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मोदी सरकार के दौरान उच्च शिक्षा का तेज़ी से हुआ निजीकरणः एआईएसएचई रिपोर्ट

साल 2017 में स्थापित 1147 कॉलेजों में से 941 (82 प्रतिशत) निजी कॉलेज थे, जबकि इनमें केवल 206 (18 प्रतिशत) सरकारी कॉलेज हैं।
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केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उच्च शिक्षा में अनुसंधान तथा नवाचार पर तीन दिवसीय वीसी के सम्मेलन (वीसी कंफ्रेंस ऑन रिसर्च एंड इन्नोवेशन इन हायर एजुकेशन) के दूसरे दिन यानी 17 जुलाई को 2017-2018 के लिए उच्च शिक्षा का अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) रिपोर्ट जारी कर दिया।

इसमें उच्च शिक्षण संस्थानों को 3 व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

- वे विश्वविद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर के संस्थान जिन्हें संसद या राज्य विधानमंडल के कुछ अधिनियमों के तहत डिग्री देने का अधिकार है।

- वे कॉलेज / संस्थान जिन्हें अपने नाम पर डिग्री प्रदान करने का अधिकार नहीं है और इसलिए वे विश्वविद्यालयों से संबद्ध / मान्यता प्राप्त हैं।

नोट: केवल केंद्रीय तथा राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से मान्यता प्राप्त तथा घटक संस्थानों को कॉलेजों के रूप में गिनती की जाती है। डीम्ड/ निजी विश्वविद्यालयों की घटक ईकाई, ऑफ-कैंपस केंद्रों तथा मान्यता प्राप्त केंद्रों को कॉलेजों के रूप में नहीं गिनती की गई है।

स्टैंड-अलोन संस्थान (विश्वविद्यालयों से मान्यता प्राप्त नहीं) जिन्हें डिग्री प्रदान करने का अधिकार नहीं दिया जाता है और इसलिए वे डिप्लोमा स्तर के प्रोग्राम चलाते हैं। इनमें पॉलिटेक्निक,प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (एआईसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त), शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान (एनसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त), वे संस्थान जो सीधे विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के नियंत्रण में हैं वे इसमें शामिल है।

निजी कॉलेज तथा विश्वविद्यालय की तेज़ी से वृद्धि हुई

भारत में कुल 903 विश्वविद्यालय हैं जिनमें से 882 ने ही प्रतिक्रिया दिया है (54 विश्वविद्यालयों जिन्होंने एआईएसएचई 2013-14 से लेकर 2016-17 तक के लिए डेटा के लिए अपलोड किया था)। इनमें से 285 विश्वविद्यालय मान्यता देने वाले विश्वविद्यालय हैं यानी, उनके पास कॉलेज हैं जिन्हें मान्यता दिया है। 560 विश्वविद्यालय यानी 62 प्रतिशत सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालय हैं और 343 यानी 38 प्रतिशत निजी रूप से प्रबंधित विश्वविद्यालय हैं, जैसा कि नीचे की तालिका 1 में सूचीबद्ध हैः

 

इन विश्वविद्यालयों के अधीन कुल 39,050 कॉलेज है जिन्हें विश्वविद्यालयों ने मान्यता दी है (38,061 कॉलेजों ने प्रतिक्रिया दिया)। प्रबंधन के अनुसार 78 प्रतिशत कॉलेज निजी क्षेत्र में हैं जिसमें सभी कॉलेज के 67.3 प्रतिशत छात्रों का दाखिला है। निजी कॉलेजों को निजी ग़ैर सहायता प्राप्त कॉलेजों (64.7 प्रतिशत) के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिसमें सभी कॉलेजों 46.7 प्रतिशत छात्र हैं और निजी सहायता प्राप्त कॉलेज (13.3 प्रतिशत) जिसमें सभी कॉलेज के 20.6 प्रतिशत छात्र हैं।

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ये आंकड़ा जो स्पष्ट रूप से भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र के निजीकरण के विस्तार को दिखाता है कि देश के कुल कॉलेजों में से केवल 22 प्रतिशत ही सरकारी कॉलेज हैं, हालांकि इनमें सभी कॉलेज के32.7 प्रतिशत छात्रों हैं, जो कि असमान रूप से ज्यादा हैं।

इसके अलावा साल 2017 में स्थापित 1,147 कॉलेजों में से 941 (82 प्रतिशत) निजी कॉलेज थे, जिनमें से 834 निजी ग़ैर सहायता प्राप्त हैं और 107 निजी सहायता प्राप्त कॉलेज हैं। जबकि केवल 206 (18 प्रतिशत) सरकारी कॉलेज हैं।

कुल 10,011 स्टैंड-अलोन संस्थान (9090 ने प्रतिक्रिया दिया है) हैं, वे मुख्य रूप से निजी क्षेत्र (75.47 प्रतिशत) द्वारा संचालित होते हैं; निजी ग़ैर सहायता प्राप्त- 66.04 प्रतिशत और निजी सहायता प्राप्त - 9.43 प्रतिशत। यहां, सरकारी क्षेत्र में केवल 24.53 प्रतिशत संस्थान हैं, जो फिर से निजीकरण की प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं।

