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'कोर्ट' अभिनेता वीरा साठीदार ने गुज़ारा था शोषण के ख़िलाफ़ आंदोलन भरा जीवन

इप्टा, नागपुर के संयोजक और विद्रोही मैगज़ीन के संपादक रह चुके फ़िल्म 'कोर्ट' के अभिनेता वीरा साठीदार का जीवन फ़िल्म में दर्शाए गए उनके किरदार जैसा ही बीता, जिसमें न्याय व्यवस्था के साथ उनके अनुभव भी शामिल थे।
'कोर्ट' अभिनेता वीरा साठीदार
तस्वीर सौजन्य : द हिन्दू

सांस्कृतिक कार्यकर्ता और बेहद पसंद की गई  मराठी फ़िल्म 'कोर्ट' के अभिनेता वीरा साठीदार की मंगलवार को एक अस्पताल में कोविड-19 से जुड़ी बीमारियों की वजह से मौत हो गई।

चैतन्य तम्हाने के निर्देशन में बनी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फ़िल्म 'कोर्ट' में साठीदार ने एक लोकगायक का किरदार निभाया था जिसकी वजह से वे काफ़ी चर्चा में रहे। हाशिये के लोगों की न्याय के लिए असंभव सी लड़ाई के बारे में बनी इस फ़िल्म में साठीदार ने नारायण कांबले का किरदार निभाया था जिनपर इल्ज़ाम था कि उन्होंने अपने लोक गीतों के ज़रिये एक सफ़ाई कर्मचारी को आत्महत्या करने के लिए उकसाया।

दिलचस्प बात है कि निजी ज़िंदगी में भी साठीदार नारायण कांबले जैसे ही थे - एक लोग गायक जो प्रतिरोध के गीत गाता था। कवि-कार्यकर्ता साठीदार इप्टा नागपुर के कन्वेनर रहे थे, और मराठी मैगज़ीन विद्रोही के संपादक रहे थे जो सामाजिक ग़ैर-बराबरी के बारे में बात करती है।

फ़िल्म 'कोर्ट' की रिलीज़ के बाद इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए साठीदार ने कहा था कि फ़िल्म में काम करने से उन्हें जो लोकप्रियता मिली उससे उनका एक्टिविज़्म मज़बूत ही होगा। उन्होंने यह भी कहा कि नारायण कांबले का किरदार निभाना उनके लिए मुश्किल नहीं था, क्योंकि उन्हें न्याय व्यवस्था की कमियों का पहले से अनुभव था।

कवि-कार्यकर्ता को पहली बार 2005 में नागपुर में एक बिजली चोरी मामले में बुक किया गया था, जिसके लिए उन्हें चार साल के लिए पुलिस और अदालत से निपटना पड़ा था। फिर, 2006 में, उन्हें और उनके बेटे को "आपत्तिजनक" साहित्य के साथ किताबें बेचने के लिए कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत बुक किया गया था। बाद में, पुलिस ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस में 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, साठीदार ने कहा था कि नागपुर पुलिस द्वारा कथित माओवादी लिंक के लिए परेशान किया जा रहा था, जबकि 'कोर्ट’ द्वारा उन्हें महत्वपूर्ण प्रशंसा मिली रही और फिल्म को ऑस्कर के लिए भी नामांकित किया गया था। उन्होंने कहा कि पुलिस ने कई बार उनके घर पर छापा मारा था और उनपर फ़र्ज़ी मामले दर्ज करने की कोशिश करते हुए कई बार उनकी किताबें ज़ब्त की थीं।

इससे पहले, विद्रोही पत्रिका में, उनके करीबी सहयोगी सुधीर धावले, जो पत्रिका के संपादक और दलित कार्यकर्ता भी थे, को नक्सलियों के साथ कथित संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया था। नागपुर जेल में साढ़े तीन साल बाद धावले को अदालत ने बरी कर दिया।

जीवन जीने और जाति उत्पीड़न के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे साठीदार महाराष्ट्र में अंबेडकरवादी आंदोलन में भी शामिल थे।

2017 में इंडियन कल्चरल फ़ोरम के साथ एक साक्षात्कार में, साठीदार ने कहा था कि बचपन से ही उन्हें पता था कि जातिगत भेदभाव क्या है और उन्होंने जाति-आधारित अत्याचारों का भी अनुभव किया। उन्होंने बताया कि जब वह बड़े हो रहे थे, तो उन्होंने भारतीय रिपब्लिकन पार्टी को कम्युनिस्टों के साथ भूमि के सवाल पर कई विरोधों का नेतृत्व करते देखा। वह मराठी गायकों से भी प्रेरित थे जिन्होंने बी आर अंबेडकर और उनकी शिक्षाओं पर गीत गाए थे।

इस साक्षात्कार में साठीदार ने दलित और बंबई मिल श्रमिकों की हड़ताल में अपनी भागीदारी के साथ श्रमिक अधिकारों के आंदोलनों में अपनी यात्रा को याद किया। साठीदार ने दलित लेखकों और कवियों द्वारा लिखे गए साहित्य और महाराष्ट्र के पारंपरिक लोक प्रदर्शनों जैसे तमाशा और डंडार के प्रभाव को भी रेखांकित किया।

इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “जब मैं विरोध आंदोलनों, विशेष रूप से श्रम और दलित आंदोलनों में आया, और जब मैं शुरुआत में दलित पैंथर्स के साथ संक्षिप्त रूप से जुड़ा हुआ था, तो हम लोगों को संगठित करने के लिए संघर्ष में नुक्कड़ नाटकों और गीतों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते थे और बैठकें भी करते थे। गाने और नाटक हमारी चाल में हथियार होते थे और हम अब भी इन हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं।"

वाम-अम्बेडकरवादी कार्यकर्ता ने यह भी दावा किया कि फ़िल्मों में काम करने के बावजूद उन्होंने ख़ुद को वह अभिनेता नहीं माना, समाज जिन्हें अभिनेता समझता है। उन्होंने समाज को पूंजीवाद के प्रमुख मूल्यों के साथ प्रस्तुत करने वाली कॉर्पोरेट-वित्त पोषित फ़िल्मों के विपरीत 'लोगों के सिनेमा' की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Late ‘Court’ Actor and Cultural Activist Vira Sathidar Lived a Life of Resistance against Oppression

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