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यूपी: आख़िर क्यों 13 घंटे अस्पतालों के चक्कर लगाती गर्भवती को किसी ने भर्ती नहीं किया?

सरकारें तमाम बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के दावे कर रही हैं लेकिन आम आदमी इसकी हक़ीक़त से रोज़ दो-चार हो रहा है। ग़ाज़ियाबाद की तीस वर्षीय गर्भवती महिला के परिजन करीब 13 घंटे नोएडा और ग़ाज़ियाबाद के कई अस्पतालों में उसे लेकर घूमते रहे, डॉक्टरों से मिन्नतें कीं लेकिन किसी अस्पताल ने महिला को भर्ती नहीं किया। आख़िरकार महिला ने देर शाम एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया।
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Image Courtesy: Hindustan Times

“जैसा हमारे साथ हुआ, वैसा किसी दूसरे के साथ न हो"

ये दर्द उस परिवार का है जिन्होंने हाल ही में अपने एक सदस्य को मेडिकल सुविधा के अभाव में खो दिया है। उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद ज़िले की निवासी नीलम जो कि आठ महिने की गर्ववती थीं, उनके परिजन नोएडा और ग़ाज़ियाबाद के अस्पतालों में उन्हें लेकर घंटों घूमते रहे, कई अस्पतालों के चक्कर लगाए बावजूद इसके किसी अस्पताल ने नीलम को भर्ती नहीं किया। जिसके बाद आखिरकार नीलम ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। अब मामला सामने आने के बाद गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक ये घटना गाज़ियाबाद जिले की है। नीलम खोड़ा कॉलोनी इलाके में अपने पति और पांच साल के एक बेटे के साथ रहती थीं। गुरुवार 4 जून की शाम ही वह अस्पताल से चार दिन बाद डिस्चार्ज होकर अपने घर लौटी थीं। अचानक ही शुक्रवार, 5 जून तड़के करीब तीन बजे नीलम को घबराहट के साथ सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी। जिसके बाद करीब छह बजे नीलम के पति बिजेंद्र सिंह और जेठ शैलेंद्र सिंह नीलम को ऑटो रिक्शा में लेकर अस्पताल के लिए निकले।  

परिवार का कहना है कि शाम 7:30 तक वह नोएडा और ग़ाज़ियाबाद के लगभग आठ अस्पतालों के चक्कर लगा चुके थे। लेकिन 12-13 घंटे का समय बीतने के बाद भी नीलम को कहीं, किसी अस्पताल में इलाज नहीं मिला। कई अस्पतालों ने कथित तौर पर नीलम को कोरोने संक्रमण के शक में भर्ती करने से मना कर दिया तो कई ने बेड खाली न होने की बात कही। इस बीच नीलम की तबीयत लगातार खराब होती रही और आख़िरकार नीलम ने शाम करीब सात–साढ़े सात बजे अपने गर्भस्थ शिशु के साथ एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया।

हिंदुस्तान टाइम्स के ख़बर के मुताबिक, नीलम के पति बिजेंद्र एक फैक्टरी में काम करते हैं। उनका ESIC कार्ड भी बना हुआ है। इसी वजह से वह नीलम को लेकर सुबह 6 बजे नोएडा सेक्टर 24 के ESIC अस्पताल गए। वहां कहा गया कि वह सेक्टर 30 के जिला अस्पताल जाएं। लेकिन वहां भी कोई मेडिकल हेल्प नहीं मिलने पर, वह नीलम को नोएडा के शिवालिक अस्पताल ले गए। ये वही अस्पताल है जहां नीलम चार दिनों से भर्ती थीं।

बिजेंद्र का कहना है कि नीलम का शिवालिक अस्पताल में 31 मई से 4 जून तक इलाज हुआ था। जिसके बाद उन्हें अस्पताल ने उन्हें खुद डिस्चार्ज कर दिया था लेकिन इस अस्पताल ने भी नीलम को भर्ती करने से मना कर दिया।

शिवालिक के बाद वे लोग नीलम को लेकर नोएडा सेक्टर 62 के फोर्टिस अस्पताल और सेक्टर 128 के जेपी अस्पताल भी गए। लेकिन बेड न होने का हवाला देकर वहां भी नीलम को भर्ती नहीं किया गया। इसके बाद वे शारदा अस्पताल, वहां से GIMS (गवर्मेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) और उसके बाद वैशाली के मैक्स अस्पताल में भी गए। लेकिन कहीं कोई सहायता न मिलने पर वे फिर वापस नीलम को GIMS लेकर आए, जहां नीलम को अस्पताल वालों ने मृत घोषित कर दिया।

पीड़ित परिवार का क्या कहना है?

बीबीसी से बातचीत में नीलम के जेठ शैलेंद्र ने बताया की सेक्टर तीस के ज़िला अस्पताल प्रशासन ने नीलम को यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि मरीज़ कंटेनमेंट ज़ोन से है, इसलिए वो भर्ती नहीं कर सकते हैं। नोएडा सेक्टर 51 स्थित शिवालिक हॉस्पिटल ने नीलम की हालत गंभीर बता कर बड़े अस्पताल ले जाने को कह दिया। इसके बाद नीलम को फ़ोर्टिस अस्पताल वालों ने यह कहकर भर्ती से मना कर दिया कि उनके यहां इलाज का ख़र्च बहुत ज़्यादा आएगा जिसे हम लोग दे नहीं सकते हैं।

शैलेंद्र के अनुसार इसके बाद उन्होंने 112 नंबर पर पुलिस को भी फ़ोन किया। पुलिस वालों की कोशिश के बावजूद अस्पताल ने नीलम की कोई मदद नहीं की। शारदा अस्पताल वालों ने तो कोविड-19 टेस्ट के पैसे भी ले लिए लेकिन जांच के लिए जिम्स अस्पताल रेफ़र कर दिया। 108 नंबर पर फ़ोन करके एंबुलेंस बुलाई गई लेकिन एंबुलेंस नहीं मिली। प्राइवेट ऐंबुलेंस और उसके ऑक्सीजन सपोर्ट पर जिम्स अस्पताल लेकर गए लेकिन वहां भी खाली बेड नहीं मिला।

नीलम के परिजनों का कहना है कि नीलम में कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे लेकिन अस्पतालों ने बिना डॉक्टरों के देखे ही ये निर्णय ले लिया कि मरीज कोरोना संक्रमित हो सकता है और इसलिए शारदा अस्पताल रेफ़र किया गया क्योंकि वहां कोरोना संक्रमित लोगों को भर्ती होती है। इस दौरान नीलम के परिजन उन्हें लेकर वैशाली स्थित मैक्स अस्पताल भी ले गए और हार कर दोबारा जिम्स अस्पताल ले आए, लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही नीलम ने दम तोड़ दिया।

शैलेंद्र कुमार का कहना है कि नीलम का एक पांच साल का बेटा है, जो अभी तक अपनी मां के आने की आस में बैठा है, लेकिन उसे नहीं पता की अब उसकी मां कभी नहीं आएगी। शैलेंद्र चाहते हैं कि इन अस्पतालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई हो, ताकि फिर किसी दूसरे के साथ ऐसी दुखद घटना न हो।

अस्पताल प्रशासन का क्या कहना है?

मीडिया में मामला आने के बाद अलग-अलग अस्पतालों ने इस संदर्भ में अपना पक्ष रखा है। जिसमें ज्यादातर अस्पतालों ने बेड की कमी की बात स्वीकार की है, तो वहीं कुछ ने कोरोना संक्रमण का हवाला भी दिया है।

जेपी अस्पताल का कहना है कि नीलम में कोरोना के लक्षण जैसे बुखार, सांस लेने में तकलीफ़ आदि साफ-साफ दिखाई दे रहे थे, इसीलिए उन्होंने नीलम को GIMS रेफर किया, जहां कोरोना के मरीज़ों का इलाज होता है।

शारदा अस्पताल के प्रवक्ता डॉ. अजित कुमार का कहना है कि नीलम उनके पास दोपहर के करीब आई थी। उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी. इसलिए ऑक्सीजन देकर उन्हें स्थिर किया गया, और ICU में जगह न होने के कारण उन्हें दूसरे सेंटर में भेज दिया गया।

फोर्टिस अस्पताल के मुताबिक मरीज़ को सुबह 11 बजे लाया गया था, तब उसकी हालत काफी खराब थी। ICU में जगह न होने के कारण, वेटिंग रूप में ऑक्सीजन लगाया गया और बिना देरी करते हुए उनके पति को सलाह भी दी गई कि वह नीलम को ACLS एम्बुलेंस में लेकर दूसरे अस्पताल जाएं।

मैक्स अस्पताल के अनुसार उनके रिकॉर्ड्स के मुताबिक, इमरजेंसी में कोई भी मरीज़ रजिस्टर्ड ही नहीं है।

प्रशासन क्या कर रहा है?

मामले के तूल पकड़ने के बाद गौतमबुद्धनगर के जिला सूचना अधिकारी राकेश चौहान ने बताया कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी सुहास एल वाई ने अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व मुनींद्र नाथ उपाध्याय तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. दीपक ओहरी को इसकी जांच सौंपी है। जिलाधिकारी ने दोनों अधिकारियों को इस प्रकरण में तत्काल जांच करते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

विपक्ष का सरकार से सवाल

इस घटना को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट कर योगी सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।

समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दुख व्यक्त करते हुए लिखा कि ‘उत्तर प्रदेश में प्रसव के लिए अस्पताल खोजते-खोजते एक गर्भवती महिला की मृत्यु अति दुखद है। सरकार यह बताए कि अगर वो कोरोना के लिए एक लाख बेड के इंतज़ाम का दावा करती है तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ बेड आरक्षित क्यों नहीं रखे। भाजपा सरकार ये भी बताए कि उसने अब तक कितने अस्पताल बनाए हैं।’

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प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के दौरान सरकार को नॉन कोविड बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को बहुत गंभीरता से लेना होगा। नोयडा में एक गर्ववती महिला के साथ जानलेवा हादसा एक चेतावनी है। यूपी में कई जगहों से ऐसी खबरें आई हैं। सरकार को इसके लिए पूरी तैयारी करना चाहिए।

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“सरकार ने लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है”

पब्लिक हेल्थ रिसर्चर जोशिता सिंह कहती हैं, “सरकारें कोविड-19 से निपटने में नाकाम साबित हो रही हैं। यूपी सरकार दावे बहुत करती है लेकिन सच्चाई आप सभी के सामने है। हमें लगता है कि अब सरकार ने लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के नाम पर तमाम ढील दे दी गई है, जिसके लिए सरकारें बिल्कुल तैयार नहीं हैं। हमें मान लेना चाहिए कि हमारी सरकारें जन-विरोधी हो गई हैं क्योंकि हेल्थ सिस्टम पर ध्यान देने के बजाय अभी भी सरकारें केवल आर्थिक हितों को साधने में लगी हैं।”

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