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महाराष्ट्र: मीठी चीनी का कड़वा मौसम

महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादक किसान इस साल कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। सरकार के स्तर पर निर्णय लेने में देरी तो एक प्रमुख वजह है ही, नीतिगत सोच की कमी भी चीनी उद्योग को संकट में डाल रही है।

sugarcane farmers
खेतों से कारखानों तक गन्ने ले जाने के लिए ढुलाई का काम देरी से शुरू हुआ है। तस्वीर: बिबेशेन शिंदे।

गन्ना और गन्ने से उत्पादित चीनी को छोड़कर खाद्यान्न उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में भारत का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा है। लेकिनइसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण उत्पाद बन चुकी चीनी और गन्ना उत्पादक किसान आबादी इस साल कई मुश्किलों का सामना कर रही है। केवल सरकार के स्तर पर निर्णय लेने में देरी तो एक प्रमुख वजह है हीवर्तमान और भविष्य के बारे में नीतिगत सोच की कमी भी चीनी उद्योग को संकट में डाल रही है।

दरअसलसरकारी उदासीनता अपनी जगह पर हैलेकिन साथ ही इस साल गन्ने के सीजन में बार-बार बारिश और मजदूरों की कमी ने इस संकट को बढ़ा दिया है। वहींखुले में चीनी के निर्यात पर रोक से जुड़े केंद्र सरकार के निर्णय की भी कड़ी आलोचना हो रही है। इस सेक्टर से जुड़े जानकार बताते हैं कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से चीनी का संकट चार गुना बढ़ गया है।

पिछले साल गन्ने की पिराई में जून का महीना निकल गया था। इसलिएराज्य सरकार ने सहकारी मॉडल पर संचालित राज्य के चीनी कारखानों में होने वाली गन्ने की पिराई का काम खत्म होने तक उन्हें चालू रखने का निर्णय लिया था। लेकिनइस साल स्थिति और भी जटिल हो गई है। इस साल राज्य में सत्ता परिवर्तन के कारण चीनी क्षेत्र से जुड़े निर्णय नहीं लिए जा सके। वहींबारिश के कारण सरकार द्वारा सहकारी कारखानों के लिए तैयार की गई पिराई की योजना 'पानी मेंचली गई। दरअसलपूरे राज्य में और खासकर चीनी पट्टी कहे जाने वाले पश्चिम महाराष्ट्र के सांगलीसताराकोल्हापुर और पुणे में अनिश्चित तौर पर भारी बारिश हुई है। इसके चलते गन्ने के खेत घुटने तक पानी में डूबे रहे। इसलिएकिसान और मजदूरों के लिए नवंबर का पहला सप्ताह गन्ने की कटाई में जाएगा और कटाई के मामले में पहले ही काफी विलंब हो गया है। हालांकिहाल ही में मशीनीकरण शुरू हुआ हैलेकिन ये मशीनें कीचड़ में काम नहीं कर सकतीं। साथ ही ऐसी स्थिति में कटे हुए गन्ने को खेत से बाहर ले जाना भी संभव नहीं लग रहा है।

केंद्र ने बढ़ा दी मुसीबत
इस साल वैसे ही गन्ना किसान बेमौसम की बारिश के चलते मुश्किल में हैं। खेत तक जातीं सड़कें कीचड़ में घुटने तक गहरी हो गई हैं। यही वजह है कि खेत में कटे गन्नों को भी फैक्ट्रियों तक पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा है। जाहिर है कि गन्ने की कटाई और खेतों से उठाई का काम तब तक शुरू नहीं होगा जब तक कि गन्ने के खेतों और सड़कों पर जमा कीचड़ न सूख जाए। मजदूर अब पहले की तरह कटाई के लिए उपलब्ध नहीं हैं। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि 15 अक्टूबर को काम पर शामिल होना मजदूरों के लिए संभव नहीं थाक्योंकि दिवाली नजदीक आ रही थी। इससे भी गन्ना कटाई और उठाई के काम में देरी हो गई।

