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रक्षा अधिग्रहण के लिए रणनीतिक साझेदारी मॉडलः एक और घोटाला की तैयारी?

यदि प्रत्येक सेगमेंट के लिए केवल एक भारतीय एसपी की पहचान की जाती है, तो उदाहरण के लिए यह लड़ाकू एयरक्राफ्ट सेगमेंट में एक निजी क्षेत्र एकाधिकार के रूप में उभरने वाले रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर की संभावना खोलता है।
reliance Anil Ambani

स्वदेशी शोध तथा विकास के साथ-साथ सभी घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय शीर्ष निर्णयण संगठन रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसीने वांछित सामरिक साझेदारी (स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप-एसपीमॉडल के लिए दिशानिर्देश को अंतिम रूप दे दिया है जिसके अंतर्गत निर्माण के लिए विदेशी निर्माता भारत में संबंधित मंच पर कुछ भारतीय साझेदार के साथ टाई-अप करेंगे। रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में डीएसी ने नौसेना उपयोगिता हेलीकॉप्टर (एनयूएचके आगामी अधिग्रहण के लिए मंच-विशिष्ट दिशानिर्देश भी तैयार किया जो इस मॉडल के तहत पहली परियोजना होगी।

इससे पहले इस मॉडल का केंद्र विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभुत्व वाले अंतरिक्ष में घरेलू रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी का विस्तार और समर्थन करने के लिए किया गया थाऔर यह मॉडल केवल निजी कंपनियों के लिए प्रदान किया गया था। भारत में विभिन्न क्षेत्रों के दबाव में और रक्षा निर्माण में निजी क्षेत्र की स्पष्ट रूप से कमज़ोर ट्रैक रिकॉर्ड और क्षमताओं को देखते हुए एसपी मॉडल अब भी भारत में विदेशी ओईएम (मूल उपकरण निर्माताऔर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के बीच साझेदारी को समायोजित करता है। यह मॉडल रक्षा अधिग्रहण की ख़तरनाक अदक्ष और जटिल प्रक्रिया को बेहतर बनाने और प्रबंधित करने के लिए कई सुधारों में से एक है। रक्षा प्रक्रिया में एफडीआई के लिए उच्च सीमा 'मेक इन इंडिया'कार्यक्रम इत्यादि जैसी अन्य नीतिगत पहलों के साथ-साथ प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने के प्रयास में इन प्रक्रियाओं और संस्थागत संरचनाओं को अक्सर परिवर्तित किया गया है।

इन सभी उपायों का समग्र उद्देश्य अधिग्रहण को गति देनाउन्हें अधिक पारदर्शी बनानाभ्रष्टाचार की जांच करना और विभिन्न प्रकार के संतुलन बनाना है। हालांकिख़रीद प्रक्रिया बोझिल प्रक्रियाओं तथा ग़ैर ज़रूरी देरी के साथ लगातार अव्यवस्थित है। अनौपचारिक रूप से बिना किसी योजना के रक्षा अधिग्रहण लगातार करनेऔर प्रभावी नेतृत्व के साथ दीर्घकालिकरणनीतिक दृष्टि की कमी के चलते निर्णय लेने में दक्षता बढ़ाने के प्रमुख लक्ष्यों में से एक को पीछे कर रहा है।

इस पृष्ठभूमि के विपरीत मुख्य रूप से भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एसपी मॉडल अब केवल अधिक से अधिक संदेह को बढ़ा सकता है। इस परछाई में क्या भविष्य के संभावित घोटाले छिपे हुए हैं?

एसपी मॉडल

ये एसपी मॉडल दिशानिर्देश द डिफेंस प्रोक्योरमेंट पॉलिसी 2017 के संबंधित अध्याय सात का अनुपालन करता है जिसने इस मॉडल के विस्तृत रूपरेखा को प्रस्तुत किया था। इस एसपी के अंतर्गत लिए जाने वाले चार प्रमुख क्षेत्र की पहचान की गई है ये हैं लड़ाकू विमानहेलीकॉप्टरपनडुब्बियां तथा बख्तरबंद लड़ाकू वाहन एवं मुख्य युद्धक टैंक।

इसके दिशानिर्देश बताते हैं कि इसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता और 'मेक इन इंडियाको प्रोत्साहित करना है और ये रणनीतिक साझेदारी विशिष्ट तकनीकों और गुणवत्तापूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ज़ोर देगा। प्रत्येक अधिग्रहण के लिए अधिकार प्रदत्त परियोजना समितियों से इसे सुनिश्चित करने और समय पर वितरण करने की उम्मीद है।

