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रेलवे : विभागों के विलय और कर्मचारियों की संख्या में कमी के ख़िलाफ़ यूनियन लामबंद

रेलवे के दो प्रमुख यूनियनों ने इसके लिए सड़कों पर लड़ाई लड़ने की धमकी देते हुए कहा है कि 'इस फ़ैसले का हर क़ीमत पर विरोध करेंगे।’
indian railway

नई दिल्ली: भारतीय रेलवे में कार्यबल में कटौती के साथ सभी विभागों को एक विभाग में विलय करने के लिए उठाए जा रहे क़दम के ख़िलाफ़ रेल यूनियनों ने "हर क़ीमत पर" इन फ़ैसलों का विरोध करने के लिए सड़कों पर लड़ाई लड़ने की धमकी दी है।

हालांकि सभी उत्पादन इकाइयों का निजीकरण करने और निजी ऑपरेटरों को 150 गाड़ियों के संचालन की पेशकश करने के निर्णय को लेकर पहले से ही यूनियनों द्वारा विरोध किया गया है। कैडर के पुनर्गठन और कर्मचारियों की संख्या को कम करने के साथ-साथ देश भर में यूनियन की शाखाओं को कम करने के हालिया फ़ैसले को लेकर दो प्रमुख रेलकर्मियों के यूनियनों ऑल-इंडिया रेलवेमैन फ़ेडरेशन (एआईएरएप) और नेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेलवेमैन (एनएफ़आईआर) की तरफ़ से तीखी प्रतिक्रियाएं दी गई हैं।

इन दोनों यूनियनों ने सरकार के इन फ़ैसलों का विरोध करने के लिए एक साथ खड़े हुए है और रेलवे को "निजी हाथों में बेच दिए जाने" से बचाने को तत्काल रद्द करने की मांग की है।

एआईआरएफ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि "हम रेलवे को बदतर हालत में जाने से बचाना चाहते हैं क्योंकि यह देश की जीवन रेखा है। अधिकांश लोग रोज़ाना के सफर के लिए ट्रेनों पर निर्भर हैं और हम इसे एयर इंडिया की तरह बिक जाने के लिए चुप नहीं बैठ सकते हैं।" उन्होंने आगे कहा कि उनका अगला कदम सरकार के कदम से आम लोगों को जागरूक करके इसे एक जन आंदोलन बनाना था।

मिश्रा ने कहा, "हम पूरे देश में अपने जनसंपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को इसके बारे में जागरूक करेंगे। इस निर्णय को लेकर सभी हितधारकों के साथ चर्चा होनी चाहिए।"

एनएफ़आईआर के महासचिव राघवैया ने भी ऐसा कहा। उन्होंने कहा "हमने रेलवे अधिकारियों को इस तरह के ग़लत क़दमों को न उठाने और इसे आगे नहीं बढ़ाने के लिए एक अल्टीमेटम दिया है।"

हालांकि, यूनियनों के कड़े विरोध का सामना करने के बावजूद रेलवे ने पिछले महीने हुई रेल मंत्री पीयूष गोयल सहित उच्चस्तरीय अधिकारियों के साथ दो दिवसीय मैराथन बैठक (परिवर्तन संगोष्ठी) के बाद 'सुधार-संबंधित’ चरणों की एक श्रृंखला शुरू की है।

रेलवे बोर्ड और कर्मचारियों की संख्या को कम करने और विभागीकरण को समाप्त करने के लिए सभी कैडरों को मिलाने का इस बैठक में निर्णय लिया गया।

रेलवे ने तीन वर्षों में कर्मचारियों पर ख़र्च में 10% की कमी और चरणबद्ध तरीक़े से 30% की कटौती का लक्ष्य रखा है। चूंकि कर्मचारियों पर ख़र्च कुल ख़र्च का 60% से अधिक है इसलिए रेलवे को लगता है कि इसकी वित्तीय व्यवहार्यता अकुशल कर्मचारियों की संख्या को न्यूनतम करने और बोर्ड के सदस्यों की संख्या को मौजूदा आठ से घटाकर पांच करने से आएगी।

इस कमी की वजह से यूनियनों पर असर पड़ने की संभावना है क्योंकि प्रत्येक डिवीजन में लगभग 250 यूनियन पदाधिकारी हैं और पूरे रेलवे में कुल मिलाकर 50,000 हैं। इनमें से कई यूनियन कर्मचारियों, रेल मंत्रालय के अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा कि इससे कोई विशेष परिणाम नहीं निकला है।

रेलवे चरणबद्ध तरीक़े से कर्मचारियों की संख्या को 50% तक कम करने के लिए आकर्षक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाओं (वीआरएस) की पेशकश करके अपने कर्मचारियों की संख्या को कम करना ख़तरनाक तरीक़ा बता रहा है।

दो-दिवसीय बैठक में प्रत्येक मंडल में यूनियन की शाखाओं की संख्या में कमी और यूनियन के पदाधिकारियों को स्थानांतरित और पोस्टिंग के मामले में विशेषाधिकारों में कमी का सुझाव दिया गया।

इस परिवर्तन संगोष्ठी के जवाब में एनआईएफ़आर देश भर में रेलकर्मियों और जनता के बीच रेल बचाओ संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है।

राघवैया ने कहा, "हालांकि हम रेलवे में हितधारक हैं फिर भी हमें इस परिर्वतन संगोष्ठी के लिए बुलाया नहीं गया था। ऐसे दूरगामी फ़ैसले लेने से पहले चर्चा होनी चाहिए थी जो रेलवे को नुकसान पहुंचाने वाले थे।"

सुरक्षा और स्वास्थ्य को छोड़कर सभी आठ विभागों को एक कैडर यानी भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा में विलय किया जा रहा है। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष प्रस्तावित संगठन के सीईओ भी बनेंगे।

एआरआईएफ़ के मिश्रा ने कहा कि रेलवे को पेशेवर होने की आवश्यकता है और इसे किसी भी क़ीमत पर कमज़ोर नहीं किया जाना चाहिए।

कैडर विलय से लगभग 8,400 ग्रेड वन रेलवे अधिकारियों के प्रभावित होने की संभावना है जो वर्तमान में आठ विभागों जिनमें सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, ट्रैफ़िक, अकाउंट्स, कर्मचारी, सिग्नल और टेलीकम्यूनिकेशन और स्टोर का हिस्सा हैं।

इन यूनियनों के अलावा कई मध्यम स्तर के अधिकारी भी निजी तौर पर मानते हैं कि यह निर्णय "रेलवे को बेहतर होने से ज़्यादा नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि किसी भी विभाग की मुख्य कार्यनिर्वाह-क्षमता से समझौता किया जाएगा और जवाबदेही से समझौता किया जाएगा।"

हालांकि, एआईआरएफ़ ने कहा कि यह किराया वृद्धि के 1 जनवरी के फ़ैसले के ख़िलाफ़ नहीं था।

मिश्रा ने कहा, “रेलवे का वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं थी। लोग अधिक भुगतान करने के लिए तैयार हैं बशर्ते उन्हें बेहतर सेवा मिले। इसलिए अगर किराया बढ़ाकर रेलवे सेवा में सुधार कर सकता है तो यह स्वागत योग्य है।"

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और लंबे समय से रेलवे से जुड़ी ख़बरों पर लिखते रहे हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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