत्नी शिवांगी की मीडिया से बातचीत का वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है। इस वीडियों में शिवांगी फूट-फूटकर रोते हुए कह रही है कि मेरे पति को मार डाला गया। हमें न्याय दे दो। हमे न्याय चाहिए।

न्यूज़क्लिक को एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि परिजनों ने अफसरों की तमाम मन्नतों के बाद भी मृतक का शव लेने से इनकार कर दिया। उनकी मांग थी कि पहले आरोपित इंस्पेक्टर धर्मेंद्र के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसकी गिरफ्तारी हो। लेकिन जब बात नहीं बनी तो देर रात 8 अक्तूबर को पुलिस ने पुष्पेंद्र के शव का अंतिम संस्कार कर दिया।

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पत्रकार के अनुसार मृतक के घरवालों का कहना है कि पुष्पेंद्र का एक भाई दिल्ली में रहता है, पुलिस ने उसके खिलाफ भी हत्या की कोशिश का केस दर्ज किया है। इस मामले में करगुआं गांव के लोगों ने भी पुष्पेंद्र का समर्थन किया है। कई गांववालों का कहना है कि एसएसपी और मोठ कोतवाल ने मिलकर पुष्पेंद्र की हत्या की है। उनकी मांग है कि जब एसएसपी ओपी सिंह और इंस्पेक्टर धर्मेंद्र सिंह चौहान को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए।

फिलहाल मामले की गंभीरता को देखते हुए झांसी के डीएम शिवसहाय अवस्थी ने मैजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दे दिए हैं। वहीं एडीजी प्रेम प्रकाश ने कहा है कि इस मामले की जांच में अगर पुलिसवाले दोषी पाए जाएंगे, तो उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा।

प्रशासन द्वारा तमाम दबावों के बीच इंस्पेक्टर धर्मेंद्र सिंह चौहान को भी लाइन हाजिर कर दिया गया है। उनकी जगह चिरगांव थाना प्रभारी सुनील तिवारी की तैनाती की गई है।

बता दें कि सोशल मीडिया पर भी लोग इस एनकाउंटर पर जमकर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस प्रकरण पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी सभी ने एक सुर में इस मामले की जांच सीबीआई से करने की मांग की है।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे फर्जी एनकाउंटर करार देते हुए बीजेपी और योगी सरकार पर निशाना साधा है तो वहीं राज्यसभा सांसद चंद्रपाल सिंह यादव ने इसे हत्या करार देते हुए आरोप लगाया कि मोंठ पुलिस ने पुष्पेंद्र का ट्रक पकड़ लिया था और पैसे के लेनदेन के विवाद में उसकी हत्या कर दी।

दूसरी ओर राज्य सरकार में मंत्री और पार्टी के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने ट्विट कर कहा है कि पुष्पेंद्र खनन माफिया था और अब समाजवादी पार्टी खनन माफिया के साथ खड़ी दिख रही है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी लखनऊ में विवेक तिवारी एनकाउंटर पर यूपी पुलिस की जमकर किरकिरी हुई थी। साल की शुरुआत में ही संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा संभावित 59फर्जी एनकाउंटर मामलों का संज्ञान लेते हुए भारत सरकार को एक पत्र भी लिखा था। साथ ही मामले को बेहद चिंता का विषय बताया था।

साल 2018 में सिटीजन्स अगेंस्ट हेट नाम के गैर सरकारी संगठन ने मुठभेड़ के 28 मामलों का अध्ययन करके एक रिपोर्ट जारी की थी। इन 28 मामलों में 16 यूपी और 12 हरियाणा के थे। इस रिपोर्ट पर मानवाधिकारों से जुड़े कुछ अन्य संगठन भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया था कि अध्ययन में मुठभेड़ से जुड़े कई ऐसे तथ्य मिले हैं जो संदेह पैदा करते हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता अविनाश सचदेवा ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, 'फर्जी एनकाउंटर एक गंभीर मसला है। पुलिस इस पर जो भी तर्क दे, इसे जस्टिफाई नहीं कर सकती। सवाल ये भी है कि क्या केवल आरोपी होने भर से पुलिस को किसी के एनकाउंटर की इज़ाजत है? अगर पुष्पेंद्र कार लुटकर भागा था, तो बीच के कई पुलिस थानों पर आखिर उसे क्यों नहीं रोका गया?’

अविनाश का आगे कहना है, ‘2017 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस देश में सबसे आगे है।' उन्होंने रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि इस अध्ययन में आयोग ने पिछले 12 साल का आंकड़ा जारी किया था, जिसमें देशभर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं। इसमें अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे।

हालांकि बीजेपी की योगी सरकार और राज्य पुलिस प्रशासन बार-बार फर्जी एनकाउंटर के दावों का खंडन करता रहा है। उनका कहना है कि एनकाउंटर फर्जी तरीके से नहीं किए जा रहे हैं। अगर अपराधी पुलिस पर हमला करता है तो पुलिसकर्मियों को अपने बचाव के लिए उस समय जो उचित लगता है, वो करते हैं।

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