इसलिए ज्यादातर फैक्ट्रियों ने दिवाली के बाद ही सीजन शुरू करने की योजना बनाई है। लेकिनसांगली जिले के कृष्णकथा पर कई फैक्ट्रियों में काम अभी तक चालू नहीं हुआ है। स्थिति यह है कि फैक्ट्रियों द्वारा मजदूरों को अग्रिम भुगतान करने के बाद भी मजदूर फैक्ट्रियों में नहीं आ रहे हैं। यही वजह है कि इस वर्ष गन्ना श्रमिकों की समस्या विकराल होने वाली है। एक बार फिर अप्रैल और मई की भीषण गर्मी में गन्ने की कटाई करना अत्यधिक मुश्किल होगा। इसके अलावाइन महीनों में श्रम की क्षमता भी प्रभावित होती है।

वहींमशीनों द्वारा कटाई आर्थिक रूप से पहुंच से बाहर है। करीब 40 से 50 लाख की मशीन खरीदना और सिर्फ तीन महीने काम करना बेकार साबित हो रहा है। वहींइस मशीन की खरीद के लिए राज्य और केंद्र से सब्सिडी की मांग भी कागजों पर ही रह गई है। इन समस्याओं को कम करने की बजाय केंद्र सरकार ने खुले चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर कोटा प्रणाली लागू करने की नीति की घोषणा की है। देश में चीनी का सबसे बड़े निर्यातक महाराष्ट्र के लिए यह कोटा सिस्टम एक समस्या बनने जा रहा है।

माना कि कोई भी बेमौसम बारिश को रोक नहीं सकता। लेकिनश्रम की कमी को तो दूर करने की कोशिश कर ही सकते हैं। खुली चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध हटाना शासकों के हाथ में है। जब तक केंद्र और राज्य सरकारें चीनी उद्योग के हित में तत्काल निर्णय नहीं लेतीतब तक चीनी का मौसम वास्तव में मीठा नहीं होगा।

किसान क्यों कर रहे सरकार का विरोध

ठीक दिवाली के दिन राज्य के कराड शहर में चीनी उत्पादक किसानों ने तहसील कार्यालय के सामने कच्ची रोटियां खाकर सरकार के विरोध में प्रदर्शन किया था। ये किसान गन्ने की वैश्विक और स्थानीय बाजारों में अच्छी कीमत नहीं मिलने से नाराज थे। वहींकिसान नेता पंजाबराव पाटिल का कहना था कि जब गन्ना उत्पादक किसान पहले से ही मुसीबत में हैं तो सरकार गन्ने के दाम कम क्यों कर रही है।

पिछले पांच वर्षों में चीनी का बाजार मूल्य 2,200 रुपए से बढ़कर 3,500 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। लेकिनदूसरी तरफ मिल मालिकों ने पिछले तीन सालों में गन्ने की कीमत 310 रुपए से घटाकर 280 रुपए प्रति क्विंटल कर दी है। किसानों का कहना है कि जब गन्ना उत्पादन की लागत बढ़ रही है और साथ ही चीनी भी महंगी होती जा रही है तो फिर क्यों किसानों से सस्ते में गन्ना खरीदने के लिए गन्ने के दामों को कम किया जा रहा है।

ऐसा तब किया जा रहा है जब वैश्विक चीनी उत्पादन में भारत शीर्ष पर है। एशिया दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक क्षेत्र बन गया है और इस साल 60 मिलियन टन चीनी का उत्पादन किया है। इस साल दुनिया भर में लगभग 182 मिलियन टन चीनी का उत्पादन किया गया था। यह उत्पादन पिछले उत्पादन से 17 लाख टन अधिक है। भारत की इस कामयाबी में महाराष्ट्र के किसानों का बड़ा योगदान है जिसने चीनी उत्पादन के मामले में हर साल देश में अग्रणी उत्तर प्रदेश को पछाड़कर अपना वर्चस्व स्थापित किया है। बता दें कि अकेले महाराष्ट्र में लगभग चौदह लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जाती है।
दूसरी तरफराज्य में गन्ना मजदूरों की कुल संख्या का ग्रामवार विवरण अभी भी सरकार के पास नहीं है। गन्ना मजदूर काम के सिलसिले में गांव से बाहर जाते हैं और कई ग्राम स्तरीय योजनाओंसस्ते अनाज आदि का लाभ उठा पाते हैं।

 

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