एआईएसएचई रिपोर्ट 2013-14 और एआईएसएचई रिपोर्ट 2017-18

एआईएसएचई रिपोर्ट 2013-14 के अनुसार सूचीबद्ध 723 विश्वविद्यालयों में से 702 ने प्रतिक्रिया दिया। इनमें से 219 (32 प्रतिशत) निजी तौर पर प्रबंधित किए गए थे। 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक़ निजी तौर पर प्रबंधित विश्वविद्यालयों में 38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्वविद्यालयों की कुल संख्या में ये वृद्धि अधिक स्पष्ट है क्योंकि विश्वविद्यालयों की कुल संख्या 723 से बढ़कर903 हो गई है।

एक तरफ जहां 2013-14 और 2017-18 के बीच केंद्रीय विश्वविद्यालयों की संख्या 42 से 45 , राज्य सरकारी विश्वविद्यालय की संख्या 309 से 351 , और डीम्ड विश्वविद्यालय (सरकार और सरकारी सहायता प्राप्त) की संख्या 47 से बढ़कर 43 हो गईं। वहीं दूसरी तरफ, राज्य निजी विश्वविद्यालय 153 से बढ़कर 262 तक पहुंच गई है। राष्ट्रीय महत्व के संस्थान 68 से बढ़कर101 (2013-14 और2017-18 के बीच) हो गई है, जैसा चित्र 1 में दिखाया गया हैः

 

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इसी तरह साल 2013-14 में 75 प्रतिशत कॉलेजों को निजी तौर पर प्रबंधित (60 प्रतिशत निजी ग़ैर सहायता प्राप्त और 15 प्रतिशत निजी सहायता प्राप्त) किया जाता था, जो वर्ष 2017-18 तक 78प्रतिशत (64.7 प्रतिशत निजी ग़ैर सहायता प्राप्त और 13.3 प्रतिशत निजी सहायता प्राप्त) तक पहुंच गया है। इसके विपरीत, 2013-14 और 2017-18 के बीच सरकारी कॉलेजों का अनुपात 25 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गया, जैसा कि चित्र 2 में दिखाया गया है।

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इसलिए, यद्यपि उच्च शिक्षा संस्थानों की कुल संख्या के अनुपात में निजी संस्थान बढ़ रहे हैं और सरकारी संस्थान कम हो रहे हैं।

इसलिए, सरकारी संस्थानों में नामांकन का प्रतिशत हिस्सा घट रहा है, जबकि निजी संस्थानों में बढ़ रहा है।

इसके अलावा निजी कॉलेजों में छात्रों के नामांकन में 2013-14 में 65 प्रतिशत से 2017-18 में 67.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, सरकारी कॉलेजों में छात्रों के दाख़िला में कमी आई है यानी 2013-14 में 35 प्रतिशत से घटकर 2017-18 में 32.7 प्रतिशत हो गया है जिसे चित्र 3 में दिखाया गया है।

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चूंकि निजी कॉलेज और विश्वविद्यालय सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालयों की तुलना में अधिक महंगे हैं, हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उच्च शिक्षा पर घरेलू ख़र्च बढ़ रहा है, और प्रभावी ढंग से सरकार छात्रों को सस्ती और सब्सिडी वाली उच्च शिक्षा प्रदान करने की अपनी ज़िम्मेदारी से क़दम पीछे हटा रही है। इसके बजाय सरकार इसे बाज़ार और निजी व्यवसायों और ट्रस्टों को दे रही है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और प्रसिद्ध शिक्षाविद अनिता रामपाल से न्यूज़क्लिक ने उच्च शिक्षा के निजीकरण की प्रवृत्ति के बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि यह "एकदम अच्छा विकास नहीं था, भले ही परिवर्तन छोटा हो।"

उन्होंने आगे कहा, "सरकार को न्यायसंगत उच्च शिक्षा के लिए और अवसर प्रदान करने में एक प्रमुख भूमिका निभाने की ज़रूरत है, इसे निजी क्षेत्र में नहीं छोड़ना चाहिए जो ज्यादातर वाणिज्यिक हितों के लिए काम करते है।”

सरकारी संस्थानों में आरक्षण पर हमले, उच्च शिक्षा वित्त पोषण एजेंसी (एचईएफए) से ऋण को विश्वविद्यालयों के अनुदान में प्रतिस्थापित करना, 'ग्रेडेड ऑटोनोमी' और 'ऑटोनोमस कॉलेज' की स्कीम के माध्यम से हास्यास्पद 'ऑटोनोममी' को लागू करना, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की जगह पर भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) लाना, इन सब से स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली का निजीकरण और व्यावसायीकरण कर रही है।
 

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