Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

शिवाजी महाराज की शपथ और शिंदे सरकार में महाराष्ट्र के 114 किसानों की आत्महत्या

शिवाजी महाराज और किसान आत्महत्याओं के हालिया प्रकरण पर बात करने का कारण राज्य के मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा किसानों को लिखा एक भावनात्मक पत्र है, जिसमें मुख्यमंत्री कहते हैं कि किसानों को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। वे इस पत्र में शिवाजी की शपथ याद दिलाते हुए किसानों से कहते हैं,  "महाराज की शपथ, आत्महत्या मत करो"।
kisan
प्रतीकात्मक तस्वीर।

शिवाजी महाराज का शासनकाल 16वीं शताब्दी का है। जाहिर है कि यह बात 500 साल पुरानी है। लेकिन, इन काल-खंड में यदि प्रगति हुई है तो महाराष्ट्र में किसानों की स्थिति में परिवर्तन होता क्यों नहीं हुआ? आजादी के अमृत-काल में वे आत्महत्या के लिए मजबूर क्यों हैं? बता दें कि राज्य में गठित नई एकनाथ शिंदे सरकार के दौरान महाराष्ट्र के 114 किसानों ने आत्महत्या की है। लेकिन, ऐसी स्थिति में शिंदे आत्मनिरीक्षण करने के बजाय किसानों को शिवाजी महाराज की एक शपथ याद दिला रहे हैं, जबकि एक संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें सोचना चाहिए था कि राज्य के किसानों पर दिन-ब-दिन संकट क्यों बढ़ता जा रहा है?

दरअसल, शिवाजी महाराज और किसान आत्महत्याओं के हालिया प्रकरण पर बात करने का कारण राज्य के मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा किसानों को लिखा एक भावनात्मक पत्र है, जिसमें मुख्यमंत्री कहते हैं कि किसानों को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। वे इस पत्र में शिवाजी की शपथ याद दिलाते हुए किसानों से कहते हैं,  "महाराज की शपथ, आत्महत्या मत करो"।

हालांकि, शिंदे द्वारा सीधे किसानों को संबोधित करने में कुछ भी गलत नहीं है। यह उनका अधिकार है। लेकिन, सवाल है कि किसानों से इतनी भावनात्मक अपील करते हुए शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार किसानों के संबंध में क्या करती है? सरकार के स्तर पर हो रही किसानों की दुविधा का क्या है जिसे मुख्यमंत्री को हल किया जाना चाहिए? क्या सरकार की नीतियां वास्तव में किसानों के लिए फायदेमंद हैं?

किसानों की आत्महत्या के 22 साल

क्या शिंदे को लगता है कि शिवाजी महाराज की शपथ लेने का मतलब है कि किसानों की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और वे आत्महत्या से परहेज करेंगे? यदि वे वास्तविकता को जानते हुए भी महाराज का नाम ले रहे हैं तो उन्हें सोचना चाहिए कि खेती का मौजूदा संकट सिर्फ भावनात्मक अपील से नहीं निपटेगा। ऐसा होता तो इस सरकार के सत्ता में आने के बाद से राज्य में सैकड़ों किसान आत्महत्या नहीं करते। सभी को डर है कि इस साल अनियमित बरसात और इसके परिणामस्वरूप आपदा की स्थिति में यह संख्या बढ़ सकती है। खुद शिंदे जानते हैं कि राज्य में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा सामने आए 22 साल हो चुके हैं। इस दौरान 38 हजार 167 किसानों ने अपनी जान दी है। तब से कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हुआ है। क्यों शिंदे को लगता है कि शिवाजी महाराज की शपथ दिलाने से आगे किसान आत्महत्या करना बंद कर देंगे?

किसान और किसानी से जुड़े जानकार बताते हैं कि किसान आत्महत्या की जड़ सरकार की नीति से जुड़ी है, बावजूद इसके शिंदे समाधान खोजने के बजाय यह भावनात्मक राजनीति क्यों कर रहे हैं। वर्तमान में मानसून परिवर्तन के कारण किसान पिछले दो से तीन वर्षों से भारी बारिश और सूखे दोनों का सामना कर रहे हैं। इसके लिए कानून में मुआवजे का प्रावधान है। लेकिन, शिवाजी महाराजा के शासन की तरह इस मुआवजे को समय पर क्यों नहीं दिया जाता? बता दें कि प्रदेश के सैकड़ों किसानों को अब तक पिछला मुआवजा नहीं मिला, उसका क्या? क्या पत्र लिखने से पहले शिंदे ने इस बारे में सोचा था? हाथ में पैसा न होने पर किसान साहूकार के पास जाता है। प्रदेश में मात्र 12 हजार लाइसेंसधारी साहूकार हैं। गैर-लाइसेंसधारी साहूकारों की संख्या लाखों में हो सकती है, लेकिन कितनी तो इसका सटीक आंकड़ा मिलना मुश्किल है।

