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एनडीए सरकार द्वारा माँगें स्वीकार न किये जाने तक ग्रामीण डाक सेवक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर

22 मई को लगभग सभी 1,29,500 ब्रांच डाक खाने बंद रहेI
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अभूतपूर्व एकता और हिम्मत का प्रदर्शन करते हुए डाक विभाग के लगभग तीन लाख ग्रामीण डाक सेवा (GDS) कर्मचारी 22 मई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गये हैंI

उनकी शिकायतें हैं – लम्बे अर्से से ग्रामीण डाक सेवकों की माँग कि उन्हें सरकारी कर्मचारी के रूप में नियमित किया जाये और GDS के काम करने की परिस्थितियों पर कमलेश चंद्रा कमेटी की सिफ़ारिशों का खराब रूप से अमल किया जानाI

यह ऐतिहासिक हड़ताल एनडीए सरकार की इन मुद्दों के प्रति उदासीनता को चुनौती दे रही है और इसे सभी डाक कर्मचारियों की यूनियनों से समर्थन मिला हैI इसका नतीजा है कि 22 मई को लगभग सभी 1,29,500 ब्रांच डाक खाने बंद रहेI

ग्रामीण डाक सेवक ग्रामीण इलाकों में काम करने के लिए केंद्र सरकार के डाक विभाग के नियमित डाक कर्मचारियों के अतिरिक्त विभागीय एजेंट होते हैंI इस समय, डाक विभाग के 60% से ज़्यादा कर्मचारी GDS हैं और 80% से ज़्यादा डाक खाने GDS ब्रांच डाक खाने हैंI

हालांकि विभाग के राजस्व का बड़ा भाग GDS से आता है, फिर भी सेवकों को नियमित कर्मचारियों के बराबर आय और सुविधाएँ पाने के लिए काफी संघर्ष करने पड़ेI

सरकार ने GDS की काम करने की परिस्थितियों और आय के ढाँचे के अध्ययन के लिए एक-सदसीय कमलेश चंद्रा कमेटी का गठन कियाI नवम्बर 2016 में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपीI रिपोर्ट में कई सिफ़ारिशें दी गयीं, मसलन GDS की न्यूनतम आय 10,000 रूपये और अधिकतम 35,480 रूपये होनी चाहिए, 50 साल की आयु सीमा को ख़त्म करना, एक बच्चे की शिक्षा के लिए मिलने वाले सालाना 6,000 रूपये में प्रति वर्ष 3% का इज़ाफा इत्यादिI   

ढाई साल के लम्बे अन्तराल के बावजूद डाक विभाग और भारतीय सरकार ने कमलेश चंद्रा की सिफ़ारिशें लागू नहीं कि हैंI भारतीय सरकार और डाक विभाग के रवैये से परेशान होकर ही ग्रामीण डाक सेवा के कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल करने को मजबूर हुए हैंI

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) ने हड़ताली कर्मचारियों का समर्थन करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, “आम जनता को ज़रूरी सेवाएँ देने वाले इन ज़मीनी कर्मचारियों की न्यायसंगत माँगों को स्वीकार कर एनडीए सरकार को इस मुद्दे को तुरंत सुलझाना चाहिएI”

विरोध प्रदर्शन को देखते हुए रीजनल लेबर कमीशनरों ने समाधान निकालने के लिए एक मीटिंग की जिसमें सभी यूनियनें शामिल हुईंI कमलेश चंद्रा कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू किये जाने के सम्बन्ध में विभाग ने कोई भी लिखित आश्वासन नहीं दिया जिससे बेहद शोषित कामगारों के एक हिस्से के भविष्य को अधर में लटका दिया गया हैI

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