सवाल यह है कि क्या ये केवल स्पष्ट वक्तव्य हैं या उनका कोई संजीदा मनसूबा है। अगर प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण वास्तव में भारत की रक्षा ख़रीद नीति की एक आधारशिला थी तो कोई पूर्ववर्ती या वर्तमान टेंडर इस पक्ष को स्पष्ट बयान के साथ दबाव डाल सका जो कि इस विजयी लक्ष्य के चयन के लिए एक निर्धारित कारक बन जाएगा। इसे विशेष दिशानिर्देश या नीति दस्तावेज़ की आवश्यकता नहीं हैदिलचस्प बात यह है कि इन दिशानिर्देशों का कहना है कि वैश्विक हथियारों के प्रमुखों को प्रोत्साहित किया जाएगा यदि वे भारत को अपने प्लेटफार्मों का निर्माण और निर्यात के लिए अपने क्षेत्रीय या वैश्विक केंद्र बनाते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के प्रोत्साहन क्या हो सकते हैं।

किसी भी मामले में ये दिशानिर्देश यह कहने के लिए है कि प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञता और पैमाने के साथ भारतीय कंपनियों के विकास के हित में सरकार प्रत्येक क्षेत्र में केवल एक एसपी की पहचान करेगी। ये दिशानिर्देश संभावित रूप से किसी विशेष कंपनी द्वारा किसी क्षेत्र के एकाधिकार के बारे में शिकायतों के मामले में सरकार को कुछ स्थान देता है और शर्त के साथ आवश्यक होने पर उप-खंड को भी पहचाना जा सकता है।

इस दिशानिर्देशों के दो पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है। सबसे पहले यह विचार है कि एसपी को विदेशी ओईएम के साथ टाई-अप सहित सरकार द्वारा निश्चित रूप से क्षमताओं और बुनियादी ढांचे और अन्य मानदंडों के आधार पर चयनित या पहचान की जाएगी। यदि सरकार एसपी चुनने के लिए ज़िम्मेदार है तो कम विश्वसनीयता वाले दावे नहीं किए जा सकते हैं जैसे कि डसॉल्ट जिसका भारत में रफाल के निर्माण के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएलके साथ टाई-अप लगभग पूरा कर चुका थाइसने खुद से अनिवार्य ऑफसेट के लिए पूरी तरह अज्ञात रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर (अनिल अंबानी का समूहचयन किया थायह भी स्पष्ट नहीं है कि वैश्विक हथियारों के निर्माताओं में एक से अधिक भारतीय एसपी हो सकते हैं और क्या केवल पूर्व-मौजूदा टाई-अप पर विचार किया जाएगा। इसमें कई उलझन हैं। उदाहरण के लिए पुनजारी होने वाले लड़ाकू टेंडर में विजयी विमान का चयन स्वतंत्र रूप से किया जाएगाऔर फिर पहले से पहचाने गए एसपी के साथ ओईएम के पूर्व-मौजूदा टाई-अप का चयनित विजेता ध्यान देगायहां एक मामला एफ -16 के लिए लॉकहीड मार्टिन के साथ टाटा का टाई-अप या ग्रिपेन के लिए साब के साथ अदानी का टाई-अप हो सकता हैक्या सरकार के साथ अदानी का प्रभाव उसके पक्षा में डील कर देगाया अमेरिका और लॉकहीड मार्टिन के संघर्ष ने टाटा के सहयोग से भारत में बनाए गए एफ -16 के लिए डील हो सकता हैक्या पूंछ कुत्ते को हिला सकता हैया क्या सरकार विजयी विमान ओईएम पर एसपी लागू करने की शक्ति बनाए रखेगी?

दूसरायदि प्रत्येक खंड के लिए केवल एक भारतीय एसपी की पहचान की जाती है तो उदाहरण के लिए रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लड़ाकू विमान खंड में निजी क्षेत्र एकाधिकार के रूप में उभर रहा है। क्या यह भारतीय बाजार से पूर्व-मौजूदा रिलायंस भागीदारों के अलावा ओईएम को बाहर रखेगायदि इसे वांछनीय नहीं माना जाता है तो कितने अन्य भारतीय एसपी की पहचान की जाएगी?

ज़ाहिर है यहां अस्पष्टताव्यक्तिपरक निर्णयण और पक्षपात के लिए काफी गुंजाइश हैइस तथ्य को देखते हुए कि लगभग सभी भारतीय कंपनियों को हथियार निर्माण में कोई पूर्व अनुभव नहीं हैअन्य मानदंडों को अपनाया जाना चाहिए जैसे कि वित्तीय मामलों में ट्रैक रिकॉर्डसमय पर वितरण,संविदात्मक दायित्व को पूरा करने इत्यादि के साथ विनिर्माणउन्नत प्रौद्योगिकीसटीक विनिर्माण इत्यादि में अनुभव। यदि ऐसे मानदंडों को सही तरीके से लागू करेंगे तो संबंधित क्षेत्रों में कोई अनुभव न होने के कारण और समूह में भारी कर्ज बोझ या दिल्ली में एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो परियोजना को छोड़ने के कारण रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर को कुछ ही समर्थन मिल सकता है। या शायद इस मामले में से कोई भी नहींउदाहरण के लिए जब शैक्षणिक क्षेत्र में कोई पूरी तरह अनजान है उसके पास बुनियादी ढांचे भी नहीं हैं तो उसे प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में मान्यता दी जा सकती है!

नौसेना का हेलीकॉप्टर

डीएसी ने शिप-बोर्न नवल यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एनयूएचके लिए अधिग्रहण प्रक्रिया को भी शुरू कर दियानौसेना की हेलीकॉप्टर ख़रीद सूची का आधादूसरा शिप-बेस्ड नवल मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर (एनएमआरएचके लिए आवश्यक है जो एंटी-सबमरीन युद्ध पर विशेष ज़ोर देने का साथ अधिक सशस्त्र होगा।

अब कई अन्य वस्तुओं की ख़रीद के साथ इन हेलीकॉप्टरों की भारतीय नौसेना (आईएनमें काफी दिनों से ज़रूरत है। भारत फ्रांस के सुड एविएशन-एयरोस्पेशियल के लाइसेंस के तहत वेस्टलैंड सी-किंग या चेतक (मूल नाम अलौएट III) एचएएल के द्वारा बना रहा है। सी-किंग्स का निर्माण अब बंद हो गया है। एचएएल ने साल दर साल 300 से अधिक चेतक लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर बनाए हैं जिनमें से 200 से अधिक वायुसेना से इंडियन आर्मी एविएशन कोर्प्स में स्थानांतरित किए गए हैं और वायु सेना और नेवी के हल्के हथियारों के साथ हल्के बोझ को ले जानेमेड-इवाक इत्यादि के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। नौसेना कुछ रूस निर्मित कामोव -28 और का -31 हेलिकॉप्टर भी इस्तेमाल करती है।

वर्तमान में नौसेना के पास क़रीब 235 हेलीकॉप्टरों की एक बड़ी कमी है जो लगभग गंभीर है। विशेष रूप से पश्चिमी और पूर्वी महासागरों पर अन्य सुरक्षा कार्यों को लेकर नौसेना पर समुद्री गश्ती के लिए भारी मांग देखते हुए ये कमी काफी अधिक है। सेनावायु सेना और तटरक्षक की मांगों के साथ-साथ भारत के पास लगभग 400 हेलीकॉप्टरों की कमी है!

अपने वर्तमान हेलीकॉप्टर बेड़े की अधिक कमी के चलते नौसेना बिना किसी हेलीकॉप्टर के अपने अधिकांश जहाजों का संचालन कर रही हैजो निगरानीराहत और बचाव अभियानऑफ-शोर ट्रूप और कार्गो परिवहन इत्यादि में गंभीर रूप से बाधा डाल रही है। नौसेना ने एचएएल 'ध्रुव'हेलीकॉप्टर के लिए ऑर्डर दिया है जो उसका उन्नत हल्का हेलीकॉप्टर का समुद्री संस्करण है लेकिन ये धीरे-धीरे सेवा में शामिल हो रहे हैं।

इस तरह नौसेना 123 बहु-भूमिका और 111 लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों के लिए बाजार में मौजूद है जो कुल मिलाकर 12 बिलियन डॉलर की लागत हो सकती हैफिर भी एक अन्य बड़ी वस्तु अधिग्रहणऔर फिर भी देरी की एक और माफी के मांग की कहानीबाधित ख़रीदबदलती विशिष्टता,कमज़ोर और देरी से हुई स्वदेशी विकासऔर समग्र विफल अधिग्रहण।

कई पूर्ववत पहल के बाद साल 2010 में 192 हेलीकॉप्टरों की ख़रीद के लिए दो फाइनलिस्ट का फील्ड परीक्षण किया गया था। यूरोकॉप्टर एएस-550सीएस और रूस के का -226 अपनी गति से आगे बढ़ा लेकिन अज्ञात कारणों से पूरी ख़रीद प्रक्रिया को गड़बड़ी के चलते रोक दिया गया था।

जबकि नवल यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एनयूएचके अधिग्रहण को अब शुरू कर दिया गया हैउधर मल्टी-रोल नवल हेलीकॉप्टर (एमआरएनएचख़रीद का अभी भी इंतजार है।

नवल यूटिलिटी हेलिकॉप्टर

निजी क्षेत्र के साझेदारों का चयन करने के लिए रुचि रखने वाले क्षेत्रों द्वारा रूस के का -226 हेलिकॉप्टरों को अमान्य करने या रूसियों को राज़ी करने के लिए कठोर प्रयास के साथ एनयूएच के लिए कई दावेदार हैं। हालांकि भारत और रूस के बीच के पूर्ववर्ती शिखर सम्मेलन के दौरान रूस ने अपना पैर पीछे खींच कर और एचएएल से करार का ज़ोर देकर सबको चौंका दिया। एचएएल ने कर्नाटक के बेंगलुरू से लगभग 100 किमी उत्तर तुमकूर में एक नई हेलीकॉप्टर उत्पादन ईकाई स्थापित की हैजहां यह एचएएल के अपने लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर के साथ इस हेलीकॉप्टर को बनाएगा जिनमें से दोनों को भारतीय सेना और वायु सेना द्वारा पहले ही ऑर्डर दिया जा चुका है। संयोग से एचएएल के एलयूएच को शक्ति इंजन के इस्तेमाल से अधिक क्षमता दी गई हैफ्रांस के टर्बोमेका से एचएएल निर्मित आर्डेडेन एच इंजन जिसके साथ एचएएल कई दशकों तक सहभागी करता रहा है। कामोव हेलिकॉप्टरों को फ्रांस के सफ्रान के ज़रिए एवरियस 2जीइंजन के इस्तेमाल से काफी अधिक शक्ति दी गई है।

कोई सोचेगा कि एचएएल के एलयूएच का नौसेना के लिए स्वतः विकल्प भी होगा। लेकिन नौसेना के हालिया हथियारों और एंटी-सबमरिन क्षमता के लिए इसकी आवश्यकताओं का हालिया संशोधन थोड़ा जटिल मामला हैशक्तिशाली निजी क्षेत्र लॉबी द्वारा इसके खिलाफ मुखालिफ हवा के अलावा काफी अलग है। असल में कई प्रेस रिपोर्टों में दावेदारों के बीच रूसी-एचएएल हेलिकॉप्टर का भी ज़िक्र नहीं है!

अन्य दावेदार एयरबस एएस -565 पैंथर और सिकोरस्की एलयूएच का एक संस्करण हैंजिसे अब लॉकहीड मार्टिन द्वारा अधिग्रहित किया गया है। दोनों शक्तिशाली भारतीय भागीदार हैं। एयरबस ने महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ करार किया है जिसके साथ इसे बेहद सुखद कहा जाता है। एयरबस को फ्रांस के मार्सेलिस से अपनी उत्पादन क्षेत्र को स्थानांतरित करने की पेशकश की गई हैऔर वैश्विक आपूर्ति के लिए भारत को केंद्र के रूप में इस्तेमाल करने कहा गया है। लॉकहीड मार्टिन जो कि एफ -16 के लिए भारत में कड़ी मेहनत कर रहा है और इस आकर्षक बाजार में मजबूती हासिल करने के लिए भारत के साथ सभी प्रकार के औद्योगिक और अन्य संबंध स्थापित कर चुका हैनिस्संदेह टाटा-सिकोरस्की जेवी के माध्यम से टाटा के साथ साझेदारी कर रहा है।

हेलीकॉप्टर सेगमेंट में रणनीतिक साझेदार के रूप में सरकार द्वारा इन दो भारतीय कंपनियों में से किसी एक को काम सौंपेगीक्या वह भविष्य के सभी हेलीकॉप्टर सौदों के लिए आवेदन देगाया वह ओईएम के लिए छोड़ दिया जाएगा जो विजेता के रूप में उभरा है?

चूंकि हेलीकॉप्टर अधिग्रहण एसपी मॉडल के तहत पहली परियोजना है इसलिए इन सवालों के जवाब भविष्य में होने वाले सौदों को काफी बारीकी से देखे जाएंगे।

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