साहूकारों से लिया 1755 करोड़ रुपए का कर्ज

राज्य में लाइसेंसधारी साहूकारों से पिछले साल 1755 करोड़ रुपए लिए गए थे। महाराष्ट्र में कई गुना अधिक बिना लाइसेंसधारी साहूकार सक्रिय हैं। दूसरी तरफ, सरकारी स्तर पर हर साल किसानों के लिए मुआवजे की राशि घोषित होती है। शिंदे वह मुआवजा क्यों नहीं दे रहे हैं? शिंदे मुआवजे के लिए नई राशि की घोषणा क्यों नहीं कर रहे हैं? यह कैसे माना जा सकता है कि शिंदे को इस बात की जानकारी नहीं है कि किसान इन साहूकारों के चंगुल में फंसकर मर रहा है और किसानों को साहूकारों के चंगुल से बाहर निकालने के लिए पर्याप्त व समय पर मुआवजा देना आवश्यक है। शिंदे इसे कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं जब अध्ययनों ने साबित कर दिया है कि अगर समय पर मुआवजा दिया गया तो किसान साहूकारों के दरवाजे पर नहीं जाएंगे? दरअसल, कर्तव्य न निभाने पर पर्दा डालने के लिए शिवाजी महाराज के नाम का सहारा लिया जा रहा है? वहीं, वर्ष 2016 में शुरू की गई 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से अधिकांश किसान नाखुश हैं। ऐसी स्थिति में कहीं चतुर राजनेता के तौर पर शिंदे भावनात्मक अपील करके क्या वास्तव में मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं?

इसी तरह, पिछले साल महाराष्ट्र में 96 लाख 46 हजार किसानों ने 57 लाख 16 हजार हेक्टेयर फसल बीमा प्रीमियम का भुगतान किया था। कुल बीमा 21 हजार 888 करोड़ रुपए का था। दूसरी तरफ, राज्य के किसानों को इन बीमा कंपनियों से महज 2 हजार 705 करोड़ का मुआवजा मिला। किसानों का मुख्य आरोप यह है कि ये बीमा कंपनियां खेत में फसल नुकसान का सर्वे ठीक से नहीं कर रही हैं। इसलिए, शिंदे ने पत्र में सरकार द्वारा उठाए गए सटीक कदमों का जिक्र किया होता तो बेहतर होता। वहीं, सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले विदर्भ और मराठवाड़ा अंचल में पिछले कई सालों से सिंचाई परियोजनाएं ठप पड़ी हैं। जब यह सवाल आया तो किसानों को बेहतर प्रशासनिक मंजूरी देने की बजाय शासन स्तर पर झुनझुने पकड़ाए जा रहे हैं। शिंदे अपने पत्र में यह क्यों नहीं कहते कि विदर्भ और मराठवाड़ा अंचल की सिंचाई परियोजनाएं कब पूरी होंगी?

ऐसे होगा 'आत्महत्या मुक्त महाराष्ट्र'?
 
कर्ज राहत योजना को लेकर पिछले कुछ सालों से काफी चर्चा हो रही है। किसान अभी भी संतुष्ट क्यों नहीं हैं? पिछले तीन वर्षों से राज्य में फसल ऋण आवंटन का लक्ष्य 50 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ रहा था। इस साल यह 60 फीसदी पर आ गया है। अब यह संख्या भी कम लग रही है। इसलिए कहा जा रहा है कि कई राष्ट्रीयकृत बैंक किसानों के घर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। लेकिन, किसानों को कर्जदार बनाने को लेकर कवायद क्यों की जा रही है? कृषि जानकार किसानों को कर्जदार बनाने के पक्ष में नहीं हैं। इसकी बजाय कृषि की लागत को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिए। किसानों को कर्जदार बनाने के विरोध में हर साल विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। किसानों को कर्जदार बनाने से रोकने के लिए सरकार वास्तव में क्या करती है? क्या शिंदे को इस बात का अहसास नहीं है कि कर्ज का भार बढ़ने से किसान आत्महत्या करता है?

आत्महत्या मत करना कहना आसान है, लेकिन सरकार के लिए मुश्किल है कि किसानों के मन में इस तरह के विचारों को प्रवेश करने से रोका जाए। फिर भी शिंदे इस कठिन रास्ते पर चलने के बजाय सलाह देने का आसान तरीका क्यों चुन रहे हैं? शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पिछली 1 जुलाई को कृषि दिवस के अवसर पर 'आत्महत्या मुक्त महाराष्ट्र' अभियान की घोषणा की थी। यदि यह पत्र उसी के हिस्से के रूप में लिखा गया होता तो यह इस अभियान की शुरुआत होती। क्या उन्हें लगता है कि इस तरह के भावनात्मक पत्र लिखने से सरकारी अभियान सफल हो जाते हैं? वोट की राजनीति के लिए शिवाजी महाराज का नाम लेने की प्रथा राज्य में एक परंपरा बन गई है। अब अगर किसानों के मुद्दे पर उनका नाम लिया जा रहा है तो उनके शासन की किसान नीति को भी राज्य में लागू किया जाना चाहिए। तभी इस नाम को लेने का अर्थ है। क्या शिंदे दिखाएंगे ऐसी तैयारी? या सिर्फ शपथ खाते रहो? भावनात्मक अपीलों से किसानों की समस्याओं की जटिलता का समाधान नहीं किया जा सकता है। शिंदे को कब अहसास होगा कि उसके लिए कृषि अनुकूल रवैया और नीतियों की जरूरत है?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest